शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

Singhada/ Water cashew nut

                      Singhada/ Water cashew nut 


परिचय : सिंघाड़े की बेल होती है और इसे तालाबों में लगाई जाती है। इसके बेल में ही सिंघाड़े लगते हैं जो पानी के अन्दर होती है। सिंघाड़े में आयोडीन अधिक होता है। गले के रोग व टांसिल में इसका उपयोग लाभदायक होता है। सिंघाडे़ की बेल जलकुम्भी की तरह तालाबों के मीठे पानी में तैरती रहती है। इसकी बेल लम्बी होती है, इसके पत्ते करेले के पत्तों के समान तीन कोनों वाले होते हैं। सिंघाड़ा तिकोनेकार होता है और इस पर कांटे होते हैं। सिंघाड़े के छिलके मजबूत व कठोर होते हैं। दूध की अपेक्षा सिंघाड़े में 22 प्रतिशत खनिज क्षार अधिक होता है। सिंघाडे अत्यंत ही पौष्टिक होता है। इसके सेवन से शरीर को शक्ति मिलती है और खून बढ़ता है। सिंघाड़ा लाल व हल्का कालेपन लिए होता है और इसका गूदा सफेद रंग का होता है। इसको सुखाकर आटा भी बनाया जाता है। सिंघाड़े की साग-सब्जी भी बनाई जाती है। इसका उपयोग पौष्टिक पदार्थों में डालने के लिए भी किया जाता है। इसका ज्यादा मात्रा में सेवन करने से शरीर को पर्याप्त पोषण मिलता है और शरीर को सभी तत्व प्राप्त होते हैं। सिंघाड़े का सेवन करने से शरीर में मांस बढ़ता है। गुण : सिंघाड़ा ठंडा, मीठा, भारी व कषैला होता है। यह मल को साफ करता है, पित्त के दोष व खून की खराबी को दूर करता है। यह वीर्य बढ़ाता है, वायु (गैस) बनाता है तथा कफ पैदा करता है। सिंघाड़े में गर्भ को पुष्ट करने की शक्ति होती है। सिंघाड़े का रस ठंडा, भारी, वीर्य बढ़ाने वाला, पौष्टिक तथा पाचन होता है। यह वात, पित्त, बलगम, जलन, रक्तपित्त बुखार और सन्ताप आदि को दूर करता है। सिंघाड़े के सेवन से लिंग मजबूत होता है। सिंघाड़े की बेल का रस जलन को मिटाता है और आंखों के रोगों को दूर करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार : वैज्ञानिकों के विश्लेषण से पता चला है कि सिंघाड़े में प्रोटीन, चर्बी, कार्बोहाईड्रेट, चूना, फास्फोरस, लोहा, खनिज तत्व, विटामिन `ए´ स्टार्च और मैंग्नीज ज्यादा मात्रा में होता है। सिंघाड़े में चर्बी 5 प्रतिशत, प्रोटीन 3 प्रतिशत, क्षार 7 प्रतिशत और कार्बोहाईड्रेट 4 प्रतिशत होता है। विभिन्न रोगों को उपचार :


1. दाद, खाज, खुजली : नीबू के रस में सूखे सिंघाड़े को घिसकर दाद पर प्रतिदिन लगाएं। इससे पहले तो जलन उत्पन्न होती है और फिर ठंडक महसूस होती है। इसका उपयोग कुछ दिनों तक लगातार करने से दाद ठीक हो जाता है। सिंघाड़ा, सिंगी की जड़, हाऊबेर और भारंगी की जड़ को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से दाद, खाज, खुजली दूर होती है। सिंघाड़ा, भिंगी की जड़, झाऊबेर और भारंगी की जड़ 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें और फिर इसमें 10 ग्राम मिश्रण मिलाकर एक कप पानी के साथ उबाल लें। जब पानी उबलकर आधा रह जाए तो इसे छानकर पीएं। इसका सेवन प्रतिदिन 7-8 दिन तक करने से त्वचा की खाज-खुजली दूर होती है।

 2. प्रदर : सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाकर खाने से श्वेत प्रदर ठीक होता है और सिंघाड़े के आटे की रोटी खाने से रक्तप्रदर ठीक होता है। सूखे सिंघाडा का चूर्ण बनाकर 3-3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर रोग ठीक होते हैं। 25 ग्राम सिंघाड़ा, 10 ग्राम सोना गेरू और 25 ग्राम मिश्री को एक साथ पीसकर 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें। इससे प्रदर में लाभ मिलता है। सिंघाड़ा का रस निकालकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर ठीक होता है।

 3. गर्भाशय की कमजोरी : गर्भाशय की कमजोरी के कारण यदि गर्भ न ठहरता हो तो गर्भधारण के बाद प्रतिदिन कुछ सप्ताहों तक ताजा सिंघाड़ा खाना चाहिए। गर्भावती स्त्री को सिंघाड़े की लपसी दिन में 2-3 बार दूध के साथ लेना चाहिए। इससे रक्तस्राव बंद होता है और गर्भपात नहीं होता। 4. मूत्रकृच्छ : सिंघाड़े का काढ़ा बनाकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी) दूर होता है।

 5. सूजन : सिंघाड़े की छाल को घिसकर लगाने से दर्द व सूजन खत्म होती है।

 6. नपुंसकता : सूखे सिंघाड़े को पीसकर घी और चीनी के साथ हलवा बनाकर खाने से कुछ ही सप्ताहों में नपुंसकता दूर होती है। 

7. पेशाब का रुक जाना : 20 ग्राम ताल मिश्री, 15 ग्राम घी और 30 ग्राम सिंघाड़े को मिलाकर ठण्डे पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।

 8. सातवें महीने के गर्भ की रक्षा : सिंघाड़ा, कमलनाल, मुनक्का, मुलहठी, कसेरू और चीनी को मिलाकर पीस लें और इसे दूध के साथ घोलकर सेवन करें। इससे सातवें महीने के गर्भ की रक्षा होती है। इससे योनि का दर्द दूर होता है।

 9. सोते समय पेशाब निकल जाना : पिसा हुआ सूखा सिंघाड़ा और खांड लगभग 25-25 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रख लें। फिर 1-2 ग्राम मिश्रण पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रात में सोते समय पेशाब का निकल जाना ठीक होता है।

 10. वीर्य की कमी : सिघाडे़ के आटे में बबूल का गोंद, देशी घी और मिश्री मिलाकर लगभग 30 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ लेने से धातु की कमी दूर होती है।

 11. नकसीर : जिन लोगों को नकसीर (नाक से खून बहना) का रोग हो उन्हें बरसात के मौसम के बाद कच्चे सिंघाड़े खाना चाहिए। 

12. कुष्ठ (कोढ़) : सिंघाड़ा, काकड़सिंगी की जड़, हाऊबेर और भारंगी की जड को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 से 4 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन पीने से कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक होता है।

 13. फीलपांव (गजचर्म) : सिंघाड़े का काढ़ा बनाकर गाय के पेशाब में मिलाकर पीने से फीलपांव की सूजन दूर होती है। 

14. कमजोरी : कमजोर व्यक्ति को प्रतिदिन सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाकर खाना चाहिए। इससे शारीरिक शक्ति बढ़ती है। 

15. टांसिल का बढ़ना : गले में टांसिल होने पर सिंघाड़े को पानी में उबालकर इस पानी से प्रतिदिन कुल्ला करें। इससे टांसिल की सूजन दूर होती है। 

16. गले की गांठ : सिंघाड़े में बहुत ज्यादा आयोडीन होता है जिसको खाने से गले की गांठ ठीक होती है और साथ ही गले के दूसरे रोग जैसे- घेंघा, तालुमूल प्रदाह, तुतलाहट आदि ठीक होता है।

17,सिंघड़े का सेवन रोज करने से मर्दना ताक़त मे कई गुना शक्ति बढ़ जाती हैं । आप इसका सेवन फ्रूट या आटे के रूप मे भी कर सकते है।

नोट: 3 महीने लगातार सेवन के बाद 15 दिन के लिये इसे बन्द कर दे ।15 दिनो के बाद फिर से 3 महीने के लिये शुरु कर दे।

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

Aloe -vera health benefits

 परिचय ग्वारपाठा में कई प्रकार के औषधीय गुण पायें जाते हैं जिसके कारण से इसे बगीचों में तथा घरों के आस-पास लगाया जाता है। ग्वारपाठा के पौधे की ऊंचाई 60 से 90 सेमी तक होती है। ग्वारपाठा में जड़ के ऊपर जो तना होता है उसके ऊपर से पत्ते निकलते हैं। जब पत्ते शुरुआत में निकलते हैं तो वे सफेद रंग के होते हैं तथा बाद में बड़े होकर हरे रंग के हो जाते हैं। इसके पत्तों की लंबाई लगभग 30 से 45 सेंटीमीटर तथा चौड़ाई 2.5 से 7.5 सेंटीमीटर होती है और मोटाई में आधा इंच मोटे होते हैं। इन पत्तों को छीलने से घी जैसा गूदा निकलता है जिसे सुखाकर मसब्बर नामक पदार्थ बनाया जाता है। ग्वारपाठा के पत्ते आगे से नोकदार तथा किनारों पर कांटेदार होते हैं। पुराने पौधों में बीचों-बीच एक दण्ड पर लाल फूल लगते हैं। ग्वारपाठा के फल 1 से डेढ़ इंच लम्बे फलियों के रूप में लगते हैं जिनका उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। भारत में के कई स्थानों पर ग्वारपाठा की अलग-अलग जातियां पाई जाती है। इसका उपयोग कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए किया जा सकता है। गुण : आयुर्वेदिक मतानुसार ग्वारपाठा स्वाद में मीठा, तीखा, कड़वा, भारी तथा चिकना होता है। ग्वारपाठा की प्रकृति ठंडी होती है। यह वात तथा कफ को नष्ट करने वाला होता है। यह जहर को भी नष्ट करता है। यह शरीर में शक्ति की वृद्धि करने वाला, वीर्य की मात्रा को बढ़ाने वाला, खून को साफ करने वाला तथा आंखों के रोगों को ठीक करने वाला होता है। यह बुखार, यकृत, प्लीहा, त्वचा, खून में उत्पन्न होने वाली खराबी को दूर करने वाला, कब्ज, खांसी, दमा, मासिकधर्म के विकार, पेट की गैस, सूजन को नष्ट करने वाला तथा अंडवृद्धि रोग में लाभदायक होता है। आग से जलने इसे उपचार करना अधिक लाभकारी है। विभिन्न भाषाओं में नाम: वैज्ञानिक नाम एलावेरा कुलनाम ललाईसिस हिन्दी घीग्वार, ग्वारपाठा अंग्रेजी इण्डियन अलोए लैटिन एलोवेरा संस्कृत घृतकुमारी मराठी कोरफल, कोरकाण्ड गुजराती कंवार पाठु पंजाबी कुंवार गंदल तेलगू कलबंद द्राविड़ी कतालै कन्नड़ तौलसरै, लोलिसार बंगाली घृतकोमारी यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार ग्वारपाठा दूसरे दर्जे का गर्म और खुश्क होता है। यह कब्ज दूर करने वाला, खून को साफ करने वाला, आमाशय को बल देने वाला, मूत्र और मासिकधर्म को ठीक समय पर लाने वाला, यकृत (जिगर), प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि को कम करने वाला होता है। यह आंखों के लिए गुणकारी तथा हाजमा को बढ़ाने वाला, पेट के कीड़ों को खत्म करने वाला होता है। बवासीर तथा हडि्डयों के जोड़ों के रोगों को ठीक करने में यह बहुत लाभकारी है। वैज्ञानिक मतानुसार ग्वारपाठा का रासायनिक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसमें एलोइन नामक ग्लूकोसाइड पाया जाता है। इसके अलावा इसमें क्राइसोफेनिक अम्ल, एन्जाइम, राल, आइसोबारबेलिन, एलोइमोडिन, गैलिक एसिड तथा सुगंधित तेल भी होता है। ग्वारपाठा यकृत (जिगर) की सूजन हृदय रोग से उत्पन्न गुर्दे की सूजन को दूर करने के लिए अधिक लाभकारी औषधि है। गुदा जख्मों को भरने की यह सर्वोत्तम औषधि हैं। यह खून में हीमीग्लोबिन की मात्रा बढ़ाकर खून की कमी को दूर करता है और पित्ताशय की क्रिया ठीक रूप से चलाने में मदद करता है। हानिकारक प्रभाव : प्रसूता स्त्रियों को स्तनपान के दौरान ग्वारपाठा का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह उनके लिए हानिकारक हो सकता है। यदि रक्तस्राव हो रहा हो तो इस अवस्था में इसका सेवन हानिकारक हो सकता है। ग्वारपाठा का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट में मरोड़ के साथ दस्त आना शुरू हो सकता है। मात्रा : ग्वारपाठे के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर तथा ग्वारपाठे का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम की मात्रा में सेवन किया जा सकता है। विभिन्न रोगों में उपयोग :



 1. जलना: शरीर के जले हुए स्थान पर ग्वारपाठे का गूदा बांधने से फफोले नहीं उठते तथा तुरन्त ठंडक पहुंचती है। ग्वारपाठे के पत्तों के ताजे रस का लेप करने से जले हुए घाव भर जाते हैं। घी ग्वार के पत्ते को चीरकर इसके गूदे को निकालकर त्वचा पर दिन में 2-3 बार लगाने से जलन दूर होकर ठंडक मिलती है और घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है। ग्वारपाठा के छिलके को उतारकर इसे पीस लें फिर शरीर के जले हुए भाग पर लेप करें इससे जलन मिट जाती है और जख्म भी भर जाता है। ग्वारपाठे के गूदे के चार भाग में दो भाग शहद मिलाकर जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है। आग से जले हुए भाग पर ग्वारपाठे का गूदा लगाने से जलन शांत हो जाती है और फफोले भी नहीं उठते हैं।

3. सिर दर्द: ग्वारपाठे का रस निकालकर उसमें गेहूं का आटा मिलाकर उसकी 2 रोटी बनाकर सेंक लें। इसके बाद रोटी को हाथ से दबाकर देशी घी में डाल दें। इसे सुबह सूरज उगने से पहले इसे खाकर सो जाएं। इस प्रकार 5-7 दिनों तक लगतार इसका सेवन करने से किसी भी प्रकार का सिर दर्द हो वह ठीक हो जाता है। सिर में दर्द होने पर ग्वारपाठे के गूदे में थोड़ी मात्रा में दारुहरिद्रा का चूर्ण मिलाकर गर्म करें और दर्द वालें स्थान पर इसे लगाकर पट्टी कर लें इससे दर्द ठीक हो जाएगा।

 4. गंजापन: लाल रंग का ग्वारपाठा (जिसमें नारंगी और कुछ लाल रंग के फूल लगते हैं) के गूदे को स्प्रिट में गलाकर सिर पर लेप करने से बाल काले हो जाते हैं तथा गंजे सिर पर बाल उगने लगते हैं। 

5. कुत्ते के काटने पर: ग्वारपाठे को एक ओर से छीलकर इसके गूदे पर पिसा हुआ सेंधानमक डालें, फिर इसे कुत्ते के काटे हुए स्थान पर लगा दें। इस प्रयोग को लगातार दिन में 4 बार करने से लाभ मिलता है।

 6. पेट के रोग: 5 चम्मच ग्वारपाठे का ताजा रस, 2 चम्मच शहद और आधे नींबू का रस मिलाकर सुबह-शाम दिन में पीने से सभी प्रकार के पेट के रोग ठीक हो जाते हैं। 25 ग्राम ग्वारपाठे के ताजे रस, 12 ग्राम शहद और आधे नींबू का रस मिलाकर दिन में 2 बार सुबह और शाम पीने से पेट के हर प्रकार के रोग ठीक हो जाते है। ग्वारपाठा के गूदे को गर्म करके सेवन करने से पेट में गैस बनने की शिकायत दूर हो जाती है। 6 ग्राम ग्वारपाठा का गूदा, 6 ग्राम गाय का घी, 1 ग्राम हरीतकी का चूर्ण और 1 ग्राम सेंधानमक को एक साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पेट में गैस बनने की शिकायत दूर हो जाती है। ग्वारपाठा के पत्तों के दोनों ओर के जो कांटे लगे होते हैं उसे अच्छी प्रकार साफ कर लें, फिर उसके छोटे-छोटे टुकड़े काटकर एक बर्तन में डाल दें और इसमें आधा किलो नमक डालकर मुंह बंद कर दें। इसके बाद इसे 2-3 दिन तक धूप में रखें, बीच-बीच में इसे हिलाते रहें। तीन दिन बाद इसमें 100 ग्राम हल्दी, 60 ग्राम भुनी हींग, 300 ग्राम अजवायन, 100 ग्राम शूंठी, 60 ग्राम कालीमिर्च, 100 ग्राम धनिया, 100 गाम सफेद जीरा, 50 ग्राम लालमिर्च, 60 ग्राम पीपल, 50 ग्राम लौंग, 50 ग्राम अकरकरा, 100 ग्राम कालाजीरा, 50 ग्राम बड़ी इलायची, 50 ग्राम दालचीनी, 50 ग्राम सुहागा,300 ग्राम राई को बारीक पीसकर डाल दें। रोगी के शरीर की ताकत के अनुसार इसमें से 3 ग्राम से 6 ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट के वात-कफ संबन्धी सभी रोग ठीक हो जाते हैं। ग्वारपाठा के 10-20 जड़ों को कुचलकर उबालकर छान लें फिर इस पर भूनी हुई हींग छिड़ककर सेवन करें इससे पेट का दर्द ठीक हो जाता है। 10 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे का ताजा रस में 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से पेट के रोगों में लाभ मिलता है। ग्वारपाठा के गूदे से पेट पर लेप करें इससे आंतों में जमा मल गुदा से निकल जाएगा और पेट के अन्दर की गांठे गल जाएंगी जिसके फलस्वरूप पेट में कब्ज बनने की समस्या दूर हो जाएगी तथा पेट में दर्द होना भी बंद हो जाएगा। ग्वारपाठे की जड़ और थोड़ी-हींग को भूनकर पीस लें और इसे पानी में मिलाकर पीने से पेट का दर्द समाप्त हो जाता है। 

7. अम्लपित्त: ग्वारपाठे के 14 से 28 मिलीमीटर पत्तों का रस दिन में 2 बार पीने से अम्लपित्त में लाभ मिलता है तथा इसके कारण से होने वाला सिर दर्द ठीक हो जाता है। 

8. प्लीहोदर (तिल्ली के कारण होने वाला पेट का दर्द): ग्वारपाठे के पत्तों के रस 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा को 1 से 3 ग्राम सरफोंका के पंचांग (जड़, पत्ता, तना, फल और फूल) के चूर्ण के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से प्लीहोदर के रोग में लाभ मिलता है।

 9. स्त्री रोग: स्त्री रोग को ठीक करने के लिए ग्वारपाठे के 14-28 मिलीलीटर पत्तों के रस को आधा ग्राम भुनी हींग के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए। 

10. सूजन: ग्वारपाठा के पत्तों का रस में सफेद जीरा और हल्दी को पीसकर मिला दें, इससे लेप बन जाएगा। इस लेप को दिन में 2-3 बार सूजन पर लगाने से लाभ मिलता है। लगभग 10-10 ग्राम ग्वारपाठे के पत्ते और सफेद जीरा को पीसकर सूजन वाले अंग पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है। 

11. फोड़े-फुंसियां: ग्वारपाठा का गूदा गर्म करके फोड़े-फुंसियों पर बांधे इससे या तो वह बैठ जाएगी या फिर पककर फूट जाएगी। जब फोड़े-फुन्सी फूट जाएं तो इस पर ग्वारपाठा के गूदे में हल्दी मिलाकर लगाए इसे घाव जल्दी ठीक हो जाएगा। ग्वारपाठे का गूदा निकालकर गर्म करके उसमें 2 चुटकी हल्दी मिला लें, फिर इसकों फोड़े पर लगाकर ऊपर से पट्टी बांध दें। थोड़े ही समय में फोड़ा पककर फूट जायेगा और उसका मवाद बाहर निकल जायेगा। मवाद निकलने के बाद फोड़ा जल्दी ही ठीक हो जायेगा।

 12. बवासीर: ग्वारपाठा के गूदे में थोड़ा पिसा हुआ गेरू मिलाकर मस्सों पर बांधने से जलन, पीड़ा, दूर होकर बवासीर के मस्सों से खून बहना बंद हो जाता है और आराम मिलता है। खूनी बवासीर में 50 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में 2 ग्राम पिसा हुआ गेरू मिलाकर इसकी टिकिया बना लें। इस टिकिया को रुई के फोहे पर फैलाकर बवासीर के स्थान पर लंगोटी की तरह पट्टी बांध दें। इससे मस्सों में होने वाली जलन तथा दर्द ठीक हो जाता है और मस्से सिकुड़कर दब जाते हैं। यह प्रयोग खूनी बवासीर में लाभकारी होता है। 

13. हिचकी: 2 चम्मच ग्वारपाठा का रस आधे चम्मच सोंठ के चूर्ण के साथ सेवन करने से हिचकी में आराम मिलता है। 6 मिलीलीटर ग्वारपाठे के रस में 1 ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से हिचकी जल्द बंद हो जाती है। 

14. मासिकधर्म ठीक प्रकार से न आना: ग्वारपाठा के 20 गूदे में 10 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर सेवन करें। ऐसी मात्रा दिन में दो बार 3-4 दिनों तक सेवन करने से महिलाओं का मासिकधर्म ठीक समय पर आने लगता है। 10 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे पर 500 मिलीग्राम पलाश का क्षार छिडककर दिन में दो बार सेवन करने से मासिकधर्म सही समय पर आने लगता है। 

15. पौष्टिक, बलवर्द्धक योग: ग्वारपाठा के 2 पत्तों को चीरकर उसका सारा गूदा निकाल लें। उसमें नीम गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण मिलाकर रोजाना 1 बार सेवन करते रहने से शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है। 

16. कमर दर्द: 20-25 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम कुछ दिन तक सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है। 10 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा, 50 ग्राम सोंठ, 4 लौंग, 50 ग्राम नागौरी असगंध इन सबको पीसकर चटनी बना लें। 4 ग्राम चटनी रोजाना सुबह सेवन करें। इससे कमर दर्द में आराम मिलेगा। 20 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में 2 ग्राम शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से शीत लहर के कारण उत्पन्न कमर दर्द से राहत मिलता है। गेहूं के आटे में ग्वारपाठा का गूदा इतना मिलाए जितना आटे को गूंथने के लिए काफी हो, इसके बाद आटे को गूंथकर रोटी बना लें। इस रोटी का चूर्ण बनाकर इसमें चीनी और घी मिला दें और लड्डू बना लें। इस लड्डू का सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।

 17. कान दर्द: ग्वारपाठे के रस को गर्म करके जिस कान में दर्द हो, उससे दूसरी तरफ के कान में 2-2 बूंद डालने से कानों का दर्द दूर हो जाता है। ग्वारपाठे के रस को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है। 

18. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन): 50 ग्राम ग्वारपाठे के गूदे में चीनी मिलाकर खाने से पेशाब करने में जलन और दर्द की समस्यां दूर हो जाती है। 

19. बच्चों की कब्ज: छोटे बच्चों की नाभि पर साबुन के साथ ग्वारपाठे के गूदे का लेप करने से दस्त साफ होते हैं और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।

 20. उपदंश (फिरंग): उपदंश के कारण से उत्पन्न घावों पर ग्वारपाठा के गूदे का लेप लगाने से लाभ मिलता है। ग्वारपाठे के 5 मिलीलीटर रस में 5 ग्राम जीरे को पीसकर लेप करने से उपदंश की बीमारी दूर होती है। 

21. मधुमेह: मधुमेह रोग में ग्वारपाठा का 5 ग्राम गूदा 250 से 500 मिलीलीटर गूडूची के रस के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।

 22. कामला (पीलिया): कामला (पीलिया) के रोग में ग्वारपाठा का 10-20 मिलीलीटर रस दिन में 2 से 3 बार पीने से पित्त नलिका का अवरोध दूर होकर लाभ मिलता है। इस प्रयोग से आंखों का पीलापन और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। इसके रस को रोगी की नाक में बूंद-बूंद करके डालने से नाक से निकलने वाले पीले रंग का स्राव होना बंद हो जाता है। लगभग 3 से 6 ग्राम ग्वारपाठा गूदे को मट्ठा के साथ सेवन करने से प्लीहावृद्धि (तिल्ली का बढ़ना), यकृतवृद्धि (जिगर का बढ़ना), आध्यमानशूल (पेट में गैस बनने के कारण दर्द), तथा अन्य पाचन संस्थान के रोगों के कारण होने वाला पीलिया रोग ठीक हो जाता है तथा ये रोग भी ठीक हो जाते हैं। ग्वारपाठा के पत्तों का गूदा निकाल दें और इसके बाद जो छिलका बचे उसे मटकी में भर दें तथा फिर इसमें बराबर मात्रा में नमक मिलाकर मटकी का मुंह बंद करके कंडों की आग में रख दें। जब मटकी के अन्दर का द्रव्य जलकर काला हो जाए तो उसे बारीक पीसकर शीशी में भरकर रख दें। इसमें में कुछ मात्रा में सुबह तथा शाम को सेवन करने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।

 23. जिगर की कमजोरी : 20 ग्राम ग्वारपाठा के पत्तों का रस तथा 10 ग्राम शहद दोनों द्रव्यों को चीनी मिट्टी के बर्तन में मुंह बंद करके 1 सप्ताह तक धूप में रखें, इसके बाद इसे छान लें। इसमें से 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से यकृत विकारों (जिगर के रोगों) को दूर करने में लाभ मिलता है। इसकी अधिक मात्रा विरेचक होती है परन्तु उचित मात्रा में सेवन करने से मल एवं वात की प्रवृत्ति, ठीक होने लगती है। इसमें सेवन से यकृत (जिगर) मजबूत हो जाता है और उसकी क्रिया सामान्य हो जाती है। 

24. तिल्ली: ग्वारपाठा के गूदे पर सुहागा को छिड़ककर सेवन करने से तिल्ली कट जाती है। 

25. जोड़ों के (गठिया) दर्द: 10 ग्वारपाठा के गूदा का सेवन रोजाना सुबह-शाम करने से गठिया रोग दूर हो जाता है। 

26. ज्वर: 10 से 20 मिलीलीटर ग्वारपाठा की जड़ का काढ़ा दिन में 3 बार पीने से ज्वर कम हो जाता है।

 27. व्रण (घाव), चोट और गांठ: यदि घाव पका न हो तो ग्वारपाठे के गूदे में थोड़ी सज्जीक्षार तथा हरिद्रा चूर्ण मिलाकर लेप बना लें और इस लेप को घाव पर लगा दें इससे घाव पककर फूट जाएगा और यह जल्दी ही ठीक हो जाएगा। शरीर की किसी ग्रंथि में गांठ पड़ जाए तो वहां पर ग्वारपाठा का गूदा में लहसुन और हल्दी मिलाकर इसे हल्का गर्म करके गांठ पर लगाए इससे आराम मिलता है। गांठों की सूजन पर ग्वारपाठे के पत्ते को एक ओर से छीलकर तथा उस पर थोड़ा सा हरिद्रा चूर्ण छिड़ककर इसे हल्का गर्म करके गांठों की सूजन पर लगाएं इससे आराम मिलेगा। चोट, मोच तथा कुचले जाने पर दर्द या सूजन हो रहा हो तो ग्वारपाठे के गूदें में अफीम तथा हल्दी का चूर्ण मिलाकर इसे सूजन तथा दर्द वाले भाग पर लगा लें इससे लाभ मिलेगा। औरतों के स्तन पर चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारण से गांठ या सूजन हो गया हो तो ग्वारपाठे की जड़ का चूर्ण बनाकर उसमें थोड़ा सा हरिद्रा चूर्ण मिलाकर इसे हलक गर्म करें और गांठ या सूजन वाले भाग पर लगाकर पट्टी बांध लें इससे सूजन कम हो जाती है और दर्द भी ठीक हो जाता है। इस तरह से उपचार दिन में 2-3 बार करते रहना चाहिए। ग्वारपाठे की जड़ को घाव पर लगाने से हड्डी के घाव और पुराने घाव ठीक हो जाते हैं। ग्वारपाठे के पत्ते का टुकड़ा करके इसके एक ओर का छिल्का हटा दें और छिल्के हटे हुए भाग पर रसोत और हल्दी छिड़ककर हल्का गर्म करें फिर इसे गांठ वाले भाग पर बांध दें इससे लाभ मिलेगा।

 28. पेट की गांठ: ग्वारपाठे के गूदे को पेट के ऊपर बांधने से पेट की गांठ बैठ जाती है। कठोर पेट मुलायम हो जाता है और आंतों में जमा हुआ मल बाहर निकल जाता है। 60 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा और 60 ग्राम घी को एक साथ मिलाकर उसमें 10 ग्राम हरीतकी चूर्ण तथा 10 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर अच्छी तरह घोंट लें, फिर इसमें से 10-15 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट की गांठे बैठ जाती है। वातज गुल्म और वातजन्य रोगों की अवस्था में गुनगुने पानी के साथ प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

 29. नासूर: ग्वारपाठे के गूदे को आग में पकाकर नासूर पर बांधने से नासूर या उसका फोड़ा पककर फूट जाता है और रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

 30. दमा: ग्वारपाठा के 250 ग्राम पत्तों और 25 ग्राम सेंधानमक के चूर्ण को एक मिट्टी के बर्तन में डालकर, बर्तन को आग पर रखें जब ये पदार्थ जलकर राख बन जाएं तब इसे आग से उतार दें। इस राख को 2 ग्राम की मात्रा में 10 ग्राम मुनक्का के साथ सेवन करने से दमा (श्वास रोग) में अधिक लाभ मिलता है। ग्वारपाठे का 1 किलो गूदा लेकर किसी साफ कपड़े से छान लें फिर इसे किसी कलईदार बर्तन में डालकर धीमी आंच पर पकाएं, जब यह अधपका हो जाए तब इसमें 36 ग्राम लाहौरी नमक का बारीक चूर्ण मिला दें तथा स्टील के चम्मच से अच्छी तरह से घोट दें। जब सब पानी जलकर चूर्ण शेष रह जाये तो बर्तन को आग पर से उतारकर ठंडा करें और इसका बारीक चूर्ण बना लें तथा साफ बोतल में भर दें। इसमें से 250 मिलीग्राम से 480 मिलीग्राम की मात्रा को शहद के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पुरानी से पुरानी खांसी, काली खांसी और दमा ठीक हो जाता है।

 31. खांसी: आधा चम्मच ग्वारपाठे का रस में चुटकी भर पिसी हुई सोंठ मिलाकर शहद के साथ चाटे इससे खांसी ठीक हो जाती है। ग्वारपाठा का गूदा और सेंधा नमक दोनों को जलाकर राख बना लें और इसमें से 12 ग्राम की मात्रा में मुनक्का के साथ सुबह-शाम सेवन करने से खांसी तथा पुरानी खांसी ठीक हो जाती है तथा कफ की समस्या भी दूर होती है। 

32. आंखों के दर्द: सोते समय ग्वारपाठे के गूदे का रस आंखों मे डालने से आंखों का दर्द दूर होता है। ग्वारपाठे के गूदे में हल्दी का चूर्ण मिलाकर गर्म करें और सहनीय अवस्था में पैरों के तलुवों में इसे लगाकर पट्टी बांध दें इससे आंखों दर्द ठीक हो जाता है। ग्वारपाठे का गूदा आंखों के ऊपर लगाने से आंखों की लाली मिट जाती है, गर्मी दूर होती है। वायरल कंजक्टीवाइटिस में भी इसका उपयोग लाभदायक होता है। ग्वारपाठे के 1 ग्राम गूदे में 375 मिलीग्राम अफीम मिलाकर पोटली बना लें और इसे पानी में भिगोकर आंखों पर रखने से और इसमें से 1-2 बूंद आंखों के अन्दर डालने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है। ग्वारपाठे के गूदे पर हल्दी डालकर थोड़ा गर्म करके आंखों में लगाने से आंखों का दर्द चला जाता है।

 33. कब्ज: ग्वारपाठे का गूदा 10 ग्राम में 4 पत्तियां तुलसी और थोड़ी-सी सनाय की पत्तियां पीसकर मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट का सेवन खाना खाने के बाद करने से कब्ज की शिकायत खत्म हो जाती है। 20 ग्राम ग्वारपाठा में थोड़ी-सी मात्रा में काला नमक मिलाकर सुबह और शाम खाली पेट खाने से कब्ज दूर होती है। ग्वारपाठा का रस 10 से 20 ग्राम की मात्रा में हरड़ के साथ सेवन करने से मलअवरोध की परेशानी दूर होती है जिसके फलस्वरूप कब्ज की समस्या दूर होती है।

 34. नंपुसकता (नामर्दी): ग्वारपाठे का गूदा और गेहूं का आटा बराबर मात्रा में लेकर इसमें घी मिला लें फिर इसके 2 गुने की मात्रा में चीनी इसमें मिलाकर हलुआ बना लें और इसका सेवन 7 दिनों तक करने से नपुंसकता दूर होती है।

 35. अग्निमान्द्यता (अपच): ग्वारपाठा को पीसकर रस निकाल लें और इसमें नौसादा को मिलाकर रख लें, फिर इसके इसमें से आधा-आधा चम्मच रस को खुराक के रूप में सुबह और शाम सेवन करें इससे अपच की शिकायत दूर हो जाती है। ग्वारपाठे का गूदा सेंधा नमक के साथ सेवन करने से आराम मिलेगा।

 36. जिगर का रोग: 3 ग्राम ग्वारपाठे के रस में सेंधा नमक व समुंद्री नमक मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से यकृत के बीमारी ठीक हो जाती है। 10-20 ग्राम ग्वारपाठे का रस को सेंधा और हरिद्रा के साथ सेवन करने से यकृत के बीमारी ठीक हो जाती है तथा इससे यकृत का बढ़ना, दर्द होना, और पीलिया का होना आदि रोग भी ठीक हो जाते हैं। 480 मिलीलीटर ग्वारपाठे का रस में 240 मिलीग्राम हल्दी के चूर्ण और 240 मिलीग्राम सेंधा नमक का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बढ़ा हुआ यकृत ठीक हो जाता है। ग्वारपाठे के पत्ते का रस आधा चम्मच, हल्दी का चूर्ण एक चुटकी तथा पिसा हुआ सेंधा नमक 1 चुटकी तीनों को मिलाकर पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करें इससे यकृत रोग में लाभ मिलेगा। 

37. जलोदर (पेट में पानी भर जाना): ग्वारपाठे के रस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीने से प्लीहा और भोजन के न पचने वाली बीमारी में लाभ मिलता है।

 38. स्तनों की जलन और सूजन: ग्वारपाठे के रस में हरिद्रा के चूर्ण को मिलाकर इससे स्तनों पर लेप करें। इससे स्तनों पर होने वाली सूजन और जलन दूर हो जाती है।

 39. हाथ-पैर का फटना: भोजन में ग्वारपाठे की सब्जी खाने से हाथ-पैर नहीं फटते हैं।

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

Castor tree health benefits

 परिचय : एरंड का पौधा प्राय: सारे भारत में पाया जाता है। एरंड की खेती भी की जाती है और इसे खेतों के किनारे-किनारे लगाया जाता है। ऊंचाई में यह 2.4 से 4.5 मीटर होता है। एरंड का तना हरा और चिकना तथा छोटी-छोटी शाखाओं से युक्त होता है। एरंड के पत्ते हरे, खंडित, अंगुलियों के समान 5 से 11 खंडों में विभाजित होते हैं। इसके फूल लाल व बैंगनी रंग के 30 से 60 सेमी. लंबे पुष्पदंड पर लगते हैं। फल बैंगनी और लाल मिश्रित रंग के गुच्छे के रूप में लगते हैं। प्रत्येक फल में 3 बीज होते हैं, जो कड़े आवरण से ढके होते हैं। एरंड के पौधे के तने, पत्तों और टहनियों के ऊपर धूल जैसा आवरण रहता है, जो हाथ लगाने पर चिपक जाता है। ये दो प्रकार का होते हैं लाल रंग के तने और पत्ते वाले एरंड को लाल और सफेद रंग के होने पर सफेद एरंड कहते हैं। अंग्रेजी कैस्टर प्लांट लैटिन स्वाद : एरंड खाने में तीखा, बेस्वाद होता है। स्वरूप : एरंड दो प्रकार का होता है पहला सफेद और दूसरा लाल। इसकी दो जातियां और भी होती हैं। एक मल एरंड और दूसरी वर्षा एरंड। वर्षा एरंड, बरसात के सीजन में उगता है। मल एरंड 15 वर्ष तक रह सकता है। वर्षा एरंड के बीज छोटे होते हैं, परन्तु उनमें मल एरंड से अधिक तेल निकलता है। एरंड का तेल पेट साफ करने वाला होता है, परन्तु अधिक तीव्र न होने के कारण बालकों को देने से कोई हानि नहीं होती है। पेड़ : एरंड का पेड़ 2.4 से 4.5 मीटर, पतला, लम्बा और चिकना होता है। फूल : इसका फूल एक लिंगी, लाल बैंगनी रंग के होते हैं। फल : एरंड के फल के ऊपर हरे रंग का आवरण होता है। प्रत्येक फल में तीन बीज होते हैं। बीज : इसके बीज सफेद चिकने होते हैं। स्वभाव : एरंड गर्म प्रकृति का होता है। हानिकारक : एरंड आमाशय को शिथिल करता है, गर्मी उत्पन्न करता है और उल्टी लाता है। इसके सेवन से जी घबराने लगता है। लाल एरंड के 20 बीजों की गिरी नशा पैदा करती है और ज्यादा खाने से बहुत उल्टी होता है एवं घबराहट या बेहोशी तक भी हो सकती है। यह आमाशय के लिए अहितकर होता है। तुलना : इसकी तुलना जमालघोटा से की जा सकती है। दोषों को दूर करने वाला : कतीरा और मस्तगी एरंड के गुणों को सुरक्षित रखकर इसके दोषों को दूर करता है। नोट : लाल एरंड का तेल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ लेने से योनिदर्द, वायुगोला, वातरक्त, हृदय रोग, जीर्णज्वर (पुराना बुखार), कमर के दर्द, पीठ और कब्ज के दर्द को मिटाता है। यह दिमाग, रुचि, आरोग्यता, स्मृति (याददास्त), बल और आयु को बढ़ाता है और हृदय को बलवान करता है। गुण : एरंड पुराने मल को निकालकर पेट को हल्का करती है। यह ठंडी प्रकृति वालों के लिए अच्छा है, अर्द्धांग वात, गृध्रसी झानक बाई (साइटिका के कारण उत्पन्न बाय का दर्द), जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) तथा समस्त वायुरोगों की नाशक है इसके पत्ते, जड़, बीज और तेल सभी औषधि के रूप में इस्तेमाल किए जाते है। यहां तक कि ज्योतिषी और तांत्रिक भी ग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए एरंड का प्रयोग करते हैं। सफेद एरंड : सफेद एरंड, बुखार, कफ, पेट दर्द, सूजन, बदन दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, मोटापा, प्रमेह और अंडवृद्धि का नाश करता है। लाल एरंड : पेट के कीड़े, बवासीर, रक्तदोष (रक्तविकार), भूख कम लगना, और पीलिया रोग का नाश करता है। इसके अन्य गुण सफेद एरंड के जैसे हैं। एरंड के पत्ते : एरंड के पत्ते वात पित्त को बढ़ाते हैं और मूत्रकृच्छ्र (पेशाब करने में कठिनाई होना), वायु, कफ और कीड़ों का नाश करते हैं। एरंड के अंकुर : एरंड के अंकुर फोड़े, पेट के दर्द, खांसी, पेट के कीड़े आदि रोगों का नाश करते हैं। एरंड के फूल : एरंड के फूल ठंड से उत्पन्न रोग जैसे खांसी, जुकाम और बलगम तथा पेट दर्द संबधी बीमारी का नाश करता है। एरंड के बीजों का गूदा : एरंड के बीजों का गूदा बदन दर्द, पेट दर्द, फोड़े-फुंसी, भूख कम लगना तथा यकृत सम्बंधी बीमारी का नाश करता है। एरंड का तेल : पेट की बीमारी, फोड़े-फुन्सी, सर्दी से होने वाले रोग, सूजन, कमर, पीठ, पेट और गुदा के दर्द का नाश करता है। हानिकारक प्रभाव : राइसिन नामक विषैला तत्त्व होने के कारण एरंड के 40-50 दाने खाने से या 10 ग्राम बीजों के छिलकों का चूर्ण खाने से उल्टी होकर व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। मात्रा : बीज 2 से 6 दाने। तेल 5 से 15 मिलीलीटर। पत्तों का चूर्ण 3 से 4 ग्राम। जड़ की पिसी लुगदी 10 से 20 ग्राम । जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम। विभिन्न रोगों में उपयोगी :

1. चर्म (त्वचा) के रोग : एरंण्ड की जड़ 20 ग्राम को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इसे पिलाने से चर्म रोगों में लाभ होता है। एरंड के तेल की मालिश करते रहने से शरीर के किसी भी अंग की त्वचा फटने का कष्ट दूर होता है। 

2. सिर पर बाल उगाने के लिए : ऐसे शिशु जिनके सिर पर बाल नहीं उगते हो या बहुत कम हो या ऐसे पुरुष-स्त्री जिनकी पलकों व भौंहों पर बहुत कम बाल हों तो उन्हें एरंड के तेल की मालिश नियमित रूप से सोते समय करना चाहिए। इससे कुछ ही हफ्तों में सुंदर, घने, लंबे, काले बाल पैदा हो जाएंगे।
3. सिर दर्द : एरंड के तेल की मालिश सिर में करने से सिर दर्द की पीड़ा दूर होती है। एरंड की जड़ को पानी में पीसकर माथे पर लगाने से भी सिर दर्द में राहत मिलती है।
4. जलने पर : एरंड का तेल थोड़े-से चूने में फेंटकर आग से जले घावों पर लगाने से वे शीघ्र भर जाते हैं। एरंड के पत्तों के रस में बराबर की मात्रा में सरसों का तेल फेंटकर लगाने से भी यही लाभ मिलता है।
5. पायरिया : एरंड के तेल में कपूर का चूर्ण मिलाकर दिन में 2 बार नियमित रूप से मसूढ़ों की मालिश करते रहने से पायरिया रोग में आराम मिलता है।
6. शिश्न (लिंग) की शक्ति बढ़ाने के लिए : मीठे तेल में एरंड के पीसे बीजों का चूर्ण औटाकर शिश्न (लिंग) पर नियमित रूप से मालिश करते रहने से उसकी शक्ति बढ़ती है।
7. मोटापा दूर करना : एरंड की जड़ का काढ़ा छानकर एक-एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार सेवन करें। एरंड के पत्ते, लाल चंदन, सहजन के पत्ते, निर्गुण्डी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, बाद में 2 कलियां लहसुन की डालकर पकाकर काढ़ा बनाकर रखा रहने दें इसमें से जो भाप निकले उसकी उस भाप से गला सेंकने और काढ़े से कुल्ला करना चाहिए। एरंड के पत्तों का खार (क्षार) को हींग डालकर पीये और ऊपर से भात (चावल) खायें। इससे लाभ हो जाता है। अरण्ड के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से मोटापा दूर हो जाता है।
8. स्तनों में दूध वृद्धि हेतु : एरंड के पत्तों का रस दो चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार कुछ दिनों तक नियमित पिलाएं। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। अरण्ड (एरंड) पाक को 10 से लेकर 20 ग्राम की मात्रा में गुनगुने दूध के साथ प्रतिदिन सुबह और शाम को पिलाने से प्रसूता यानी बच्चे को जन्म देने वाली माता के स्तनों में दूध में वृद्धि होती है। मां के स्तनों पर एरंड के तेल की मालिश दिन में 2-3 बार करने से स्तनों में पर्याप्त मात्रा में दूध की वृद्धि होती है।
9. बालकों के पेट के कृमि (कीड़े) : एरंड का तेल गर्म पानी के साथ देना चाहिए अथवा एरंड का रस शहद में मिलाकर बच्चों को पिलाना चाहिए। इससे बच्चों के पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं। एरंड के पत्तों का रस नित्य 2-3 बार बच्चे की गुदा में लगाने से बच्चों के चुनने (पेट के कीड़े) मर जाते हैं।
10. बिच्छू के विष पर : एरंड के पत्तों का रस, शरीर के जिस भाग की ओर दंश न हुआ हो, उस ओर के कान में डालें और बहुत देर तक कान को ज्यों का त्यों रहने दें। इस प्रकार दो-तीन बार डालने से बिच्छू का विष उतर जाता है। 11. नींद कम आना : एरंड के अंकुर बारीक पीसकर उसमें थोड़ा सा दूध मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को कपाल (सिर) तथा कान के पास लेप करने से नींद का कम आना दूर हो जाता है। 12. पीनस रोग- एरण्ड के तेल को तपाकर रख लें और जिस ओर नाक में पीनस हो गया हो उस ओर के नथुने से एरण्ड के तेल को दिन में कई बार सूंघने से पीनस नष्ट हो जाती है। एरंड की जड़ और सोंठ को घिसकर योनि पर लेप करें। इससे योनि दर्द ठीक हो जाता है। एरंड तेल में रूई का फोहा भिगोकर योनि में धारण करने से योनि का दर्द मिट जाता है। 13. पीठ के दर्द में : एरंड के तेल को गाय के पेशाब में मिलाकर देना चाहिए। इससे पीठ, कमर, कन्धे, पेट और पैरों का शूल (दर्द) नष्ट हो जाता है। 14. बच्चों के दस्त : एरंड और चूहे की लेण्डी का चूर्ण नींबू के रस में मिलाकर बच्चों की नाभि और गुदा पर लेप करना चाहिए। इससे बच्चों का दस्त आना बंद हो जाता है। 15. पिसा हुआ कांच खा लेने पर : पिसा हुआ कांच खा लेने पर 30 ग्राम एरंड का तेल पिलाने से लाभ मिलता है। 16. माथे (मस्तक) के दर्द में : एरंड की जड़ को भांगरे के रस में घिसकर नाक में लगाकर सूंघे, इससे छींक आकर मस्तक शूल नष्ट हो जाता है। 17. होंठों का फटना : होंठों के फटने पर रात्रि को एरंड तेल होठ पर लगाने से लाभ मिलता है। 18. हृदय रोग : एरंड की जड़ का काढ़ा जवाखार के साथ देने से हृदय रोग और कमर के दर्द का नाश हो जाता है। 19. स्तनों की सूजन (स्त्रियों के स्तन में दूध के कारण आयी हुई सूजन और दर्द) : स्तनों के सूजन से पीड़ित महिला के स्तनों में एरंड के पत्तों की पुल्टिस बांधनी चाहिए। इससे स्तनों की सूजन और दर्द में बहुत अधिक लाभ मिलता है। 20. पेट में दर्द या बार-बार दस्त होना : एरंड के तेल का जुलाब देना चाहिए। इसका जुलाब बहुत ही उत्तम होता है। इससे पेट में दर्द नहीं होता और पानी की तरह पतले दस्त भी नहीं होते, केवल मल-शुद्धि होती है। यदि इसका जुलाब फायदा नहीं पहुंचाता तो यह कोई हानि नहीं पहुंचाता। छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के लिए यह समान उपयोगी है। सोंठ के काढ़े के साथ पीने से एरंड के तेल की दुर्गन्ध कम हो जाती है अथवा मट्ठे से कुल्ला करके एरंड का तेल पीने से उससे अरुचि नहीं होती । 21. अंडकोष वृद्धि : 2 चम्मच एरंड तेल सुबह-शाम दूध में मिलाकार सेवन करने से अंडकोष के बढे़ हिस्से से आराम मिलता है। साथ ही इस तेल की मालिश भी करनी चाहिए। 10 ग्राम एरंड तेल को 3 ग्राम गुग्गुलु और 10 ग्राम गाय के पेशाब के साथ सुबह-शाम पीने से एवं अंडकोष पर एरंड पत्ते गर्म करके बांधने से अंडकोष वृद्धि ठीक हो जाती है। 22. आंखों के रोग में : एरंड के तेल के अंजन से आंखों से पानी बहता है, इसलिए इसे नेत्र विरेचन कहते हैं। एरंड तेल दो बूंद आंखों में डालने से, इनके भीतर का कचरा निकल जाता है और आंखों की किरकरी बंद हो जाती है। एरंड के पत्तों की जौ के आटे के साथ पुल्टिस बनाकर आंखों पर बांधने से आंखों पर आई पित्त की सूजन नष्ट हो जाती है। 23. स्त्री के स्तन संबधी रोग : जब किसी स्त्री के स्तनों में दूध आना बंद हो जाता है और स्तनों में गांठें पड़ जाती हैं, तब एरंड के 500 ग्राम पत्तों को 20 लीटर पानी में घंटे भर उबालें, तथा गर्म पानी की धार 15-20 मिनट स्त्री के स्तनों पर डाले, एरंड तेल की मालिश करें, उबले हुए पत्तों की महीन पुल्टिस स्तनों पर बांधे। इससे गांठें बिखर जायेगी और दूध का प्रवाह पुन: प्रारम्भ हो जायेगा। स्तन के चारों ओर की त्वचा फट जाने पर एंरड तेल लगाने से तुरन्त लाभ होता है। एरंड के पत्तों को सिरके में पीसकर स्तनों पर प्रतिदिन मलने से कुछ ही दिनों में स्तन कठोर हो जाते हैं। इसके अलावा गांठें पिघलकर दूध उतरने लगता है तथा सूजन की तकलीफ दूर हो जाती हैं। 24. पीलिया : गर्भवती महिला को यदि पीलिया हो जाये और गर्भ शुरुआती अवस्था में हो तो, एरंड के पत्तों का 10 मिलीलीटर रस सुबह-सुबह 5 दिन पिलाने से पीलिया दूर हो जाता है और सूजन भी दूर हो जाती है। एरंड के पत्तों के 5 मिलीलीटर रस में पीपल का चूर्ण मिलाकर नाक में डालकर सूंघने से या आंखों में अंजन करने से पीलिया रोग मिटता है और सूजन भी दूर हो जाती है। एरंड की जड़ का रस 6 मिलीलीटर, दूध 250 मिलीलीटर में मिलाकर पिलाने से कामला रोग मिटता है। एरंड की जड़ के 80 मिलीलीटर काढे़ में दो चम्मच शहद मिलाकर चाटने से खांसी दूर हो जाती है। एरंड के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर तक गाय के कच्चे दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से 3 से 7 दिन में पीलिया नष्ट हो जाता है। रोगी को दही-चावल ही खिलायें और यदि कब्ज हो तो दूध अधिक पिलाएं। 10 ग्राम एरंड के पत्ते लेकर, उन्हें 100 मिलीलीटर दूध में पीसकर छान लें और उसमें 5 ग्राम शक्कर मिलाकर दिन में 3 बार पीने से कामला रोग शांत हो जाता है। एरंड का रस डाभ (कच्चे नारियल के पानी) में मिलाकर खाली पेट पीएं। इससे पीलिया का रोग ठीक हो जाता है। 25. खांसी : एरंड के पत्तों का क्षार 3 ग्राम, तेल एवं गुड़ आदि को बराबर मात्रा में मिलाकर चाटने से खांसी दूर हो जाती है। 26. पेट के रोग : एरंड के बीजों के बीच के भाग को पीसकर, गाय के चौगुने दूध में पकायें जब यह खोवा की तरह हो जाय तो उसमें दो भाग चीनी मिला लें। इसे प्रतिदिन 15 ग्राम खाने से पेट की गैस मिटती है। पुराने पेट के दर्द में रोज रात को सोने के समय 125 मिलीलीटर गर्म पानी में एक नींबू का रस निचोडकऱ, एरंड का तेल डालकर पीने से कुछ समय में ही दर्द दूर हो जाता है। 27. प्रवाहिका (संग्रहणी) : यदि मल के साथ आंव और खून निकलता हो तो आरम्भ में ही 10 मिलीलीटर एरंड तेल देने से आंव आना कम हो जाता है और खून का गिरना भी कम हो जाता है। 28. एपैन्डिक्स : इस रोग के प्रारम्भ में ही एरंड तेल 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन देने से आपरेशन करने की आवश्यकता नहीं रहती। और एपैन्डिक्स रोग ठीक हो जाता है। 29. वादी की पीड़ा : एरंड और मेंहदी के पत्तों को पीसकर लेप करने से वादी की पीड़ा मिट जाती है। 30. प्लीहोदर (तिल्ली का बढ़ जाना) : एरंड के पंचाग की 10 ग्राम राख को 40 मिलीलीटर गौमूत्र में मिलाकर पिलाने से प्लीहोदर मिट जाता है। 31. अर्श (बवासीर) : एरंड के पत्तों के 100 मिलीलीटर काढ़े में घृतकुमारी का रस 50 मिलीलीटर मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है। एरंड तेल और घृत कुमारी का स्वरस मिलाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से जलन शांत हो जाती है। मस्से और गुदा की त्वचा फट जाने पर प्रतिदिन रात्रि को एरंड तेल देने से बहुत लाभ होता है। एरंड के तेल की मालिश नियमित रूप से करते रहने से बवासीर के मस्से, पैरों की कील (कार्नस), मुहासें, मस्से, बिवाई, धब्बे, गठानों पर की सारी तकलीफें धीरे-धीरे दूर हो जाएंगी। नीम और एरंडी के तेल को गर्म करें तथा उसमें 1 ग्राम अफीम व 2 ग्राम कपूर का चूर्ण डालकर मलहम (गाढ़ा पेस्ट) बना लें। इस पेस्ट को मस्सों पर लगाने से मस्से सूखकर झड़ जाते हैं। एरंड का तेल लेकर प्रतिदिन मस्सों पर लगाने से कुछ ही दिनों में बादी बवासीर ठीक हो जाती है। 32. पेट की चर्बी : पेट पर चढ़ी हुई चर्बी को उतारने के लिए हरे एरंड की 20 से 50 ग्राम जड़ को धोकर कूटकर 200 मिलीलीटर पानी में पकाकर 50 मिलीलीटर शेष रहने पर पानी को प्रतिदिन पीने से पेट की चर्बी उतरती है। 33. प्रसव कष्ट (डिलीवरी के दौरान स्त्री को होने वाली पीड़ा) : प्रसवकाल में कष्ट कम हो सके इसके लिए गर्भवती स्त्री को 5 महीने बाद, एरंड तेल का 15-15 दिन के अन्तर से हलका जुलाब देते रहें। प्रसव के समय 25 ग्राम एरंड तेल को चाय या दूध में मिलाकर देने से प्रसव शीघ्र होता है। 34. मासिक-धर्म : एरंड के पत्तों को गर्मकर पेट पर बांधने से मासिक-धर्म नियमित रूप से होने लगता है। 35. गुर्दे (वृक्कशूल) के दर्द में : एरंड की मींगी को पीसकर, गर्म लेप करने से गुर्दे की वात पीड़ा व सूजन में लाभ होता है। 36. वातरक्त : वातरक्त में एरंड का 10 मिलीलीटर तेल एक गिलास दूध के साथ सेवन करना चाहिए। 37. रक्त विकार : एरंड की गिरी एक, दूध 125 मिलीलीटर, जल 250 मिलीलीटर मिलाकर उबालते हैं जब केवल दूध मात्र शेष रह जाए तो इसमें 10 ग्राम चीनी या मिश्री डालकर पिला दें, इस प्रकार एक गिरी से शुरू करके, 7 दिन तक 1-1 गिरी बढ़ाकर घटायें। एक गिरी पर लाने से रक्त के रोग मिटते हैं। यह प्रयोग अत्यंत वात शामक भी है। 38. विषनाशक : एरंड के पत्तों का 100 मिलीलीटर रस पिलाकर वमन (उल्टी) कराने से सांप तथा बिच्छू के विष में लाभ होता है। इसी प्रकार अफीम तथा दूसरी तरह के जहर में भी इससे लाभ होता है। एरंड के 20 ग्राम फलों को पीस-छानकर पिलाने से अफीम का विष उतरता है। 39. नहरूआ : एरंड के पत्तों को गर्म कर बांधने से नहरूआ की सूजन मिट जाती है। एरंड की जड़ को गाय के घी में मिलाकर पीने से नहरूआ रोग नष्ट हो जाता है। नहरूआ के रोगी को 20 मिलीलीटर एरंडी के पत्तों का रस और 60 ग्राम घी मिलाकर 3 दिन तक पीने से नहरूआ रोग में आराम मिलता है। 40. नाड़ी घाव (व्रण) : एरंड की कोमल कोपलों को पीसकर लेप करने से नाड़ी का घाव मिटता है। 41. शय्याक्षत (बिस्तर पर पडे़ रहने से होने वाले घाव) : एरंड तेल लगाने से शय्याक्षत बड़ी जल्दी मिटते हैं। बच्चों के उल्टी, दस्त और बुखार में एरंड तेल से लाभदायक कोई और वस्तु नहीं है। 42. दुष्ट व्रण (घाव) : बिगड़े हुए घाव और फोड़ों पर एरंड के पत्तों को पीसकर लगाने लाभ मिलता है। 43. वात प्रकोप और वात शूल : एरंड के बीजों को पीसकर लेप करने से छोटी संधियों और गठिया की सूजन मिटती है। वात रोग में एरंड तेल उत्तम गुणकारी है। कमर व जोड़ों का दर्द, हृदय दर्द, कफ और जोड़ों की सूजन, इन सब रोगों में एरंड की जड़ 10 ग्राम और सोंठ का चूर्ण 5 ग्राम का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए तथा दर्द पर एरंड तेल की मालिश करनी चाहिए। 45. विद्रधि (फोड़ा) होने पर : एरंड की जड़ को पीसकर घी या तेल में मिलाकर कुछ गर्म कर गाढ़ा लेप करने से फोड़ा मिट जाता है। 46. किसी भी प्रकार की सूजन : किसी भी प्रकार की सूजन, आमवात इत्यादि में एरंड के पत्तों को गर्म कर तेल चुपड़कर बांधने से लाभ होता है। 47. बुखार की जलन : बुखार में होने वाली जलन में एरंड के पत्ते धोकर साफकर शरीर पर धारण करने से जलन नष्ट हो जाती है। 48. तिल मस्से : पत्ते के वृन्त पर थोड़ा चूना लगाकर तिल पर बार-बार घिसने से तिल निकल जाता है। एरंड के तेल में कपड़ा भिगोकर मस्से पर बांधने से मस्से मिट जाते हैं। चेहरे या पूरे शरीर पर तिल, धब्बे या भूरे-भूरे दाग (लीवर स्पोंटस) हो या गाल या त्वचा पर छोटी-छोटी गिल्टियां (गांठे), सख्त गुठलियां निकलने पर रोजाना दिन में 2 से 3 बार लगातार एरंड के तेल की मालिश करने से धीरे-धीरे सब समाप्त हो जाते हैं। एरंड का तेल लगाने से जख्म भी भर जाते हैं और इसकों मस्सों पर लगाने से मस्सा ढीला होकर गिर जाता है। एरंड के तेल को सुबह और शाम 1-2 बूंद हल्के हाथ से मस्से पर मलने से 1 से 2 महीनों में मस्से गिर जाते हैं। 49. पित्तजगुल्म : पित्तजगुल्म एवं पैत्तिक शूल में यष्टिमधु के 50 मिलीलीटर काढे़ में एरंड तेल 5-10 मिलीलीटर मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। 50. सौंदर्यवर्धक : एरंड के तेल में चने का आटा मिलाकर चेहरे पर रगड़ने से झांई आदि मिटकर चेहरा सुंदर हो जाता है। 51. नाखून : एरंड के गुनगुने (हल्के गर्म) तेल में नाखूनों को कुछ मिनट डुबोये रखें, फिर उसी तेल की मालिश करें। यदि डूबोना सम्भव नहीं हो तो गर्म तेल में रुई डुबोकर नाखूनों पर रखें। इससे नाखून चमकने लगेंगे। 52. सांप के काटे जाने पर : एरंड की कोपलें दस ग्राम, पांच कालीमिर्च, दोनों को पीसकर पानी में मिलाकर पिला दें। इससे उल्टी होगी, कफ निकलेगा। थोड़ी देर बाद पुन: इसी तरह पिलायें। इससे जहर बाहर निकलेगा। 53. घाव : यदि कहीं चोट लगकर खून आने लगे, घाव हो जाए तो एरंड का तेल लगाकर पट्टी बांधने से लाभ होता है। एरंडी के तेल को घाव पर लगायें। एरंडी के तेल में नीम का तेल मिलाकर घाव पर लगायें। 54. दाग-धब्बे : तिल, मस्से, चेहरे पर धब्बे, घट्टा-आटन, कील-मुंहासे हो तो एक दो महीने तक सुबह-शाम एरंड के तेल की मालिश करें। इससे उपर्युक्त विकार ठीक हो जाते हैं। मस्से, औटन पर तेल में गाज (कपड़ा) भिगोकर पट्टी बांधकर रखना चाहिए। एरंड के तेल में चने का आटा मिलाकर चेहरे पर रगड़ने से झांई आदि दूर होकर चेहरा साफ हो जाता है। 55. बिवाइयां (एड़ी का फटना) : पैरों को गर्म पानी से धोकर उनमें एरंड का तेल लगाने से बिवाइयां (फटी एड़ियां) ठीक हो जाती हैं। 56. आंख में कुछ गिर जाना : आंख में मिट्टी, कंकरी गिर जाये, धुआं, तीव्र गंध से दर्द हो तो एरंड के तेल की एक बूंद आंख में डालने से लाभ होता है। तेल डालने के बाद हर 25 मिनट में सेंक करें। 56. वायु गोला और गुल्म : पेट में गांठ की तरह उभार को वायुगोला कहते हैं। यह घटता बढ़ता है। एरंड का तेल 2 चम्मच, गर्म दूध में मिलाकर पीने से इसमें लाभ होता है। 57. गठिया (जोड़ का दर्द) : पेट में आंव दब जाने से गठिया हो जाती है। गठिया में एरंड का तेल कब्ज दूर करने हेतु सेवन करें। इससे आंव बाहर निकलेगी और गठिया में आराम होगा। घुटने के दर्द को दूर करने के लिए 1 ग्राम हरड़ और एरंड का तेल साथ सेवन करने से रोगी के घुटनों का दर्द दूर होता है। 25 मिलीलीटर एरंड का तेल रोजाना सुबह-शाम खाली पेट पीये इससे गठिया के रोग में लाभ होता है। एरंड के बीजों को पानी में पीसकर गर्म कर सूजन व दर्द के स्थानों पर बांधने से राहत मिलती है। 58. आंत्रवृद्धि : एक कप दूध में 2 चम्मच एरंड का तेल डालकर 1 महीने तक पीने से आंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है। खरैटी के मिश्रण के साथ अरंडी का तेल गर्मकर पीने से पेट का फूलना, दर्द, आंत्रवृद्धि व गुल्म खत्म होती है। इन्द्रायण की जड़ का पाउडर, अरंडी के तेल या दूध में मिलाकर पीने से निश्चित रूप से अंत्रवृद्धि खत्म हो जायेगी। 250 मिलीलीटर गर्म दूध में 20 मिलीलीटर एरंड का तेल मिलाकर 1 महीने तक पीयें इससे वातज अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है। 2 चम्मच एरंड का तेल और बच का काढ़ा बनाकर उसमें 2 चम्मच एरंड का तेल मिलाकर खाने से लाभ होता है। 59. दांत घिसना या किटकिटाना : कई बच्चे रात को सोने के बाद भी दांत घिसते (किट-किटाते) रहते हैं। इस प्रकार के रोग में बच्चे के गुदा में एरंड का रस डाल लें। इससे सभी कीड़े नष्ट हो जाते हैं और दांत का घिसना बंद हो जाता है। 60. आंखों का फूला, जाला : 30 मिलीलीटर एरंड के तेल में 25 बूंद कार्बोलिक एसिड मिलाकर सुबह और शाम 2-2 बूंद आंख में डालने से आंखों के फूले और जाले से छुटकारा मिलता है। 61. पेट का साफ होना : यदि मल त्यागने में कठिनाई का अनुभव हो तो एरंड के तेल को दूध के साथ देने से लाभ होता है। 62. बिलनी : एरंड के बीज, स्फटिका और टंकण का आंखों पर लेप लगाना चाहिए। 63. वायु का विकार : एरंड के तेल की 2 चम्मच मात्रा को गर्म दूध में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है। 64. कांच निकलना (गुदाभ्रंश) : एरंडी के तेल को हरे कांच की शीशी में भरकर 1 सप्ताह तक धूप में सुखाये। इस तेल को गुदाभ्रंश पर रूई से लगाएं। इससे गुदाभ्रंश निकलना बंद होता है। एरंडी का तेल आधे से एक चम्मच की मात्रा में उम्र के अनुसार हल्के गर्म दूध में मिलाकर रोज रात को सोते समय दें। यह कब्ज और आमाशय दोनों शिकायतें को खत्म कर गुदा रोग को ठीक करता है। 65. बालों का झड़ना (गंजेपन का रोग) : अरंडी (एरंड) या सरसों के तेल में हल्दी जलाकर छान लें और इसमें थोड़ा सा कपूर मिलाकर सिर के गंजे जगह पर मालिश करें। इससे सिर पर बाल उगना शुरू हो जाते हैं। एरंड के गूदे को पीसकर बाल गिर जाने के बाद लगाने से बाल फिर से उग आते हैं। 66. पलकें और भौहें : एरंड (अरंडी) के तेल की मालिश 1-1 दिन के अन्तराल पर करने से पलकों और भौहें के बाल उग आते हैं। 67. स्तनों से दूध का टपकना : अरण्ड के पत्तों को पानी में पीसकर छाती (सीने) पर सुबह-शाम के समय लेप करने से छाती से दूध का टपकना बंद हो जाता है। 68. कब्ज (कोष्ठबद्धता) : एरंड के तेल की 10 बूंदों को रात को सोते समय पानी में मिलाकर सेवन करने से कब्ज (कोष्ठबद्धता) की बीमारी में लाभ होता है। एरंड का तेल 30 मिलीलीटर को गर्म दूध में मिश्री के साथ पीने से कब्ज दूर हो जाता है। 1 कप दूध में 2 चम्मच एरंड का तेल मिलाकर सोते समय पिलाएं। इससे पेट की कब्ज नष्ट हो जाती है। एरंडी के तेल की 2 से 4 बूंद को माता के दूध में मिलाकर दें। अरंडी के तेल की पेट पर मालिश करने से पेट साफ हो जाता हैं। 6 मिलीलीटर अरंडी के तेल में 6 मिलीलीटर दही मिलाकर आधे-आधे घंटे के अन्तर के बाद पिलाने से वायुगोला हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है। अरंडी का तेल 20 मिलीलीटर और अदरक का रस 20 मिलीलीटर मिलाकर पी लें, फिर ऊपर से थोड़ा-सा गर्म पानी पीने से वायु गोला में तुरन्त होता है। अरण्ड का तेल और उसकी 2 से 3 कलियां खाने से पेट साफ हो जाता है। अरंडी का तेल 3 चम्मच, बादाम रोगन 1 चम्मच को 250 मिलीलीटर दूध में गर्म कर सोने से पहले लें। 1 चम्मच एरंड का तेल दूध में मिलाकर सोने से पहले पीने से लाभ होता है। एरंड के तेल की 30 बूंदों तक की मात्रा को 250 मिलीलीटर तक दूध में मिलाकर सेवन करने से सामान्य पेट की गैस दूर हो जाती है। नवजात शिशुओं को छोटी चम्मच में दी जा सकती है। कोष्ठबद्धता (कब्ज) को नष्ट करने के लिए रात को सोते समय एरंड के 5 मिलीलीटर तेल को हल्के गर्म पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है। सोते समय 2 चम्मच एरंड का तेल पीने से कब्ज दूर होती है, दस्त साफ आता है। इसे गर्म दूध या गर्म पानी में मिलाकर पी सकते हैं। 69. उल्टी और दस्त : 10 ग्राम एरंड की जड़ को छाछ के साथ पीसकर पिलाने से उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं। 70. गर्भनिरोध : मासिक-धर्म के बाद तीन दिन तक एरंड की मींगी खाने से एक वर्ष तक गर्भ नहीं ठहरता है। एरंड का एक बीज छीलकर माहवारी खत्म होने के दो दिन बाद सुबह के समय खाली पेट बिना चबाएं पानी से निगल लेते हैं। इससे एक वर्ष तक गर्भ नहीं ठहरता है। 71. बुखार : एरंड की जड़, गिलोय, मजीठ, लाल चंदन, देवदारू तथा पद्याख का काढ़ा पिलाने से गर्भवती स्त्री का ज्वर (बुखार) दूर हो जाता है। 72. गर्भाशय की सूजन : एरंड के पत्तों का रस छानकर रूई भिगोकर गर्भाशय के मुंह पर 3-4 दिनों तक रखने से गर्भाशय की सूजन मिट जाती है। गर्भाशय की सूजन प्राय: प्रसव के बाद होती है। इसमें महिला को बहुत तेज बुखार होता है। ऐसी अवस्था में एरंड के पत्तों के रस में शुद्ध रूई का फोहा भिगोकर योनि में रखने से आराम होता है। 73. नपुंसकता (नामर्दी) : अरण्ड के बीज 5 ग्राम, पुराना गुड़ 10 ग्राम, तिल 5 ग्राम, बिनौले की गिरी 5 ग्राम, कूट 2 ग्राम, जायफल 2 ग्राम, जावित्री 2 ग्राम, अकरकरा 2 ग्राम। इन सबको कूट-पीसकर एक साफ कपड़े में रखकर पोटली बना लें और इस पोटली को बकरी के दूध में उबालें। दूध जब अच्छी तरह पक जाये, तो इसे ठंडा करके 5 दिन तक पियें तथा पोटली से शिश्न (लिंग) की सिंकाई करें। 74. आमातिसार : 1 चम्मच एरंड तेल को गर्म-गर्म दूध में मिलाकर पिलाने से आमातिसार रोग में लाभ मिलता है। 75. बहरापन : असगंध, दूध, अरण्ड की जड़, शतावर और काले तिल के तेल को बराबर मात्रा में लेकर 200 मिलीलीटर सरसों के तेल में डालकर पका लें। इस तेल को कान में डालने से कान के सारे रोग ठीक हो जाते हैं। 76. कमर का दर्द : एरंड के बीज के अंदर का गूदा, दूध में पीसकर पिलाने से कमर दर्द में लाभ होता है। कमर दर्द होने पर एरंड के बीज की 5 मींगी दूध में पीसकर पिलाने से लाभ होता है। एरंड के पत्तों पर तेल लगाकर कमर में बांधकर हल्का-सा सेंकने से शीत ऋतु में उत्पन्न कमर का दर्द शांत हो जाता है। एरंड की जड़ और सोंठ को जल में उबालकर काढ़ा बनायें। काढ़े को छानकर उसमें भुनी हींग और काला नमक मिलाकर पीने से शीत लहर के कारण उत्पन्न कमर के दर्द से राहत मिलती है। 35 ग्राम अरंडी के बीजों की गिरी पीसकर 250 मिलीलीटर दूध में पकायें। जब इसका खोया बन जाये तो इसे 70 ग्राम घी में भून लें। इसमें 70 ग्राम चीनी मिलाकर सुबह 3 चम्मच लगातार खायें, इससे कमर दर्द मिट जाता है। 77. चोट लगने पर : चोट लगकर खून आने लगे, घाव हो तो एरंड का तेल लगाकर पट्टी बांधने से लाभ होता है। एरंड के पत्ते पर तिल का तेल लगाकर गर्म करके बांधने से चोट से सूजन एवं दर्द में लाभ होता है। 78. आंवरक्त : पेचिश के रोगी को एरंड का तेल हल्के गुनगुने दूध में मिलाकर रात को सोते समय सेवन करने से रोग पेचिश ठीक हो जाता है। 79. अग्निमान्द्यता (अपच) : अरनी की जड़ का चूर्ण खाने से भूख बढ़ती है। 2 चम्मच अरंडी का तेल गौमूत्र (गाय का पेशाब) या दूध में मिलाकर सेवन करने से आंतें स्वस्थ होती हैं। 80. प्रदर रोग : अरण्ड (एरंडी) की जड़ की राख दूध के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
81. मोच : एरंड के पत्ते पर सरसों और हल्दी गर्म करके मोच वाले स्थान पर लगायें और पत्ते को उस पर रखकर पट्टी बांध दें। अरण्ड के बीज की गिरी 10 ग्राम काले तिल 10 मिलीलीटर दूध में पीसकर हल्का गर्म करके मोच पर बांध दें।
82. जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) : अरंडी के तेल के साथ गोरखमुण्डी मिलाकर खाने से जलोदर में लाभ होगा।
83. शीतपित्त : कूठ का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1.80 ग्राम में एरंड का तेल मिलाकर दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आमवात में लाभ होता है। इसका बाहरी प्रयोग भी किया जाता है। एरंड के तेल में तारपीन का तेल बराबर मिलाकर मालिश करने से पित्ती में लाभ होता है। पित्ती उछलने पर सबसे पहले चार चम्मच एरंड का तेल पीकर पेट साफ कर लें। इसके बाद 5 ग्राम छोटी इलायची के दाने, 10 ग्राम दालचीनी, पीपर 10 ग्राम सबको पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण मक्खन के साथ खायें।
84. स्तनों का सुडौल और पुष्ट होना : एरंड के तेल से स्तनों की मालिश करने से स्तन सुडौल, पुष्ट और बढ़ते हैं।
85. पेट के कीड़ों के लिए : एरंड के पत्तों के रस में हींग डालकर पीने से पेट की आंतों में फंसे कीड़े मरकर बाहर आ जाते हैं।
86. वात रोग : अरण्ड के तेल में गाय का मूत्र मिलाकर 1 महीने तक रोज खाने से हर तरह के वात रोग खत्म हो जाते हैं। अरण्ड की लकड़ी जलाकर उसकी 10 ग्राम राख को पानी के साथ खाने से वात रोग में लाभ होता है। एरंड की जड़ को घी या तेल में पीसकर गर्म करके लगाने से वात विद्रधि (फोड़ा) रोग खत्म होते हैं।
87. स्तनों के आकार में वृद्धि : एरंड के तेल की मालिश करने से स्तनों का आकार बढ़ने लगता है।
88. स्तनों की घुंडी का फटना : एरंड के तेल से स्तन या स्तनों की चूंची विदार (घुंडी फटने) में मालिश करने से लाभ मिलता है।
89. शिरास्फीति : हाथ की शिराओं के रोग में 2 चम्मच एरंड का तेल दूध में मिलाकर रात में सेवन करें एवं एरंड तेल से मालिश करें। इससे रोगी शीघ्र ही ठीक हो जाता है। 90. नाक के रोग : एरंड के नये मुलायम पत्तों को पीसकर चूने में अच्छी तरह मिलाकर नाक की बवासीर पर लगाने से कुछ ही समय में यह रोग ठीक हो जाता है। (चूना घोंघे वाला या सीप वाला ही होना चाहिए)। अरंडी (एरंड) के छिलकों की राख बनाकर नाक के नथुनों (छेदों) से सूंघने से नकसीर (नाक से खून बहना) रुक जाती है।
91. सभी प्रकार के दर्द : एरंड के पेड़ की जड़, सोंठ, कंटकारी, कटेरी, बिजौरा नींबू की जड़, पाषाणभेद और त्रिकुटा की जड़ों को अच्छी तरह पीसकर बारीक चूर्ण को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें, इस बने काढ़े में जवाखार, हींग, सेंधानमक और अरंडी का तेल मिलाकर सेवन करने से आमजशूल, दिल का दर्द (हृदय शूल), स्तनशूल, लिंग शूल यानी लिंग (शिश्न) का दर्द और अनेक प्रकार के दर्द समाप्त हो जाते हैं।
92. स्तनों की रसौली (गांठे) : एरंड के तेल से स्त्री के स्तनों की मालिश करें और एरंड के पत्तों को स्तन पर बाँधे। इससे स्तन में होने रसूली (गांठें, गिल्टी) धीरे-धीरे कम होकर समाप्त हो जाती हैं। इसके साथ ही साथ स्तनों के आकार में बढ़ोत्तरी होती जाती है।
93. पेट में दर्द होने पर : एरंड का तेल 10 मिलीलीटर दूध में मिलाकर पीने से कब्ज के कारण होने वाला पेट का दर्द समाप्त हो जाता है। एरंड के तेल में हींग को बारीक पीसकर मिलाकर पेट के ऊपर लेप करने से पेट के दर्द में आराम मिलता है। एरंड के पत्तों को निचोड़कर प्राप्त हुए रस में थोड़ी-सी मात्रा में सेंधानमक मिलाकर प्रयोग करें। एरंडी के तेल में जवाखार मिलाकर सेवन करने से `कफोदर´ को समाप्त होता है।
94. आसान प्रसव (बच्चे का जन्म आसानी से होना) : एरंड का तेल नाभि पर मलने से बच्चा आसानीपूर्वक हो जाता है। लगभग 20 से 25 मिलीलीटर एरंड का तेल गर्म दूध के साथ प्रसव (डिलीवरी) के पूर्व पिलाने से प्रसव (डिलीवरी) आसानी से होता है। अरण्ड का तेल 50 मिलीलीटर गर्म दूध में मिलाकर पिला दें। अगर प्रसव में दर्द हो तो दर्द तेज होकर बंद हो जायेगा। 95. बंद पेशाब खुल जायें : 1 छोटा चम्मच अरंडी का तेल बच्चे को पिलाने से बंद पेशाब खुल जाता है।
96. योनि की जलन और खुजली : एरंड का तेल लगभग 7 मिलीलीटर से लेकर 14 मिलीलीटर को 100-250 मिलीलीटर दूध के साथ 1 दिन में सुबह और शाम पीने से योनि की खुजली मिटती है।
97. चेहरे की झांई के लिए : अरंडी के तेल में बेसन मिलाकर लगाने से चेहरा साफ होकर खूबसूरत बनता है।
98. घट्टा रोग : सुबह-शाम एरंड का तेल मलते रहने से घट्टे ठीक हो जाते हैं। तेल में कपड़ा भिगोकर पट्टी बांधे। इसका प्रयोग 2 महीनों तक करने से घट्टे ठीक हो जाते हैं।
99. हाथ-पैरों की अकड़न : एरंडी के तेल से हाथ व पैरों पर 2 से 3 मिनट तक धीरे-धीरे मालिश करने से ठंड के कारण उत्पन्न अकड़न खत्म हो जाती है। 25 ग्राम एरंड की जड़ का छिलका (छाल) को कूटकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। पानी आधा रह जाने पर उसको छानकर इसमें 125 मिलीलीटर तिल का तेल डालकर फिर गर्म करें। पानी जल जाने पर ठंडाकर कम गर्म तेल से पैरों के जोड़ों पर मालिश करने से लाभ मिलता है।
100. हाथ-पैरों की जलन : 30 ग्राम शुद्ध एरंडी के तेल को 100 मिलीलीटर गाय के पेशाब में मिलाकर पीने से हाथ-पैरों की ऐंठन दूर हो जाती है। एरंड के तेल को बकरी के दूध में मिलाकर हाथ-पैरों पर मालिश करने से लाभ मिलता है। पैरों के तलवों की जलन दूर करने के लिए अरण्ड के बीज और गिलोय को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
101. दिल की बीमारी के लिए : एरंड तेल में भुना हुआ हरीतकी फल मज्जाचूर्ण 1 से 3 ग्राम, अंगूर, शर्करा, परूषक फल व शहद बराबर मात्रा में लेकर, दिन में 2 बार सेवन करना चाहिए। एरंड तेल में भुनी हुई हरीतकी फल मज्जा 20 ग्राम, सेंधानमक 10 ग्राम, श्वेत जीरा का बारीक पिसा हुआ चूर्ण एक भाग मिलायें। इसे 2 से 6 ग्राम की मात्रा में 5 से 10 ग्राम शर्करा के साथ दिन में 2 बार सेवन करना चाहिए।
102. चेहरे के लकवा के रोग में : 10 से 20 मिलीलीटर एरंड के तेल को पकाकर गर्म दूध में मिलाकर सुबह और शाम रोगी को दें अगर रोगी को पैखाना (टट्टी) साफ आने लगे तो सिर्फ एक बार दें। इसके सेवन करने से पक्षाघात, चेहरे का लकवा ठीक हो जाता है। यह शरीर में शक्ति पैदा करता है।
103. नासूर (पुराने घाव) : एरंड के पौधे के नये पत्तों को पानी में पीसकर नासूर पर लगाने से रोगी को लाभ मिलता है।
104. फीलपांव (गजचर्म) : 20 मिलीलीटर एरंडी का तेल और 20 ग्राम हरड़ का चूर्ण को 250 मिलीलीटर गाय के पेशाब में मिलाकर 7 दिन तक सेवन करने से फीलपांव का रोग ठीक होता है। एरंडी के तेल में छोटी हरड़ भूनकर चूर्ण बना लें। 6 ग्राम दवा को 100 मिलीलीटर गाय के पेशाब के साथ पीने से फीलपांव का रोगी ठीक हो जाता है।
105. तुंडिका शोथ (टांसिल) : 10-10 ग्राम एरंड, शहतूत की पत्तियां और निर्गुण्डी तीनों को लेकर 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर उसकी भाप लेने से गले की सूजन समाप्त होती है।
106. फोड़े-फुंसियां : अरण्ड, मालकांगनी और सज्जीक्षार के बीज को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। फिर इसमें पानी डालकर गर्म-गर्म लेप कर फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
107. कुष्ठ (कोढ़) : एरंड के पत्तों को मट्ठे (लस्सी) में पीसकर मालिश करने से हर प्रकार का `कोढ़´ दूर हो जाता है। सफेद फूलों वाली अरंडी की जड़ को रविवार के दिन लाकर पीसकर रोजाना 10 ग्राम पीने से सफेद कोढ़ ठीक हो जाता है।
108. शरीर की जलन : एरंड के बीज के भीतर के भाग को पीसकर बकरी के दूध में मिलाकर पैरों के तलवों में मालिश करने से रोगी के शरीर की जलन दूर हो जाती है। एरंडी के तेल से भी मालिश करने से रोगी को लाभ मिलता है। 

Saffron health benefits

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