सोमवार, 28 जून 2021

Saffron health benefits

 


परिचय : केसर की खेती भारत के कश्मीर की घाटी में अधिक की जाती है। यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है। असली केसर बहुत महंगी होती है। कश्मीरी मोंगरा सर्वोतम मानी गई है। विदेशों में भी इसकी पैदावार बहुत होती है और भारत में इसकी आयात होती है। केसर का पौधा बहुवर्षीय होता है और यह 15 से 25 सेमी ऊंचा होता है। इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। इसमें बैगनी रंग की अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं। एक फूल से केसर के तीन तन्तु प्राप्त होती है। इसके बीज आयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं जिनमें से गोलकार मींगी निकलती है। आयुर्वेद के अनुसार : आयुर्वेदों के अनुसार केसर उत्तेजक होती है और कामशक्ति को बढ़ाती है। यह मूत्राशय, तिल्ली, यकृत (लीवर), मस्तिष्क व नेत्रों की तकलीफों में भी लाभकारी होती है। प्रदाह को दूर करने का गुण भी इसमें पाया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार : केसर की रासायनिक बनावट का विश्लेषण करने पर पता चला हैं कि इसमें तेल 1.37 प्रतिशत, आर्द्रता 12 प्रतिशत, पिक्रोसीन नामक तिक्त द्रव्य, शर्करा, मोम, प्रोटीन, भस्म और तीन रंग द्रव्य पाएं जाते हैं। अनेक खाद्य पदार्थो में केसर का उपयोग रंजन पदार्थ के रूप में किया जाता है। असली केसर की पहचान : असली केसर पानी में पूरी तरह घुल जाती है। केसर को पानी में भिगोकर कपड़े पर रगडने से यदि पीला केसरिया रंग निकले तो उसे असली केसर समझना चाहिए और यदि पहले लाल रंग निकले व बाद में पीला पड़े तो नकली केसर समझना चाहिए। केसर बुखार की प्रारिम्भक अवस्था, दाने, चेचक व आन्त्रज्वर को बाहर निकालता है लेकिन दाने निकल आने पर विशेषत: बुखार आदि पित्त के लक्षणों में केसर का उपयोग सावधानी से करना चाहिए। विभिन्न भाषाओं में केसर के नाम : हिन्दी केशर, केसर। अंग्रेजी सैफ्राम। संस्कृत कुंकुभ, घुसृण, रक्त काश्मीर। मराठी केशर। गुजराती केशर। बंगाली कुकम। तैलगी कुकुम पुवु। फारसी करकीमास। अरबी जाफरान। लैटिन क्रोकस सेटाइवस। विभिन्न रोगों में उपचार : 1. आंखों से कम दिखाई देना: गुलाबजल में केसर घिसकर आंखों में नियमित डालने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। 2. नपुंसकता: केसर, जायफल और जावित्री पान में रखकर दिन में 2 से 3 बार खाने से नपुसंकता दूर होती है। 3. मूत्राघात: घी के साथ केसर मिलाकर प्रतिदिन खाने से मूत्रघात (पेशाब में वीर्य आना) रोग ठीक होता है। 4. सर्दी-जुकाम, खांसी: केसर को दूध में घोटकर दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ दिनों तक पीने से सर्दी, जुकाम और खांसी नष्ट होती है। बच्चों को सर्दी-खांसी के रोग में लगभग 24 से 36 मिलीग्राम केसर को गर्म दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाएं और केसर को पीसकर मस्तक और सीने पर लेप करें। इससे खांसी के रोग में आराम आता है। 5. अंजनहारी: केसर को घिसकर ठंडे पानी में मिलाकर आंखों में लगाने से `अंजनहारी´ (गुहेरी) दूर होती है। केसर और अफीम को गुलाबजल में घिसकर आंखों पर लेप करने से आंखों का लाल होना ठीक होता है। 6. निमोनिया: बच्चे को सर्दी लगकर निमोनिया की शिकायत हो तो 240 से 480 मिलीग्राम केसर को गर्म दूध में मिलाकर बच्चे को पिलाएं। इसके साथ मस्तक व सीने पर केसर के लेप से मालिश भी करें। इससे निमोनिया में जल्दी लाभ मिलता है। 7. अफारा (गैस का बनना): केसर 120 से 240 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ पीने से अफारा ठीक होता है। यह दस्त और उल्टी के लिए भी लाभकारी है। 8. गर्भधारण: केसर और नागकेसर 4-4 ग्राम की मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें और मासिकधर्म शुरू होने के तुरंत बाद खाएं। इससे गर्भधारण होता है। गजकेसर की जड़, पीपल की दाढ़ी और शिवलिंगी के बीज 6-6 ग्राम की मात्रा में कूट-छान लें और इसमें 18 ग्राम की मात्रा में चीनी मिला लें। यह 5 ग्राम मात्रा में सुबह के समय बछडे़ वाली गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध में मिलाकर मासिकधर्म खत्म होने के बाद लगभग एक सप्ताह तक खाएं। इसके सेवन से स्त्रियां गर्भधारण के योग्य बन जाती है। 9. कब्ज: आधा ग्राम केसर को घी में पीसकर खाने से 1 साल पुरानी कब्ज़ दूर होती है। 10. दस्त: असली केसर के 1 से 2 रेशे को देशी घी में मिलाकर सेवन करने से बच्चों को होने वाले पतले दस्त रोग ठीक होता है। असली केसर 2 ग्राम की मात्रा में लेकर चावल के साथ देशी घी में मिलाकर बच्चे को चटाने से दस्तों का बार-बार आना बंद होता है। हींग, अफीम और केसर को मिलाकर शहद के साथ खाने से अतिसार रोग ठीक होता है। केसर 120 से लेकर 240 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ खाने से दस्त, पेट का फूलना और पेट का दर्द समाप्त होता है। 11. बहरापन: केसर, गुलाबी फिटकरी और एलुवा 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और तुलसी के 50 मिलीलीटर रस में मिलाकर 3-4 बूंद की मात्रा में कान में डालें। इससे कुछ दिन तक लगातार प्रयोग करने से बहरापन दूर होता है। 12. कष्टार्तव (मासिक धर्म का कष्ट के साथ आना): 200 मिलीग्राम केसर को दूध में मिलाकर दिन में 2 से 3 बार पीने से मासिकधर्म की पीड़ा दूर होती है। 13. मासिकधर्म की अनियमितता: केसर और अकरकरा को पीसकर गोलियां बनाकर खाने से मासिकधर्म नियमित होता है। 14. रक्तप्रदर: केसर का चूर्ण 60 से 180 मिलीग्राम की मात्रा में मिश्री मिले शर्बत में मिलाकर पीने से रक्तप्रदर रोग ठीक होता है। 15. स्तनों में दूध बढ़ाना: पानी में केसर को घिसकर स्तनों पर लेप करने से स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। 16. शीघ्रपतन: केशर को दूध में डालकर पीने से शीघ्रपतन रोग दूर होता है। 17. पेट के कीड़े: केसर और दालचीनी को बराबर-बराबर मात्रा में बारीक पीस लें और फिर इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से आंतों के कीड़े समाप्त होते हैं और पेट का दर्द ठीक होता है। कपूर और केसर 60-60 मिलीग्राम की मात्रा में लेकर एक चम्मच दूध में अच्छी तरह मिलाकर दिन में 3 बार पिलाएं। इससे पेट के कीड़े नष्ट होते हैं। 120 मिलीग्राम केसर को पीसकर दूध के साथ कुछ दिनों तक प्रयोग करने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं। 18. पेट का दर्द: 3 ग्राम केसर को 3 ग्राम दालचीनी के साथ पीसकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से पेट का दर्द समाप्त होता है। केशर 120 से लेकर 240 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से और पानी में मिलाकर पेस्ट के रूप में पेट पर लगाने से दर्द, अफारा (गैस) और दस्त में लाभ होता है। केसर और कपूर को 120 मिलीग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ सेवन करने से दर्द पेट का दर्द ठीक होता है। 19. हृदय की दुर्बलता: 120 मिलीग्राम केसर को 50 मिलीलीटर पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात को भिगो दें। सुबह 20-25 किशमिश खाकर इस पानी को पीएं। इसका सेवन 15 दिनों तक करने से हृदय की कमजोरी दूर होती है। 20. हिस्टीरिया: केसर, वच और पीपलामूल 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 5 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने से हिस्टीरिया रोग ठीक होता है। 21. शीतला (मसूरिका): चेचक निकलने की शुरुआत अवस्था में ही 60 मिलीग्राम केसर को बारीक पीसकर बिना बीज के मुनक्के के साथ रोगी को खिलाने से चेचक जल्दी ही बाहर निकलकर ठीक हो जाता है। 240 से 480 मिलीग्राम केसर को कच्चे नारियल के पानी के साथ सुबह-शाम सेवन कराने से चेचक (माता) के दाने जल्दी बाहर निकलकर ठीक हो जाते हैं। 22. सूखा रोग: सुबह सूर्योदय से पहले काली गाय का पेशाब 10 ग्राम और 10 ग्राम केसर को मिलाकर शीशी में भरकर रख लें। सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को यह 5 बूंदे सुबह-शाम मां के दूध के साथ देने से सूखा रोग (रिकेट्स) ठीक होता है। 23. बच्चों के विभिन्न रोग: केसर को पीसकर और शहद में मिलाकर आंखों में लगाने से आंखों की जलन दूर होती है। फलकटेरी के फूलों के रस, केसर और शहद मिलाकर चटाने से बच्चों की खांसी दूर होती है। यदि बच्चे को ठण्ड लग गई हो तो थोड़ी सी केसर को दूध में मिलाकर पिलाएं। सर्दियों में 3 से 4 दिन के बाद केसर को दूध में घोलकर पिलाना बहुत ही फायदेमंद है। बच्चों के पेट में कीड़े होने पर केसर और कपूर चौथाई चम्मच की मात्रा में खिला कर दूध पिलाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं। केसर, मुलेठी, पीपल और निशोथ का काढ़ा बनाकर चिकनी मिट्टी में भिगोकर सुखा लें। इस तरह चार बार भिगोएं और सुखाएं और फिर यह मिट्टी बच्चे को खिलाएं। इसको खाने से बच्चे के पेट की मिट्टी बाहर निकल जाती है। 24. सिर का दर्द: 5 ग्राम केसर, 25 ग्राम गाय के घी और 50 ग्राम सेमल की पुरानी रुई को मिलाकर जलाएं और इसके धुएं को सिर दर्द के रोगी को सूंघना चाहिए। इससे सिर दर्द के साथ आधासीसी का रोग भी ठीक होता है। केसर को घी में भूनकर और मिश्री डालकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक होता है। हवा या वात के कारण होने वाले सिर दर्द में केसर और सौंठ को मिलाकर सिर या माथे पर लेप करें। इससे सिर का दर्द ठीक होता है। केसर और चन्दन को पीसकर लेप बना लें और इस लेप को सिर पर लगाएं। इससे सिर दर्द दूर होता है। गाय के दूध में केसर और बादाम को पीसकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक होता है। 25. आधे सिर का दर्द (माइग्रेन): केसर और चीनी को घी में भूनकर सूंघने से आधे सिर का दर्द ठीक होता है। 26. चेहरे की सुन्दरता: असली केसर की चार-पांच पंखुड़ियां तथा एक छोटी इलायची को 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर प्रतिदिन पीने से चेहरे का रंग साफ होता है। सर्दियों में एक से दो महीने तक यह दूध पीना चाहिए। दूध में थोड़ा सा केसर मिलाकर पीने से भी काले रंग वाले लोगों का रंग गोरा हो जाता है। 27. शरीर की सूजन: केसर को पानी के साथ पीसकर लेप करने से यकृत बढ़ने के कारण होने वाली सूजन दूर होती है।

Turmeric health benefits


परिचय : क्योंकि यह दाल व सब्जी का रंग पीला करता है और भोजन को स्वादिष्ट भी बनाता है। हल्दी 2 प्रकार की होती है। एक लौहे जैसी सख्त दूसरी नर्म व सुगन्धित जोकि मसाले में काम आती है। एक ऐसी भी हल्दी होती है जोकि सिर्फ जंगलों में पाई जाती है जिसे हम आंबा हल्दी भी कहते हैं इसका उपयोग हम मसालों में नहीं करते लेकिन यह खून की खराबी और खुजली को मिटाता है। हल्दी के पौधे जमीन के ऊपर हरे-हरे दिखाई देते हैं। इसके पौधे 2 या 3 फुट ऊंचे होते हैं और पत्ते केले के पत्ते के समान होते हैं। हल्दी की गांठों को जमीन से खोदकर निकाला जाता है और फिर हल्दी को साफ करके मटके में रखकर ऊपर से उसका मुंह बंद करके और आग की धीमी आंच पर पकाया जाता है जिससे इसकी कच्ची गन्ध दूर की जाती है और फिर इसे सुखाकर बेचा जाता है। हल्दी एक फायदेमंद औषधि है। हल्दी किसी भी उम्र के व्यक्ति को दी जा सकती है चाहे वह बच्चा हो, जवान हो, बूढ़ा हो चाहे वह गर्भवती महिला ही क्यों न हो। यह शरीर से खून की गंदगी को दूर करती है और रंग को साफ करती है। हल्दी वात, पित्त और कफ व अन्य रोगों को खत्म करती है। अगर खांसी हो तो हल्दी को गर्म दूध में डालकर पीते हैं। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी बढ़ाती है। हल्दी से कपड़ों को रंगा भी जाता है। हल्दी और चूने को आपस में मिलाकर कुंकुम बनाया जाता है। इससे मधुमेह का रोग भी ठीक हो जाता है। यहां तक कि पुराने जमाने के गुरू, आचार्य और वैद्य तो इसे `मेहहनी´ के नाम से विभूषित करते थे। हल्दी कडुवी, तीखी, सूखी, गर्म, रूखी और शरीर के रंग को साफ बनाने वाली होती है। यह पित्त, त्वचा के रोग, मधुमेह, खून के रोग, सूजन, पीलिया, कुष्ठ, विष और पेट के कीड़े आदि रोगों को खत्म करती है। हल्दी में वातनाशक गुण होता है इसलिए ठंड से होने वाली वात नाड़ी के जलन पर हल्दी खाने के लिए दी जाती है। हल्दी से शरीर की मालिश भी की जाती है। पीलिया और पित्त-प्रमेह में इसका उपयोग होता है। शरीर के भीतरी चोट (गुम चोट) पर हल्दी का उपयोग तो बहुत ही जरूरी होता है। हल्दी में पाये जानेवाले कुछ तत्त्व: तत्त्व मात्रा प्रटीन 6.3% वसा 5.1% कार्बोहाइड्रेट 69.4% लवण 3.5% कैल्शियम 0.15% फांस्फोरस 0.28% लौह 18.6 मि.ग्राम विटामिन-ए 50.U./100 ग्राम विभिन्न भाषाओ में हल्दी का नाम: संस्कृत हरिद्रा, कांचनी। हिन्दी हल्दी। बंगाल हलुद। मराठी हलद। पंजाबी हरदल। कन्नड़ असिना, अरसिना अरबी उरू कुस्सुफ। गुजरात हलदर। फारसी जरदपोप। अंग्रेजी टरमेरिक। लैटिन कुरक्युमा लौगा। रंग : हल्दी का रंग लाल होता है। स्वाद : इसका स्वाद तीखा व तेज होता है। स्वरूप : हल्दी के पत्ते बड़े-बड़े और लंबे होते हैं, इसमें से सुगन्ध आती है। हल्दी के पौधे की जड़ में ही फल पैदा होता है और उसी को हल्दी कहते हैं। स्वभाव : यह गर्म और रूखी होती है। हानिकारक : हल्दी का अधिक मात्रा में उपयोग हृदय के लिए हानिकारक हो सकता है। दोषों को दूर करना : हल्दी के रस में लेमू मिलाने से हल्दी में व्याप्त दोष दूर हो जाते हैं। तुलना : हल्दी की तुलना ममीरा से कर सकते हैं। मात्रा : 5 ग्राम। विभिन्न रोगों में सहायक : 1. त्वचा के रोग: हल्दी को पीसकर तिल के तेल में मिलाकर मालिश करें इससे चर्म रोग खत्म हो जाएगा। अगर शरीर में खुश्की (चमड़ी सूख) गई हो तो सरसों के तेल में हल्दी को मिलाकर शरीर पर उसकी मालिश करने से लाभ होता है। 2. हाथ-पैर फटना: कच्चे दूध में पिसी हुई हल्दी मिलाकर त्वचा पर मालिश करने से त्वचा मुलायम होती है। इससे हाथ-पैर भी नहीं फटते हैं और यदि फट भी गये हों तो उनमें हल्दी भर दें तो फायदा होगा। 3. चोट लगने पर: चोट लगने पर एक चम्मच हल्दी गर्म दूध के साथ पीने से दर्द और सूजन दूर हो जाती है। चोट लगी जगह पर हल्दी को पानी में मिलाकर उसका लेप लगाएं और अगर चोट ज्यादा गहरा हो तो उसमें हल्दी भर दें इससे चोट जल्द भर जाएगी। आंख में चोट लगने पर भी हल्दी को खाया जा सकता है। घी, आधा चम्मच सेंधानमक, थोड़ा-सा पानी मिलाकर हलुवा सा बनाकर चोट पर रखकर बांधें। आधा लीटर उबलते हुए गर्म पानी में आधा चम्मच सेंधानमक डालकर हिलाएं फिर इसमें एक चम्मच हल्दी डालें और बर्तन को उतारकर रख दें जब पानी सेक करने लायक हो जाये तो कपड़ा भिगोकर चोट वाले अंग पर इससें सेंक करें। इससे दर्द में आराम मलेगा। गुम चोट लगने पर एक चम्मच हल्दी गर्म दूध के साथ पीने से दर्द और सूजन दूर होती है। शरीर की टूट-फूट दूर होती है। चोट लगे स्थान पर हल्दी को पानी में गूंथकर लेप करें। चोट से कटकर रक्त बह रहा हो तो उस स्थान पर हल्दी भर दें। इससे चोट पूरी तरह से ठीक हो जाती है। आंख में चोट लगने पर भी हल्दी का सेवन करना लाभदायक होता है। दो चम्मच पिसी हुई हल्दी, चार चम्मच गेहूं का आटा, एक चम्मच देशी घी, आधा चम्मच सेंधानमक, थोड़ा-सा पानी मिलाकर हलुवा बनायें। फिर चोट लगे स्थान पर इस हलुवे की पट्टी बांधें। आवश्यकतानुसार मात्रा घटा-बढ़ा सकते हैं। आधा किलो उबलते हुए गर्म पानी में आधा चम्मच नमक डालें। बर्तन को उतारकर ढककर रख दें। जब पानी सेंक करने जैसा हो जाए तो कपड़ा भिगोकर चोट लगने वाले अंग को इससे सेंक करें। इससे दर्द दूर हो जाएगा। एक प्याज को पीसकर उसमें हल्दी मिलाकर कपड़े सें बांध लें। इसे तिल के तेल में रखकर गर्म करें और सेंक करें। कुछ देर सेंकने के बाद पोटली खोलकर दर्द वाले स्थान पर बांध दें। कहीं भी चोट लगी हो या सूजन आ गई हो तो दो भाग पिसी हुई हल्दी, एक भाग चूना मिलाकर लेप करें। इससे दर्द और सूजन दूर हो जायेगी। दस कली लहसुन और आधा चम्मच हल्दी-दोनों को पीसकर एक चम्मच तेल में गर्म करके सूजी हुई जगह पर लेप करके रूई लगाकर पट्टी बांध दें। इससे चोट की सूजन दूर हो जायेगी। पिसी हल्दी 3 ग्राम को दूध से सुबह-शाम लें। इससे दर्द और दूर होती है। कटी हुई जगह पर हल्दी के साथ पिसी फिटकरी या घी भर देने से खून का बहना जल्दी ही बंद हो जाता है। दस कली लहसुन और आधा चम्मच हल्दी-दोनों को पीसकर एक चम्मच तेल में गर्म करके सूजी हुई जगह पर लेप करके रूई लगाकर पट्टी बांध दें। इससे चोट की सूजन दूर हो जायेगी। पिसी हल्दी 3 ग्राम को दूध से सुबह-शाम लें। इससे दर्द और दूर होती है। कटी हुई जगह पर हल्दी के साथ पिसी फिटकरी या घी भर देने से खून का बहना जल्दी ही बंद हो जाता है। 4. हड्डी के टूटने पर: हड्डी के टूटने पर रोज हल्दी का सेवन करने से लाभ मिलता है। एक प्याज को पीसकर एक चम्मच हल्दी मिलाकर कपड़े में बांध लें। इसे तिल के तेल में रखकर गर्म करें और इससे फिर सेंक करें। कुछ देर सेंकने के बाद पोटली खोलकर दर्द वाले स्थान पर बांध दें। हड्डी टूटने पर हल्दी का रोज सेवन करने से लाभ होता है। हड्डी टूट जाने पर प्लास्टर लगाकर एक बार की टूटी हड्डी तो जल्द ही ठीक हो जाती है मगर जो हड्डी बार-बार टूटी हो उसमें जगह बनने से पानी जमने, सड़ने की संभावना हो सकती है। पिसी हुई हल्दी 1 छोटी चम्मच, एक चम्मच-भर पुराना गुड़ जोकि 1 साल पुराना हो और देशी घी 2 चम्मच-भर लेकर तीनों को 1 कप पानी में उबालें। जब उबलते-उबलते पानी आधा ही रह जाये, तब इसे थोड़ा ठण्डाकर पी जायें। इस प्रयोग को केवल 15 दिन से 6 महीने तक करने से लाभ नज़र आ जायेगा। 5. दांत दर्द: हल्दी, नमक और सरसों का तेल मिलाकर रोज मंजन करें। इससे दांत मजबूत बनेंगे। हल्दी को आग पर भूनकर बारीक पीस लें। इससे उस दांत को मले जिसमें दर्द हो, इससे दांतों के कीड़े मर जाते हैं। केवल हल्दी का टुकड़ा दांतों के बीच दबाने से भी लाभ पहुंचता है। हल्दी और हींग दोनों को पीसकर जरा-सा पानी डालकर गोली बना लें और जिस दांत में दर्द हो उसके नीचे इसे दबा लें। इससे दांतों का दर्द दूर हो जाता है। नमक, हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर दांतों व मसूढ़ों पर दिन में 2 से 3 बार मलें। इससे दांत मजबूत होते हैं एवं दर्द दूर होता है। 6. गर्भ निरोध: हल्दी की गांठे पीसकर कपड़े में छान लें। फिर इसे 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करते रहें। गर्भ निरोध का यह सबसे सस्ता उपाय है। 7. गैस: पेट में जब गैस भर जाती है तो बहुत दर्द होता है। ऐसी स्थित में पिसी हुई हल्दी और नमक 5-5 ग्राम की मात्रा में पानी से लें। हल्दी और सेंधानमक को पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है। 8. गठिया: गठिया के रोग में हल्दी के लड्डू खाने से लाभ होता है। 9. घाव में कीड़े: घाव पर पिसी हुई हल्दी लगाने से ही घाव के कीड़े मर जाते हैं और घाव भी जल्द भर जाता है। 10. घबराहट: घबराहट हो तो हल्दी और नमक को गर्म पानी में घोलकर पियें और खांसी अगर पुरानी हो तो हल्दी के 4-चम्मच हल्दी में आधा चम्मच शहद मिलाकर खाएं। 11. कफ: आधा चम्मच हल्दी की फंकी गर्म दूध के संग लेने से कफ निकल जाता है। कफ (बलगम) जम जाने के कारण सांस लेने मे छाती कांपती हो तो गाय के मूत्र में थोड़ी-सी हल्दी मिलाकर पिलाना कफ (बलगम)-खांसी में फायदेमंद होता है। श्लेश्मा, रेशा गिरता हो तो आधा चम्मच हल्दी की फंकी गर्म दूध से लेना चाहिए। जुकाम, दमा में कफ (बलगम) गिरता हो तो रोज तीन बार 2 ग्राम हल्दी की फंकी गर्म पानी से लेना चाहिए। 12. जलन: हल्दी को पानी में घोलकर जले हुए स्थान पर लेप लगायें सूखने पर बार-बार लेप करें इस प्रयोग से जले हुए में लाभ होता है। 13. स्तनों में सूजन या गांठ: हल्दी पाउडर को ग्वारपाठे के रस में मिलाकर व उसे गर्म करके स्तनों पर लेप करें इससे स्तनों की सूजन व गांठों में लाभ पहुंचेगा। 14. स्तनों में दर्द: हल्दी की गांठ को पानी में घिसे और स्तनों में लेप करें। इससे स्तनों का दर्द दूर हो जाता है। 15. कण्ठमाला (गले की गांठे): 8 ग्राम हल्दी की फंकी सुबह-शाम दो बार कम से कम जरूर लें। हल्दी की गांठ को पत्थर पर घिसकर लगाएं। इसे कुछ दिनों लगातार प्रयोग करें। इसे गले की गांठे ठीक हो जाती हैं। 8 ग्राम हल्दी की फंकी रोजाना सुबह और शाम दो बार लेने से कण्ठमाला रोग (गले की गांठे) ठीक हो जाता है। 16. दाद: दाद पर दिन में 3-बार और रात को सोते समय हल्दी का लेप करने से दाद ठीक हो जाता है। 17. खुजली: शरीर के पीले रंग के दाने जिसमें मवाद भरी हो और उनमें खुजली हो तो, एक चम्मच हल्दी, एक कप गर्म दूध, चौथाई चम्मच देशी घी, स्वाद के लिए शक्कर डालकर सुबह शाम पियें। 250 मिलीलीटर सरसों के तेल में दूब का रस 500 मिलीलीटर, 250 ग्राम हल्दी को पीसकर सबको लोहे की कड़ाही में डालकर मिला लें तथा गर्म करें। जब उबलने लगे तो उसे छानकर बोतल में भर लें और खुजली होने पर इसे लगाकर मलें। इससे खुजली कुछ दिनों में ठीक हो जायेगी। 18. शरीर पर काले दाग धब्बे: हल्दी की गांठों को पानी में घिसकर लेप करना चाहिए। 19. जुकाम या दमा: कफ गिरता हो तो रोज तीन बार 3 ग्राम हल्दी की फंकी गर्म पानी से लें। जुकाम होने पर हल्दी को आग पर डालकर उसका धुंआ सूंघने से ठीक हो जाता है। हल्दी को बालू में सेंककर पीसकर एक चम्मच की मात्रा में दो बार पानी से लें। हल्दी हर प्रकार के सांस रोग में फायदेमंद है। ठंड लगने से अगर जुकाम हुआ है तो एक चम्मच हल्दी को एक कप गर्म दूध के साथ सेवन करने से जुकाम नष्ट हो जाता है। हल्दी की गांठ को हल्का पानी डालकर पीसे उसे गर्म करके माथे पर लगायें यह जुकाम में फायदा करेगा। गर्म दूध में हल्दी, नमक और गुड़ डालकर बच्चों को पिलायें। इससे कफ व जुकाम में फायदा होगा। 20. जोंक के काटने पर खून बहना: जोंक के काटे स्थान से अगर खून बहे तो सूखी पिसी हल्दी भर दें। इससे खून बहना जल्द ही बंद जाता है और कुछ ही दिनों में काटा हुआ स्थान भर जाता है। 21. सूजाक: 8-8 ग्राम पिसी हुई हल्दी की फंकी पानी से दिन में 3-बार लेना चाहिए। 22. मुंह के छाले: 15 ग्राम पिसी हुई हल्दी, 1 किलो पानी में उबालें। उस पानी से रोजाना सुबह-शाम गरारे करने से मुंह के छालों में आराम मिलता है। 23. बच्चे के जन्म के समय मां की तकलीफ में: 6-ग्राम पिसी हुई हल्दी गर्म दूध में मिलाकर सुबह-शाम गर्भ के 9वें माह में कुछ दिन पिलाएं। 24. अनचाहे बालों का उगना: अगर शरीर में कही भी अनचाहे बाल उगे हो तो हल्दी का लेप लगायें। 25. चेचक: हल्दी और इमली के बीज समान मात्रा में पीसकर चुटकी भर प्रतिदिन 7 दिनों तक लेने से माता (चेचक) नहीं निकलती है। चेचक के निकलने पर इमली के बीज का चूर्ण हल्दी में मिलाकर लेने से चेचक जल्द ही ठीक हो जाता है। चेचक के दानों में अगर घाव हो जाये तो पान के कत्थे को हल्दी के संग सूखा ही छिड़के तो वह ठीक हो जायेगा। 10 ग्राम हल्दी, 5 ग्राम कालीमिर्च और 10 ग्राम मिश्री का बारीक चूर्ण बनाकर रख लें। फिर तुलसी के पत्तों के रस में शहद मिलाकर उसके साथ इस चूर्ण को रोजाना सुबह-सुबह खाने से चेचक के रोग में लाभ होता है। हल्दी को पानी में मिलाकर चेचक के दानों पर लगाने से लाभ होता है। 26. सौन्दर्यवर्धक: पिसी हुई हल्दी, चंदन का बुरादा, पिसे हुए हरे नीम के पत्ते प्रत्येक 2-2 चम्मच में लेकर मिला लें और चेहरे पर मलें। इससे चेहरा चमक उठेगा और इस प्रयोग से चेहरे के कील मुंहासें, दाग-धब्बे दूर हो जाएंगे। कुछ हफ्ते लगातार इसे मलने से चेहरे का रंग भी साफ हो जाता है। रात के समय 5 बादाम भिगो लें, फिर इसे सुबह के समय छीलकर पीस लें और इसमें 1 चम्मच हल्दी और 4 चम्मच दही मिलाकर अच्छी तरह मिला लें और चेहरे पर लगायें इससे चेहरा साफ हो जायेगा। चुटकी भर हल्दी, बेसन तथा सरसों का तेल मिलाकर लेप बनायें उसमें थोड़ा-सा पानी मिलाकर चेहरे पर मलें। इससे चेहरे की सुन्दरता बढ़ती है। 27. पित्ती: 1 चम्मच हल्दी, घी 1 चम्मच, चीनी 2 चम्मच, गेहूं का आटा 2 चम्मच, आधा कप पानी डालकर हलुवा बना लें और इसे रोज सुबह खाकर 1 गिलास दूध पीएं। इससे पित्ती मिट जाती है। इसके आधा चम्मच प्रयोग से भी पित्ती में लाभ होता है। 28. स्थान बदलने पर पानी का असर: हल्दी का चूर्ण और जवाखार बराबर मात्रा में लेकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से अलग-अलग जगहों के पानी का खराब असर नहीं होता है। 29. ठंड से आने वाला बुखार: गर्म दूध में हल्दी और कालीमिर्च मिलाकर पीने से ठंड से आने वाले बुखार ठीक हो जाते हैं। 30. स्वरभंग (गला बैठ जाना): गर्म दूध में थोड़ी सी हल्दी डालकर पीने से स्वर भेद (मोटी आवाज़), बैठी आवाज या दबी आवाज़ में फायदा होता है। 31. प्रमेह: दारूहल्दी में थोड़ी हल्दी डालकर काढ़ा तैयार करें उसमें शहद मिलाकर खाने से प्रमेह का रोग ठीक हो जाता है। 32. पेशाब के साथ पीव का आना: पेशाब के साथ अगर मवाद निकलता हो तो ऐसे में आंवले के रस या काढ़े में शहद और हल्दी को मिलाकर खाने से लाभ मिलता है। 33. आंखों के रोग: हल्दी को अरहर की दाल में पकायें और छाया में सुखा लें उसे पानी में घिसकर, शाम होने से पहले ही दिन में दो बार जरूर लगायें इससे झामर रोग, सफेद फूली और आंखों की लालिमा में लाभ होता है। 34. बिच्छू के विष पर: हल्दी को आग पर डालकर उसका धुंआ बिच्छू के डंक पर देने से जहर उतर जाता है या हल्दी को घिसकर थोड़ा-सा गर्म करके बिच्छू के डंक मारे स्थान पर लेप करे तो आराम होता है। 35. पथरी: हल्दी और पुराना गुड़ छाछ में मिलाकर सेवन करने से पथरी नष्ट हो जाती है। 1 ग्राम हल्दी और 2 ग्राम गुड़ कांजी को मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से पथरी ठीक होती है। इसको खाने से मल (पैखाना) साफ होता है और पेशाब खुलकर आता है। 36. बेहोशी: पानी में हल्दी और चीनी मिलाकर पिलाने से बेहोशी दूर हो जाती है। 37. मस्से: हल्दी की गांठ को अरहर की दाल में पकायें फिर छाया में सुखाकर, गाय के घी में पीसकर (मस्सों) पर उसका लेप करें, इससे मस्से तुरन्त नर्म हो जाते हैं और दर्द दूर होता है। 38. बालों का आकर्षक: कच्ची हल्दी में चुकन्दर के पत्तों का रस मिलाकर सिर में लगायें इससे बाल नहीं गिरते और नये बाल भी उगते हैं। बाल सुन्दर और आकर्षक भी बन जाते हैं। 39. दीर्घायु: हल्दी का सेवन नियमित रूप से करने से वृद्धावस्था में देर में आती है और लंबी आयु प्राप्त होती है। 40. अण्डकोष की सूजन: लगभग 6-20 ग्राम पिसी हल्दी को अण्डों की जर्दी में मिलाकर थोड़ा गर्मकर अण्डकोष पर लेप करें तथा एरण्ड के पत्ते बांधें। इससे चोट लगे अण्डकोष सही हो जाते हैं। 41. आंख आना: 1 भाग हल्दी को 20 भाग पानी में डालकर उबालें, फिर इसे छानकर आंखों में बार-बार बूंदों की तरह डालें। इससे आंख का दर्द कम होता है तथा आंखों में कीचड़, आंखों का लाल होना आदि रोग समाप्त हो जाते हैं। इसके काढे़ में पीले रंग से रंगे हुए कपड़े का प्रयोग जब आंख आये तो तब करें। तब इस कपडे़ से आंखों को साफ करने से फायदा होता है। 42. श्वास, दमा रोग: हल्दी को पीसकर इसका चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को तवे पर भूनकर शीशी में बंद करके रखें। इस चूर्ण को 5 ग्राम की मात्रा में हल्के गर्म जल के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा (दमा) के रोगी को बहुत लाभ मिलता है। हल्दी सेंककर पीस लें। फिर आधा चम्मच यह हल्दी और एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार खाने से दमे में लाभ मिलता है। हल्दी, कालीमिर्च, मुनक्का, रास्ना, छोटी पीपल, कचूर और पुराना गुड़ पीसकर सरसों के तेल में मिला लें। इस मिली हुई सामग्री को 1 ग्राम तक की मात्रा में सेवन करने से तेज श्वास में भी आराम मिलता है। हल्दी को पीसकर तवे पर भूनकर शहद के साथ चाटने से श्वास रोग खत्म हो जाता है। हल्दी, किशमिश, कालीमिर्च, पीपल, रास्ना, कचूर सभी को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और फिर इन्हें थोडे़ से गुड़ में मिलाकर छोटे बेर के बराबर की गोलियां बनाकर प्रतिदिन दो गोली सुबह और शाम को खाने से दमा और श्वास की बीमारी खत्म हो जाती है। हल्दी की दो गांठे, अड़ूसा (वासा) के एक किलो सूखे पत्ते, 10 ग्राम कालीमिर्च, 50 ग्राम सेंधानमक और 5 ग्राम बबूल के गोन्द को मिलाकर और कूट पीसकर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। प्रतिदिन 5-6 गोलियां चूसते रहने से दमा से होने वाला कष्ट दूर हो जाता है। हल्दी को बालू रेत में सेंककर पीस लेना चाहिए और एक चम्मच की मात्रा में दो बार गर्म पानी से लेना चाहिए। इससे सभी प्रकार के श्वास रोग नष्ट हो जाते हैं। 43. दांत साफ और चमकदार बनाना: दांतों को साफ व चमकदार बनाने के लिए 50 ग्राम पिसी हुई हल्दी तथा 5 ग्राम भुनी हुई फिटकरी को बारीक पीसकर मंजन बना लें। रोजाना यह मंजन करने से दांत साफ और चमकदार बन जाते हैं। 44. आंखों का फूला, जाला: 5-5 ग्राम शुद्ध शोराकलमी और आंबा हल्दी को पीसकर कपडे़ में छानकर आंखों में एक हफ्ते लगातार सलाई से लगाने से आंखों का फूला और जाला नष्ट हो जाता है। हल्दी का एक टुकड़ा, नींबू में सुराख करके अन्दर रख दें। नींबू को धागे से बांधकर लटका दें। नींबू जब सूख जाये तो उसमें से हल्दी को निकालकर और पीसकर पानी में मिलाकर आंखों में सुबह और शाम लगाएं। 45. काली खांसी (कुकर खांसी): हल्दी की 3-4 गांठों को तोड़कर तवे पर भूनकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3-3 ग्राम सुबह-शाम पानी से लेने से काली खांसी में आराम आता है। 46. दांत घिसना या किटकिटाना: हल्दी को पीसकर लुगदी बना लें और सरसों के तेल में मिलाकर दांतों पर रोजाना मलें। इससे दांतों का दर्द दूर होता है तथा दांत किट-किटाना बंद हो जाते हैं। 47. हिलते दांत मजबूत करना: हल्दी और नमक को सरसों के तेल में मिलाकर रोजाना मंजन करने से हिलते हुए दांत मजबूत होते हैं। 48. इंफ्लुएन्जा: हल्दी और जवाखार के चूर्ण को गर्म पानी के साथ सेवन करने से बुखार कम होता है। 49. रतौंधी: रसौत, हल्दी, दारूहल्दी, मालती के पत्ते और नीम के पत्तों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर गाय के गोबर के रस में पीसकर मटर से डेढ़ गुने के आकार की गोलियां बना लें। इन गोलियों को आंखों में काजल की तरह लगाने से `रतौंधी´ (रात में दिखाई न देना) रोग दूर होता है। 50. आंखों का नाखूना: 20-20 ग्राम हल्दी, आमाहल्दी, दालचीनी और नीम के पत्तों को लेकर बारीक पीस लें, फिर इसे छानकर 6 महीने की उम्र वाले गाय के बछड़े के पेशाब में पूरे 6 घंटे तक खरल करके, गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर रख लें। इन गोलियों को गुलाबजल में घिसकर आंखों में आंजने (काजल की तरह लगाने) से `नाखूना` रोग ठीक हो जाता है। 51. खांसी: खांसी, गले, सीने में घबराहट हो तो गर्म पानी में हल्दी और नमक को मिलाकर पी लें। हल्दी का छोटा सा टुकड़ा मुंह में डालकर चूसते रहने से खांसी कभी नहीं आएगी। हल्दी को बाजरे के आटे में मिलाकर रात में फंकी लें और बिना पानी पियें सो जायें। इससे खांसी में लाभ होता है। हल्दी के टुकडे़ को सेंककर रात को मुंह में रखने से खांसी, कफ और जुकाम में लाभ होगा। थोड़ी सी पिसी हुई हल्दी तवे पर रखकर भून लें, उसमें से आधा चम्मच हल्दी गर्म दूध के साथ देने से खांसी में लाभ होता है। हल्दी और समुद्रफल खाने से कफ की खांसी से छुटकारा मिल जाता है। 10 ग्राम हल्दी, 10 ग्राम सज्जी और 180 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर पीस लें। इसके बाद छोटी-छोटी सी गोलियां बनाकर 1-1 गोली सुबह-शाम पानी के साथ लगातार 40 दिनों तक सेवन करने से श्वास रोग (सांस का रोग) दूर हो जाता है। 2 ग्राम हल्दी के चूर्ण में थोड़ा सा सेंधानमक मिलाकर, मुंह में रखकर ऊपर से थोड़ा सा पानी पीने से खांसी का रोग दूर हो जाता है। खांसी के शुरू ही होने पर 1 से 2 ग्राम हल्दी को घी या शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से या गुड़ में मिलाकर गर्म दूध के साथ पीने से खांसी रुक जाती है। 2 ग्राम पिसी हुई हल्दी खाने से साधारण खांसी दूर हो जाती है। आधा चम्मच हल्दी को शहद में मिलाकर सेवन करने से हर प्रकार की खांसी में लाभ होता है। 1 चम्मच पिसी हुई हल्दी को बकरी के दूध के साथ सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है। 52. पायरिया: हल्दी को बारीक पीसकर सरसों के तेल में मिलाकर रख लें। रोजाना रात को सोते समय इस मिश्रण को दांतों पर मलें और बिना कुल्ला किए हुए सो जाएं। सुबह उठकर कुल्ला करने से पायरिया का रोग नष्ट होता है। 53. सूखी काली खांसी: हल्दी की 3-4 गांठों को तवे पर भूनकर पीस लेते हैं। फिर इसे 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से सूखी काली खांसी दूर हो जाती है। 54. मसूढ़ों का रोग: हल्दी को मोटा-मोटा कूटकर आग पर भून लें। इसे बारीक पीसकर कपड़े से छानकर प्रतिदिन सुबह-शाम मसूढ़ों पर मलें। इससे मसूढ़ों के रोग ठीक हो जाते हैं। 55. वमन (उल्टी): कच्ची हल्दी का रस निकाल लें, फिर इस रस की 10-से 15 बूंद दिन में 2 से 3 बार 3 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे को पिलाने से उल्टी आना रुक जाती है। 56. गर्भाशय के बाहर निकल आने पर: गर्भाशय के बाहर निकल आने पर पिसी हुई हल्दी रोगन गुल में मिलाकर रूई में लगाकर सोते समय गर्भाशय के मुंह पर रखना चाहिए। 57. गर्भाशय की सूजन: शुद्ध हल्दी और भुने हुए सुहागे को मकोये के ताजे रस में मिला लें, फिर इसमें रूई के फाये को भिगोकर योनि में रखें। इससे गर्भाशय की सूजन समाप्त हो जाती है। 58. जुकाम: अगर जुकाम या दमा में बलगम निकलता हो तो 1 चम्मच पिसी हुई हल्दी को रोजाना 3 बार गर्म पानी से फंकी लेने से लाभ मिलता है। हल्दी को आग में डालकर उसमें से निकलने वाले धुएं को नाक से सूंघने से जुकाम का पानी और बलगम निकलकर बाहर आ जाता है। इसके बाद आधे घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए। हल्दी को आग पर रखकर उसमें से निकलने वाले धुएं को नाक से गले तक लेने से जुकाम ठीक हो जाता है। इसको लेने के कुछ घंटों तक पानी नहीं पीना चाहिए। 1 कप दूध के अन्दर 1 चम्मच हल्दी मिलाकर गर्म कर लें। इस दूध में चीनी डालकर पीने से सभी तरह का जुकाम दूर हो जाता है। हल्दी का काढ़ा बनाकर मोटा-मोटा ही माथे पर लगाने से जुकाम में आराम आता है। गर्म पानी में 2 ग्राम पिसी हुई हल्दी को मिलाकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है। दूध में हल्दी डालकर अच्छी तरह से गर्म करके पीने से जुकाम के रोग में आराम आता है। 1 कप गर्म दूध में आधा चम्मच पिसी हुई हल्दी और 10 दाने कालीमिर्च को मिलाकर पीने से जुकाम और बुखार ठीक हो जाता है। 59. मुंह का रोग: हल्दी और मैंसिल पीसकर इसकी धूनी मुंह में देने से मुंह के सभी रोग ठीक होते हैं। 60. नपुंसकता: हल्दी और कपूर 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें। 5-ग्राम दवा सुबह दूध से लें। इससे नपुसंकता दूर हो जाती है। 61. हिचकी का रोग: हल्दी का चूर्ण चिलम में रखकर पीने से हिचकी नहीं आती है। 10 ग्राम हल्दी, अजवायन या काली उड़द को चिलम में रखकर इसके धुंए को पीने से हिचकी में लाभ होता है। हल्दी कूटी हुई या काली उड़द चिलम में रखकर उसके हल्दी पिसी हुई को तवे पर भून लें। फिर 1 चम्मच हल्दी को ताजे पानी के साथ सेवन करें। इससे हिचकी में लाभ होता है। धुएं को पीने से हिचकी नहीं आती है। 62. गर्भवती स्त्री के स्तनों का दर्द और बुखार: हल्दी और धतूरे के पत्तों का लेप करने से गर्भवती स्त्री के स्तनों का दर्द और बुखार नष्ट हो जाता है। 63. बवासीर (अर्श): हल्दी और कसी हुई लौकी का चूर्ण पानी के साथ पीसकर या सरसों के तेल में पका लें। उस तेल को मदार के पत्ते में लगाकर बवासीर के मस्सों पर लगायें और लंगोट कसें। इससे मस्से सूखकर गिर जाते हैं। पिसी हल्दी को थूहर के दूध में मिलाकर उसका लेप लगाएं। 64. कान का बहना: 3 ग्राम हल्दी, 10 ग्राम नीम के पत्तों का चूर्ण और 10 ग्राम लहसुन की कलियों को 200 ग्राम सरसों के तेल में डालकर पका लें। इस तेल को बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान में से मवाद का बहना ठीक हो जाता है। 1 भाग पिसी हुई हल्दी और 20 भाग पिसी हुई फिटकरी को एक साथ मिलाकर कान में डालने से कान में से मवाद बहना ठीक हो जाता है। 65. मासिक-धर्म संबन्धी परेशानियां: यदि गर्भाशय में कोई खराबी या सूजन है और मासिक-धर्म ठीक से न होता हो, तो एक चम्मच हल्दी गुड़ के साथ भूनकर खाना चाहिए। 66. दर्द व सूजन: एक गिलास गर्म दूध में एक चाय के चम्मच भर हल्दी मिलाकर पीने से शरीर की सूजन और दर्द दूर हो जाता है। 67. शरीर में सूजन: लगभग 3 ग्राम पिसी हल्दी को 250 मिलीलीटर गर्म दूध से सुबह-शाम लेने से सूजन नष्ट हो जाती है। हल्दी और चूने को बराबर मात्रा में लेकर शरीर के सूजन वाले भाग पर लगाने से शरीर की सूजन ठीक हो जाती है। उबले हुए दूध के साथ लगभग 2 ग्राम हल्दी और लगभग 1 ग्राम मिश्री को खाने से सूजन खत्म हो जाती है। जल के साथ रोजाना एक चौथाई चम्मच पिसी हुई हल्दी की फंकी लेने से शरीर की सूजन में आराम मिलता है। 68. घाव: 50 मिलीलीटर सरसों के तेल में आंबा हल्दी, सज्जी 10-10 ग्राम पीसकर गर्म तेल में मिला दें। ठण्डा होने पर रूई भिगोकर घाव, जख्म पर बांधने से जख्म भर जाते हैं। पुराने घाव पर चूना या सज्जीखार में हल्दी मिलाकर बांधने से बहुत लाभ होता है। पट्टी रोज बदल दें। साथ ही हल्दी पाउडर 2 से 4 ग्राम सुबह-शाम मिश्री के साथ खाने को भी लें। हल्दी को तवे पर भूनकर उसमें थोड़ा-सा सरसों का तेल मिलाकर घाव पर लगायें। 69. एड्स: हल्दी 4-ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन गोमूत्र के साथ सेवन करने से या हरिद्राखण्ड 1 ग्राम की मात्रा में खाने से खून पूरी तरह से साफ हो जाता है। 70. प्रसव पीड़ा: बच्चा होने के आखिरी महीने में एक चम्मच पिसी हुई हल्दी गर्म दूध के साथ सुबह-शाम पिलाएं। 71. बच्चों का मधुमेह रोग: हल्दी को कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर आधा-आधा ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग में लाभ होता है। 72. शीतपित्त: पिसी हुई हल्दी एक चम्मच, गेहूं का आटा दो चम्मच, घी एक चम्मच तथा दो चम्मच चीनी में आधा कप पानी डालकर हलुवा बना लें। इसे ठण्डा होने पर सुबह रोज खायें, ऊपर से एक गिलास दूध पियें। इससे लाभ होगा। हल्दी, सरसों, पवांड़ के बीज और तिल। सभी को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर कडुवे तेल (सरसों के तेल) में मिला लें। इस तेल की शरीर पर मालिश करें। हल्दी का चूर्ण 1 से 2 ग्राम प्रतिदिन गाय के मूत्र के साथ या हरिद्राखाण्ड 10 ग्राम रोज कुछ दिन तक खाने से शीतपित्त ठीक हो जाती है। 73. मधुमेह के रोग: 1 चम्मच पिसी हुई हल्दी को फांककर पानी पीने से मधुमेह में हो रहे बार-पेशाब से आराम मिलता है। 8 ग्राम पिसी हल्दी रोजाना दो बार पानी के साथ फंकी लें। इससे, बार-बार और अधिक मात्रा में पेशाब का आना, ज्यादा प्यास लगना, आदि मधुमेह के रोगों से आराम मिलता है। 50 ग्राम हल्दी को बारीक पीसकर 2.50 किलो गाय के दूध में भिगो दें और हल्की आंच पर गर्म करें। 5-6 उबाल आने के बाद उतार लें। ठण्डा होने पर इसकी दही जमा लें। इस दही को मथकर मक्खन निकालें और घी बना लें। इस घी को 3-6 ग्राम की मात्रा से सुबह-शाम सेवन करते रहने से मधुमेह में नियन्त्रण होता है। हल्दी की गांठ को पीसे और घी में सेंककर चीनी मिलाकर रोज़ खायें। इससे मधुमेह (शुगर) और प्रमेह में फायदा मिलता है। अगर बार-बार ज्यादा से ज्यादा पेशाब आये और प्यास भी लगे तो 8 ग्राम पिसी हुई हल्दी रोज दिन में 2 बार पानी के साथ सेवन करें या आधा चम्मच पिसी हल्दी शहद में मिलाकर खाये। 74. स्तनों के आकार में वृद्धि: हल्दी, खिरैंटी, खील, सेंधानमक और प्रियंगु को बराबर मात्रा में लेकर चौगुने पानी के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें, इस काढ़े में थोड़ी सी मात्रा में तिल के तेल को डालकर गर्मकर रख लें, फिर इसी बने काढ़े को देशी घी (गाय या भैंस का) में मिलाकर धीमी आग पर गर्म करें, जब पानी जल जाये तो एक ग्राम की मात्रा में नाक से सूंघने से कम उम्र की लकड़ी और बूढ़ी स्त्री के स्तन काफी अच्छे हो जाते हैं। 75. मोटापा: हल्दी को दूध में मिलाकर शरीर पर लेप करने से लाभ होता है। 76. नाक के रोग: लगभग 2 से 4 ग्राम हल्दी के चूर्ण को दूध में मिलाकर उबाल लें। फिर उसके अन्दर गुड़ मिलाकर रात को सोने से पहले जुकाम के रोगी को पिलाकर सुला दें पर इसके ऊपर पानी बिल्कुल न पीने दें। सुबह जुकाम ठीक होकर नाक से पानी बहना भी बंद हो जायेगा। यदि जुकाम नया-नया ही शुरू हुआ हो तो हल्दी को आग में डालकर उसके धुंए को नाक से लेने से आराम आ जाता है। इसके बाद थोड़ी देर तक पानी नहीं पीना चाहिए। 77. शिरास्फीति: भिलावां और हल्दी को घिसकर रात में सेवन करें एवं रात को एरण्ड के तेल से मालिश करें। इससे शिरास्फीति के रोगी को लाभ मिलता है। 78. पेट के कीड़े: हल्दी को तवे पर अच्छी तरह से भूनकर रख लें, फिर आधा चम्मच की मात्रा में रात को सोने से पहले पानी के साथ पीये। इससे पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं। 79. अरुंषिका (वराही): दारूहल्दी, हल्दी, चिरायता, नीम की छाल, बहेड़ा, आंवला, हरड़, अडूसा के पत्ते और चंदन का बुरादा इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर सिल पर घिसकर लुगदी बना लें। इस लुगदी से 4 गुना काली तिल्ली का तेल लें। इस तेल से 4 गुना पानी लेकर इसमें सबको मिलाकर पकायें। जब केवल तेल मात्र शेष रह जाये, तो इसे उतारकर छान लें। इस तेल को लगाने से अरुंषिका के अलावा फोड़े-फुंसी, जलन, मवाद तथा त्वचा से सम्बंधित सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं। 80. पेट में दर्द: हल्दी 5 ग्राम और 5 ग्राम सेंधानमक को अच्छी तरह मिलाकर गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से गैस के कारण होने वाले पेट के दर्द में लाभ पहुंचता है। 81. पीनस रोग: हल्दी और कालीमिर्च के चूर्ण को गर्म दूध में मिलाकर पीने से बुखार के साथ जुकाम और पीनस (पुराना जुकाम) दूर हो जाता है। 82. मूत्ररोग: हल्दी के चूर्ण को घी और चीनी में मिलाकर सेक लें। इस मूत्ररोग में खाने से लाभ होता है। पिसी हल्दी 100 ग्राम, काले तिल 250 ग्राम, पुराना गु़ड़ 100 ग्राम। तीनों को कूट-पीसकर तवे पर सुखाकर भून लें। इसमें से रोज एक चम्मच चूर्ण सुबह के समय ले इससे सभी तरह के पेशाब रोग दूर होगें। 83. चक्कर आना: कच्ची (ताजी) हल्दी पीसकर सिर पर लेप की तरह से लगाने से चक्कर आना बंद हो जाता है। 84. एक्जिमा: वासा (अडू़सा) के कोमल पत्तों को हल्दी में मिलाकर गौमूत्र (गाय का पेशाब) के साथ पीसकर लेप करने से एक्जिमा से मुक्ति मिलती है। 85. बिवाई के फटने पर: कच्चे दूध में पिसी हुई हल्दी को मिलाकर शरीर पर लेप करने से त्वचा मुलायम होती है और हाथ-पैर नहीं फटते हैं। 86. फोड़े की सूजन और जलन: हल्दी, घीकुंआर का रस और मुसब्बर को मिलाकर फोड़े पर लेप करने से फोडे़ में होने वाली जलन और सूजन दूर हो जाती है। 87. चेहरे की झांइयां: 10-10 ग्राम हल्दी और तिल को पीसकर पानी में मिलाकर रात को सोते समय चेहरे पर लगाएं और सुबह गर्म पानी से धो लें। इससे चेहरा चमक उठता है। हल्दी और काले तिल को लेकर गर्म दूध में पीसकर चेहरे पर लेप लगायें। 88. खाज-खुजली: 100 ग्राम वासा के मुलायम पत्तों और 10 ग्राम हल्दी को गाय के पेशाब में मिलाकर पीसकर लेप करने से खुजली समाप्त हो जाती है। 89. गुल्मवायु हिस्टीरिया: हिस्टीरिया का दौरा आने पर रोगी को हल्दी का धुंआ सुंघाने से लाभ मिलता है। 90. शीतला (मसूरिका): अपामार्ग की जड़ और हल्दी को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ चंदन की तरह पीसकर हाथ-पैरों के सारे नाखूनों पर लगा दें। इसका एक तिलक माथे पर और एक जीभ पर लगा देने से बच्चों को चेचक (माता) नहीं निकलेगी। 240 मिलीग्राम से 480 मिलीग्राम बनहल्दी को सुबह और शाम खाने से और शरीर के ऊपर लगाने से चेचक (माता) के दाने बाहर निकल आते हैं और रोगी जल्दी ही ठीक हो जाता है। 91. पीलिया: हल्दी को पानी में डालकर पीस लें। फिर कुछ हल्दी लेकर काढ़ा बना लें। कढ़ाही में घी, हल्दी की लुग्दी और काढ़ा डालकर धीमी आग पर चढ़ा दें और जब केवल घी रह जाय (पानी जल जाय) तब उतार लें। इस घी का सेवन करने से पाण्डु (पीलिया) रोग मिट जाता है। हल्दी का चूर्ण 10 ग्राम और दही 50 ग्राम रोज सुबह खाने से पीलिया में लाभ होता है। 92. नाखून का रोग: हरी दूब और हल्दी मिलाकर पीस लें एवं गन्ने के गुड़ में मिलाकर गर्म-गर्म नाखूनों पर लगायें। इससे नाखूनों के दर्द में आराम मिलता है। 93. चेहरे का सांवलापन दूर करना: दोनों हल्दी, 5-5 ग्राम मैंसिल, लोध्र और सरसों को पीसकर पानी में मिलाकर चेहरे पर लगाएं। इसको चेहरे पर लगाने के आधे घंटे के बाद धोने से लाभ होता है। 94. नासूर (पुराना घाव): नासूर के घाव पर पिसी हुई हल्दी डालने से घाव में उपस्थित कीड़े मर जाते हैं और घाव शीघ्र भर जाता है। 95. फीलपांव(गजचर्म)- 10 ग्राम पारस, 20 ग्राम जीरा, 20 ग्राम हल्दी, 10 ग्राम कालीमिर्च, 10 ग्राम सिंदूर, 10 ग्राम आमलासार और 10 ग्राम मैनसिल लें। पहले पारा और गंधक की कज्जली बना लें और फिर बाकी औषधियों को पीस-छानकर गाय के पेशाब में मिलाकर अच्छी तरह से एक दिन तक सुखाएं और साथ ही इसे उलट-पलट कर मिलते रहें। इस तैयार लेप को पैरों पर लेप करने से पैरों का फूलना समाप्त होता है। 96. घाव का निशान मिट जाना : 5-5 ग्राम मैंसिल, मजीठ, लाख, हल्दी, दारूहल्दी को पीसकर और छानकर इसमें 25 ग्राम शहद और 10 ग्राम देशी घी मिलाकर जख्म पर लेप करने से लाभ होता है। 97. फोड़े-फुंसियां: हल्दी, भृंगराज (भांगरा), सेंधानमक और धतूरे के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और गर्म करके लेप करें या आंबाहल्दी, प्याज और घी को गर्म करके बांध लें। इससे फोड़े-फुंसियां ठीक हो जाती हैं। 98. कुष्ठ (कोढ़): हरीदूब, हल्दी और दारूहल्दी को पीसकर लेप करने से `पामा´ खुजली दूर हो जाती है। हल्दी, हरड़, बावची, करंज के बीज, बायबिडंग, सेंधानमक और सरसों को पीसकर लेप करने से `पामा´ `दाद´ और `सफेद कोढ़´ रोग समाप्त हो जाता है। लगभग 100 ग्राम हल्दी को दरदरी (मोटा-मोटा) पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में रात को भिगो दें। सुबह इस पानी को उबालने के लिए रख दें, उबलते-उबलते जब पानी एक चौथाई रह जाए तो उसे छानकर इसमें 100 मिलीलीटर सरसों का तेल डालकर उबालने के लिए रख दें। जब उबलते हुए पानी जल जाये तो इसे ठण्डा करके कोढ़ के रोगी की इस तेल से मालिश करने से लाभ होता है। गोबर, सेंधानमक, हल्दी और शहद को एक साथ पीसकर लगाने से `कच्छु´ (खाज) और `पामा´ ठीक हो जाते हैं। गुड़ में हल्दी मिलाकर गोली बनाकर एक गोली सुबह और एक गोली शाम को गाय के पेशाब के साथ खाने से कोढ़ रोग मिट जाता है। 99. खसरा: 1 से 2 ग्राम पिसी हुई हल्दी को करेले के पत्तों के रस में मिलाकर बच्चे को पिलाने से खसरे का असर कम हो जाता है। 100. फेद दाग: 10-10 ग्राम अर्क की जड़, गंधक, हरताल, कुटकी और हल्दी को लेकर पीस लें, फिर इसे गाय के पेशाब में मि लाकर एक सप्ताह तक लेप करने से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं। 

शुक्रवार, 11 जून 2021

Walnut health benefits


 परिचय : अखरोट के पेड़ बहुत सुन्दर और सुगन्धित होते हैं, इसकी दो जातियां पाई जाती हैं। जंगली अखरोट 100 से 200 फीट तक ऊंचे, अपने आप उगते हैं। इसके फल का छिलका मोटा होता है। कृषिजन्य 40 से 90 फुट तक ऊंचा होता है और इसके फलों का छिलका पतला होता है। इसे कागजी अखरोट कहते हैं। इससे बन्दूकों के कुन्दे बनाये जाते हैं। विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत शैलभव, अक्षोर, कर्पपाल अक्षोट, अक्षोड। हिंदी अखरोट। बंगाली आक्रोट आखरोट, आकोट। मलयालम अक्रोड। मराठी अखरोड, अक्राड़। तेलगू अक्षोलमु। गुजराती आखोड। फारसी चर्तिगज, गौज, चारमग्न, गिर्दगां। अरबी जौज। अंग्रेजी वलनट लैटिन जगलंस रेगिया रंग : अखरोट का रंग भूरा होता है। स्वाद : इसका स्वाद फीका, मधुर, चिकना (स्निग्ध) और स्वादिष्ट होता है। स्वरूप : पर्वतीय देशों में होने वाले पीलू को ही अखरोट कहते हैं। इसका नाम कर्पपाल भी है। इसके पेड़ अफगानिस्तान में बहुत होते हैं तथा फूल सफेद रंग के छोटे-छोटे और गुच्छेदार होते हैं। पत्ते गोल लम्बे और कुछ मोटे होते हैं तथा फल गोल-गोल मैनफल के समान परन्तु अत्यंत कड़े छिलके वाले होते हैं। इसकी मींगी मीठी बादाम के समान पुष्टकारक और मजेदार होती है। स्वभाव : अखरोट गरम व खुष्क प्रकृति का होता है। हानिकारक : अखरोट पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होता है। दोषों को दूर करने वाला : अनार का पानी अखरोट के दोषों को दूर करता है। तुलना : अखरोट की तुलना चिलगोजा और चिरौंजी से की जा सकती है। मात्रा : अखरोट का सेवन 10 ग्राम से 20 ग्राम तक की मात्रा में कर सकते हैं। गुण : अखरोट बहुत ही बलवर्धक है, हृदय को कोमल करता है, हृदय और मस्तिष्क को पुष्ट करके उत्साही बनाता है इसकी भुनी हुई गिरी सर्दी से उत्पन्न खांसी में लाभदायक है। यह वात, पित्त, टी.बी., हृदय रोग, रुधिर दोष वात, रक्त और जलन को नाश करता है। विभिन्न रोगों में उपयोगी : 1. टी.बी. (यक्ष्मा) के रोग में : 3 अखरोट और 5 कली लहसुन पीसकर 1 चम्मच गाय के घी में भूनकर सेवन कराने से यक्ष्मा में लाभ होता है। 2. पथरी : साबुत (छिलके और गिरी सहित) अखरोट को कूट-छानकर 1 चम्मच सुबह-शाम ठंडे पानी में कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन कराने से पथरी मूत्र-मार्ग से निकल जाती है। अखरोट को छिलके समेत पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 1-1 चम्मच चूर्ण ठंडे पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम खायें। इससे रोग में पेड़ू का दर्द और पथरी ठीक होती है। 3. शैय्यामूत्र (बिस्तर में पेशाब करने की शिकायत) : प्राय: कुछ बच्चों को बिस्तर में पेशाब करने की शिकायत हो जाती है। ऐसे बाल रोगियों को 2 अखरोट और 20 किशमिश प्रतिदिन 2 सप्ताह तक सेवन करने से यह शिकायत दूर हो जाती है। 4. सफेद दाग : अखरोट के निरन्तर सेवन से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं। 5. फुन्सियां : यदि फुन्सियां अधिक निकलती हो तो 1 साल तक रोजाना प्रतिदिन सुबह के समय 5 अखरोट सेवन करते रहने से लाभ हो जाता है। 6. जी-मिचलाना : अखरोट खाने से जी मिचलाने का कष्ट दूर हो जाता है। 7. मरोड़ : 1 अखरोट को पानी के साथ पीसकर नाभि पर लेप करने से मरोड़ खत्म हो जाती है। 8. बच्चों के कृमि (पेट के कीड़े) : कुछ दिनों तक शाम को 2 अखरोट खिलाकर ऊपर से दूध पिलाने से बच्चों के पेट के कीडे़ मल के साथ बाहर निकल जाते हैं। अखरोट की छाल का काढ़ा 60 से 80 मिलीलीटर पिलाने से आंतों के कीड़े मर जाते हैं। 9. मस्तिष्क शक्ति हेतु : अखरोट की गिरी को 25 से 50 ग्राम तक की मात्रा में प्रतिदिन खाने से मस्तिष्क शीघ्र ही सबल हो जाता है। अखरोट खाने से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। 10. बूढ़ों की निर्बलता : 8 अखरोट की गिरी और चार बादाम की गिरी और 10 मुनक्का को रोजाना सुबह के समय खाकर ऊपर से दूध पीने से वृद्धावस्था की निर्बलता दूर हो जाती है। 12. अपस्मार : अखरोट की गिरी को निर्गुण्डी के रस में पीसकर अंजन और नस्य देने से लाभ होता है। 13. नेत्र ज्योति (आंखों की रोशनी) : 2 अखरोट और 3 हरड़ की गुठली को जलाकर उनकी भस्म के साथ 4 कालीमिर्च को पीसकर अंजन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। 14. कंठमाला : अखरोट के पत्तों का काढ़ा 40 से 60 मिलीलीटर पीने से व उसी काढ़े से गांठों को धोने से कंठमाला मिटती है। 15. दांतों के लिए : अखरोट की छाल को मुंह में रखकर चबाने से दांत स्वच्छ होते हैं। अखरोट के छिलकों की भस्म से मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं। 16. स्तन में दूध की वृद्धि के लिए : गेहूं की सूजी एक ग्राम, अखरोट के पत्ते 10 ग्राम को एक साथ पीसकर दोनों को मिलाकर गाय के घी में पूरी बनाकर सात दिन तक खाने से स्त्रियों के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। 17. खांसी (कास) : अखरोट गिरी को भूनकर चबाने से लाभ होता है। छिलके सहित अखरोट को आग में डालकर राख बना लें। इस राख की एक ग्राम मात्रा को पांच ग्राम शहद के साथ चटाने से लाभ होता है। 18. हैजा : हैजे में जब शरीर में बाइटें चलने लगती हैं या सर्दी में शरीर ऐंठता हो तो अखरोट के तेल से मालिश करनी चाहिए। 19. विरेचन (पेट साफ करना) : अखरोट के तेल को 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में 250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह देने से मल मुलायम होकर बाहर निकल जाता है। 20. अर्श (बवासीर) होने पर : वादी बवासीर में अखरोट के तेल की पिचकारी को गुदा में लगाने से सूजन कम होकर पीड़ा मिट जाती है। अखरोट के छिलके की राख 2 से 3 ग्राम को किसी दस्तावर औषधि के साथ सुबह, दोपहर तथा शाम को खिलाने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है। 21. आर्त्तव जनन (मासिक-धर्म को लाना) : मासिक-धर्म की रुकावट में अखरोट के छिलके का काढ़ा 40 से 60 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पिलाने से लाभ होता है। इसके फल के 10 से 20 ग्राम छिलकों को एक किलो पानी में पकायें, जब यह पानी आठवां हिस्सा शेष बचे तो इसे सुबह-शाम पिलाने से दस्त साफ हो जाता है। 22. प्रमेह (वीर्य विकार) : अखरोट की गिरी 50 ग्राम, छुहारे 40 ग्राम और बिनौले की मींगी 10 ग्राम एक साथ कूटकर थोड़े से घी में भूनकर बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर रखें, इसमें से 25 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है। ध्यान रहे कि इसके सेवन के समय दूध न पीयें। 23. वात रोग : अखरोट की 10 से 20 ग्राम की ताजी गिरी को पीसकर दर्द वाले स्थान पर लेप करें, ईंट को गर्मकर उस पर जल छिड़ककर कपड़ा लपेटकर उस स्थान पर सेंक देने से शीघ्र पीड़ा मिट जाती है। गठिया पर इसकी गिरी को नियमपूर्वक सेवन करने से रक्त शुद्धि होकर लाभ होता है। 24. शोथ (सूजन) : अखरोट का 10 से 40 मिलीलीटर तेल 250 मिलीलीटर गौमूत्र (गाय के पेशाब) में मिलाकर पिलाने से सभी प्रकार की सूजन में लाभ होता है। वात-जन्य सूजन में इसकी 10 से 20 ग्राम अखरोट की गिरी को कांजी में पीसकर लेप करने से लाभ होता है। 25. बूढ़ों के शरीर की कमजोरी : 10 ग्राम अखरोट की गिरी को 10 ग्राम मुनक्का के साथ रोजाना सुबह खिलाना चाहिए। 26. दाद : सुबह-सुबह बिना मंजन कुल्ला किए बिना 5 से 10 ग्राम अखरोट की गिरी को मुंह में चबाकर लेप करने से कुछ ही दिनों में दाद मिट जाती है। 27. नासूर : अखरोट की 10 ग्राम गिरी को महीन पीसकर मोम या मीठे तेल के साथ गलाकर लेप करें। 28. घाव (जख्म) : इसकी छाल के काढे़ से घावों को धोने से लाभ होता है। 29. नारू (गंदा पानी पीने से होने वाला रोग) : अखरोट की खाल को जल के साथ महीन पीसकर आग पर गर्म कर नहरुआ की सूजन पर लेप करने से तथा उस पर पट्टी बांधकर खूब सेंक देने से नारू 10-15 दिन में गलकर बह जाता है। अखरोट की छाल को पानी में पीसकर गर्मकर नारू के घाव पर लगावें। 30. अफीम के जहर पर : अखरोट की गिरी 20 से 30 ग्राम तक खाने से अफीम का विष और भिलावे के विकार शांत हो जाते हैं। 31. कब्ज : अखरोट के छिलकों को उबालकर पीने से दस्त में राहत मिलती है। 32. दस्त के लिए : अखरोट को पीसकर पानी के साथ मिलाकर नाभि पर लेप करने से पेट में मरोड़ और दस्त का होना बंद हो जाता है। अखरोट के छिलकों को पानी के साथ पीसकर पेट की नाभि पर लगाने से पेट में होने वाली मरोड़ के साथ आने वाले दस्त तुरंत बंद हो जाते हैं। 33. खूनी बवासीर (अर्श) : अखरोट के छिलके का भस्म (राख) बनाकर उसमें 36 ग्राम गुरुच मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) नष्ट होता है। 34. कमजोरी : अखरोट की मींगी पौष्टिक होती है। इसके सेवन से कमजोरी मिट जाती है। 35. लकवा (पक्षाघात-फालिस-फेसियल, परालिसिस) : रोजाना सुबह अखरोट का तेल नाक के छिद्रों में डालने से लकवा ठीक हो जाता है। 36. नष्टार्तव (बंद मासिक धर्म) : अखरोट का छिलका, मूली के बीज, गाजर के बीज, वायविडंग, अमलतास, केलवार का गूदा सभी को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर लगभग 2 लीटर पानी में पकायें फिर इसमें 250 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिला दें, जब यह 500 मिलीलीटर की मात्रा में रह जाए तो इसे उतारकर छान लेते हैं। इसे सुबह-शाम लगभग 50 ग्राम की मात्रा में मासिक स्राव होने के 1 हफ्ते पहले पिलाने से बंद हुआ मासिक-धर्म खुल जाता है। 37. दर्द व सूजन में : किसी भी कारण या चोट के कारण हुए सूजन पर अखरोट के पेड़ की छाल पीसकर लेप करने से सूजन कम होती है। 38. पेट में कीड़े होने पर : अखरोट को गर्म दूध के साथ सेवन करने से बच्चों के पेट में मौजूद कीड़े मर जाते हैं तथा पेट के दर्द में आराम देता है। 39. जोड़ों के (गठिया) रोग में - सुबह खाली पेट 5 ग्राम अखरोट की गिरी और 5 ग्राम पिसी हुई सोंठ को 1 चम्मच एरंड के तेल में पीसकर गुनगुने पानी से लें। इससे रोगी के घुटनों का दर्द दूर हो जाता है। दर्द को दूर करने के लिए अखरोट का तेल जोड़ों पर लगाने से रोगी को लाभ मिलता है। 40. हृदय की दुर्बलता होने पर : अखरोट खाने से दिल स्वस्थ बना रहता है। रोज एक अखरोट खाने से हृदय के विकार 50 प्रतिशत तक कम हो जाते हैं। इससे हृदय की धमनियों को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक कॉलेस्ट्राल की मात्रा नियंत्रित रहती है। अखरोट के असर से शरीर में वसा को पचाने वाला तंत्र कुछ इस कदर काम करता है। कि हानिकारक कॉलेस्ट्राल की मात्रा कम हो जाती है। हालांकि रक्त में वासा की कुल मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। अखरोट में कैलोरी की अधिकता होने के बावजूद इसके सेवन से वजन नहीं बढ़ता और ऊर्जा स्तर बढ़ता है। 41. हाथ-पैरों की ऐंठन - हाथ-पैरों पर अखरोट के तेल की मालिश करने से हाथ-पैरों की ऐंठन दूर हो जाती है। 42. गुल्यवायु हिस्टीरिया : अखरोट और किशमिश को खाने और ऊपर से गर्म गाय का दूध पीने से लाभ मिलता है। 43. विसर्प-फुंसियों का दल बनना : अगर फुंसिया बहुत ज्यादा निकलती हो तो पूरे साल रोजाना सुबह 4 अखरोट खाने से बहुत लाभ होता है। 44. वात रक्त दोष (खूनी की बीमारी) होने पर : वातरक्त (त्वचा का फटना) के रोगी को अखरोट की मींगी (बीज) खिलाने से आराम आता है। 45. होठों का फटना : अखरोट की मिंगी (बीज) को लगातार खाने से होठ या त्वचा के फटने की शिकायत दूर हो जाती है। 46. सफेद दाग होने पर : रोजाना अखरोट खाने से श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) का रोग नहीं होता है और स्मरण शक्ति (याददाश्त) भी तेज हो जाती है। 47. याददाश्त कमजोर होना : ऐसा कहा जाता है कि हमारे शरीर का कोई अंग जिस आकार का होता है, उसी आकार का फल खाने से उस अंग को मजबूती मिलती है। अखरोट की बनावट हमारे दिमाग की तरह होती है इसलिए अखरोट खाने से दिमाग की शक्ति बढ़ती है। याददाश्त मजबूत होती है। 48. कंठमाला के रोग में : अखरोट के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से और कंठमाला की गांठों को उसी काढ़े से धोने से आराम मिलता है। 49. नाड़ी की जलन : अखरोट की छाल को पीसकर लेप करने से नाड़ी की सूजन, जलन व दर्द मिटता है। 50. शरीर में सूजन : अखरोट के पेड़ की छाल को पीसकर सूजन वाले भाग पर लेप की तरह से लगाने से शरीर के उस भाग की सूजन दूर हो जाती है।

Sandalwood/Chandan health benefits







विवरण

चन्दन (Chandan) मध्यम आकार का सदाबहार वृक्ष है जो काफी बड़े समूहों में होता है। इसका वैज्ञानिक नाम Santalum Album Linn है। लाल चन्दन को Pterocarpus Santalinus कहा जाता है।

जब चन्दन वृक्ष लगभग 20 साल पुराना हो जाता है तब लकड़ी प्राप्त होती है और जीवन पर्यन्त प्राप्त होती है। जब वृक्ष 30 से 69 वर्षो का हो जाता है और परिधि 40-60 से.मी. की हो जाती है तब लकड़ी अच्छी प्राप्त होती है। चन्दन का वृक्ष बढ़ने के साथ ही इसके तनों और पेड़ों की लकड़ी में भी सुगंधित तेल की मात्रा बढ़ने लगती है।

चन्दन में एंटीसेप्टिक, एस्ट्रिजेंट, एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, इसकी लकड़ी का उपयोग मूर्तिकला, साज सज्जा का सामान बनाने तथा अगरबत्ती, हवन सामग्री तथा सुगंधित तेल बनाने में होता है।

भारत में कर्नाटक के मैसूर में उच्च श्रेणी का चन्दन मिलता है जबकि नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, हवाई और अन्य जगहों पर भी चन्दन के पेड़ उगाये जाते हैं।

फायदे

चन्दन का लाभ (Benefits of Chandan)

1. दवाई- चन्दन का एसेंशियल आयल विभिन्न दवाइयों को बनाने में इस्तेमाल होता है। 1920 से 1930 के बीच भी हर्बल दवाइयों को बनाने में चन्दन का इस्तेमाल होता था। इसका मुख्य तत्व santalo’(लगभग 75 प्रतिशत) है जो की अरोमाथेरेपी में प्रयोग होता है।

2. बीमारियों में लाभकारी- लाल चन्दन का प्रयोग रक्त को साफ़ करने के लिए, कफ, पाचन संबंधी समस्याओं आदि में इस्तेमाल होता है।

3. ग्लोइंग स्किन- चन्दन को फेस पैक के रूप में इस्तेमाल करने से त्वचा ग्लोइंग और सॉफ्ट होती है। इसके लिए चन्दन को दूध के साथ मिलाकर चेहरे पर लगाएं।

4. मुहांसों में राहत- चन्दन में मौजूद एस्ट्रिजेंट से मुहांसों, खुजली और एलर्जी में आराम मिलता है।

5. खुजली में राहत- चन्दन में नींबू मिलाकर लगाने से खुजली की समस्या से निजात मिलती है।

6. पसीने से राहत- अगर पसीना ज्यादा आता है तो सम्बंधित हिस्से पर चन्दन और गुलाबजल मिलकर लगाएं। आराम मिलेगा।

7. सिर दर्द- चन्दन पाउडर को तुलसी के पत्तों के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द में राहत मिलती है।

8. तनाव से राहत- चन्दन के तेल को अरोमाथेरोपी में इस्तेमाल किया जाता है जिससे तनाव दूर होता है।

9. रंग गोरा करने के लिए- जी हां चन्दन से सांवली रंगत को गोरा बनाया जा सकता है। चन्दन की लकड़ी या पाउडर में टमाटर का रस और नींबू मिलकर फेस पैक बनाएं और इस्तेमाल करें। कुछ ही दिनों में त्वचा में निखार आ जायेगा।

10. घमौरी- गर्मियों में अक्सर घमौरी की दिक्कत होती है। चन्दन पाउडर को डिस्टिल्ड वाटर के साथ मिलाकर घमौरियों पर लगाएं।

11. कीड़े के काटने पर- कोई कीड़ा काट ले तो चन्दन के पाउडर में हल्दी मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। सूजन नही आएगी और जलन हुए बिना ठीक भी हो जाएगा।

12. सन्सक्रीन- खीरे का रस, नींबू का रस, दही, शहद, टमाटर का रस और चन्दन पाउडर को मिलाकर चेहरे पर लगाने से सन्सस्क्रीन के लाभ मिलते हैं।

13. एकाग्रता बढ़ाने में- चन्दन का टीका माथे पर लगाने से ध्यान करने में एकाग्रता बढ़ती है साथ ही दिमाग में शीतलता बनी रहती है।

सावधानी

चन्दन से सावधानी (Side Effect of Chandan)

1. चन्दन की तासीर ठंडी होने के कारण कुछ लोगों को इसके लगातार प्रयोग से कफ होने की शिकायत हो सकती है। इसके साथ ही कॉमन कोल्ड, ब्रोंकाइटिस, बुखार और सर दर्द जैसी समस्यायें भी हो सकती हैं।

2. लाल चन्दन के प्रयोग से बनाई गई दवाइयों के सेवन से कई बार शरीर में पानी की कमी होने की सम्भावना रहती है।

3. बच्चों पर भी अनावश्यक चन्दन का प्रयोग ना करें क्योंकि बच्चे सर्दी की चपेट में जल्दी आते हैं।

 

 

 



Lotus health benefits

 


परिचय: कमल के फूल कीचड़ भरे पानी में खिलते हैं और यह बहुत ही सुन्दर होते हैं। कमल खुशबूदार, आकर्षित एवं लाल, गुलाबी, सफेद व नीले रंग के होते हैं। कमल के पत्ते ऊपर से हरे और नीचे से हल्के सफेद होते हैं। इसके पत्ते चिकने होते हैं जिससे इस पर पानी की बूंद नहीं ठहरती है। इसके पत्ते के नीचे की डण्डी को कमल की नाल कहते हैं और इसके जड़ को विस कहते हैं। कमल से 5-6 छिद्रों वाली नाल निकलती है जिस पर फूल व पत्ते लगते हैं। कमल के एक फूल में 15 से 20 बीज होते हैं जिसे कमलगट्टे कहते हैं। कच्चा बीज कोमल व सफेद होता है और पककर सूखने पर काले रंग के हो जाते हैं। कमल के फूल मार्च-अप्रैल के महीने में खिलते हैं। आयुर्वेद के अनुसार : कमल शीतल और स्वाद में मीठा होता है। यह कफ, पित्त, खून की बीमारी, प्यास, जलन, फोड़ा व जहर को खत्म करता है। हृदय के रोगों को दूर करने और त्वचा का रंग निखारने के लिए यह एक अच्छी औषधि है। जी मिचलना, दस्त, पेचिश, मूत्र रोग, त्वचा रोग, बुखार, कमजोरी, बवासीर, वमन, रक्तस्राव आदि में इसका प्रयोग लाभकारी होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार : कमल का रासायनिक विश्लेषण करने से पता चला है कि इसके पत्ते में न्यूसिफेरिन व रोमेरिन रस होता है। कमल के सूखे बीज में विभिन्न तत्त्व पाए जाते हैं- तत्त्व मात्रा कार्बोहाइड्रेट 66.6 प्रतिशत प्रोटीन 17.2 प्रतिशत वसा 2.4 प्रतिशत लोहा थोड़ी मात्रा में कैल्शियम थोड़ी मात्रा में शर्करा थोड़ी मात्रा में एस्कार्बिक एसिड थोड़ी मात्रा में विटामिन- ´बी´ थोड़ी मात्रा में विटामिन- ´सी´ थोड़ी मात्रा में विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत अम्बुज, पद्म, पुंडरीक। हिन्दी . कमल, सफेद कमल, लाल कमल, नीला कमल। अंग्रेजी . लोटस। लैटिन . निलुम्बों न्यूसिफेरा। मराठी . कमल, तांबले, पांढरे कमल। गुजराती धोला कमल। बंगाली . पद्म। विभिन्न रोगों में सहायक: 1. सिर व आंखों की ठंडक के लिए: कमल की जड़ को 2 गुना नारियल के तेल में उबालकर छान लें और इसे सिर पर लगाएं। इससे सिर और आंखो को ठंडक मिलती है। 2. हृदय व मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाना: कमल की जड़ का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में एक चम्मच मिश्री के साथ नियमित रूप से सेवन करें। इससे हृदय और मस्तिष्क को शक्ति मिलती है। 3. पित्तातिसार: पित्त की अधिकता के कारण दस्त रोग होने पर कमलगट्टा के गिरी का हलवा खाने से बहुत लाभ मिलता है। 4. चेहरे की सुन्दरता: कमल के फूल की पंखुडियां और पत्ते बराबर मात्रा पीसकर लेप बना लें। इस तैयार लेप को रात को सोने से पहले चेहरे पर लगाने से चेहरा सुन्दर व कोमल बनता है। 5. खूनी बवासीर: खूनी बवासीर रोग से पीड़ित रोगी को 5 ग्राम केसर और 5 ग्राम मक्खन को मिलाकर दिन में 2 बार खाना चाहिए। इससे खूनी बवासीर ठीक होता है। मक्खन, मिश्री और केसर को एक साथि मिलाकर नियमित सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है। 6. गीली खांसी: कमल के बीजों के 1 से 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से गीली खांसी ठीक होती है। 7. बुखार: कमल के फूल की एक से दो पंखुड़ियां, सफेद चन्दन का चूर्ण, लाल चन्दन का चूर्ण, मुलेठी एवं मुस्तक आदि को मिलाकर सुबह-शाम बुखार से पीड़ित रोगी को सेवन कराएं। इसके सेवन करने से बुखार कम होता है और शरीर की कमजोरी दूर होती है। 8. कांच निकलना (गुदाभ्रंश): कमल के पत्ते 5 ग्राम और चीनी 5 ग्राम को मिलाकर महीन पीसकर 10 ग्राम पानी के साथ पीएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है। कमल के पत्तों का एक चम्मच चूर्ण और एक चम्मच मिश्री को मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से गुदाभ्रंश रोग में लाभ मिलता है। 9. सिर की रूसी: कमल, त्रिफला, सातल, भांगर, लोहचूर्ण और गोबर आदि को एक साथ तेल में पका लें और इसे प्रतिदिन बालों में लगाएं। इससे रूसी नश्ट हो जाती है। 10. वमन (उल्टी): कमल के बीजों का रस निकालकर रोगी को पिलाने से उल्टी बंद होती है। कमल के बीजों को भून लें और इसके अन्दर मौजूद हरे रंग के अंकुरों को निकालकर पीस लें और इसे शहद के साथ रोगी को चटाएं। इससे वमन ठीक होता है। 11. हिचकी: कमल के बीजों को पानी में उबालकर पीने से हिचकी दूर होती है। 12. गर्भपात को रोकना: गर्भावस्था में रक्तस्राव होने पर कमल के फूल की एक से दो पंखुड़ियों को पीसकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से रक्तस्राव बंद होता है और गर्भपात नहीं होता है। जिन महिलाओं को बार-बार गर्भपात हो उसे कमल के बीजों का सेवन करना चाहिए। इसका सेवन गर्भधारण के पहले महीने में करने से गर्भपात नहीं होता। कमल की डंडी और नागकेसर को बराबर मात्रा में पीसकर गर्भधारण के पहले महीन में सेवन करने से गर्भस्राव रुकता है। 13. कान के बाहर की फुंसियां: कमल की जड़ों में लगने वाले फल को पीसकर फुंसियों पर लगाने से फुंसियां ठीक होती है। 14. मासिकधर्म का रुक जाना: कमल की जड़ को पीसकर खाने से मासिकधर्म सम्बंधी गड़बड़ी दूर होती है और मासिकधर्म नियमित होता है। 15. प्रदर रोग: कमल के बीजों का रस निकालकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है। 16. दूसरे महीने के गर्भ विकार: यदि गर्भधारण के दूसरे महीने में गर्भ में किसी प्रकार की गड़बड़ी हो या होने की आशंका दिखाई दे तो कमल, सिंघाड़ा व कसेरू को चावल के पानी के साथ पीसकर तथा चावल के पानी में ही घोलकर पीएं। इससे गर्भ विकार व गर्भाशय का दर्द ठीक होता है। पषाण भेद, काले तिल, मंजीठ और शतावरी को समान मात्रा में लेकर दूध के साथ काढ़ा बनाकर सेवन करने से गर्भशय से खून का निकलना, दर्द व अन्य विकार दूर होते हैं। 17. स्तनों का कठोर होना: कमल के बीजों को पीसकर 2 चम्मच की मात्रा में मिश्री मिलाकर 4-6 सप्ताह तक सेवन करने से स्तनों का कठोर होना ठीक होता है। 18. स्तनों में दूध कम होना: कमल की जड़ की सब्जी बनाकर खाने से स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ाती है। कमल के बीजों को रात के समय पानी में भिगो दें। दूसरे दिन सुबह बीजों के ऊपर से छिलके उतार लें और अन्दर के हरी पत्तियों को निकाल कर फेंक दें। इसके बाद बीजों को सुखाकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को लगभग 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दूध या दही के साथ लगातार कुछ दिनों तक सेवन करने से स्तनों में दूध खूब आता है। 19. स्तनों का सुडौल होना: कमल के बीजों के अन्दर की मींगी को पीसकर चूर्ण बना लें और दही के साथ दिन में एक बार सेवन करने से स्तनों का आकार सुडौल होता है। 20. योनि संकोचन: कमल की जड़ को पानी में पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर सोते समय 1-1 गोली प्रतिदिन खाने से योनि सिकुड जाती हैं। 21. योनि की जलन व खुजली: कमल की जड़ को पानी के साथ अच्छी तरह से पीसकर पेस्ट बनाकर दाद और योनि की खुजली वाले भाग पर लगाने से खुजली व जलन शांत होती है। 22. मूत्र रोग: सफेद कमल की गांठ का चूर्ण एक चम्मच, जीरे का चूर्ण आधा चम्मच तथा घी 10 ग्राम को मिलाकर सुबह-शाम खाने से लाभ होता है।

Cardamom/Elaichi health benefits

विवरण

इलायची ( Elaichi )का बॉटनिकल नाम इलेक्टेरिया कार्डमोम (Elettaria cardamomum) है। छोटी सी इलायची में बड़े बड़े गुण होते हैं। इलायची का सेवन मुख्य तौर पर मुख शुद्धि या मसाले के रूप में होता है। इलायची दो प्रकार की होती है। एक हरी या छोटी इलायची और दूसरी बड़ी इलायची। 

बड़ी इलायची का प्रयोग व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाने में और छोटी इलायची का प्रयोग मिठाइयों को बेहतर फ्लेवर देने में होता है। इतना ही नहीं इलायची औषधीय गुणों की खान है।

दोनों ही इलायची का पौधा हरा और पांच फिट से दस फिट तक लंबा होता है। इसके पत्ते दो फिट तक लंबे होते हैं। इलायची बीज और जड़ दोनों से उगती है। इसके लिए समुद्र की हवा और छायादार भूमि दोनों आवश्यक हैं। मैसूर, मंगलोर, मालाबार आदि जगहों पर इलायची बहुतायात में उगाई जाती है।

फायदे

1. गले में खराश हो या आवाज़ बैठ गई हो तो सुबह उठकर और सोते समय दोनों वक्त छोटी इलायची ( Elaichi ) को चबा चबा कर खाएं और गुनगुना पानी पियें।

2. गले में सूजन हो तो मूली के पानी में छोटी इलायची को पीसकर मिलाएं और इसका सेवन करें। फायदा मिलेगा।

3. खांसी से परेशान हों तो एक छोटी इलायची, एक अदरक का टुकड़ा, लौंग और तुलसी के कुछ पत्ते एकसाथ पान के पत्ते में रखकर चबाएं। 

4. यदि उल्टी से परेशान हैं तो बड़ी इलायची (5ग्राम) लेकर आधा लीटर पानी में उबालें। जब पानी एक चौथाई रह जाए तब इसे ठंडा कर लें। और दिनभर में इस पानी का सेवन करते रहे।

5. यदि मुंह में छाले हो गए हैं तो पिसी हुई मिश्री को इसमें मिलाकर छालों पर बुरकें।

6. यदि केले ज्यादा खा लिए हों और बदहजमी लग रही हो तो एक इलायची चबा लें। इससे तत्काल आराम मिलेगा।

7. यदि मुंह से दुर्गन्ध आती हो तो इलायची चबाने से लाभ होता है। इसके लिए एक छोटी इलायची को मुंह में रखकर चबायें। 

8. यदि पेशाब में जलन हो रही हो और पेशाब बूँद बूँद करके हो रहा हो तो एक बड़ी इलायची चबाकर पानी पी लें। आराम मिलेगा।

9. बुखार ना उतर रहा हो तो इलायची, अदरक, लौंग, तुलसी पत्ता का काढ़ा बनाकर पियें। लाभ होगा।

10. अपच महसूस हो रही हो तब भी इलायची का सेवन लाभकारी है।

11. सीने में जलन हो रही हो तो इलायची को चूसकर पानी पियें। आराम मिलेगा।

12. लीवर और गॉल ब्लेडर संबंधी समस्याओं में भी इलायची बेहद हितकारी है।

13. जुकाम में इलायची के दाने अजवाइन के साथ हल्के गरम करके पोटली बनाकर सूंघने से आराम मिलता है।

14. अगर आपका बस या गाड़ी में बैठने से जी मिचला रहा हो और चक्कर आ रहा हो तो तुरंत अपने मुंह में छोटी इलायची डाल लीजिये। आपको तुरंत राहत मिलेगी।

सावधानी

1. कहा जाता है कि प्रेगनेंट और दूध पिला रही महिलाओं को इलायची( Elaichi ) का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे दूध की ग्रन्थियां प्रभावित होती है जिससे दूध कम बनता है। हालाँकि इसके कोई ठोस सुबूत नही मिले हैं लेकिन फिर भी इलाज से बचाव बेहतर होता है। यह ध्यान में रखकर सेवन ना करना ही ठीक है।

2. इलायची के ज्यादा सेवन से पित्त की थैली(गॉल ब्लेडर)में पथरी होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है। इसलिए जितनी मात्रा से व्यंजनों में स्वाद बढ़े उतनी मात्रा का सेवन ही करें।

3. इलायची के सेवन से कुछ लोगों को एलर्जी हो सकती है जिसमें सीने और गले में जख्म, सांसों का छोटा-छोटा आना व सांस लेने में दिक्कत भी हो सकती है

4. इलायची के ज्यादा सेवन से गॉल ब्लेडर में दर्द की शिकायत भी हो सकती है।

 

 



Peanut health benefits

 


परिचय : मूंगफली में शर्करा (चीनी), चिकनाई और प्रोटीन पाई जाती है। एक अंडे के मूल्य के बराबर मूंगफलियों में जितनी प्रोटीन और गर्मी होती है उतनी दूध और अंडे में भी नहीं होती हैं। मूंगफली की प्रोटीन दूध से और मूंगफली की चिकनाई घी से मिलती जुलती है। मूंगफली के खाने से दूध, बादाम और घी की पूर्ति हो जाती है। मूंगफली शरीर में गर्मी उत्पन्न करती है, इसलिए सर्दी के मौसम में इसका सेवन अधिक लाभकारी है। मूंगफली में तेल का अंश होने से यह गैस की बीमारियों को नष्ट करती है तथा यह गीली खांसी में भी उपयोगी है। स्वभाव : मूंगफली शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है, इसलिए सर्दी के मौसम में इसका सेवन अधिक लाभकारी है। गुण : मूंगफली आमाशय और फेफड़े को बल देती है तथा थोड़ी मात्रा में इसे रोजाना खाने से मोटापा बढ़ता है। मूंगफली पाचन शक्ति को बढ़ाती है और रुचिकर होती है। मूंगफली के तेल के गुण-धर्म जैतून के तेल आलिव ऑयल के समान ही है। विभिन्न रोगों में सहायक : 1. गर्भस्थ शिशुवर्द्धक (गर्भ के अन्दर शिशु का विकास): गर्भावस्था के दौरान यदि स्त्रियां 60 ग्राम मूंगफली रोजाना खायें तो गर्भस्थ शिशु के विकास में लाभ होता है। 2. स्त्रियों की दुग्धवृद्धि: रोजाना कच्ची मूंगफली खाने से बच्चों को दूध पिलाने वाली स्त्रियों को दूध बढ़ जाता है। मुट्टी भर हुई मूंगफलियां सेवन करना लाभकारी है। 3. खुश्की, सूखापन: थोड़ा-सा मूंगफली का तेल, दूध और गुलाब जल को मिलाकर त्वचा पर मालिश करें। मालिश करने के 20 मिनट के बाद स्नान कर लेने से त्वचा के रूखापन में लाभ होता है। 4. मोटापा बढ़ाने के लिए: थोड़ी सी मात्रा में मूंगफली रोजाना खाने से चर्बी आने लगती है। 5. त्वचा के रोग: दाद, खाज और खुजली में मूंगफली का असली तेल लगाने से आराम आता है। 6. होठों का फटना: नहाने से पहले हथेली में चौथाई चम्मच मूंगफली का तेल लेकर उंगुली से हथेली में रगड़ लें और फिर होठों पर इस तेल से मालिश करें। ऐसा करने से होठों का फटना दूर हो जाता है।

Corn health benefits

 


परिचय : मक्के को उगाना अत्यन्त सरल है और इसकी देखभाल भी कम करनी पड़ती है, फिर भी उत्त्पादन अच्छा होता है। मक्के के टिक्कड़ बनते हैं। मक्के के टिक्कड़ और उड़द के आटे की भुजिया का भोजन में प्रयोग आदिवासी वाले लोग करते हैं। मक्के से पकौडे़ तथा पकवान बनते हैं। मक्के के नर्म हरे भुट्टे सेंककर खाने से उसके दाने बड़े स्वादिष्ट लगते हैं और पौष्टिक भी होते हैं। मक्के के सूखे दाने की खील खाने में अच्छी होती है। रंग : यह हल्के पीले रंग का होता है। स्वाद : यह खाने में मीठा, कडुवा और कषैला होता है। स्वभाव : मक्का खाने में ठंडा होता है। हानिकारक : यह पचने में भारी है। अत: जिसका शरीर बलवान हो और जिसकी जठराग्नि (पाचन शक्ति) तेज हो, उसी को यह पचता है। कमजोर पाचन-शक्ति वालों के लिए मक्का हानिकारक है। यह शरीर की नसों को शिथिल करता है। गुण : मक्का अत्यन्त रूक्षा (रूखा), कफ और पित्तनाशक, रुचि को बढ़ाने वाला, दस्तों को रोकने वाला होता है। मक्के के टिक्कड़ मुश्किल से पचने वाले और वायु पैदा करने वाले (बढ़ाने वाले) होते हैं। विभिन्न रोगों में सहायक : 1. शक्तिवर्धक: मक्का खाने से शरीर को काफी लाभ मिलता है। इसे मक्का आमाशय को मजबूत बनता है। मक्का खून को बढ़ाने वाला (रक्त-वर्धक) होता है। 2. मक्का के तेल को निकालने की विधि: ताजी दूधिया मक्का के दाने पीसकर कांच की शीशी में भरकर खुली हुई शीशी धूप में रखें। इससे दूध सूखकर उड़ जाएगा और तेल शीशी में रह जाएगा। इस तेल को छानकर दूसरी साफ शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें और इस तेल से मालिश किया करें। इस तेल की कमजोर बच्चों के पैरों पर मालिश करने से बच्चे के पैरों में शक्ति आती है और बच्चा जल्दी चलने लगता है। 1 चम्मच तेल में शर्बत मिलाकर पीने से बल भी बढ़ता है। 3. खांसी, कुकर-खांसी और जुकाम: मक्का के भुट्टे को जलाकर उसकी राख पीस लें, इसमें स्वादानुसार सेंधानमक मिला लें, फिर रोजाना 4 बार चौथाई चम्मच लेकर गर्म पानी से फंकी लें। इसके सेवन से लाभ मिलता है। 4. पेशाब में जलन होना: ताजा मक्का के भुट्टे को पानी में उबालकर उस पानी को छानकर मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन और गुर्दों की कमजोरी दूर होती है। 5. यक्ष्मा (टी.बी.): टी.बी. के रोग से पीड़ित व्यक्ति को मक्का की रोटी खिलाने से लाभ होता है। 6. पथरी: मक्का के भुट्टे और जौ को जलाकर राख कर लें। दोनों को अलग-अलग पीसकर अलग-अलग शीशियों में भरकर रख लें। उन शीशियों में से दो चम्मच मक्का की राख और दो चम्मच जौ की राख को एक कप पानी में घोल लें, फिर छानकर इस पानी को पी लें। ऐसा करने से पथरी गल जाती है और पेशाब खुलकर आता है। मक्के को तथा जौ को अलग-अलग जलाकर भस्म (राख) बनाकर पीस लें तथा अलग-अलग बर्तन में रखें। रोजाना सुबह मक्के का 2 चम्मच भस्म (राख) 1 कप पानी में मिलाकर पीयें तथा शाम को जौ का भस्म (राख) 2 चम्मच एक कप पानी में मिलाकर पीने से पथरी ठीक हो जाती है। 7. उल्टी: मक्का के भुट्टे में से दाने निकालकर उन्हें जलाकर राख कर लें, फिर इस राख को आधा ग्राम लेकर शहद के साथ चाटें। इससे कै (उल्टी) आना तुंरत ही बन्द होती है। 8. काली खांसी: मक्का के बीज निकाले हुए भुट्टे को जलाकर राख कर लें। इसके 1-2 ग्राम राख को शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से काली खांसी दूर हो जाती है। 9. खांसी: मक्का को जलाकर उसकी राख को इकट्ठा कर लें फिर इसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में पिसा हुआ कोयला और कालानमक मिलाकर रख दें। इसे शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से कालीखांसी और कुकुर खांसी भी दूर हो जाती है। मक्का के भुट्टे को जलाकर उसकी राख को पीस लें। इसमें थोड़ा-सा सेंधानमक मिला दें। इसके आधा-आधा चम्मच चूर्ण गर्म पानी के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है। 10. जुकाम: मक्के के भुट्टे को पूरी तरह से जलाकर उसकी राख बना लें, फिर इसमें स्वाद के अनुसार सेंधानमक मिलाकर रोजाना 4 बार फंकी लें। इससे जुकाम ठीक हो जाता है। 11. मूत्ररोग: लगभग 30 ग्राम मक्का के सुनहरी बालों को 250 ग्राम पानी में उबालें और जब 60 ग्राम रह जाये तो छानकर ठंडा करके पी लें इससे पेशाब खुलकर आता है। 12. गुर्दे के रोग: मक्के के भुट्टे के 20 ग्राम बालों को 200 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें। जब 100 मिलीलीटर पानी ही शेष बचे तब छानकर पीने से गुर्दे के रोग ठीक हो जाते हैं। 13. प्रदर रोग: मक्का की छूंछ की राख शहद के साथ सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ होता है। 14. दिल की कमजोरी: मक्का के दाने निकली हुई भुट्टे की डण्डी को जलाकर इसकी राख को पीसकर रख लें। इसके आधा ग्राम चूर्ण को ताजा मक्खन के साथ खाने से दिल की कमजोरी दूर होती है।

बुधवार, 9 जून 2021

Apple health benefits

 

परिचय : सेब एक फल है जिसकी गणना उत्तम कोटि के फलों में की जाती है। इसका मूल देश यूरोप और एशिया के ठंडे पहाड़ी प्रदेश है। सेब के गुणों की प्रशंसा में अनेक लोकोक्तियां प्रसिद्ध है जैसे सोते समय रोजाना एक सेब खाते रहे तो डाक्टर छाती पीट कर रह जायें। सेब के पेड़ की ऊंचाई ज्यादा बड़ी नही होती है। सेब की अनेक किस्में होती है। इनमें गोल्डन डिलीशन, प्रिन्स आल्बर्ट, चार्ल्स रोस, न्यूटन वन्डर, बेमले सीडलिग, लेकस्टन सुपर्व, ब्लेनहीम आरेन्ज, आरेन्ज पिपिन, रेड सोल्जर और अमेरिकन मदुर ये दस किस्में खास और प्रसिद्ध है। सेब का अचार, मुरब्बा, चटनी और शर्बत भी बनाया जाता है। स्वरूप : सेब काफी पुराना फल है। इसकी प्राचीनता का प्रमाण यही से मिलता है कि चीन, बेबीलोन और मिस्र के साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है। इसकी बहुत सी प्रजातियां है और हर प्रजाति के स्वाद, आकार और रंगत में भिन्नता होती है। इस समय विश्व में सेब की लगभग 7,000 किस्में पाई जाती है। भारत के पर्वतीय क्षेत्र में सेब का उत्पादन ज्यादा होता है। नैनीताल में इसकी सबसे ज्यादा पैदावार होती है। उत्पादन के मामले मे दूसरे नंबर पर अल्मोड़ा है। हिमाचल प्रदेश, कश्मीर और गढ़वाल में भी इसका अच्छा उत्पादन होता है। हमारे देश मे कश्मीर का सेब काफी प्रसिद्ध है। भारत में सेब को एक व्यावसायिक फसल माना गया है। इसका उत्पादन क्षेत्र 6,000 से 8,000 फीट ऊंची पहाडियां है। सेब की विशेषता यह है कि यह ऊपर से देखने में ठोस लगता है, परंतु इसका छिलका मुलायम और भीतरी भाग गूदेदार होता है। इसकी गोलाई 5 से 8 सेंटीमीटर तक होती है। तासीर : सेब का स्वाद खट्टा-मीठा होता है। खट्टे-मीठे स्वाद वाला सेब ही उत्तम माना जाता है। सेब पित्त-वायु को शांत करता है। तृषा (प्यास) मिटाता है और आंतों को मजबूत करता है। आमयुक्त पेचिश मिटाने का गुण भी सेब में है। सेब का ऊपर वाला छिलका निकालकर खाने से मीठे लगते है। सेब को छील कर नही खाना चाहियें क्योंकि इसके छिलके में कई महत्वपूर्ण क्षार होते है। सेब के टुकड़ों को शक्कर में रखने के बाद खाने से वे बहुत मीठे लगते है। सुबह खाली पेट खाने पर सेब ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। रक्तचाप को कम करने में यह उत्तम माना जाता है। यह शरीर में स्थित विषाक्त तत्व को दूर करता है। सेब का सेवन करने से दांत और मसूढ़ें मजबूत बनते है। सेब के छोटे-छोटे टुकड़े करके कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में चांदनी रात में बाहर रखकर रोज सुबह-शाम 1 महीने तक सेवन करने से शरीर तन्दुरुस्त बनता है। वैज्ञानिक मतानुसार : सेब में, ग्लूकोज, कार्बोहाइड्रेट, पोटेशियम, फास्फारस, लौह, ईथर, मैलिक एसिड, लिसिथिन, खनिज आदि क्षार है। इसमें विटामिन ‘बी और ‘सी भी है। सेब में टार्टरिक एसिड होने के कारण आमाशय में सेब मात्र एक घंटा में ही पच जाता है और साथ ही खाए हुए अन्नाहार को भी पचा देता है। यूनानियों के अनुसार : सेब हृदय (दिल), मस्तिष्क (दिमाग), यकृत (जिगर) और जठर को बल देता है। भूख को बढ़ाता है और शरीर की कान्ति (चमक) में वृद्धि करता है। सेब में पाये जाने वाले तत्त्व : तत्त्व मात्रा प्रोटीन 0.3 प्रतिशत वसा 0.1 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट 9.5 प्रतिशत पानी 85.9 प्रतिशत विटामिन-बी 40 प्रतिशत कैल्शियम 0.01 प्रतिशत फांस्फोरस 0.02 प्रतिशत लौह लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, 100 ग्राम तांबा थोड़ी मात्रा में विटामिन–सी थोड़ी मात्रा में हानिकारक : सेब के सेवन की मात्रा 1 बार में 1 से 3 सेब तक है। गला बैठने की दशा में तथा गायक कलाकारों को सेब का सेवन नही करना चाहियें। गुण : सेब में फास्फोरस होता है। अर्थात जलन करने वाला पदार्थ होता है। जिसे खाने से पेट साफ होता है और आमाशय की पुष्टि होती है। 2 सेब के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर उस पर आधा लीटर उबलता हुआ पानी डालकर रख दें। जब वह पानी ठंडा हो जायें तो उसे छानकर पी लें। अगर उसमें मिठास की आवश्यकता हो तो उसमें मिश्री मिला लें। यह सेब का पौष्टिक और स्वादिष्ट शर्बत है। यह शर्बत जल्दी ही खून में मिलकर हृदय (दिल), मस्तिष्क (दिमाग), यकृत (जिगर) और शरीर के प्रत्येक कोष में शक्ति एवं स्फूर्ति पहुंचाती है। दांत गलते हो, दांतो में छेद हो, मसूढ़े फूलते हों तो ऐसी दशा में भोजन के बाद रोज सेब खाने से फायदा होता है। इसके प्रयोग से दांत और मसूढ़े ठीक हो जाते हैं विभिन्न रोगों में उपयोग : 1. जुकाम : कमजोर दिमाग के कारण भी सर्दी-जुकाम बना रहता है। ऐसे रोगियों को जुकाम की दवाओं के सेवन से लाभ नही होता इसलियें ऐसे रोगियों का जुकाम ठीक करने के लिये भोजन से पहले छिलके सहित सेब खाने से दिमाग की कमजोरी दूर होकर जुकाम ठीक हो जाता है। 2. खांसी : पके हुए सेब का रस 1 गिलास निकालकर मिश्री मिलाकर सुबह के समय पीते रहने से पुरानी खांसी में लाभ होता है। 3. सूखी खांसी : रोजाना पके हुए मीठे सेब खाने से सूखी खांसी में लाभ होता है। मानसिक रोग, कफ (बलगम), खांसी, टी.बी रोग में सेब का रस व मुरब्बा खाने से फायदा होता है। 4. आंत्रज्वर (टायफायड) : सेब का मुरब्बा 15-20 दिन लगातार खाते रहने से दिल की कमजोरी और दिल का बैठना ठीक हो जाता है। 5. हाई बल्डप्रैशर : हाई बल्डप्रैशर होने पर 2 सेब रोज खाने से लाभ होता है। 6. याददाश्तवर्धक : जिन लोगों के मस्तिष्क (दिमाग) और स्नायु दुर्बल हो गए हों, याददाश्त की कमी हो, उन लोगों को सेब के सेवन करने से याददाश्त बढ़ जाती है, इस हेतु 1 या 2 सेब बिना छीले खूब चबा-चबाकर भोजन से 15 मिनट पहले खायें। 7. पथरी : गुर्दे और मूत्राशय में पथरियां बनती रहती हो या आपरेशन कराके पथरी निकाल देने के बाद भी पथरी रह जाती हो तो ऐसे में सेब का रस पीते रहने से पथरी बनना बंद हो जाती है तथा बनी हुई पथरी घिस-घिस कर पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाती है। यह गुर्दो को शुद्ध करता है, गुर्दे का दर्द दूर होता है। यदि कुछ दिन रोगी केवल सेब खाकर ही रहें तो पथरी निकल जाती है। ज्यादा भूख लगे तो और दूसरी साग-सब्जी या फल खायें। 8. पेशाब ज्यादा आने पर : सेब खाने से रात को बार-बार पेशाब जाना कम हो जाता है। 9. नींद न आने पर : सेब का मुरब्बा खाने से नींद आने लगती है। सेब खाकर सोना भी नींद लाने में सहायक है। 10. शराब पीने की आदत पर : सेब का रस बार-बार सेवन करने से अथवा अच्छी तरह पका हुआ 1-1 सेब रोजाना 3 बार खाते रहने से शराब पीने की आदत छूट जाती है। नशे के समय सेब खाने से शराब का नशा उतर जाता है। सेब का रस भी पीया जा सकता है। भोजन के साथ सेब खाने से भी शराब की आदत छूट जाती है। 11. भूख न लगने पर : 1 गिलास सेब के रस में स्वाद के अनुसार मिश्री मिलाकर रोजाना कुछ दिनों तक पीते रहने से भूख अच्छी तरह लगने लग जाती है। खट्टे सेब के रस में आटा गूंदकर रोटी बनाकर रोजाना खाना भी फायदेमंद है। 12. मलेरिया ज्वर : मलेरिया के ज्वर (बुखार) में सेब खाने से बुखार जल्दी ठीक होता है। 13. बच्चों के पेट के रोगों में : बच्चों को रोजाना सेब खिलाने से बच्चों के पेट के सभी रोग ठीक हो जाते हैं। 14. बच्चों के दस्त पर : जब बच्चों को दूध नही पचता हो, दूध पिलाते ही उल्टी और दस्त आते हों तो ऐसी दशा में उनका दूध बंद करके थोड़े-थोड़े समय बाद सेब का रस पिलाने से उल्टी और दस्तों में आराम आ जाता है। पुराने दस्तों में भी सेब का रस लाभकारी है। मरोड़ लगकर होने वाली बड़ों के दस्तों में भी यह फायदेमंद है। सेब खून के दस्तों को भी बंद करता है। दस्तों में सेब बिना छिलके वाली होनी चाहियें। दस्तों में सेब का मुरब्बा भी फायदेमंद है। सेब के छिलके उतारकर छोटे-छोटे टुकड़े करके दूध में उबालें। इस दूध का आधा कप हर घण्टे के बीच रोगी को पिलाने से दस्त बंद हो जाते है। 15. लीवर को मजबूत करना : लीवर (जिगर) के रोगों में सेब का सेवन फायदेमंद है। इससे लीवर (जिगर) को शक्ति मिलती है। 16. आंतों में घाव व सूजन पर : सेब का रस पीते रहने से आंतों के घाव और सूजन में आराम मिलता है। 17. कब्ज : खाली पेट सेब खाने से कब्ज (पेट की गैस) दूर होती है। खाना खाने के बाद सेब खाने से कब्ज होती है। सेब का छिलका दस्तावर होता है। कब्ज वाले रोगियों को सेब छिलके सहित ही खाना चाहियें। सेब, अंगूर या पपीता खाने से कब्ज (पेट की गैस) में राहत मिलती है। सेब छिलके सहित सुबह खाली पेट खाने से कब्ज (पेट की गैस) ठीक हो जाती है। 18. पेट के कीड़ों पर : 2 सेब रात को सोते समय कुछ दिन यानी कम से कम 7 दिन तक खाने से कीड़े मरकर गुदामार्ग से मल के साथ बाहर आ जाते हैं। सेब खाने के बाद रात भर पानी न पीएं। 19. मस्सा और तिल : खट्टी सेब का रस मस्सों पर लगने से मस्सों के छोटे-छोटे टुकड़े होकर मस्से जड़ से गिर जाते हैं। 20. बुखार : सेब के पेड़ की 4 ग्राम छाल और 200 ग्राम पत्ते उबलते हुए पानी में डालकर 10-15 मिनट तक ढंक कर रखें। उसके बाद उसे छान लें। उसमें 1 टुकड़ा नीबू का रस और 10 ग्राम या 20 ग्राम चीनी मिलाकर खाने से बुखार की घबराहट, प्यास, थकान और जलन दूर होती है यह यकृत के विकार (जिगर के होने वाले रोग) से आने वाले बुखार में भी लाभदाक है। इस प्रयोग से बुखार उतरता है और मन खुश रहता है। 21. पाचनक्रिया खराब होने पर : सेब को अंगारों पर सेंक कर खाने से बिगड़ी हुई पाचनक्रिया (भोजन पचाने की क्रिया) में भी सुधार होता है। 22. मल में रूकावट होने पर : रात में सेब खाने से जीर्ण मलावरोधक और जरावस्था का मलावरोध मिटता है और उदर (पेट) साफ होता है। 23. दांत साफ करने के लिए : सेब का रस सोड़े के साथ मिलाकर दांतों पर मलने से दांतो से निकलने वाला खून बंद होता है और दांतों पर जमी हुई पपड़ी दूर होती है और दांत साफ बनते हैं। 24. स्वास्थ सुधारने के लिए: सेब का ताजे रस में शहद मिलाकर पीने से कुछ ही दिनों में सेहत मे सुधार दिखाई पड़ता है। 25. दांतों की बीमारी : जिन लोगो के दांतों से खून निकलता हो और दांतों पर मैल जमी हो उन्हें सेब के रस में खाने वाला सोडा मिलाकर दांतों पर रोजाना 2 से 3 बार मलना चाहिए। 26. खांसी : पके हुई सेब का रस निकालकर उसमें मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह पीने से खांसी बंद हो जाती है। 27. आमाशय (पेट) का जख्म : 1 सेब में लौंग को अच्छी तरह चारों तरफ से चुभों दें कि कोई भाग खाली न रह जायें। फिर 40 दिन बाद लौंगों को निकाल कर शीशी में रख दें। खाना खाने के बाद एक लौंग को चूसने से पेट का घाव भरने लगता है। 250 मिलीलीटर गर्म पानी में 1 सेब के टुकड़े-टुकड़े कर डाल दें और उसे ढक दें। 15 मिनट के बाद उसे निचोड़कर छान लें। इसमें 2 चम्मच शहद डालकर पीने से अल्सर (पेट के जख्म) मे लाभ होता है। सेब का रस पीने से शरीर के पाचन अंगो पर एक पतली तह चढ़ जाती हैं जिसकी मदद से संक्रमण और बदबू से रक्षा होती है और पेट में गैस नहीं बनती है। मलाशय (वह स्थान जहां भोजन पचकर मल एकत्रित होता है) और निचली आंतों में दुर्गन्ध को होने नहीं देता है। साथ-ही साथ सेब के रस के बाद गुनगुना पानी पीने से आंतों में होने वाले घाव (जख्म) और सूजन में लाभ मिलता है। 28. मसूढ़ों का रोग : मसूढ़े फूलते हों तो खाना खाने के बाद रोजाना 1 सेब खायें। इससे दांत व मसूढ़ों के रोग ठीक हो जाते है। 29. वमन (उल्टी) : कच्चे सेब के रस में सेंधा नमक मिलाकर पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है। 30. दस्त के लिए : सेब का रस पिलाने से छोटे बच्चों को दूध के पीने से होने वाली उल्टी और दस्त में लाभ मिलता हैं। सेब को छोटे-छोटे टुकड़े में काटकर गर्म पानी में डालकर निचोड़कर रख लें, फिर इसी पानी युक्त रस में शहद को मिलाकर रोगी को देने से दस्त और उल्टी में लाभ पहुंचता हैं। रोजाना सेब का मुरब्बा खाने से दस्त बंद हो जाते है। 31. मूत्ररोग : रोजाना सेब का रस पीने से बहुमूत्रता (बार-बार पेशाब आना), गुर्दे का दर्द एवं मूत्राशय की पथरी दूर होती है। 32. कमजोरी : सेब का रोजाना सेवन करने से हृदय (दिल), मस्तिष्क (दिमाग) और आमाशय को समान रूप से शक्ति मिलती है। इससे कमजोरी भी मिट जाती है। सुबह 2-3 सेब खाकर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से कमजोरी दूर हो जाती है। 33. जिगर का रोग : सेब के सेवन से यकृत (जिगर) को शक्ति मिलती है। 34. प्यास अधिक लगना : सेब का रस पानी में मिलाकर पीने से प्यास कम लगती है। जिन्हें वायु विकार हो उन्हें सेब का रस नहीं पीना चाहिए। 35. मोटापा का रोग : सेब और गाजर को बराबर मात्रा में कद्दूकस करके रख लें, सुबह खाली पेट जितना खा सकें उतना या 200 ग्राम की मात्रा में खाने के बाद लगभग 2 घण्टे तक कुछ न खाने से वजन कम होता है शरीर में स्फूर्ति आती है और सुन्दरता में लाभ होता है। 36. मोटापे की बढ़ोत्तरी के लिए : सेब और गाजर को बराबर मात्रा में छिलके सहित घिसकर दोपहर के भोजन के बाद खाने से मोटापा बढ़ता और कमजोरी मिटती है। 37. पेट के सभी प्रकार के रोग : रोजाना दिन में 1 से 3 बार सेब खाने से बच्चों के पेट के रोगों में लाभ होता है। 38. पेट के कीड़ों के लिए : रात को सोने से पहले कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेब खाकर ऊपर से पानी पीने से कीड़े मरकर सुबह मल के साथ बाहर निकल जाते हैं। 39. नींद ना आना (अनिंद्रा) : लगभग 10 से 20 ग्राम सेब की जड़ का चूर्ण सुबह और शाम रोगी को खिलाने से नींद अच्छी आती है। 40. आधासीसी (माइग्रेन) अधकपारी : रोजाना सुबह खाली पेट आधा सेब खाने से आधे सिर का दर्द हमेशा के लिए चला जाता है। 41. मुर्च्छा (बेहोशी) : पके हुए सेब के रस को मिश्री मिलाकर बेहोश रोगी को पिलाने से बेहोशी दूर हो जाती है। 42. दिल की तेज धड़कन : 100 मिलीलीटर सेब के रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर पीने से दिल की तेज धड़कन सामान्य हो जाती है। 43. चेहरे की झाई के लिए : सेब का थोड़ा सा गूदा लेकर उसमें बेसन, चंदन का पाउडर और हल्दी मिलाकर लेप बनाकर चेहरे पर हल्कें-हल्के हाथों से लगाकर मालिश करनी चाहिए। चेहरे की झुर्रियां, मुहांसे और दाग-धब्बे दूर करने में यह बहुत ही लाभकरी है। 44. चर्म रोग के लिए : सेब को पीसकर उसका रस चमड़ी के रोगों पर लगाने से चमड़ी के रोगों मे लाभ होता है। 45. दिल की कमजोरी : रोजाना सेब या सेब का मुरब्बा खाने से शारीरिक शक्ति बढ़ने से दिल की कमजोरी दूर होती है। 46. त्वचा के रोग के लिए : सेब रोजाना खाने से चमड़ी के रोगों ठीक हो जाते हैं। 1 सेब को अच्छी तरह से पीसकर लेप बना लें। इस लेप को हल्के हाथ से चेहरे पर लगा लें। 10 से 15 मिनट के बाद चेहरे को गर्म पानी से धो ले। इससे जिनकी तेलीय त्वचा होती है वो ठीक हो जाती है। 47. दिल की कमजोरी : दिल की कमजोरी दूर करने के लिए सेब खाना लाभदायक है। 48. मानसिक उन्माद (पागलपन) : सेब के शर्बत में ब्राह्मी के चूर्ण को मिलाकर पागलपन के रोगी को पिलाने से गर्मी के कारण हुआ पागलपन ठीक हो जाता है। 49. सिर का दाद : सेब को काटकर उस पर सेंधा नमक डालकर खाने से कुछ दिनों में ही होने वाला सिर दर्द हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। 50. याददाश्त कमजोर होना : भोजन करने से 15 मिनट पहले 1-2 सेब बगैर छीले खाने से विद्यार्थियों की याददाश्त मजबूत हो जाती है।

Dates health benefits

 



परिचय : खजूर के पेड़ पतले व बहुत ऊंचे होते हैं। खजूर के पेड़ नारियल के पेड़ के समान होते हैं। यह 30 से 50 फुट ऊंचे होते हैं और इसके तने तंतुओं से बने 3 फुट लम्बे मटमैले होते हैं। खजूर के पत्ते नोकदार कटे-कटे से 10 से 15 फुट तक लम्बे होते हैं। इसके फूल खुशबूदार और छोटे होते हैं। फल छोटे-छोटे गुच्छों में होते हैं और इसके अन्दर बीज सख्त व दोनों सिरों से गोल होते हैं। खजूर 2 प्रकार के होते हैं- खजूर और पिण्ड खजूर। पिण्ड खजूर का फल खजूर के फल से अधिक गूदेदार व काफी बड़ा होता है। यही फल सूखने पर छुहारा कहलाता है। खजूर एक पौष्टिक मेवा भी है। खजूर के पेड़ के ताजे रस को नीरा और बासी को ताड़ी कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार : खजूर स्वादिष्ट, पौष्टिक, मीठा, शीतल, तृप्तिकारक (इच्छा को शांत करने वाला), स्निग्ध, वात, पित्त और कफ को दूर करने वाला होता है। यह टी.बी, रक्त पित्त, सूजन एवं फेफड़ों की सूजन के लिए लाभकारी होता है। यह शरीर एवं नाड़ी को शक्तिशाली बनाता है। सिर दर्द, बेहोशी, कमजोरी, भ्रम, पेट दर्द, शराब के दोषों को दूर करने के लिए इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है। यह दमा, खांसी, बुखार, मूत्र रोग के लिए भी लाभकारी है। यूनानी चिकित्सकों के अनुसार : खजूर गर्म व तर होता है। यह कमजोर जिगर को मजबूत बनाने वाला, थकावट को दूर करने वाला, शरीर को मोटा बनाने वाला, धातुदोष को दूर करने वाला, लकवा और कमर के दर्द को समाप्त करने वाला होता है। यह कामोत्तेजक होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार : खजूर का रसायनिक अध्ययन करने पर पता चला है कि इसमें विभिन्न तत्त्व होते हैं- तत्त्व मात्रा चीनी 67.3 प्रतिशत प्रोटीन 5.0 वसा 2.0 खनिज प्रदार्थ 1.3 कैल्शियम थोड़ी मात्रा लौहा थोड़ी मात्रा फास्फोरस थोड़ी मात्रा विटामिन ए, बी थोड़ी मात्रा पानी 21.1 प्रतिशत विभिन्न भाषाओं में खजूर के नाम : संस्कृत खर्जूर। हिन्दी खजूर, छुहारा, पिडं खजूर। अंग्रेजी डेट। लैटिन फिनिक्स डेक्टीलीफेरा। मराठी खारिक। गुजराती खोरेक। बंगाली खेजूर। रंग : खजूर का रंग काला व लाल होता है। स्वाद : इसका स्वाद मीठा और वाकस होता है। स्वरूप : खजूर दो प्रकार के होते हैं- खजूर और पिण्ड खजूर। खजूर का पेड़ बड़ा होता है व नारियल के पेड़ के समान होता है। इसमें पीले व हल्के लाल रंग के फल लगते हैं। पत्ते नोकदार होते हैं जो पहले हरे, फिर पीले व पकने के बाद लाल हो जाते हैं। mai labhag प्रकृति : खजूर शीतल और ठंडा होता है। हानिकारक : खजूर का अधिक उपयोग करना खून को जला देता है। दोषों को दूर करने वाला : खजूर के साथ बादाम खाने से खजूर में मौजूद दोष दूर होते हैं। तुलना : खजूर की तुलना किशमिश से की जा सकती है। मात्रा : 50 से 70 ग्राम। विभिन्न रोगों में सहायक : 1. सर्दी-जुकाम: खजूर को एक गिलास दूध में अच्छी तरह उबालें और फिर दूध से खूजर निकालकर खाएं और ऊपर से वही दूध पीने से सर्दी-जुकाम में जल्दी लाभ मिलता है। 2. सिर दर्द: खजूर की गुठली को पानी में घिसकर सिर पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है। 3. शरीर को मोटा करने के लिए: एक कप दूध में 2 खजूर उबालकर खाएं और ऊपर से वही दूध पीएं। इस तरह प्रतिदिन सुबह-शाम कुछ महीनों तक खजूर खाने व दूध पीने से शरीर मोटा होता है। इसे सर्दी के महीने में खाना ज्यादा फायदेमन्द और गुणकारी होता है। 4. बार-बार पेशाब आना: 2-2 छुहारे (खजूर) दिन में 2 बार खाने और रात को सोते समय 2 छुहारे खाकर दूध पीने से बार-बार पेशाब आना बंद होता है। इससे बिस्तर पर पेशाब करने की आदत भी दूर जाती है। 5. गुहेरी (आंख की फुंसी या बिलनी): खजूर की गुठली को घिसकर आंखों की पलकों पर लेप करने से गुहेरी नष्ट होती है। 6. श्वास, दमा: खजूर और सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में पान में रखकर दिन में 3 बार खाने से दमा रोग ठीक होता है। खजूर की गुठली का चूर्ण और 3 ग्राम सौंफ का चूर्ण मिलाकर पान के साथ प्रयोग करने से अस्थमा के कारण होने वाली सांस की रुकावट दूर होती है। दमा में खजूर का सेवन करना लाभकारी होता है। 4 खजूर, 2 इलायची एवं 2 चम्मच शहद को खरल में घोटकर सेवन करने से दमा रोग नष्ट होता है। 7. बच्चों का सूखा रोग: खजूर और शहद को बराबर की मात्रा में मिलाकर दिन में 2 बार कुछ हफ्ते तक खाने से सूखा रोग ठीक होता है। 8. घाव: खजूर की गुठली को जलाकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को घाव पर छिड़कें। इससे घाव सूख जाता है। 9. अरुचि: खजूर की चटनी में नींबू का रस मिलाकर खाने से अरुचि दूर होती है। 10. दस्त का बार-बार आना: खजूर की गुठली का चूर्ण बनाकर दही के साथ खाने से अतिसार रोग ठीक होता है। 11. दस्त का बंद होना: खजूर की गुठली को जलाकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 से 3 बार ठंडे पानी के साथ सेवन करें। इससे दस्त आने का रोग ठीक होता है। खजूर को पानी में रात को भिगोकर रखें दें और सुबह उसी पानी में उसे मसलकर पीएं। इससे मल साफ होता है और मल की रुकावट दूर होती है। 12. रक्तपित्त: खजूर का चूर्ण बनाकर शहद के साथ खाने से रक्तपित्त (खून की उल्टी) का रोग ठीक होता है। 13. कब्ज़: खजूर को गर्म पानी के साथ रात को सोते समय सेवन करने से कब्ज दूर होती है। इससे बवासीर की परेशानी भी दूर होती है। 50 ग्राम खजूर प्रतिदिन खाने से कब्ज समाप्त होती है। कब्ज दूर करने के लिए बच्चों को यह केवल 25 ग्राम ही दें। खजूर को पानी में डालकर रात को रख दें और सुबह मसलकर खाली पेट खाने से पेट साफ होता है। 14. शराब का नशा: खजूर को पानी में भिगोकर मसलकर पीने से शराब का नशा उतर जाता है। 15. खुजली: खजूर की गुठली को जलाकर उसकी राख में कपूर और घी मिलाकर खुजली पर लगाने से खुजली ठीक होती है। 16. धातु की कमजोरी: सर्दी के मौसम में सुबह खजूर को घी में सेंककर खाने और इलायची, चीनी तथा कौंच डालकर उबाला हुआ दूध पीने से वीर्य बढ़ता है। छुहारा से बीज हटाकर इसके गूदे को कूट लें और फिर इसमें बादाम, बलदाने, पिस्ता, चिरौंजी, चीनी मिला लें। अब इसे 8 दिन तक घी में मिलाकर रखें। यह 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन खाने से धातुपुष्टि होती है और पित्त शांत होता है। 17. कमर दर्द: 5 खजूर को उबालें और इसमें 5 ग्राम मेथी डालकर पीने से कमर दर्द ठीक होता है। 18. गठिया (आमवात): 100 ग्राम खजूर भिगोकर मसलकर पीने से आमवात का दर्द ठीक होता है। 19. हिस्टीरिया: खजूर को कुछ महीनों तक नियमित आहार के तौर पर सेवन करने से स्त्रियों का हिस्टीरिया रोग दूर होता है। 20. लीवर रोग: 4 से 5 खजूर पानी में भिगोकर रात को रखे दें और सुबह उसे मसलकर शहद में मिलाकर लगभग 7 दिन तक पीएं। इससे लीवर का बढ़ना रुक जाता है और जलन शांत होती है। 21. पेट की गैस: खजूर 50 ग्राम, जीरा 10 ग्राम, सेंधानमक 10 ग्राम, कालीमिर्च, सोंठ 10 ग्राम, पीपरामूल 5 ग्राम और नीबू का रस 80 मिलीलीटर इन सभी को मिलाकर बारीक पीस लें और इसका सेवन करें। इससे पेट की गैस खत्म होती है। 22. टी.बी रोग: क्षय (टी.बी.) के रोगियों के लिए खजूर का सेवन करना फायदेमंद होता है। खजूर, मुनक्का, चीनी, घी, शहद और पीपर बराबर-बराबर लेकर 30 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन खाने से टी.बी रोग ठीक होता है। इससे खांसी एवं सांस भी ठीक होता है। 23. कफ: प्रतिदिन खाना खाने के बाद 4 या 5 घूंट गर्म पानी के साथ खजूर खाना लाभकारी होता है। इससे कफ पतला होकर खखारने या खांसी के रूप में बाहर निकल जाता है। इससे फेफडे़ साफ होते हैं। इससे सर्दी, जुखाम, खांसी और दमा रोग भी ठीक होता है। 24. दांतों का दर्द: दांतों में किसी प्रकार का दर्द होने पर खजूर की जड़ का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 2 से 3 बार कुल्ला करने से दर्द खत्म होता है। 25. सूखी खांसी: खजूर का सेवन करने से सूखी खांसी ठीक होती है। 26. गैस्ट्रिक (अल्सर): पिण्ड खजूर खाना से गैस्ट्रिक (अल्सर) में लाभ मिलता है। 27. हिचकी का रोग: खजूर की गुठली का चूर्ण 3 ग्राम और 3 ग्राम पिप्पली का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से हिचकी दूर होती है। 1 ग्राम खजूर का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से हिचकी नहीं आती है। 28. बवासीर (अर्श): खजूर के बीजों को जलाकर मलद्वार में धूंआ लेने से अर्श (बवासीर) के मस्से सूखकर झड़े जाते हैं। खजूर के पत्तों को जलाकर राख बना लें और यह 2 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 से 3 बार पानी के साथ खाने से खूनी बवासीर ठीक होता है। खजूर के पत्ते को जलाकर राख बना लें और यह 2 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार खाएं। इससे बवासीर से खून गिरना बंद होता है। 29. मासिकधर्म संबंधी परेशानी: पिण्ड खजूर प्रतिदिन 100 ग्राम की मात्रा में 2 महीने तक लगातार सेवन करने से मासिकधर्म नियमित होता है। 30. दस्त में आंव रक्त आना (पेचिश): 6 ग्राम खजूर के फल को 20 ग्राम गाय के दूध से बनी दही में मिलाकर खाने से पेचिश का रोग ठीक होता है। दस्त में आंव व खून आने पर खजूर को दही के साथ खाने से लाभ होता है। 31. मधुमेह का रोग: मधुमेह या ऐसे रोग जिसमें मीठा खाना हानिकारक होता है। ऐसे रोगों को ठीक करने के लिए थोड़ी मात्रा में खजूर का सेवन करना लाभकारी होता है। 32. पेट के कीड़े: खजूर के पत्तों का काढ़ा रात को बनाकर सुबह शहद के साथ मिलाकर पीने से पेट के कीड़े नश्ट होते हैं। खजूर की पत्तियों का रस 40 मिलीलीटर और शहद 40 ग्राम मिलाकर खाने से पेट के सभी कीड़े खत्म होते हैं। पेट के कीड़े को समाप्त करने के लिए खजूर के पत्तों के बारीक चूर्ण को खजूर के पत्तों के काढ़े में डालकर रात को रख दें और सुबह इसे छानकर 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करें। इससे पेट के कीड़े समाप्त होते हैं। 33. भ्रम एवं रोग भ्रम: सुलेमानी खज़ूर को प्रतिदिन खाने से भ्रम रोग दूर होता है। 34. हृदय रोग: हृदय कमजोर होने पर प्रतिदिन खजूर खाना चाहिए। इससे हृदय को शक्ति मिलती है। 35. निम्नरक्तचाप: 50 ग्राम खजूर को दूध में उबालकर प्रतिदिन पीने से निम्न रक्तचाप की परेशानी दूर होती है और रक्तचाप सामान्य बना रहता है। गुठली रहित खजूर को पानी से साफ करके 250 मिलीलीटर की मात्रा में दूध के साथ उबाल लें। जब दूध के ऊपर भूरे रंग का घी तैरने लगे तब इसे उतारकर पीएं। इसका सेवन प्रतिदिन करने से नम्न रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर) की शिकायत दूर होती है। 36. मस्तिष्क से रक्तस्राव: मस्तिष्क से खून स्राव होने पर बार-बार बेहोशी आती रहती है। ऐसे रोग में सुलेमानी खजूर पीसकर शर्बत की तरह बनाकर रोगी को पिलाने से बेहोशी दूर होती है। 37. शरीर की जलन: शरीर की जलन दूर करने के लिए सुलेमानी खजूर का सेवन करना लाभकारी होता है। 38. थकावट: शारीरिक थकावट को दूर करने के लिए सुलेमानी खजूर का सेवन प्रतिदिन करना चाहिए। इससे शरीर की थकावट दूर होती है। 39. शरीर की सूजन: किसी भी कारण से शरीर में आई सूजन को दूर करने के लिए प्रतिदिन खजूर खाना लाभकारी होता है। इससे शरीर की सूजन दूर होती है। 40. शारीरिक शक्ति का कम होना या खून का कम होना: नियमित 10 से 15 खजूर खाकर ऊपर से एक कप दूध पीने से कुछ दिनों में ही शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। इसे बल बढ़ता है, खून बनता है और वीर्य बढ़ता है। खजूर 100 ग्राम और किशमिश व द्राक्ष 50-50 ग्राम प्रतिदिन खाने से कमजोरी दूर होती है और शरीर में नया खून बनता है। यह वीर्य की कमजोरी को भी दूर करता है। भैंस के घी में खजूर के बीज को 5 मिनट तक सेंककर दोपहर को चावल के साथ खाकर एक घंटा आराम करें। इससे कमजोरी दूर होती है और शारीरिक वजन बढ़ता है। देशी खजूर खाने से शरीर की कमजोरी दूर होती है। खजूर से बीज को निकालकर गूदे में मक्खन भरकर सेवन करने से कमजोरी दूर होती है। खजूर का चूर्ण और असगंध 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर दूध के साथ सेवन करने से कमजोरी दूर होती है। 7 या 8 पिण्ड खजूर को 500 मिलीलीटर दूध में डालकर हल्की आंच पर दूध के साथ पकाएं और लगभग 400 मिलीलीटर की मात्रा में दूध बचा रह जाने पर दूध को आंच से उतार लें। अब इसमें से खजूर निकालकर खा लें और ऊपर से दूध को पीएं। इससे शरीर में भरपूर ताकत और मजबूती आती है। 5-7 खजूर लेकर इनकी गुठली को निकालकर फेंक दें और गूदे को पानी से धोएं। अब लगभग 300 मिलीलीटर की मात्रा में दूध लेकर इसमें खजूर के गूदे मिलाकर हल्की आग पर 8 से 10 मिनट तक पकाएं। पक जाने पर दूध में से खजूर को निकालकर चबा-चबाकर खा लें और ऊपर से दूध पीएं। इससे शरीर को जबरदस्त ताकत और मजबूती मिलती है। इससे वजन बढ़ता है, कब्ज, क्षय रोग दूर होता है, शरीर में खून बनता है, खांसी, दमा, पेट और छाती से सम्बंधित सभी रोगों से छुटकारा मिलता है। इसका सेवन लगातार 40 दिनों तक सुबह-शाम करना चाहिए।

Rose Health benefits


परिचय : गुलाब की खुबसूरती के कारण से गुलाब को फूलों का राजा कहा जाता है। गुलाब एक ऐसा फूल है जिसके बारे में सब जानते हैं। पूरे भारत में गुलाब के पौधे लगाए जाते हैं। देशी गुलाब लाल रंग का होता है। गुलाब के द्वारा बनाएं जाने वाले दो पदार्थ अधिक प्रसिद्ध हैं एक तो गुलकंद और दूसरा गुलाबजल। गुलाब की अनेक किस्में पाई जाती हैं जिन पर कई रंगों के फूल खिलते हैं। लगभग गुलाब के पौधे की ऊंचाई 120-180 सेंटीमीटर तक होता है। इसके तने में कुछ असमान कांटे लगे होते हैं। गुलाब के तनों में 5 पत्तियां मिली हुई लगी होती है। गुलाबी रंग का गुलाब का फूल अधिक मात्रा में होता है तथा इसके अलावा गुलाब के फूल सफेद तथा पीले रंग के भी होते हैं। गुलाब का फल अंडाकार होता है। मार्च-अप्रैल के महीने में इसके फूल खिलते हैं। इसके फूलों से इत्र व गुलकंद बनाया जाता है। गुलाब के विभिन्न रूपों में कई प्रकार के अर्थ मिलते हैं- लाल गुलाब- मैं तुमसे प्यार करता हूं। लाल और सफेद गुलाब एक साथ रखना- यह एकता को दर्शाता है। सफेद गुलाब- हमारा प्यार पवित्र है। पूरी तरह खिला, भरा-भरा लाल गुलाब- आप बहुत खूबसूरत हैं। गुलाब की जुडी हुई चार पत्तियां- बेस्ट आफ लक। एक पूरे खिले हुए गुलाब के साथ दो कलियां रखना- यह सुरक्षा को दर्शाता है। बंद कली युक्त सफेद गुलाब- इससे यह पता चलता है कि अभी आप बहुत छोटे हैं प्यार करने के लिए। गुलाब की टहनी पर लगी एक बंद कली- यहां किसी का डर नहीं हैं। पीला गुलाब- मै तुमसे प्यार करता हूं पर तुम्हारे दिल में क्या है, मैं नहीं जानता। गुलाब की टहनी पर कांटों के अलावां एक पत्ती भी न हो- इसका मतलब यह होता है कि यहां कुछ नहीं हैं, न डर न आशा। नारंगी गुलाब - मेरा प्यार तुम्हारे लिए अन्नत है जो खत्म नहीं हो सकता। विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत तरुणी, कर्णिका, शतपत्री, चारुकेशर हिन्दी गुलाब मराठी गुलाब गुजराती गुलाब बंगाली गोलाप तेलगू गुलाबा पुवु फारसी गुलसुर्ख अरबी जरंजवीन अंग्रेजी रोज लैटिन रोजासेंटीफोलिया रंग : गुलाब का फूल लाल, गुलाबी और सफेद रंग का होता है। स्वाद : इसके फूल का स्वाद हल्का तीखा और खुशबूदार होता है। स्वरूप : गुलाब के पेड़ फुलवाड़ियों तथा बगिचों में लगाये जाते हैं। यह 2 प्रकार का होता है। एक मौसमी और एक बारहमासी। मौसमी गुलाब का फूल मार्च-अप्रैल में खिलता है और इसमें खुशबू अधिक होती है। बारह महीने गुलाब का फूल बारहों महीने तक खिलता है। प्रकृति : इसकी प्रकृति ठंडी होती है। हानिकारक : गुलाब का अधिक मात्रा में सुघंने से जुकाम हो सकता है। गुलाब के फूल का ज्यादा मात्रा मे सेवन करने से संभोग करने की शक्ति में कमजोरी आती है। जिन रोगियों का पेशाब करने की नली कमजोर हो उन्हें गुलकंद का सेवन नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे उन्हें अधिक हानि हो सकती है। दोषों को दूर करने वाला : मिश्री गुलाब के गुणों को सुरक्षित रखता है तथा इसके दोषों को दूर करता है। तुलना : गुलाब की तुलना आक, सौंफ तथा वनफ्सा से की जा सकती है। गुलाब की मात्रा का उपयोग: गुलाब के ताजे फूल 10 ग्राम से 30 ग्राम तक। शुष्क फूलों का चूर्ण 3 से 6 ग्राम। फूल का काढ़ा 25 से 50 मिलीलीटर। गुलकंद 10-30 ग्राम। गुलाब के फूलों का रस 20-40 ग्राम। गुण : गुलाब का उपयोग करने से दिल, दिमाग और आमाशय की शक्ति में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप इनकी क्रिया भी ठीक प्रकार से होने लगती है। गर्मी से होने वाले उन्माद रोग को ठीक करने के लिए गुलाब का उपयोग करना लाभदायक होता है। यह मन के प्रसन्न करता है तथा पाचन शक्ति की क्रिया को ठीक करता है। आयुर्वेद मतानुसार- आयुर्वेद में गुलाब के गुणों की चर्चा अधिक इसलिए होती है क्योंकि इसके उपयोग से कई प्रकार के रोग ठीक हो सकते हैं। यह वात-पित्त को नष्ट करता है। यह शरीर की जलन, अधिक प्यास तथा कब्ज को भी नष्ट कर सकता है। गुलाब में विटामिन सी की बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है। गर्मी के मौसम में इसके फूलों को पीसकर शर्बत में मिलाकर पीना लाभकारी होता है तथा इसको पीने से हृदय व मस्तिष्क को शक्ति मिलती है। गुलाब का सेवन करने से चेहरे पर चमक आ जाती है तथा शरीर का खून साफ हो जाता है। गुलाब का फूल जितना दिखने में सुन्दर होता है उसमें उतना ही औषधीय गुण पाए जाते हैं। आयुर्वेदिक मतानुसार गुलाब के रस का स्वाद तीखा, चिकना, कषैला और मीठा होता है। इसकी प्रकृति ठंडी होती है। यह वात-पित्त को नष्ट करने वाला होता है। शरीर में जलन, बदबूदार पसीने आना, खून में खराबी, पाचन शक्ति कमजोर होना, हृदय रोग, वीर्य में शुक्राणु की कमी, भूख न लगना, यकृत तथा मानसिक कष्ट आदि रोग को यह ठीक करता है। यूनानी चिकित्सानुसारः गुलाब की प्रकृति ठंडी और खुश्क होती है। गर्मी के कारण पैदा होने वाले रोग जैसे बुखार, सिर दर्द, बेहोशी तथा दिल की धड़कन बढ़ाने पर यह उपचार करने के लिए लाभकारी होता है। गुलाब के ताजे फूल का सेवन करने से जहां दस्त लगते हैं, वहीं सूखे फूलों के सेवन करने से कब्ज पैदा होती है। गुर्दे, गुदा, गर्भाशय (जरायु), आमाशय, दिल, फेफड़ों व आंतों को इसके सेवन से काफी बल मिलता है। क्षय रोग तथा उससे जुडे़ सभी प्रकार के रोग को ठीक करने के लिए इसका सेवन करना लाभदायक होता है। वैज्ञानिक मतानुसारः गुलाब में गैलिक, टैनिक, ओलियम रोजी, एसिड्स, विटामिन सी तथा तेल पाया जाता है। नजला, सर्दी-जुकाम को ठीक करने के लिए इसका सेवन अधिक लाभकारी है। इसके सेवन से शरीर में हडि्डयों के रोग ठीक हो जाते हैं। गुलाब में विटामिन सी की बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है और विटामिन सी शरीर में कई रोगों को ठीक करने में अधिक लाभकारी है क्योंकि विटामिन सी रोग के संक्रमण को खत्म करने में उपयोगी है। विभिन्न रोगों में प्रयोग: 1. होंठों का कालापन: गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर उसमें थोड़ा सा ग्लिसरीन अच्छी तरह से मिला लें और इसे दिन में 3-4 बार होठों पर लगाएं इससे होंठों का कालापन दूर होता है। गुलाब के एक फूल को पीसकर उसमें थोड़ी सी मलाई मिला लें, फिर इसे 10 मिनट तक होंठों पर लगायें इसके बाद होंठों को धो दें। कुछ दिनों तक इस प्रकार से उपचार करने पर होंठों का कालापन दूर हो जाएगा। गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर उसमें थोड़ी सी ग्लिसरीन मिला लें। इस मिश्रण को रोजाना होठों पर लगाने से होठ सुन्दर बनते हैं और होंठों का कालापन भी दूर हो जाता है। 2. मुंह के छाले: गुलाब के फूलों का काढ़ा बनाकर उससे कई बार गरारा करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। गुलाब के 2 फूलों को पानी में उबालें और इस पानी से कुल्ला करें। इस प्रकार से उपचार कुछ दिनों तक करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। गुलाब के पत्तों को चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। मुंह में छाले हो तो गुलाबजल से कुल्ला करें अथवा गुलाब के 2 फूल को 1 गिलास पानी में उबालें और इस पानी को ठण्डा करके इससे कुल्ला करें इससे लाभ मिलेगा। पेट की गर्मी के कारण से मुंह में छाले हो जाए तो गुलाब के सूखे फूलों को रात के समय में 1 गिलास पानी में भिगने के लिए रख दें और सुबह इसे मसलकर छान लें, फिर इस पानी में 2 चम्मच चीनी मिलाकर पीयें। इस प्रकार से उपचार करने से पेट की गर्मी दूर होती है जिसके फलस्वरूप मुंह के छाले भी ठीक हो जाते हैं। गुलाब की 10 पंखुड़ी, 3 इलायची, 5 कालीमिर्च तथा 10 ग्राम मिश्री को एक साथ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर रखें और 4-4 घंटों के बाद इस पानी को पीएं इससे मुंह के छाले ठीक हो जाएंगे। 3. कान का दर्द: गुलाब के फूलों का निकाला हुआ ताजा रस कानों में डालने से कान का दर्द ठीक होता है। 4. होंठों का फटना: गुलाब के एक फूल को पीसकर उसमें थोड़ी सी मलाई मिलाकर इससे होठों पर लेप करें। आधे घंटे के बाद इसे धो लें। कुछ ही दिनों तक यह लगाने से होंठ फटेंगे नहीं और होंठों का रंग बिल्कुल गुलाब जैसा लाल हो जायेगा। 5. दाद: नींबू का रस तथा गुलाब का रस बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। इस रस को प्रतिदिन दाद पर लगाएं इससे लाभ मिलेगा। 50 ग्राम गुलाबजल में 1 नींबू का रस मिलाकर रोजाना 3 बार दाद पर लगाऐं इससे दाद ठीक हो जाता है। दाद और मुंहासों पर गुलाब का रस लगाएं तथा 1-1 चम्मच दिन 3 बार इसे पीएं इससे दाद ठीक हो जाता है। 6. आंखों के रोग: गुलाब का रस 2-2 बूंद सुबह-शाम आंखों में डालने से आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं। गुलाबजल आंखों में डालने से आंखों की जलन और किरकिरापन दूर हो जाता है। 50 ग्राम गुलाब जल में 1 ग्राम फिटकरी डालकर 1 से 2 बून्दे रोजाना 2 से 3 बार आंखों में डालने से आंखों के कई प्रकार के रोग जैसे- आंखें लाल होना, आंखों में कीचड़ जमना, आंखों में जलन होना आदि रोग ठीक हो जाते हैं। 7. अतिसार (दस्त): 10 ग्राम गुलाब के फूल और 5 ग्राम मिश्री को मिलाकर दिन में 3 बार खाएं इससे लाभ मिलेगा। अतिसार (दस्त) होने की स्थिति में गुलाब के फूलों के बीच लगने वाले छोटे-छोटे दाने जिसे जीरा कहते हैं उसे दिन में 3 बार 1 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। 8. श्वेतप्रदर: 2 चम्मच शुष्क गुलाब के फूलों का चूर्ण और 1 चम्मच मिश्री को एक साथ मिलाकर दूध के साथ रोजाना सुबह-शाम सेवन करें तथा गुलाब के ताजे पिसे हुए फूल को सोते समय योनि में रखें इससे श्वेत प्रदर में जल्दी लाभ मिलेगा। गुलाब के फूलों को छाया में अच्छी तरह से सुखाकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें फिर इसमें से लगभग 3 से 5 ग्राम की मात्रा में एक दिन में सुबह और शाम (दो बार) दूध के साथ सेवन करने से श्वेत प्रदर ठीक हो जाता है। श्वेत प्रदर रोग होने के साथ ही पेशाब में जलन हो तो ऐसी स्थिति में उपचार करने के लिए गुलाब के ताजा फूल और 50 ग्राम मिश्री दोनों को पीसकर, आधा गिलास पानी में मिलाकर रोजाना 10 दिनों तक सेवन करें इससे लाभ मिलेगा। श्वेत प्रदर रोग में गुलाब के 10 ग्राम पत्तों को पीसकर मिश्री में मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करें। 50 ग्राम गुलाब के फूलों की कोमल पंखुड़ियों में मिश्री मिलाकर खाने तथा इसके बाद दूध पीने से श्वेत प्रदर रोग में फायदा मिलता है। 9. प्रदर रोग: गुलाब के ताजे फल में 50 ग्राम मिश्री पीसकर इसे आधा गिलास पानी में मिला लें और फिर इसे पी लें। इस प्रकार से सुबह और शाम रोजाना 10 दिनों तक इस प्रकार से उपचार करने पर प्रदर रोग ठीक हो जाता है। 10. पेट के रोग: भोजन करने के बाद 2 चम्मच गुलकंद को रोजाना 2 बार खोन से पेट के सभी रोग ठीक हो जाते हैं। गुलाब 5 ग्राम की मात्रा में तथा मुलहठी 5 ग्राम की मात्रा में लेकर, इसे 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें फिर इसमें से 100 मिलीलीटर काढ़ा पीएं। सुबह-शाम इसका सेवन करें इससे कब्ज तथा पेट के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। सौंफ का रस, पुदीने के रस तथा गुलाब के रस को मिला लें और इसमें से 4-4 बूंदों को पानी में मिलाकर सेवन करें इससे पेट के कई रोग ठीक हो जाएंगे। 11. खुजली: चमेली का तेल, नींबू का रस और गुलाब का रस बराबर मात्रा में मिलाकर जहां पर खुजली हो वहां पर इसे लगाएं इससे खुजली दूर हो जाती है। 12. शीतपित्त: चंदन के तेल तथा गुलाब के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर शीतपित्त पर लगाएं इससे लाभ मिलेगा। गुलाब के रस में थोड़ा सा चंदन का तेल मिलाकर इससे शीतपित्त पर मालिश करें इससे शीतपित्त ठीक होती है। 25 ग्राम गुलाब के जल में 25 ग्राम सिरका मिलाकर शरीर पर लगायें इससे शीत पित्त में बहुत अधिक लाभ मिलता है। चौथाई कप गुलाबजल में एक बूंद चंदन का तेल मिलाकर इससे शरीर की मालिश करें इससे शीतपित्त ठीक हो जाती है। पित्ती उछलने पर गुलाबजल में चंदन का पाऊडर मिलाकर लेप करने से आराम मिलता है। 13. सिर दर्द: 10 ग्राम गुलाब की पंखुड़ियों को 2 इलायची के साथ चबाकर खाने से सिर दर्द ठीक होता है। गर्मी के कारण से सिर दर्द हो तथा जी मिचलाएं तो सफेद चंदन को गुलाबजल में पीसकर माथे लेप करें इससे लाभ मिलेगा। गुलाब का इत्र माथे पर लगाने से सिर दर्द में लाभ मिलता है। गुलाबजल की 2-3 बूंद दोनों नथुने (नाक के छेद) में डालने से सिर दर्द कम होता है। बुखार होने के साथ ही सिर दर्द हो तो 2 चम्मच गुलाबजल को इतने ही पानी मिलाकर हर 3 घंटे में 3 बार पीएं इससे सिर दर्द ठीक हो जाता है। 14. आधासीसी (माइग्रेन): आधासीसी (आधे सिर का दर्द) के दर्द की अवस्था में उपचार के लिए 2 दाने इलायची, 1 चम्मच मिश्री और 10 ग्राम गुलाब की पत्तियों को पीसकर सुबह खाली पेट सेवन करें इससे लाभ मिलेगा। आधासीसी के दर्द में 1 ग्राम नौसादर को 12 ग्राम गुलाबजल में मिला लें। इस जल को रोगी के नाक में 4-5 बूंद की मात्रा में डालकर, रोगी नाक से इस दवा को अन्दर की ओर खींचने के लिए कहें इससे फायदा मिलेगा। 15. हैजा: हैजे की अवस्था में आधा कप गुलाबजल में एक नींबू निचोड़कर थोड़ी सी इसमें मिश्री मिला लें और 3-3 घंटे इसे रोगी को पिलाएं इससे हैजा ठीक हो जाएगा। 16. सीने की जलन व जी मिचलाना: 1 कप गुलाबजल को चौथाई कप पानी में मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करें इससे सीने की जलन तथा जी मिचलाने की अवस्था में आराम मिलेगा। 17. अम्लपित्त: गुलाबजल में गुलाब का फूल, 1 इलायची और 1 चम्मच धनिये के चूर्ण को मिलाकर पीस लें। भोजन करने के बाद इसे सेवन करें इससे अम्लपित्त रोग में लाभ होता है। 18. धूप से झुलसना: 1 भाग ग्लिसरीन, आधा भाग नींबू का रस और आधा भाग सेब का रस तथा 2 भाग गुलाबजल इन सब को मिलाकर फ्रिज में रख दें। इस लेप को धूप से झुलसी हुई त्वचा पर लगाएं इससे लाभ मिलेगा। 19. घमौरियां, पसीना: गर्मी के मौसम में शरीर में अलाइयां तथा घमौरियां अधिक निकलती है तथा शरीर से पसीना भी बहुत अधिक निकलता है। इस प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए नहाते समय 1 बाल्टी पानी में 20 बूंद गुलाबजल डालकर स्नान करें। रात को 4 चम्मच गुलाब का गुलकंद खाकर ऊपर से गर्म दूध पी लें इससे भी लाभ मिलेगा। 20. त्वचा के रोग: पानी में गुलाबजल डालकर प्रतिदिन स्नान करें इससे त्वचा के सभी रोग ठीक हो जाते हैं तथा शारीरिक सौन्दर्य बढ़ता है और इसकी सुगंध से दिमाग को ताजगी मिलती है। 21. बदबूदार पसीना आना: बदबूदार पसीना आने पर गुलाब के फूलों को पीसकर शरीर में लेप करना चाहिए तथा थोड़ी देर बाद स्नान कर लेना चाहिए इससे लाभ मिलेगा। एक बाल्टी पानी में 10 ग्राम गुलाबजल व एक नींबू का रस निचोड़कर स्नान करें इससे शरीर की बदबू दूर होती है। गुलाब की लाल या सफेद पंखुड़ियों के चूर्ण को शरीर पर मलने से पसीना निकलना कम हो जाता है और शरीर की बदबू भी मिट जाती है। 22. स्तनों में दर्द: अगर स्तनों में सूजन हो तो गुलाबजल में रुई भिगोंकर स्तनों पर रखें तथा आधे घंटे तक इसी अवस्था में आराम करें इससे स्तनों का दर्द ठीक हो जाता है तथा सूजन भी दूर हो जाती है। 23. नींद: अच्छी गहरी नींद लेने के लिए पानी में गुलाबजल मिलाकर स्नान करें तथा सोते समय तकिये के किनारे पर 2 बूंद गुलाब का इत्र (प्रफ्यूम) छिड़क दें इससे नींद अच्छी आती है। 24. थकावट: थकान को दूर करने के लिए 4 चम्मच गुलाबजल में 1 बूंद चंदन का तेल मिलाकर इससे शरीर की मालिश करें लाभ मिलेगा। 25. हाथ-पैरों की जलन: गर्मी के कारण हाथ-पैरों में जलन, पेट में गड़बड़ी, एसीडिटी आदि समस्यां हो तो गुलाब का शर्बत बनाकर पीएं इससे लाभ मिलेगा। हथेली और तलुवों में जलन हो तो चंदन पावडर और गुलाबजल मिलाकर इससे हथेली और तलुवों पर लेप करें। 26. पायरिया: गुलाबी रंग का गुलाब फूल खाने से मसूढ़े मजबूत होते हैं। मसूढ़ों से खून और मवाद आना भी बंद हो जाता है तथा पायरिया भी ठीक हो जाता है। गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां चबाकर खाते रहने से मसूड़े और दांत मजबूत होते हैं। इसके सेवन करने से मुंह की बदबू दूर होकर पायरिया की बीमारी ठीक हो जाती है। 27. लू (गर्मी): 1 गिलास ठंडे पानी में 1 चम्मच गुलाबजल मिलाकर उसमें कपड़ा भिगों दें और इसे निचोड़कर सिर पर रखें इससे लू का प्रकोप शांत हो जाता है। गुलाब के गुलकंद का सेवन करने से पूरे शरीर में ठंडक आ जाती है और लू का प्रकोप भी इससे शांत हो जाता है। लू लगने पर गुलकंद और गुलाब का शर्बत पीना चाहिए इससे लाभ मिलेगा। गर्मी से बचने के लिए एक 1 गुलाब के शर्बत में 2 चम्मच गुलकंद मिलाकर सुबह भूखे पेट और शाम को सोते समय पीएं इससे लाभ मिलेगा। 28. चेहरे के कील-मुंहासें: गुलाब के गुलकंद का सेवन प्रतिदिन दो बार करने से कील-मुंहासें ठीक हो जाते हैं तथा इसके साथ ही सिर दर्द, यकृत रोग, कोलाइटिस, चिकन पोक्स व अन्य छूत के रोग, गर्भावस्था के समय में कब्ज की समस्यां तथा स्तनों में दूध की कमी आदि प्रकार के कष्ट भी दूर हो जाते हैं। 29. खूनी बवासीर: खूनी बवासीर में गुलाब के 3 ताजा फूलों को मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। 30. मासिकधर्म में अधिक खून बहना: अगर मासिकधर्म में खून ज्यादा मात्रा में आ रहा हो तो मासिकधर्म शुरू होने से 20 दिन पहले से ही सुबह-शाम 1-1 चम्मच गुलाब का गुलकंद खाने से लाभ मिलता है। 31. अधिक प्यास लगना:- अगर प्यास बहुत लगती हो तो दिन में 2 बार गुलाब का शर्बत पीना चाहिए। 32. हृदय की कमजोरी: हृदय की कमजोरी को दूर करने के लिए गुलाब का सेवन करना लाभकारी होता है। 33. यकृत के रोग: यकृत (जिगर) बढ़ा हुआ हो और इसमें सूजन तथा दर्द हो रहा हो तो गुलाब के 4 ताजे फूलों को पीसकर यकृत (जिगर) वाले स्थान पर लेप करें इससे लाभ मिलेगा। 34. यौवनशक्तिवर्द्धक: रोजाना 2 गुलाब के ताजे फूलों का सेवन करने से यौवन शक्ति में वृद्धि होती है। 35. स्मरणशक्ति: गुलाब का गुलकंद रोजाना 2-3 बार 3 चम्मच की मात्रा में खाने से स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। गुलाब का इत्र माथे पर लगाने से मन प्रसन्न होता है। गुलाब का तेल बालों में लगाने से दिमाग ठण्डा रहता है। 36. दर्द: गुलाब के उपयोग से किसी भी प्रकार का दर्द ठीक हो जाता है जैसे- हृदय में दर्द, सिर दर्द तथा आमाशय का दर्द आदि। 37. चेहरे की सुन्दरता: गुलाब की ताजा पंखुड़ियों को पानी में उबाल लें और जब भी चेहरा साफ करना हो तब इस पानी से चेहरे को धोएं इससे चेहरे की चमक में वृद्धि होती है तथा ताजगी महसूस होता है। गुलाब की कुछ पंखुड़ियों को पीस लें और चेहरे को साफ करके लेप लगाएं और बीस मिनट बाद चेहरे को धो लें इससे चेहरे पर रोनक आ जाएगी। 38. पुत्रोत्पत्ति: लड़की को अपना मासिकधर्म शुरू होने पर 3 दिन तक लगातार सुबह और शाम सफेद गुलाब के फूलों का गुलकंद बनाकर 125-ग्राम की मात्रा में खाना चाहिए और ऐसे ही लगातार 3 दिन में 750 ग्राम गुलकंद खाने से अधिक लाभ मिलता है। 39. नेत्रज्योति वर्द्धक (आंखों की रोशनी बढ़ने के लिए): गुलाबजल आंखों में डालने से आंखों की रोशनी में वृद्धि होती है तथा आंखों के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। आंखों पर गुलाबजल के छीटें मारने या रुई का फोया गुलाबजल में भिगोंकर आंखों पर रखने से आंखों का दर्द ठीक होता है। इसके उपयोग से आंखों की लाली और सूजन भी कम हो जाती है। काले सुरमे के साथ ताजा गुलाब के फूलों के रस को आंखों में डालने से आंखों की जलन कम हो जाती है और आंखों की रोशनी भी बढ़ जाती है। 40. कब्ज: गुलाब का रस पीने से कब्ज दूर होती है। यह आंतों में छिपे हुए मल को बाहर निकाल देता है। 2-2 चम्मच गुलकंद सुबह-शाम को सोते समय गुनगुने दूध या पानी के साथ सेवन करने से कब्ज पूरी तरह से नष्ट हो जाती है। इससे पेट व आंतों की गर्मी भी शांत होती है। गुलकंद तथा अमलतास के गूदे को 1-1 चम्मच की मात्रा में या गुलकंद को सनाय की पत्ती के साथ सेवन करने से कब्ज दूर होती है। गुलाब की पत्ती, सनाय तथा हर्रे को 3 : 2 : 1 के अनुपात में लेकर 50 मिलीलीटर पानी में उबालें। उबलने पर जब चौथाई हिस्सा पानी बाकी रह जाए तो रात के समय में हल्का गर्म करके पी जाएं इससे कब्ज शिकायत दूर हो जाती है। 2 बड़े चम्मच गुलकंद, 4 मुनक्का व आधा चम्मच सौंफ को साथ-साथ एक साथ लेकर उबालें, जब आधा पानी बच जाये तो रात में सोते समय पी लें इससे पुरानी कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। सनाय 10 ग्राम, सौंफ 10 ग्राम, गुलाब के फूल 10 ग्राम और मुनक्का 20 ग्राम को 250 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें, जब पानी 50 ग्राम की मात्रा में बच जाएं तब इस काढ़े को छानकर पी लें इससे कब्ज़ (कोष्ठबद्धता) पुरी तरह से समाप्त हो जाएगी। गुलाब की पत्तियां 10 ग्राम, सनाय का 1 चम्मच पीसा हुआ चूर्ण, 2 छोटी हरड़ को लेकर दो कप पानी में डालकर उबाल लें। पानी जब एक कप बच जायें, तब इस बनें काढ़े का सेवन करें इससे लाभ मिलेगा। गुलाब 10 ग्राम, मजीठ 10 ग्राम, निसोत की छाल 10 ग्राम, हरड़ 10 ग्राम और सोनामाखी 10 ग्राम आदि को 80 ग्राम चीनी में मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से साढ़े तीन ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करें इससे लाभ मिलता है। 41. सांप का जहर: गुलाबजल में चंदन को घिसकर कपूर मिलाकर लेप बना लें और इस लेप को सांप के डंक लगे स्थान पर लगाएं इससे लाभ मिलेगा। 42. आंखों के चारों ओर कालापन छा जाना: 1 चम्मच देशी गुलाब के फूलों का गुलकंद शाम के समय लें इससे आंखों के चारों ओर का कालापन दूर हो जाता है। 43. योनि रोग: गुलाब का रस लगभग 10 मिलीलीटर और रोगन गुल 10 ग्राम को मिलाकर खाने से योनि की खुजली मिट जाती है। 44. नंपुसकता: 3 बोतल गुलाबजल में 10 ग्राम सोने का बुरादा डालकर मिला लें जब सब गुलाबजल में अच्छी तरह से मिल जाए तब इसके बाद बुरादे को निकाल कर रख लें। इसमें से 0.12 ग्राम या 0.24 ग्राम मलाई को मिलाकर खाने से सहवास करने की शक्ति में वृद्धि होती है। 45. मुंह की दुर्गंध: गुलाब की ताजी पंखड़ियां चबाने से एवं मसूढ़ों पर मलने से मसूढ़ें तथा अन्य करणों से आने वाली मुंह की दुर्गन्ध नष्ट हो जाती है। 46. घाव: घाव पर गुलाब के पंखुड़ियों का चूर्ण डालने और सूजन पर गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर लेप लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है। 47. अरूंषिका (वराही): ताजे गुलाब के फूलों को पीसकर सिर में लेप करने से अरूंषिका रोग ठीक हो जाता है। 48. नकसीर: गुलाब जल में किशमिश के 20 दानों को मिलाकर सेवन करने से नकसीर (नाक से खून बहना) के रोग में आराम मिलता है। 49. मुर्च्छा (बेहोशी): गुलाबजल को रोगी को पिलाने और पंखे से हवा करने से बेहोशी दूर हो जाती है। गुलाब जल के छींटे आंखों पर मारने से गर्मी के कारण होने वाली बेहोशी दूर हो जाती है। 50. हृदय की धड़कन: सफेद गुलाब की पंखड़ियों का रस 10 से 20 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से हृदय की धड़कन में लाभ मिलता है। एक गुलाब के फूल को बासी मुंह चबाकर खा जाएं इससे हृदय की अनियमित धड़कन ठीक हो जाती है। 50 ग्राम गुलाब के सूखे फल, 100 ग्राम मिश्री को एकसाथ मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण के 2-2 चम्मच सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से दिल का धड़कना सही हो जाता है। यदि दिल बहुत धड़कता हो तो गुलाब के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। इस चूर्ण में से 1-1 चम्मच गाय के दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने इससे लाभ मिलेगा। 51. नहरूआ: 3 ग्राम भुने चने और 3 ग्राम हींग को गुलाब के साथ पीसकर चूर्ण बनाकर लें। यह चूर्ण सुबह-शाम 7 दिन तक सेवन करने से नहरूआ रोग ठीक हो जाता है। 10 ग्राम शुद्ध सुहागा को गुलाब के तेल में मिलाकर तीन दिन तक खाने से नहरूआ रोग नष्ट हो जाता है तथा सूजन मिट जाती है। 52. मिर्गी (अपस्मार): गुलाबजल में लगभग 0.48 ग्राम गोरोचन दिन में 3 बार मिलाकर रोगी को पिलाने से मिर्गी के कारण आने वाले दौरे दूर हो जाते हैं। 53. बच्चों की आंखों के लिए हितकर: अगर आंखों में जलन हो तो गुलाब-जल के छींटे आंखों में मारे अथवा केसर को घोटकर शहद में मिलाकर आंख में लगाएं इससे लाभ मिलेगा। 54. शरीर में सूजन: शरीर में सूजन आने पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों को पीसकर पानी में डालकर पतला करके सारे शरीर पर लेप करें या इससे मालिश करें तथा इसके एक घंटे बाद रोगी को स्नान कराएं इससे फायदा मिलेगा। 55. गुलकंद बनाने की विधि: गुलाब के फूल की पंखुड़ियों में बराबर की मात्रा में चीनी मिलाकर 2 सप्ताह धूप में रखने से गुलकंद बनता है। यदि गुलाब के फूल की ताजी पंखुड़ियां न मिले तो सूखी पंखुड़ियों को साफ करके थोड़ी देर पानी में भिगोकर इसे बना सकते हैं। 56. शरीर की रक्षा करने के लिए: गुलाब के फूल और पत्तियों में विटामिन सी, ई, कैरोटीन, फ्रूट, एसिड वसायुक्त तेल तथा निकोटिनेमाइड पाया जाता है जो हमारे शरीर के लिए लाभकारी होता है। गुलाब शरीर की रोगप्रतिरोधक (रोगों से लड़ने की ताकत) शक्ति को बढ़ाता है जिसके फलस्वरूप कई प्रकार के रोग नहीं होते हैं। 57. गुलाब का अन्य उपयोग: गुलाब का फूल सौन्दर्य, स्नेह और प्रेम का प्रतीक है। गुलाब के फूलों से ठंडक मिलती है। शरीर के रंग-रूप में निखार आ जाता है। यह हृदय के लिए लाभकारी और त्रिदोषनाशक होता है। गुलाब का इत्र उत्तेजक होता है। गुलाबजल को गुलाब के रस के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। गुलाबजल मिठाइयों पर छिड़का जाता है या पानी में खुशबू के लिए डाला जाता है। गुलाबी गुलाब सौन्दर्य, चाहत, खुशी, आवेग, सादगी तथा प्रेम का प्रतीक माना जाता है। लाल और सफेद गुलाब जब एक साथ रखा जाता है तो यह मिलन का प्रतिक होता है। मासिकधर्म के रोग, रजोनिवृत्ति (मेनोपाज) तथा मासिकस्राव आने से पूर्व की समस्याओं (पीएमएस) के समय होने वाले कष्टप्रद लक्षणों को दूर करने के लिए गुलाब का तेल का उपयोग किया जाता है। 25 ग्राम गुलकंद में 5 ग्राम पिसी हुई सौंफ मिलाकर खाने से शरीर की जलन शांत हो जाती है। नकसीर, मासिकधर्म में अधिक रक्तस्राव होना, पेट और आंखों में जलन आदि रोग को ठीक करने के लिए गुलाब का उपयोग किया जा सकता है। गुलाब आंतों के रुखेपन और कब्ज को दूर करने में उपयोगी है। गर्मी में दिनों में जिन लोगों की त्वचा पर घमौरियां या फुंसियां होती हैं उनके इन कष्टों को दूर करने के लिए गुलाब का उपयोग करना लाभकारी हो सकता है। सफेद गुलाब को रोशनी का फूल, कोमलता, पवित्रता, सौम्यता, आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। सफेद गुलाब की कली लड़कपन का प्रतीक होता है। गुलाब के फूलों का गुलदस्ता तोहफे के रूप में भेंट किया जाता है। आज कल प्रेमियों के बीच गुलाब के फूलों का लेन-देन करने का प्रचलन अधिक है क्योंकि यह प्रेम का प्रतिक होता है।

Saffron health benefits

  परिचय : केसर की खेती भारत के कश्मीर की घाटी में अधिक की जाती है। यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती ह...