शुक्रवार, 11 जून 2021

Walnut health benefits


 परिचय : अखरोट के पेड़ बहुत सुन्दर और सुगन्धित होते हैं, इसकी दो जातियां पाई जाती हैं। जंगली अखरोट 100 से 200 फीट तक ऊंचे, अपने आप उगते हैं। इसके फल का छिलका मोटा होता है। कृषिजन्य 40 से 90 फुट तक ऊंचा होता है और इसके फलों का छिलका पतला होता है। इसे कागजी अखरोट कहते हैं। इससे बन्दूकों के कुन्दे बनाये जाते हैं। विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत शैलभव, अक्षोर, कर्पपाल अक्षोट, अक्षोड। हिंदी अखरोट। बंगाली आक्रोट आखरोट, आकोट। मलयालम अक्रोड। मराठी अखरोड, अक्राड़। तेलगू अक्षोलमु। गुजराती आखोड। फारसी चर्तिगज, गौज, चारमग्न, गिर्दगां। अरबी जौज। अंग्रेजी वलनट लैटिन जगलंस रेगिया रंग : अखरोट का रंग भूरा होता है। स्वाद : इसका स्वाद फीका, मधुर, चिकना (स्निग्ध) और स्वादिष्ट होता है। स्वरूप : पर्वतीय देशों में होने वाले पीलू को ही अखरोट कहते हैं। इसका नाम कर्पपाल भी है। इसके पेड़ अफगानिस्तान में बहुत होते हैं तथा फूल सफेद रंग के छोटे-छोटे और गुच्छेदार होते हैं। पत्ते गोल लम्बे और कुछ मोटे होते हैं तथा फल गोल-गोल मैनफल के समान परन्तु अत्यंत कड़े छिलके वाले होते हैं। इसकी मींगी मीठी बादाम के समान पुष्टकारक और मजेदार होती है। स्वभाव : अखरोट गरम व खुष्क प्रकृति का होता है। हानिकारक : अखरोट पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होता है। दोषों को दूर करने वाला : अनार का पानी अखरोट के दोषों को दूर करता है। तुलना : अखरोट की तुलना चिलगोजा और चिरौंजी से की जा सकती है। मात्रा : अखरोट का सेवन 10 ग्राम से 20 ग्राम तक की मात्रा में कर सकते हैं। गुण : अखरोट बहुत ही बलवर्धक है, हृदय को कोमल करता है, हृदय और मस्तिष्क को पुष्ट करके उत्साही बनाता है इसकी भुनी हुई गिरी सर्दी से उत्पन्न खांसी में लाभदायक है। यह वात, पित्त, टी.बी., हृदय रोग, रुधिर दोष वात, रक्त और जलन को नाश करता है। विभिन्न रोगों में उपयोगी : 1. टी.बी. (यक्ष्मा) के रोग में : 3 अखरोट और 5 कली लहसुन पीसकर 1 चम्मच गाय के घी में भूनकर सेवन कराने से यक्ष्मा में लाभ होता है। 2. पथरी : साबुत (छिलके और गिरी सहित) अखरोट को कूट-छानकर 1 चम्मच सुबह-शाम ठंडे पानी में कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन कराने से पथरी मूत्र-मार्ग से निकल जाती है। अखरोट को छिलके समेत पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 1-1 चम्मच चूर्ण ठंडे पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम खायें। इससे रोग में पेड़ू का दर्द और पथरी ठीक होती है। 3. शैय्यामूत्र (बिस्तर में पेशाब करने की शिकायत) : प्राय: कुछ बच्चों को बिस्तर में पेशाब करने की शिकायत हो जाती है। ऐसे बाल रोगियों को 2 अखरोट और 20 किशमिश प्रतिदिन 2 सप्ताह तक सेवन करने से यह शिकायत दूर हो जाती है। 4. सफेद दाग : अखरोट के निरन्तर सेवन से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं। 5. फुन्सियां : यदि फुन्सियां अधिक निकलती हो तो 1 साल तक रोजाना प्रतिदिन सुबह के समय 5 अखरोट सेवन करते रहने से लाभ हो जाता है। 6. जी-मिचलाना : अखरोट खाने से जी मिचलाने का कष्ट दूर हो जाता है। 7. मरोड़ : 1 अखरोट को पानी के साथ पीसकर नाभि पर लेप करने से मरोड़ खत्म हो जाती है। 8. बच्चों के कृमि (पेट के कीड़े) : कुछ दिनों तक शाम को 2 अखरोट खिलाकर ऊपर से दूध पिलाने से बच्चों के पेट के कीडे़ मल के साथ बाहर निकल जाते हैं। अखरोट की छाल का काढ़ा 60 से 80 मिलीलीटर पिलाने से आंतों के कीड़े मर जाते हैं। 9. मस्तिष्क शक्ति हेतु : अखरोट की गिरी को 25 से 50 ग्राम तक की मात्रा में प्रतिदिन खाने से मस्तिष्क शीघ्र ही सबल हो जाता है। अखरोट खाने से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। 10. बूढ़ों की निर्बलता : 8 अखरोट की गिरी और चार बादाम की गिरी और 10 मुनक्का को रोजाना सुबह के समय खाकर ऊपर से दूध पीने से वृद्धावस्था की निर्बलता दूर हो जाती है। 12. अपस्मार : अखरोट की गिरी को निर्गुण्डी के रस में पीसकर अंजन और नस्य देने से लाभ होता है। 13. नेत्र ज्योति (आंखों की रोशनी) : 2 अखरोट और 3 हरड़ की गुठली को जलाकर उनकी भस्म के साथ 4 कालीमिर्च को पीसकर अंजन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। 14. कंठमाला : अखरोट के पत्तों का काढ़ा 40 से 60 मिलीलीटर पीने से व उसी काढ़े से गांठों को धोने से कंठमाला मिटती है। 15. दांतों के लिए : अखरोट की छाल को मुंह में रखकर चबाने से दांत स्वच्छ होते हैं। अखरोट के छिलकों की भस्म से मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं। 16. स्तन में दूध की वृद्धि के लिए : गेहूं की सूजी एक ग्राम, अखरोट के पत्ते 10 ग्राम को एक साथ पीसकर दोनों को मिलाकर गाय के घी में पूरी बनाकर सात दिन तक खाने से स्त्रियों के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। 17. खांसी (कास) : अखरोट गिरी को भूनकर चबाने से लाभ होता है। छिलके सहित अखरोट को आग में डालकर राख बना लें। इस राख की एक ग्राम मात्रा को पांच ग्राम शहद के साथ चटाने से लाभ होता है। 18. हैजा : हैजे में जब शरीर में बाइटें चलने लगती हैं या सर्दी में शरीर ऐंठता हो तो अखरोट के तेल से मालिश करनी चाहिए। 19. विरेचन (पेट साफ करना) : अखरोट के तेल को 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में 250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह देने से मल मुलायम होकर बाहर निकल जाता है। 20. अर्श (बवासीर) होने पर : वादी बवासीर में अखरोट के तेल की पिचकारी को गुदा में लगाने से सूजन कम होकर पीड़ा मिट जाती है। अखरोट के छिलके की राख 2 से 3 ग्राम को किसी दस्तावर औषधि के साथ सुबह, दोपहर तथा शाम को खिलाने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है। 21. आर्त्तव जनन (मासिक-धर्म को लाना) : मासिक-धर्म की रुकावट में अखरोट के छिलके का काढ़ा 40 से 60 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पिलाने से लाभ होता है। इसके फल के 10 से 20 ग्राम छिलकों को एक किलो पानी में पकायें, जब यह पानी आठवां हिस्सा शेष बचे तो इसे सुबह-शाम पिलाने से दस्त साफ हो जाता है। 22. प्रमेह (वीर्य विकार) : अखरोट की गिरी 50 ग्राम, छुहारे 40 ग्राम और बिनौले की मींगी 10 ग्राम एक साथ कूटकर थोड़े से घी में भूनकर बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर रखें, इसमें से 25 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है। ध्यान रहे कि इसके सेवन के समय दूध न पीयें। 23. वात रोग : अखरोट की 10 से 20 ग्राम की ताजी गिरी को पीसकर दर्द वाले स्थान पर लेप करें, ईंट को गर्मकर उस पर जल छिड़ककर कपड़ा लपेटकर उस स्थान पर सेंक देने से शीघ्र पीड़ा मिट जाती है। गठिया पर इसकी गिरी को नियमपूर्वक सेवन करने से रक्त शुद्धि होकर लाभ होता है। 24. शोथ (सूजन) : अखरोट का 10 से 40 मिलीलीटर तेल 250 मिलीलीटर गौमूत्र (गाय के पेशाब) में मिलाकर पिलाने से सभी प्रकार की सूजन में लाभ होता है। वात-जन्य सूजन में इसकी 10 से 20 ग्राम अखरोट की गिरी को कांजी में पीसकर लेप करने से लाभ होता है। 25. बूढ़ों के शरीर की कमजोरी : 10 ग्राम अखरोट की गिरी को 10 ग्राम मुनक्का के साथ रोजाना सुबह खिलाना चाहिए। 26. दाद : सुबह-सुबह बिना मंजन कुल्ला किए बिना 5 से 10 ग्राम अखरोट की गिरी को मुंह में चबाकर लेप करने से कुछ ही दिनों में दाद मिट जाती है। 27. नासूर : अखरोट की 10 ग्राम गिरी को महीन पीसकर मोम या मीठे तेल के साथ गलाकर लेप करें। 28. घाव (जख्म) : इसकी छाल के काढे़ से घावों को धोने से लाभ होता है। 29. नारू (गंदा पानी पीने से होने वाला रोग) : अखरोट की खाल को जल के साथ महीन पीसकर आग पर गर्म कर नहरुआ की सूजन पर लेप करने से तथा उस पर पट्टी बांधकर खूब सेंक देने से नारू 10-15 दिन में गलकर बह जाता है। अखरोट की छाल को पानी में पीसकर गर्मकर नारू के घाव पर लगावें। 30. अफीम के जहर पर : अखरोट की गिरी 20 से 30 ग्राम तक खाने से अफीम का विष और भिलावे के विकार शांत हो जाते हैं। 31. कब्ज : अखरोट के छिलकों को उबालकर पीने से दस्त में राहत मिलती है। 32. दस्त के लिए : अखरोट को पीसकर पानी के साथ मिलाकर नाभि पर लेप करने से पेट में मरोड़ और दस्त का होना बंद हो जाता है। अखरोट के छिलकों को पानी के साथ पीसकर पेट की नाभि पर लगाने से पेट में होने वाली मरोड़ के साथ आने वाले दस्त तुरंत बंद हो जाते हैं। 33. खूनी बवासीर (अर्श) : अखरोट के छिलके का भस्म (राख) बनाकर उसमें 36 ग्राम गुरुच मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) नष्ट होता है। 34. कमजोरी : अखरोट की मींगी पौष्टिक होती है। इसके सेवन से कमजोरी मिट जाती है। 35. लकवा (पक्षाघात-फालिस-फेसियल, परालिसिस) : रोजाना सुबह अखरोट का तेल नाक के छिद्रों में डालने से लकवा ठीक हो जाता है। 36. नष्टार्तव (बंद मासिक धर्म) : अखरोट का छिलका, मूली के बीज, गाजर के बीज, वायविडंग, अमलतास, केलवार का गूदा सभी को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर लगभग 2 लीटर पानी में पकायें फिर इसमें 250 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिला दें, जब यह 500 मिलीलीटर की मात्रा में रह जाए तो इसे उतारकर छान लेते हैं। इसे सुबह-शाम लगभग 50 ग्राम की मात्रा में मासिक स्राव होने के 1 हफ्ते पहले पिलाने से बंद हुआ मासिक-धर्म खुल जाता है। 37. दर्द व सूजन में : किसी भी कारण या चोट के कारण हुए सूजन पर अखरोट के पेड़ की छाल पीसकर लेप करने से सूजन कम होती है। 38. पेट में कीड़े होने पर : अखरोट को गर्म दूध के साथ सेवन करने से बच्चों के पेट में मौजूद कीड़े मर जाते हैं तथा पेट के दर्द में आराम देता है। 39. जोड़ों के (गठिया) रोग में - सुबह खाली पेट 5 ग्राम अखरोट की गिरी और 5 ग्राम पिसी हुई सोंठ को 1 चम्मच एरंड के तेल में पीसकर गुनगुने पानी से लें। इससे रोगी के घुटनों का दर्द दूर हो जाता है। दर्द को दूर करने के लिए अखरोट का तेल जोड़ों पर लगाने से रोगी को लाभ मिलता है। 40. हृदय की दुर्बलता होने पर : अखरोट खाने से दिल स्वस्थ बना रहता है। रोज एक अखरोट खाने से हृदय के विकार 50 प्रतिशत तक कम हो जाते हैं। इससे हृदय की धमनियों को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक कॉलेस्ट्राल की मात्रा नियंत्रित रहती है। अखरोट के असर से शरीर में वसा को पचाने वाला तंत्र कुछ इस कदर काम करता है। कि हानिकारक कॉलेस्ट्राल की मात्रा कम हो जाती है। हालांकि रक्त में वासा की कुल मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। अखरोट में कैलोरी की अधिकता होने के बावजूद इसके सेवन से वजन नहीं बढ़ता और ऊर्जा स्तर बढ़ता है। 41. हाथ-पैरों की ऐंठन - हाथ-पैरों पर अखरोट के तेल की मालिश करने से हाथ-पैरों की ऐंठन दूर हो जाती है। 42. गुल्यवायु हिस्टीरिया : अखरोट और किशमिश को खाने और ऊपर से गर्म गाय का दूध पीने से लाभ मिलता है। 43. विसर्प-फुंसियों का दल बनना : अगर फुंसिया बहुत ज्यादा निकलती हो तो पूरे साल रोजाना सुबह 4 अखरोट खाने से बहुत लाभ होता है। 44. वात रक्त दोष (खूनी की बीमारी) होने पर : वातरक्त (त्वचा का फटना) के रोगी को अखरोट की मींगी (बीज) खिलाने से आराम आता है। 45. होठों का फटना : अखरोट की मिंगी (बीज) को लगातार खाने से होठ या त्वचा के फटने की शिकायत दूर हो जाती है। 46. सफेद दाग होने पर : रोजाना अखरोट खाने से श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) का रोग नहीं होता है और स्मरण शक्ति (याददाश्त) भी तेज हो जाती है। 47. याददाश्त कमजोर होना : ऐसा कहा जाता है कि हमारे शरीर का कोई अंग जिस आकार का होता है, उसी आकार का फल खाने से उस अंग को मजबूती मिलती है। अखरोट की बनावट हमारे दिमाग की तरह होती है इसलिए अखरोट खाने से दिमाग की शक्ति बढ़ती है। याददाश्त मजबूत होती है। 48. कंठमाला के रोग में : अखरोट के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से और कंठमाला की गांठों को उसी काढ़े से धोने से आराम मिलता है। 49. नाड़ी की जलन : अखरोट की छाल को पीसकर लेप करने से नाड़ी की सूजन, जलन व दर्द मिटता है। 50. शरीर में सूजन : अखरोट के पेड़ की छाल को पीसकर सूजन वाले भाग पर लेप की तरह से लगाने से शरीर के उस भाग की सूजन दूर हो जाती है।

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