परिचय: कमल के फूल कीचड़ भरे पानी में खिलते हैं और यह बहुत ही सुन्दर होते हैं। कमल खुशबूदार, आकर्षित एवं लाल, गुलाबी, सफेद व नीले रंग के होते हैं। कमल के पत्ते ऊपर से हरे और नीचे से हल्के सफेद होते हैं। इसके पत्ते चिकने होते हैं जिससे इस पर पानी की बूंद नहीं ठहरती है। इसके पत्ते के नीचे की डण्डी को कमल की नाल कहते हैं और इसके जड़ को विस कहते हैं। कमल से 5-6 छिद्रों वाली नाल निकलती है जिस पर फूल व पत्ते लगते हैं। कमल के एक फूल में 15 से 20 बीज होते हैं जिसे कमलगट्टे कहते हैं। कच्चा बीज कोमल व सफेद होता है और पककर सूखने पर काले रंग के हो जाते हैं। कमल के फूल मार्च-अप्रैल के महीने में खिलते हैं। आयुर्वेद के अनुसार : कमल शीतल और स्वाद में मीठा होता है। यह कफ, पित्त, खून की बीमारी, प्यास, जलन, फोड़ा व जहर को खत्म करता है। हृदय के रोगों को दूर करने और त्वचा का रंग निखारने के लिए यह एक अच्छी औषधि है। जी मिचलना, दस्त, पेचिश, मूत्र रोग, त्वचा रोग, बुखार, कमजोरी, बवासीर, वमन, रक्तस्राव आदि में इसका प्रयोग लाभकारी होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार : कमल का रासायनिक विश्लेषण करने से पता चला है कि इसके पत्ते में न्यूसिफेरिन व रोमेरिन रस होता है। कमल के सूखे बीज में विभिन्न तत्त्व पाए जाते हैं- तत्त्व मात्रा कार्बोहाइड्रेट 66.6 प्रतिशत प्रोटीन 17.2 प्रतिशत वसा 2.4 प्रतिशत लोहा थोड़ी मात्रा में कैल्शियम थोड़ी मात्रा में शर्करा थोड़ी मात्रा में एस्कार्बिक एसिड थोड़ी मात्रा में विटामिन- ´बी´ थोड़ी मात्रा में विटामिन- ´सी´ थोड़ी मात्रा में विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत अम्बुज, पद्म, पुंडरीक। हिन्दी . कमल, सफेद कमल, लाल कमल, नीला कमल। अंग्रेजी . लोटस। लैटिन . निलुम्बों न्यूसिफेरा। मराठी . कमल, तांबले, पांढरे कमल। गुजराती धोला कमल। बंगाली . पद्म। विभिन्न रोगों में सहायक: 1. सिर व आंखों की ठंडक के लिए: कमल की जड़ को 2 गुना नारियल के तेल में उबालकर छान लें और इसे सिर पर लगाएं। इससे सिर और आंखो को ठंडक मिलती है। 2. हृदय व मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाना: कमल की जड़ का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में एक चम्मच मिश्री के साथ नियमित रूप से सेवन करें। इससे हृदय और मस्तिष्क को शक्ति मिलती है। 3. पित्तातिसार: पित्त की अधिकता के कारण दस्त रोग होने पर कमलगट्टा के गिरी का हलवा खाने से बहुत लाभ मिलता है। 4. चेहरे की सुन्दरता: कमल के फूल की पंखुडियां और पत्ते बराबर मात्रा पीसकर लेप बना लें। इस तैयार लेप को रात को सोने से पहले चेहरे पर लगाने से चेहरा सुन्दर व कोमल बनता है। 5. खूनी बवासीर: खूनी बवासीर रोग से पीड़ित रोगी को 5 ग्राम केसर और 5 ग्राम मक्खन को मिलाकर दिन में 2 बार खाना चाहिए। इससे खूनी बवासीर ठीक होता है। मक्खन, मिश्री और केसर को एक साथि मिलाकर नियमित सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है। 6. गीली खांसी: कमल के बीजों के 1 से 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से गीली खांसी ठीक होती है। 7. बुखार: कमल के फूल की एक से दो पंखुड़ियां, सफेद चन्दन का चूर्ण, लाल चन्दन का चूर्ण, मुलेठी एवं मुस्तक आदि को मिलाकर सुबह-शाम बुखार से पीड़ित रोगी को सेवन कराएं। इसके सेवन करने से बुखार कम होता है और शरीर की कमजोरी दूर होती है। 8. कांच निकलना (गुदाभ्रंश): कमल के पत्ते 5 ग्राम और चीनी 5 ग्राम को मिलाकर महीन पीसकर 10 ग्राम पानी के साथ पीएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है। कमल के पत्तों का एक चम्मच चूर्ण और एक चम्मच मिश्री को मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से गुदाभ्रंश रोग में लाभ मिलता है। 9. सिर की रूसी: कमल, त्रिफला, सातल, भांगर, लोहचूर्ण और गोबर आदि को एक साथ तेल में पका लें और इसे प्रतिदिन बालों में लगाएं। इससे रूसी नश्ट हो जाती है। 10. वमन (उल्टी): कमल के बीजों का रस निकालकर रोगी को पिलाने से उल्टी बंद होती है। कमल के बीजों को भून लें और इसके अन्दर मौजूद हरे रंग के अंकुरों को निकालकर पीस लें और इसे शहद के साथ रोगी को चटाएं। इससे वमन ठीक होता है। 11. हिचकी: कमल के बीजों को पानी में उबालकर पीने से हिचकी दूर होती है। 12. गर्भपात को रोकना: गर्भावस्था में रक्तस्राव होने पर कमल के फूल की एक से दो पंखुड़ियों को पीसकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से रक्तस्राव बंद होता है और गर्भपात नहीं होता है। जिन महिलाओं को बार-बार गर्भपात हो उसे कमल के बीजों का सेवन करना चाहिए। इसका सेवन गर्भधारण के पहले महीने में करने से गर्भपात नहीं होता। कमल की डंडी और नागकेसर को बराबर मात्रा में पीसकर गर्भधारण के पहले महीन में सेवन करने से गर्भस्राव रुकता है। 13. कान के बाहर की फुंसियां: कमल की जड़ों में लगने वाले फल को पीसकर फुंसियों पर लगाने से फुंसियां ठीक होती है। 14. मासिकधर्म का रुक जाना: कमल की जड़ को पीसकर खाने से मासिकधर्म सम्बंधी गड़बड़ी दूर होती है और मासिकधर्म नियमित होता है। 15. प्रदर रोग: कमल के बीजों का रस निकालकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है। 16. दूसरे महीने के गर्भ विकार: यदि गर्भधारण के दूसरे महीने में गर्भ में किसी प्रकार की गड़बड़ी हो या होने की आशंका दिखाई दे तो कमल, सिंघाड़ा व कसेरू को चावल के पानी के साथ पीसकर तथा चावल के पानी में ही घोलकर पीएं। इससे गर्भ विकार व गर्भाशय का दर्द ठीक होता है। पषाण भेद, काले तिल, मंजीठ और शतावरी को समान मात्रा में लेकर दूध के साथ काढ़ा बनाकर सेवन करने से गर्भशय से खून का निकलना, दर्द व अन्य विकार दूर होते हैं। 17. स्तनों का कठोर होना: कमल के बीजों को पीसकर 2 चम्मच की मात्रा में मिश्री मिलाकर 4-6 सप्ताह तक सेवन करने से स्तनों का कठोर होना ठीक होता है। 18. स्तनों में दूध कम होना: कमल की जड़ की सब्जी बनाकर खाने से स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ाती है। कमल के बीजों को रात के समय पानी में भिगो दें। दूसरे दिन सुबह बीजों के ऊपर से छिलके उतार लें और अन्दर के हरी पत्तियों को निकाल कर फेंक दें। इसके बाद बीजों को सुखाकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को लगभग 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दूध या दही के साथ लगातार कुछ दिनों तक सेवन करने से स्तनों में दूध खूब आता है। 19. स्तनों का सुडौल होना: कमल के बीजों के अन्दर की मींगी को पीसकर चूर्ण बना लें और दही के साथ दिन में एक बार सेवन करने से स्तनों का आकार सुडौल होता है। 20. योनि संकोचन: कमल की जड़ को पानी में पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर सोते समय 1-1 गोली प्रतिदिन खाने से योनि सिकुड जाती हैं। 21. योनि की जलन व खुजली: कमल की जड़ को पानी के साथ अच्छी तरह से पीसकर पेस्ट बनाकर दाद और योनि की खुजली वाले भाग पर लगाने से खुजली व जलन शांत होती है। 22. मूत्र रोग: सफेद कमल की गांठ का चूर्ण एक चम्मच, जीरे का चूर्ण आधा चम्मच तथा घी 10 ग्राम को मिलाकर सुबह-शाम खाने से लाभ होता है।
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