Hara dhaniya
परिचय : धनिया के हरे पत्तों और उनके बीजों को सुखाकर 2 रूपों में इस्तेमाल किया जाता है। हरे धनिये में जीरा, पोदीना, नींबू का रस आदि मिलाकर स्वादिष्ट बनाकर सेवन करने से अरुचि बंद हो जाती है। इससे भूख खुलकर लगती है और पाचन क्रिया (भोजन पचाने की क्रिया) तेज हो जाती है। हरे धनिये की पत्तियों को सब्जी में डालकर सेवन करने से रक्त विकार नष्ट होते हैं। आंखों के लिए हरा धनिया बहुत ही गुणकारी होता है। हरे धनिये को दही और रायते में डालकर सेवन करने से भीनी-भीनी सुगंध महसूस होती है और दही, रायते व सब्जी का स्वाद अधिक बढ़ जाता है। हरे धनिए के सेवन से पित्त की गर्मी बंद हो जाती है। सब्जियों को पकाने के बाद हरे धनिये को बारीक काटकर सब्जी में मिलाकर सेवन करने से उसके विटामिन पर्याप्त रूप में मिलते हैं। सब्जी में पकाने से हरे धनिये के विटामिन कम हो जाते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञों के अनुसार धनिया कषैला, चिकना, हल्का, कड़वा, तीक्ष्ण और गर्म होता है तथा यह वीर्य और पाचन शक्ति को विकसित करता है। धनिये के सेवन से पेशाब खुलकर आता है। धनिया, वात, पित्त और कफ विकारों में लाभ पहुंचाता है। दमा, खांसी में धनिया बहुत ही गुणकारी होता है। यह शरीर की कमजोरी को नष्ट करने के साथ ही आंतों के कीड़ों को भी दूर करता है। विभिन्न भाषाओं में नाम : हिन्दी धनिया अंग्रेजी कोरियेन्डर संस्कृत धान्यक, कुस्मुम्बरू गुजराती कोथमीर धाणा मराठी धणों, कोथिब्या बंगाली धने पंजाबी धनिया तेलगू धनियालु तमिल कोतामिल्ल फारसी कश्नीज अरबी कुज्वर रंग : धनिये के पत्ते का रंग हरा और दाना भूरा होता है। स्वाद : इसका स्वाद फीका होता है और इसके अंदर सुगन्ध होती है। स्वरूप : धनिया खेतों में बोया जाता है। इसके दाने गुच्छों में लगे होते हैं। स्वभाव : यह ठण्डे स्वभाव का होता है। हानिकारक : यह याददाश्त को कमजोर करता है। दोषों को दूर करने वाला : धनिये के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए शहद का उपयोग किया जाता है। तुलना : धनिये की तुलना पोस्तादाना और काहू के बीजों से की जाती है। मात्रा : 9 से 10 ग्राम। गुण : यह मन को खुश करता है, दिमाग की गर्मी को कम करता है, पागलपन के लिए लाभदायक है, धातु वीर्य दोषों को खत्म करती है, नींद ज्यादा आती है, इसके काढ़े से कुल्ला करने से मुंह में दाने नहीं होते हैं। हरे धनिये में पाये जाने वाले विभिन्न तत्व: तत्व मात्रा तत्व मात्रा प्रोटीन 3.3 प्रतिशत विटामिन-सी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम वसा 0.6 प्रतिशत लौह लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम कार्बोहाइड्रेट 6.5 प्रतिशत फास्फोरस 0.06 प्रतिशत पानी 87.9 प्रतिशत कैल्शियम 0.14 प्रतिशत विटामिन-ए 10460 से 12600 I.U.100ग्राम विभिन्न रोगों में उपयोग : 1. दस्त व कब्ज : हरा धनिया, काला नमक, कालीमिर्च को मिलाकर चटनी बनाकर चाटने से लाभ मिलता है। यह चटनी सुपाच्य रहती है। उल्टी में धनिये को मिश्री के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। पिसे हुए धनिये को सेंककर 1-1 चम्मच पानी से फंकी लेने से दस्त आना बंद हो जाता है। दस्तों में आंव, मरोड़, उल्टी, गर्भवती की उल्टी आदि आना बंद हो जाती है। 2. शरीर में जलन : रात को 4 चम्मच धनिया और इतने ही चावल पानी में भिगों दें। इन्हें सुबह गर्म करके पीयें अथवा रात को धनिया भिगों दें और सुबह के समय मिश्री डालकर पीसकर छानकर पियें। इससे शरीर की गर्मी और पेट की जलन नष्ट हो जाती है। रात को धनिये को पानी में भिगों दें और सुबह उठने पर उसे छानकर उसमें मिश्री डालकर पी जायें। इससे शरीर की गर्मी और पेट की जलन दूर हो जाती है। 3. मूत्र में जलन : यदि तेज प्यास, पेट, शरीर या मूत्र में कहीं जलन हो तो 15 ग्राम धनिये को रात को भिगो दें। सुबह के समय उसे ठंडाई की तरह पीसकर मिश्री डालकर सेवन करें। इस प्रयोग से दिल की तेज धड़कन सामान्य हो जाती है। धनिया और आंवला रात में भिगोकर सुबह के समय मसलकर पीने से मूत्र की जलन दूर हो जाती है। 4. दमा-खांसी : धनिया और मिश्री को पीसकर चावलों के पानी के साथ सेवन करने से दमा और खांसी के रोग में लाभ मिलता है। 5. चेचक की गर्मी : चेचक की गर्मी निकालने के लिए धनिया और जीरा पानी में डालकर रात को मिट्टी के बर्तन में भिगो दें। सुबह उस पानी में चीनी मिलाकर पियें। इससे मल साफ आता है तथा चेचक की गर्मी शान्त होती है। 6. गर्मी के रोग : रात के समय मिट्टी के बर्तन में 2 गिलास पानी 5 चम्मच सूखा धनिया भिगो देते हैं। सुबह के समय इसमें स्वाद के अनुसार मिश्री मिलाकर पियें। इससे गर्मी के रोग समाप्त हो जाते हैं। 7. अनिद्रा : चीनी और पानी के साथ हरे धनिये को पीसकर रोगी को पिलाने से सिर दर्द दूर होने के साथ ही अच्छी नींद आती है। 8. मासिक-धर्म अधिक मात्रा में आना : लगभग 20 ग्राम धनिया को 200 ग्राम पानी में डालकर उबालें जब 50 ग्राम पानी शेष रह जाए तो इसे छानकर इसमें मिश्री मिलाकर रोगिणी को सेवन करा दें। इस प्रयोग से मासिक-धर्म में अधिक खून का आना बंद हो जाता है। 10 ग्राम सूखा धनिया लेकर लगभग 200 ग्राम पानी में उबालते हैं। जब यह एक चौथाई की मात्रा में रह जाए तो इसे छानकर इसमें खाण्ड (चीनी) मिलाकर हल्के गर्म पानी के साथ सुबह के समय 3-4 बार रोगी को पिलाने से मासिक-धर्म का ज्यादा आना कम हो जाता है। 9. स्वप्नदोष : धनिये को पीसकर मिश्री में मिलाकर ठण्डे पानी से सेवन करने से स्वप्नदोष, मूत्रजलन, सूजाक और उपदंश में लाभ होता है जो लोग चाहते हैं कि काम वासना अधिक न सताएं वे लोग 2 ग्राम सूखा धनिया पीसकर पानी मिलाकर कुछ दिनों तक पीयें अथवा सूखा धनिया पीसकर छान लेते हैं। इसमें बराबर मात्रा में पिसी हुई चीनी मिलाएं सुबह के समय खाली पेट बासी पानी से 1 चम्मच भर की मात्रा में फांक लेते हैं तथा 1 घंटे बाद कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। इससे स्वप्नदोष से छुटकारा मिल जाता है। सूखा धनिया तथा मिश्री को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लेते हैं और किसी ढक्कनदार बर्तन में भरकर रख देते हैं। इस चूर्ण को 5-6 ग्राम के लगभग, ताजा पानी के साथ सुबह-शाम कुछ दिनों तक लेने से अनैच्छिक वीर्यपात, स्वप्नदोष आदि रोगों से मुक्ति मिल जाती है। 10. मुंह से दुर्गंध आना : हरा धनिया खाने से मुंह में सुगंध रहती है। प्याज, लहसुन आदि गंध वाली चीजें खाने के बाद हरा धनियां चबाने से मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाती है। हरा धनिये को खाने से मुंह की दुर्गंध खत्म होती है और मुंह में से सुगंध आती है। 11. रक्तातिसार (खूनी दस्त) : 15 ग्राम धनिये को पीसकर उसमें 12 ग्राम मिश्री मिलाकर पानी में घोलकर पीने से दस्त में खून आना बंद हो जाता है। 12. खाने के तुरंत बाद दस्त होना : धनिये में कालानमक मिलाकर भोजन के बाद 1 चम्मच भरकर सेवन करने से खाना खाने के बाद होने वाले दस्त बंद हो जाते हैं। 13. ऑव व बदहजमी के कारण बालकों का पेट दर्द : आंव व बदहजमी हो तो धनिया और सोंठ का काढ़ा पिलाएं। इससे बच्चों का पेट दर्द बंद हो जाता है। 14. छींके अधिक आना : छींके अधिक आने पर धनिये की पत्तियां सूंघनी चाहिए। हरे धनिये की पत्ती और सफेद चंदन को पीसकर नाक से सूंघने से बार-बार छींक आना बंद हो जाती है। 15. वमन होना (उल्टी) : उल्टी होने पर सूखा या हरा धनिया को पीसकर उसका पानी निचोड़कर 5 चम्मच बार-बार रोगी को पिलाने से उल्टी आना बंद हो जाती है। इस प्रयोग से गर्भवती स्त्री की उल्टी भी बंद हो जाती है। उल्टी होने में रोगी का खाया पिया सब कुछ मुंह से निकल जाता है। यह दो रूपों में पायी जाती है। कभी तो जो कुछ खाया जाता है, वह उसी रूप में निकल जाता है और कभी अधपचा भोजन निकल जाता है। उस हालत में डकारें आती हैं, जी मिचलाता है। सिर में बहुत तेज दर्द होने लगता है और बेहोशी के दौर पड़ने लगते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे अंदर से आंतों में जलन है और सब कुछ बाहर आने के लिए पलटने लगता है। आंख, कान और नाक में भी दर्द होने लगता है। उल्टी के समय व्यक्ति को लगता है कि वह अब बचेगा नहीं। ऐसी दशा में रोगी को धीरज बंधाना चाहिए उससे कहना चाहिए कि साधारण उल्टी है। कुछ ही देर में ठीक हो जाएगी। इलाज के लिए रोगी को उल्टियां बंद करने की दवा तुरन्त ही देनी चाहिए। इसके लिए धनिये के थोड़े से दाने, हरा पुदीना तथा हींग का घोल मलना चाहिए। पुदीना का रस भी लाभदायक होता है। घबराहट अधिक होने पर धनिये का पानी पिलाना चाहिए। धनिये का लेप माथे पर लगाने से रोगी की बेचैनी दूर हो जाती है। ऐसे में अमृतधारा या कृष्णामिक्चर भी काम कर जाता है। असल में उल्टी का कारण अपच (भोजन का न पचना) या अजीर्ण (पुरानी कब्ज) ही होता है। यह भयंकर रोग नहीं है। प्याज का रस तथा धनिये का रस भी पानी में मिलाकर देने से उल्टी बंद हो जाती है। यदि पेट में जलन हो रही तो धनिया और सोंठ दोनों को उबालकर उसका पानी ठंडा करके देना चाहिए। आधा चम्मच हरे धनिये का रस, चुटकी भर सेंधानमक और 1 चम्मच कागजी नींबू के रस को मिलाकर रोगी को पिलाने से उल्टी होने के रोग में लाभ होता है। हरे धनिये को पीसकर निचोड़ लें और इसका रस निकालकर उस रस में से लगभग 33 ग्राम रस रोगी को पिलाने से उल्टियां होना बंद हो जाती हैं। इसको लगातार कई बार पिलाने से गर्भवती स्त्री की उल्टियां होना भी बंद हो जाती हैं। धनिये को पानी में उबालकर उसमें मिश्री मिलाकर पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है। हरे धनिये और पोदीने में सेंधानमक मिलाकर चटनी बना लें। इस चटनी में नींबू का रस मिलाकर खाने से उल्टी नहीं आती है। 3 ग्राम धनिया और 3 ग्राम सौंफ को पीसकर छान लें। इसे 250 ग्राम पानी में मिलाकर इसमें शक्कर डालकर 2-3 बार पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है। हरे धनिये और पुदीने को मिलाकर, इसकी चटनी बनाकर खाने से उल्टी होना बंद हो जाती है। 16. लू : गर्मी के मौसम में चलने वाली गर्म हवा (लू) से बचने के लिए धनिए के पानी में चीनी मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। पानी में धनिये को पीसकर और मिश्री में मिलाकर पिलाने से बच्चे को लगी हुई लू को दूर किया जा सकता है। धनियां, बनफ्सा, मकोय, मुलेठी और सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से लू लगने का रोग ठीक हो जाता है। 17. गर्मी के कारण सिर दर्द : सूखा धनियां 10 ग्राम, गुठली रहित सूखा आंवला 5 ग्राम लेकर रात के समय मिट्टी के एक बर्तन में भिगो दें। प्रात:काल इसमें मिश्री मिलाकर छानकर सेवन करते हैं। इससे गर्मी के कारण हुआ सिर दर्द बंद हो जाता है। यदि सर्दी के कारण सिर दर्द हुआ हो तो सूखे धनिये के साथ सोंठ, चाय की पत्ती, तुलसी के पत्तों के साथ पीस लेनी चाहिए। फिर इसमें थोड़ा सा पानी मिलाकर लेप बना लेना चाहिए। इस लेप को चमचे में गर्म कर लेना चाहिए। यह गर्म लेप माथे पर लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है। यदि गर्मी के कारण सिर दर्द हुआ हो तो लेप में सोंठ न डाली जाए, धनिया और तुलसी का लेप बनाकर माथे पर लगाना चाहिए। थोड़ी देर में दर्द दूर हो जाता है। यदि इस क्रिया के बाद भी सिर दर्द नहीं जाता है तो समझना चाहिए कि दर्द साधारण नहीं है। ऐसी स्थिति में हमें अच्छे डॉक्टरों से सलाह लेनी चाहिए। सिर दर्द में चक्कर, उल्टी व गर्भवती की उल्टी होने पर धनिया उबालकर मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है। 18. गंजापन : हरे धनिये का पानी निकालकर (पत्ते का रस) सिर पर मालिश करने से गंजेपन का रोग मिट जाता है और सिर पर नये बाल आना शुरू हो जाते हैं। 19. मस्तिष्क की कमजोरी : 125 ग्राम धनिये को पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब यह चौथाई बाकी रह जाए तो इसे छानकर 125 ग्राम मिश्री मिलाकर फिर गर्म करें। जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसे उतार लेते हैं। इसे रोजाना सेवन करने से दिमाग की कमजोरी से आने वाला आंखों के सामने अंधेरा तथा जुकाम आदि सभी रोग दूर हो जाते हैं। 20. नकसीर (नाक से खून आना) : हरे धनिये का रस सूंघने और हरे धनिये की पत्तियों को पीसकर सिर पर लेप करने से गर्मी के कारण से नाक से बहने वाला खून बंद हो जाता है अथवा धनिया रात को भिगो दें। धनिये को सुबह के समय पीसकर मिश्री मिलाकर पीने से लाभ मिलता है। गर्मी की वजह से नाक से खून बहने पर हरे धनिये के रस को सूंघने से और उसकी पत्तियों को पीसकर सिर पर लगाने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है। 10 ग्राम धनिया, 75 ग्राम सौंफ, 100 ग्राम मिश्री और 8-10 कालीमिर्च के दानों को पानी के साथ पीसकर शर्बत बना ले। इस शर्बत को रोजाना सुबह और शाम पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) के रोग में लाभ होता है। 5 ग्राम सूखा धनिया, 5 ग्राम गोरखमुण्डी के फूल और 8 मुनक्का लेकर 125 ग्राम पानी में 3 घंटे के लिये भिगोकर रख दें। सुबह उठकर इस पानी को छानकर पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) का रोग ठीक हो जाता है। 2 चम्मच धनिये के दाने, थोड़ी सी किशमिश और थोड़ी सी मिश्री को पानी में डालकर और पीसकर पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) में आराम आता है। 21. गैस : 2 चम्मच सूखा धनियां 1 गिलास पानी में उबालकर छानकर उस पानी को 3 बार पीने से पेट की गैस दूर हो जाती है। हरे धनिये की चटनी में कालानमक मिलाकर सेवन करने से पेट की गैस समाप्त हो जाती है। 2 चम्मच सूखे धनिए के दानों को 1 गिलास पानी में उबाल लें। फिर इस पानी को छानकर पीने से पेट की गैस समाप्त हो जाती है। 22. अरुचि : धनिया, छोटी इलायची और कालीमिर्च बराबर मात्रा में पीसकर चौथाई चम्मच घी और चीनी में मिलाकर सेवन करने से अरुचि (भोजन करने का मन न करना) दूर हो जाती है। 23. भूख न लगना : यदि भूख कम लगे तो 30 मिलीलीटर धनिये का रस रोजाना पीने से भूख लगना शुरू हो जाती है। 24. अपच : जिसे भोजन न पचता हो, जल्दी ही पैखाना (शौच) जाना पड़ता हो उसे 60 गाम सूखा धनिया, 25-25 ग्राम कालीमिर्च और नमक लेकर पीसकर भोजन के बाद आधा चम्मच ताजे पानी से सेवन करने से लाभ मिलता है। 25. मलेरिया बुखार : धनिया और सोंठ दोनों पिसे हुए आधा-आधा चम्मच मिलाकर रोजाना 3 बार खाने से ठण्ड देकर आने वाला बुखार मिट जाता है। आधा चम्मच पिसा हुआ धनिया, आधा चम्मच सोंठ, आधा चम्मच अजवाइन और चुटकी भर सेंधानमक को मिलाकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को दिन में 3 बार लेने से मलेरिया के बुखार में लाभ मिलता है। धनिया और सोंठ को बराबर मात्रा में पीसकर रोजाना दिन में 3 बार पानी से फंकी लेने से मलेरिया के बुखार में आराम मिलता है। 26. पेट में दर्द : पेट दर्द में धनिये का शर्बत लाभप्रद होता है। 2 चम्मच धनियां 1 कप पानी में गर्म करके पीना चाहिए। 1 चम्मच धनिया और थोड़ी मात्रा में सौंठ को 1 कप पानी में उबालकर पीने से पेट के दर्द, आंव (एक प्रकार का चिकना सफेद पदार्थ जो मल के द्वारा बाहर निकलता हैं) और बदहजमी ठीक हो जाती है। पेट के दर्द में रोगी बुरी तरह से चीखता और चिल्लाता है। यह पेट में गैस के रुकने या आंतों में सूजन हो जाने से होता है। इसके लिए 10 ग्राम सूखा धनिया, 5 ग्राम सोंठ, 5 ग्राम अजवायन, 5 ग्राम भूना हुआ जीरा और 2 ग्राम कालानमक को पीसकर चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 1 चम्मच गर्म पानी से दिन में 3 बार लेना चाहिए। यह चूर्ण गैस को तोड़कर बाहर निकालता है और रोगी को स्थायी रूप से लाभ पहुंचाता है। अदरक के रस में सूखे धनिये का चूर्ण भी पेट दर्द के लिए लाभदायक होता है। जब दर्द रुक जाए तो हल्का भोजन करना चाहिए। अधिक ठण्डी और अधिक गर्म चीजें नहीं खानी चाहिए। सर्दियों में हल्की चाय और गर्मी में कालानमक डालकर छाछ पीना लाभकारी होता है। 27. खूनी बवासीर : 4 चम्मच धनिये को 250 ग्राम दूध में उबालकर व छानकर पिसी हुई मिश्री मिलाकर पीने अथवा मिश्री मिलाकर धनिये का रस पीने से खूनी बवासीर दूर हो जाती है। 28. रोशनीवर्द्धक : हरे धनिये को चावल के साथ पीसकर खाने से आंखों की कमजोरी दूर होकर आंखों की रोशनी तेज हो जाती है। हरे धनिये और त्रिफला की चटनी बनाकर खाने से आंखों की रोशनी तेज होती है। 29. मोतियाबिन्द : धनिये को पीसकर बारीक कर लेते है। थोड़ा सा धनिया पानी में उबालते हैं। फिर ठंडा करके कपड़े में छानकर आंखों में डालने से लाभ मिलता है। 30. बच्चों के आंखों का दर्द : थोड़ा सा साबुत धनिया पानी में उबालते हैं फिर ठंडा करके कपडे़ में पोटली बांधकर ठण्डे पानी में डुबो देते हैं। 10 मिनट बाद निकालकर उसे बच्चे की आंखों पर फेरने से दर्द में लाभ मिलता है। 31. मुंह के छाले : धनिये का बारीक चूर्ण, बोरेक्स अथवा खाने वाले सोडे में मिलाकर मुंह के छालों पर लगाने से लाभ होता है एवं लार भी ठीक निकलती है। हरे धनिये की पत्तियों को चबाने से मुंह के छाले नष्ट हो जाते हैं। सूखे धनिये तथा शहतूत दोनों को पानी में उबालकर इससे कुल्ला करने से छाले ठीक होते हैं। 32. गर्मी दूर करना : धनिये के लगभग 200 दानों को 1 गिलास पानी में लगभग 4 घंटे तक भिगोयें रखें और फिर उसे छानकर पानी में एक चुटकी नमक डालकर पी लें तो यह गर्मी के मौसम में पूरे दिन प्यास को कम करता रहेगा। प्यास की खराश दूर करने तथा प्यासे को राहत देने में यह पानी बहुत ही उपयोगी होता है। 33. शक्तिवर्द्धक : शक्ति को ऊर्जा भी कहते हैं। यह ऊर्जा मनुष्य को भोजन से मिलती है। परन्तु धनिया इस ऊर्जा को और बढ़ा देता है। इसके लिए आपको खाना खाने के बाद 10 दाने धनिये के मुंह में डालने होंगे। इन दानों को दाढ़ों से कुचलकर इसका रस कंठ (गले) के नीचे उतार लीजिए और दानों को थूक देते हैं। ठीक आधा घंटे बाद आप देखेंगे कि आपके शरीर में गर्मी बढ़ गई। यह गर्मी पसीना लाने वाली गर्मी नहीं होगी वरन यह पाचन क्रिया को सही करने वाली गर्मी होगी जब पाचन क्रिया में वृद्धि होगी तब भोजन समय से तथा ठीक प्रकार से पच जाएगा। इसके बाद उस खून में जो ऊर्जा पैदा होगी। वह पूरे शरीर में फूर्तीलापन लाती है। 34. सौन्दर्यवर्द्धक : यदि साग-सब्जी तथा मसालों के रूप में धनिये का प्रयोग करते हैं तो हमारा रंग निखर जाता है। धनिया का पानी भी त्वचा को निखारता है। इसके लिए धनिये को ताजे पानी में भिगो देना चाहिए। इसे कम से कम 2 घंटे भीगना जरूरी होता है। धनिया के दाने निकालकर पानी से मुंह को धोना चाहिए। ऐसा करने से त्वचा का रंग निखरता है। इस बात का ध्यान रहे कि इसका पानी आंखों में नहीं जाना चाहिए क्योंकि यह पानी शीतल तत्व का होता है जो आंखों की पुतलियों को हानि पहुंचा सकता है। इस क्रिया को लगातार 30 दिनों तक करना चाहिए। 35. शरीर के भीतरी रोगों का अवरोधक : धनिया शरीर के भीतर धीरे-धीरे पनपने वाले रोगों को रोकता है। कोई नहीं जानता है कि कब और कौन-सा रोग शरीर के भीतर उत्पन्न हो जाए। कभी-कभी कोई सूक्ष्म जीवाणु भोजन के द्वारा शरीर के भीतर प्रवेश कर जाता है तब उससे अन्य हजारों कीटाणु और जीवाणु पैदा हो जाते हैं। उस हालत में व्यक्ति विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो जाता है। धनिये का सेवन किसी न रूप में अवश्य ही करना चाहिए जो लोग सूखा धनिया पसन्द नहीं करते हैं, उनको हरे धनिये का प्रयोग करना चाहिए। हरा धनिया चटनी, साग-सब्जी में ऊपर से डालकर तथा पीसकर प्रयोग किया जा सकता है। धनिये में रोगों से लड़ने की शक्ति होती है। चटनी खाते ही शरीर में बनने वाली गैस भी अपान वायु के रूप में छूटने लगती है। इससे मन स्वच्छ तथा शरीर हल्का हो जाता है। धनिया हैजा के कीटाणुओं को भी पनपने नहीं देता है। 36. चोट : धनिये का प्रयोग बाहरी चोट पर किया जाता है जैसे यदि कभी बंद चोट लग जाए, स्याह नीले रंग के धब्बे पड़ जाए या चोट कसक रही हो तो धनिये की पोटली तैयार करके चोटिल स्थान पर बांधना चाहिए। इसके लिए थोड़े से दाने धनिया और 2 गांठे हल्दी इन दोनों को लेकर खूब बारीक पीस लेना चाहिए। इसको टिकिया बनाकर चोट पर रखकर पट्टी बांध देना चाहिए। इससे चोट की सूजन कम होकर दर्द कम हो जाता है। रोगी को इतना अधिक आराम मिलता है कि वह 3-4 दिन में काम करने लायक हो जाता है। 37. अफारा (पेट का फूलना) : धनिये का शर्बत अफारा में बहुत लाभकारी होता है। इसके लिए 50 ग्राम धनिया को 2 लीटर में उबाल लेते हैं। इसके बाद उबले हुए पानी को ठंडा करके 1 बोतल में भर लेते हैं। धनिये के काढ़े को छान लेते हैं। यह पानी दिन में 3-4 बार लेना चाहिए। यदि पानी मीठा लगे तो एक प्याला पीते समय उसमें थोड़ा-सा कालानमक डाल लेते हैं। इससे स्वाद बढ़ जाता है और काला नमक शरीर को लाभ पहुंचाएगा। धनिये के पानी से हाथ-मुंह भी धोना चाहिए। इससे पसीने की दुर्गंध काफी समय के लिए दूर हो जाती है। 38. कब्जनाशक : धनिया कब्ज तोड़ने में भी सहायता करता है। धनिये के चूर्ण से पुराने से पुराने कब्ज भी दूर हो जाता है। इसके लिए 50 ग्राम धनिया, 10 ग्राम सोंठ, 2 चुटकी कालानमक तथा 3 ग्राम हरड़ लेकर पीसकर कपड़े में छान लेना चाहिए। इस चूर्ण को थोड़ी-सी मात्रा में भोजन करने के बाद गुनगुने पानी से लेते हैं। इससे कब्ज नष्ट होता है और मल भी खुलकर आने लगता है। इससे पेट का दर्द भी कम हो जाता है और आंतों की खुश्की भी दूर हो जाती है। इससे भूख खुलकर आती है। मलावरोध समाप्त हो जाता है। यदि पुराना कब्ज हो तो इस चूर्ण को लगातार 40 दिनों तक लेना चाहिए। कब्ज न रहने पर भी यह चूर्ण लिया जा सकता है। इससे किसी भी प्रकार की हानि की संभावना नहीं होती है। 20 ग्राम धनिया और 20 ग्राम सनाय को रात में 250 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। सुबह इसे छानकर इसमें मिश्री मिलाकर पीने से कब्ज दूर हो जाती है। 39. अजीर्ण (पुरानी कब्ज) : अजीर्ण एक ऐसा रोग होता है, जिसके रहते मनुष्य का मन किसी काम में नहीं लगता है। अजीर्ण नियमों को तोड़ने, समय-असमय खाने, बासी या गरिष्ठ भोजन से भी हो जाता है। कुछ लोगों को हर समय काम रहता है। इसके चलते वे कभी दोपहर को खा लेते हैं या कभी चाट-पकौड़ी खाकर ही दिन गुजार लेते हैं। सच बात तो यह है कि इनको इसका पता भी नहीं रहता कि हमारी आंतें लोहे की नहीं बनी हैं। वे मुलायम होती हैं, उनके दांत नहीं होते हैं। तब भी लोग जल्दी-जल्दी खाना खाकर उठ जाते हैं या फिर खाने के बाद अधिक मात्रा में पानी पी लेते हैं या फिर जो लोग प्यास को मार लेते हैं जो लोग पाखाने या पेशाब को रोके रहते हैं क्योंकि उनके कथनानुसार उन्हें फुर्सत नहीं होती है। ऐसे लोगों को भी अजीर्ण हो जाता है। अजीर्ण के कारण शरीर विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो जाता है। इससे गला सूखता है। सीने में जलन होती है। आंतों में खुश्की होती है। काम-धंधे में आलस्य आता रहता है। सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि जैसे सारा उत्साह ठंडा पड़ गया है। कभी सारा शरीर पसीने से लथपथ हो जाता है। ऐसी हालत में रोगी चारपाई पर पड़ जाता है। उपरोक्त कारणों से ही अजीर्ण रोग होता है। ऐसी दशा में यह प्रयोग करना चाहिए- 10 ग्राम धनिये के दाने, 3 ग्राम हरड़, 3 ग्राम सोंठ, 1 ग्राम सेंधानमक इन सभी चीजों को पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। फिर इसे सुबह-शाम गर्म पानी से लगभग 2 ग्राम की मात्रा में लेते हैं। इससे अजीर्ण रोग दूर हो जाता है। इसके बाद की अन्य शिकायतें भी दूर हो जाती हैं। 40. सावधानी : याद रहे कि इस चूर्ण के बाद रसदार फल या प्याज नहीं लेना चाहिए। इससे शरीर में तेजाब बनने का डर बना रहता है। धनिया, नमक और अदरक की चटनी भी लाभदायक होती है। इस चटनी को भोजन के साथ लेना चाहिए। अदरक स्वयं एक औषधि है। परन्तु जब यह हरे या सूखे धनिये के साथ मिल जाती है तो इसके गुण और भी अधिक बढ़ जाते हैं। 41. ऐंठन : ऐंठन में रोगी का सम्पूर्ण शरीर कमजोरी या व्याकुलता के कारण ऐंठने लगता है। कभी-कभी गर्दन और मांसपेशियों में भी दर्द होने लगता है। उस समय रोगी अत्यधिक बेचैनी का अनुभव करता है। ऐसी स्थिति आ जाने पर रोगी को धीरज बंधाना चाहिए। इसके बाद धनिया, नमक और हल्दी को थोड़ी-थोड़ी सी मात्रा में लेकर पीस लेना चाहिए। पिसी हुई चीजों से गुनगुने तेल में टिकिया बना लेनी चाहिए। यह टिकिया रोगी के गर्दन और तलुओं पर बांधनी चाहिए। इससे बहुत लाभ होता है। रोगी को गुनगुना पानी पीने के लिए देना चाहिए। उसे तुलसी की चाय या डबलरोटी का एक पीस गर्म करके देना चाहिए। अधिक बेचैनी होने पर डॉक्टर या वैद्य को दिखाना आवश्यक होता है क्योंकि ऐंठन के साथ अन्य रोग भी रोगी को हो जाते हैं और रोगी चारपाई पर पड़ जाता है। 42. खट्टी फीकी डकारे आना : यह कोई रोग नहीं है परन्तु यदि कभी लगातार खट्टी डकारे आने लगती हैं तो रोगी को बेचैनी होने लगती है और वह शीघ्र ही घबरा जाता है। पेट में जलन होती है और जबान सूखने लगती है। बार-बार डकार आने से खुश्की दूर हो जाती है और गैस के कारण पेट में गर्मी सी महसूस होने लगती है। सीने में जलन, अकड़न और मीठा दर्द होने लगता है। ऐसी दशा में पाचक औषधि काम करती है। इसके लिए थोड़ा सा पुदीना और थोड़ा सा सूखा धनियां, बड़ी इलायची, अजवायन और कालानमक को पीसकर या तो टिकिया बना लेते हैं या चूर्ण बना लेते हैं फिर इसे 2 घंटे बाद गर्म पानी से लेना चाहिए। थोड़ी देर में डकारे बंद हो जाएंगी। यदि डकारें खट्टी या तेजाबियत की हैं तो धनिया के 4 दाने और 10 दाने सौंफ के मुंह में डालकर उसका रस गले के नीचे उतारना चाहिए। इससे कुछ ही देर में डकारें आना बंद हो जाता है और रोगी को शांति मिलती है। 43. रक्त विकार : खून में विकार या खराबी कई कारणों से होती है जैसे नमक का अधिक सेवन करना, खट्टी वस्तुओं का अधिक लेना, बासी भोजन करना। खून की खराबी से दिल तथा प्लीहा रोग हो सकता है। इस हालत में रोगी का मन किसी काम में नहीं लगता है। उसे हर समय सुस्ती घेरे रहती है। कभी-कभी शरीर में फोड़े-फुंसी भी निकल आते हैं। ऐसी अवस्था में रोगी को सबसे पहले खट्टी मीठी तथा गरिष्ठ चीजें खाने से परहेज करना चाहिए। खाने में रोटी, दलियां, तोरई, लौकी, टिण्डा, परवल आदि की सब्जियां तथा ताजा पानी लेना चाहिए। सभी खाद्य पदार्थों में नमक की मात्रा घटा देनी चाहिए। इसके बाद 4 कोपलें नीम, 4 कालीमिर्च, 5 ग्राम धनिये को लेकर पीस लेते हैं। इस चूर्ण को दिन में 3 बार पानी के साथ लेना चाहिए। इससे खून की खराबी धीरे-धीरे दूर हो जाती है। कुछ ही दिनों जब शरीर में शुद्ध खून प्रवाहित होने लगता है तो रोगी को खुद ही आराम आ जाता है। 44. गर्मी की घमौरियां : शरीर में अत्यधिक गर्मी में घूमने पर या पसीने के मरने पर घमौरियां होती हैं। तेज गर्मी में धूप में काम करने पर भी घमौरियां हो जाती हैं। शरीर पर छोटे-छोटे दानों का निकलना ही घमौरियां है। घमौरियां होने पर शरीर में खुजली होती है और कांटे जैसे चुभने लगते हैं। कपड़े पहनना अच्छा नहीं लगता है। इसके लिए साधारण सा इलाज है। बर्फ के पानी में 50 ग्राम धनिये के पानी को भिगो देना चाहिए। लगभग 5 घंटे बाद इस पानी को छानकर घमौरियों वाले स्थान पर लगाना चाहिए। यदि किसी छोटी तौलिया को इस पानी में भिगोकर घमौरियों पर रखा जाए तो बहुत आराम मिलता है। इस प्रक्रिया को 2 दिन तक सुबह-शाम करने से घमौरियां नष्ट हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त नींबू के रस में धनिये को डालकर पीना चाहिए। ध्यान रहे कि घमौरियों के कारण शरीर में नमक की मात्रा कम होने लगती है। इसलिए नमक का सेवन अवश्य ही करना चाहिए। यदि रोटी में नमक और अजवायन को मिला लिया जाए तो बहुत लाभ मिलता है। 45. सीने में जलन : सीने में जलन, गर्मी के प्रभाव, बासी भोजन करने, खट्टी डकारें आने, अम्लपित्त बनने आदि के कारण होती है। उस समय रोगी को बड़ी बेचैनी होने लगती है। रोगी शीघ्र ही घबरा जाता है। उसे लगता है कि जैसे उसका दिल बैठा जा रहा है। ऐसी हालत में रोगी को 5 ग्राम सूखा धनिया, 2 ग्राम कालानमक, 1 ग्राम हींग, 5 ग्राम अजवायन का चूर्ण बनाकर दिन में 3-4 बार देना चाहिए। जलन अपने आप बंद हो जाती है। इसके बाद चावल, खुश्क चीजें, तली हुई वस्तुएं आदि भोजन के साथ नहीं लेनी चाहिए। दूध ठंडा करके दिन में कई बार लेना चाहिए। हरा धनिया और हरा पुदीना इन दोनों की चटनी खाने से भी लाभ होता है। जहां तक हो सके खट्टी चीजों को नहीं लेना चाहिए। क्योंकि खट्टी चीजें सीने की जलन को बढ़ा देती हैं। भोजन के बाद टहलना भी चाहिए तथा शरीर में कब्ज नहीं बनने देना चाहिए। 46. जीभ पर छाले होना : जब पेट के अंदर गर्मी का प्रकोप बढ़ जाता है तो जीभ की ऊपरी परत पर छाले उभर आते हैं। ऐसा उस दशा में होता है। जब हम खाद्य-पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं। गर्म पदार्थों में आलू, चाट, पकौड़े और अदरक, खट्टी मीठी चीजें, अरहर या मसूर की दाल, बाजरे का आटा आते हैं। कभी-कभी शरीर भोजन को ठीक से नहीं पचा पाता है। तब आंतों में अपच का प्रदाह उत्पन्न हो जाता है। यदि हम किसी कारणवश मल-मूत्र को रोंके रहते हैं। तब मल सड़ने लगता है और आंतों में सड़न क्रिया आरम्भ हो जाती है। इन सभी कारणों से जीभ पर छाले पड़ जाते हैं। इन छालों में असहनीय दर्द होता है जैसे कांटे चुभ रहे हों। नमक, मिर्च मसाले आदि खाने पर बहुत दर्द होने लगता है। भोजन करना मुश्किल हो जाता है। साधारण भाषा में इसे मुंह का आना कहते हैं। इसके लिए धनिये का मिश्रण बहुत ही लाभकारी इलाज होता है। धनिये के 50 दाने पीसकर सरसों के तेल में पका लेना चाहिए। फिर कपड़े में छानकर रूई की फुरेरी से इस तेल को जीभ पर लगाना जरूरी होता है। इसे लगाने के तुरन्त बाद मुंह खोलकर लार नाली में टपका देना जरूरी होता है। दिन में 4 बार यह क्रिया करने से छालों में आराम मिलता है। 47. अंगों की टूटन : शरीर के अंग अक्सर शक्ति से बाहर कार्य करने के कारण टूटने लगते हैं। कभी-कभी थकावट के कारण भी अंगों में टूटने की क्रिया पैदा होती है। होता यह है कि जब शारीरिक ऊर्जा अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च हो जाती है तो अंगों में टॉक्सिन (एक प्रकार का विकार) पैदा हो जाता है। ऐसी अवस्था में शरीर के अंग-अंग में दर्द हो जाता है। इस दशा में व्यक्ति का काम करने में मन नहीं लगता है। शरीर को मालिश करने की जरूरत महसूस होने लगती है। हर समय समय आराम करने का मन करता है। इसके लिए रोगी को नमक और धनिये के घोल में थोड़ी देर तक बैठना चाहिए। अंगों को इस घोल से धीरे-धीरे धोना चाहिए। इसके अतिरिक्त 100 ग्राम धनिया, 10 ग्राम नमक और 5 ग्राम हींग पानी में डालकर उस पानी को अच्छी तरह से खौला लेना चाहिए। फिर उस पानी की भाप लेनी चाहिए। इससे अंगों की जलन को आराम मिलता है। यह पानी घूंट-घूंट करके भी पिया जा सकता है। इसे पीने से मांसपेशियों को बल मिलता है। 48. फ्लू का रोग : फ्लू या इन्फ्लूएंजा में पहले जुकाम होता है। नाक बहनी शुरू हो जाती है। फिर शरीर अलसाने लगता है। धीरे-धीरे व्यक्ति को बुखार हो जाता है। शरीर में बेहद दर्द होने लगता है। रोगी का माथा और पेट दुखने लगता है। कमर तथा पिण्डलियां जैसे टूटने लगती हैं। कभी-कभी तो रोगी को 104 या 105 डिग्री बुखार हो जाता है। अत्यधिक थकावट के कारण भी ज्वर का रोग हो जाता है। इसमें रोगी को कभी ठण्ड लगने लगती है तो कभी-कभी पसीना आने लगता है। यह छूत का रोग है। यदि यह घर में किसी एक को होता है तो पूरे परिवार में फैल जाता है। अत: रोगी को निराशा के संसार से निकलकर घरेलू उपचार शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए 4 दाने कालीमिर्च, 5 तुलसी की पत्तियां और 20 दाने धनिये की चाय बनाकर रोगी को दिन में 4 बार देना चाहिए। चाय में थोड़ी सी अदरक भी डाली जा सकती है। 49. पेट में कीडे़ : पेट में कीड़े उस हालत में पड़ते हैं जब किसी कारणवश मल साफ नहीं होता है। इस दशा को इस रूप में समझना चाहिए कि प्राय: ऊपरी मल तो बाहर निकलता रहता है। परन्तु आंतों में भीतरी रूप में जमा रहता है जैसे किसी नाली की तली में रेत जमा होती रहे और पानी के साथ ऊपर का कूड़ा बहता रहे। इस दशा में सुधार न होने पर कीड़े पैदा हो जाते हैं जो मनुष्य को कमजोर करते रहते हैं। अक्सर नथुनों और जीभ में खुजली सी मची रहती है। शरीर में प्रमाद हो जाता है। काम करने में मन नहीं लगता है। भूख भी घट जाती है। इसके लिए सबसे पहले इच्छाभेदी रस की 2 गोलियां खाना खाने के बाद रात को लेनी चाहिए। सुबह जब खुलकर दस्त हो जाए धनिया के योग से तैयार की गई औषधि को देना चाहिए। 1 पका केला लेकर उसमें धनिये का चूर्ण थोड़ा-सा सेंधानमक और हींग को पीसकर हलुवे की तरह मिला लेना चाहिए। इससे पेट के कीड़े नष्ट हो जाएंगे। इसमें हमें अधिक मल बनाने वाली गरिष्ठ चीजें नहीं खाना चाहिए। कीड़ों के निकलते ही मुंह की खश्की दूर हो जाती है और रोगी को नींद भी अच्छी आती है। मूली का रस भी लाभकारी होता है परन्तु जाड़े के मौसम में मूली का रस गर्म करके लेना चाहिए। 50. कील-मुंहासे निकलना : कील-मुंहासे वैसे तो उम्र के अनुसार निकलते हैं। ये शरीर के अंदर की गर्मी के कारण अधिक निकलते हैं। कभी-कभी उनमें पस भी पड़ जाती है। अत: मुंहासों को फोड़ना नहीं चाहिए। वरना मुंह पर दाग बनने का डर रहता है। इसके लिए एक लेप बना लेना चाहिए। थोडे़ से अदरक का रस, उसमें खीरे का थोड़ा सा रस और धनिया का पानी मिला लेना चाहिए। फिर 2 घंटे बाद साफ पानी से मुंह को धो डालना चाहिए। इससे कील-मुंहासें निकलना बंद हो जाते हैं। 51. त्वचा की खुजली : त्वचा की खुजली अक्सर गंदे रहने, पसीने, या फिर छूत के कारण होती है। इसमें पहले छोटे-2 दाने निकलते हैं फिर उन दानों में खुजली मचने लगती है। खुजलाने से त्वचा छिल जाती है और कभी-कभी बड़ा कष्ट होता है। इस दशा से बचने के लिए वैसलीन में, गंधक और धनिये को पीसकर तथा कपडे़ में छानकर मिला लें। इस मलहम को खुजली वाले स्थान पर दिन भर में 3-4 बार लगायें। इससे काफी आराम मिलेगा। नीम को पानी में उबालकर उसके पानी से नहायें। नीम `एंटीसेप्टिक` है। यह त्वचा को धोकर उसमें कीटाणु पनपने नहीं देती है। शरीर को साफ रखें। अधिक गर्म या अधिक ठण्डी चीजें न खाएं। अपने कपड़ों को घर के अन्य लोगों से अलग रखें। जहां तक हो सके हल्का या पचने वाला भोजन लें। चोकर की रोटी खुजली में अधिक लाभदायक होती है। 52. शरीर में सूजन आ जाना : शरीर में सूजन या तो रक्त विकार उत्पन्न होने से हो जाता है या फिर आंतों की खराबी से होता है। कभी-कभी खून के बनने में धीमापन आ जाता है तो ऐसी हालत में पहले चेहरे पर सूजन आती है। फिर धीरे-धीरे सारे शरीर में सूजन का आक्रमण होता है। ऐसी हालत में रोगी को घबराना नहीं चाहिए। वैसे तो इसके लिए ताकत और खून को साफ करने के इंजेक्शन लगाये जाते हैं, परन्तु हमारा मसलेदानी भी सहायता कर सकती है। हमें 50 दाने धनिये के पीस लेने चाहिए। इसमें नमक बिल्कुल न मिलाएं। इस चूर्ण को फंकी बनाकर ऊपर से पपीता खाना चाहिए। यदि पपीता न मिले तो सेब, चीकू या अन्य कोई भी फल दिया जा सकता है। धनिया खून को साफ करता है और फलों का रस पाचन क्रिया को सुधार कर खून को सही रूप में प्रवाहित करता है। धीरे-धीरे शरीर की सूजन घटने लगती है और रोगी पहले की तरह स्वस्थ हो जाता है। सावधानी : याद रखना चाहिए कि गर्म व ठण्डी वस्तुओं का सेवन न करें। नमक कम से कम खाएं चाय भी बहुत हल्की ली जाए। 53. जिगर में गर्मी का प्रकोप : जिगर में कभी-कभी ठण्डी और कभी गर्म चीजें खाने के कारण हल्की गर्मी का प्रकोप हो जाता है। इसमें रोगी को विशेष कष्ट तो नहीं होता परन्तु खून में खराबी उत्पन्न हो जाने के कारण रोगी का शरीर निस्तेज होता है। ऐसी दशा में रोगी को हल्की और पचने वाली वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। इसके लिए मसालेदानी की औषधि भी हमारी सहायता कर सकती है। थोड़ा-सा सूखा धनिया लेकर उसे भून लेते हैं। फिर उसे चूर्ण के रूप में तैयार कर लेते हैं। इस चूर्ण को शहद के साथ लेते हैं। इससे जिगर की गर्मी दूर हो जाती है। सावधानी : स्मरण रहे कि चाय, काफी या गर्म चीजें न लें। हां छाछ का सेवन किया जा सकता है। 54. जिगर में सूजन : जिगर में सूजन पेट की खराबी या कब्ज से होती है। इसमें भूख कम लगती है। खून भी अधिक मात्रा में नहीं बनता है। रोगी के शरीर में पीलापन रहता है। प्रमोद, सुस्ती, काम में मन न लगना आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ऐसी दशा में पहले पथ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। रोगी अधिक कमजोर न हो पाये इसके लिए सबसे पहले उसके पेट को ठीक करना चाहिए। कब्ज को दूर करने के लिए पपीता खिलाना चाहिए क्योंकि पपीता दस्तावर होता है। शहद चाटने से भी लाभ मिलता है। रोटी बनाने के लिए आटे में चोकर की मात्रा अधिक होनी चाहिए। मूंग की दाल की खिचड़ी भी लाभदायक होती है। सावधानी : दिल की सूजन वाले रोगी को धुली हुई दाल नहीं देनी चाहिए। इसके लिए घरेलू दवाई के लिए सबसे पहले 50 ग्राम धनिया बारीक कर लें।उसमें मिश्री और 10 ग्राम भुना हुआ जीरा मिला लेते हैं। तीनों चीजों को पीसकर कपड़छन कर लेते हैं। इस चूर्ण को दिन में तीन-चार लेना चाहिए। इससे हृदय की बीमारी जल्दी ही ठीक हो जाती है जब तक रोग रहे, मनुष्य को चाय, काफी, नशीले पदार्थ नहीं लेने चाहिए। हल्का भोजन और आराम आवश्यक होता है। 55. जोड़ों में दर्द : जोड़ों में दर्द अक्सर शरीर में गैस के बढ़ जाने के कारण होता है। कभी-कभी बलगम की प्रकृति भी अधिक बढ़ जाती है। खून में रोग भी पैदा हो जाता है। ऐसी दशा में धनिया का चूर्ण तथा सोंठ के चूर्ण को शहद के चूर्ण के साथ मिलाकर चटाना चाहिए। 56. गर्मी के कारण होने वाली खांसी : खांसी गले में छोटे-छोटे दाने निकल आने के कारण बनती है या फिर बलगम अधिक बढ़ जाता है। शरीर में गर्मी के अधिक बढ़ जाने से भी खांसी आने लगती है। इसके लिए साबुत धनिये को पानी में उबालकर ठंडा कर लेना चाहिए फिर उसमें थोड़ा सा शहद और पिसी हुई सोंठ मिलाकर पीना चाहिए। इससे बलगम ढीला पड़ता है और जब यह बाहर निकल जाता है तो खांसी कम हो जाती है। अदरक का रस और शहद भी खांसी दूर करने की उपयोगी औषधि है। गले के दाने भी नष्ट हो जाते हैं। 57. तलुओं में छाले निकलना : मुंह के तालु में छाले आंतों की गर्मी से निकल आते हैं। ऐसी दशा में रोगी को भोजन लेना कठिन हो जाता है। इसके लिए धनिये के पानी से कुल्ले करने चाहिए। 50 ग्राम धनिये को 2 लीटर पानी में पका लेना चाहिए। इसके बाद पानी को छान लेते हैं फिर इस पानी से कुल्ले करने चाहिए। दिन में 3 बार कुल्ला करने से रोगी को काफी आराम मिलता है। भोजन में मीठा दलिया, मूंग की दाल से रोटी, दूध चाय आदि लेना चाहिए। छालों की जितनी अधिक सिंकाई होगी, उतना ही आराम मिलेगा। धनिये के पानी में ग्लिसरीन मिलाकर फुरेरी से तालु पर लगाना चाहिए। कुछ देर के बाद लार टपका देनी चाहिए। रोगी के छाले तीसरे दिन से सूखना प्रारंभ हो जाएंगे। रात में पूरी नींद लेनी चाहिए। 58. चेहरे पर झाईयां पड़ जाना : चेहरे पर झाईयां गर्मी के कारण पड़ जाती हैं। कभी-कभी खून में रोग उत्पन्न हो जाने के कारण भी ऐसा होता है। इससे चेहरे की सुन्दरता को काफी नुकसान पहुंचता है। इसके लिए धनिये के पानी में खीरे का रस मिलाकर झाईयों को धोना चाहिए। इसके अलावा सुबह-शाम धनिये के कुछ दाने मुंह में डालकर चबाने चाहिए। रस को गले के नीचे उतारकर छूंछ को थूक देना चाहिए। यह काफी गुणकारी औषधि होती है। इसके अलावा, ककड़ी, खीरा, सेब, नाशपाती का रस लेना चाहिए। खीरे, ककड़ी और हरे धनिये में पोटाश तथा लवण की मात्रा होती है, जो झाईयों को दूर करते हैं। रात को धनिये के पानी में अदरक का रस मिलाकर मुंह पर लगाना चाहिए। सुबह साफ पानी से मुंह को धो डालना चाहिए। धीरे-धीरे त्वचा के सारे रोग नष्ट हो जाते हैं। 59. थकान और शरीर का टूटना : हम सभी जानते हैं कि थकान अधिक काम करने से होती है। कभी-कभी अधिक सर्दी या गर्मी में रहने, जमीन पर सोने या फिर कडे़ स्थान पर सोने से भी शरीर टूटने लगता है। इसके लिए एक बाल्टी पानी में 100 ग्राम धनिया, 2 चम्मच नमक और 4 चम्मच कड़वा तेल मिलाकर शरीर के निचले अंगों को सहते गर्म पानी में डुबोना चाहिए। थोड़ी देर में थकान और टूटन दोनों दूर हो जाते हैं। नसों में खिंचाव, मांसपेशियों में सूजन और जोड़ों में एसिड उत्पन्न हो जाने के कारण भी थकान व शरीर टूटने की शिकायत हो जाती है। विश्राम से भी रोगी को काफी लाभ मिलता है। तेज हवा में नहीं सोना चाहिए वरना और भी अधिक हानि हो सकती है। शरीर को चादर से ढककर सोने से भी शरीर का टूटना कम हो जाता है। 60. स्नायु की दुर्बलता : इस बीमारी को अंग्रेजी में नर्वस ब्रेकडाउन भी कहते हैं। इस रोग में रोगी को लगता है कि जैसे उसके शरीर की प्राणशक्ति किसी ने निचोड़ ली है। हाथ-पांव भी फूल जाते हैं। रोगी का दिल घबराने लगता है कि उसकी मृत्यु शीघ्र ही हो जाएगी। कभी-कभी जी मिचलाने लगता है। इसके लिए रोगी को 4 पत्तियां तुलसी, 10 दाने धनियां और 2 कालीमिर्च, 2 कप पानी में उबालकर चाय बनी लेनी चाहिए। फिर उसमें से थोड़ी-सी शक्कर डालकर रोगी को पिलानी चाहिए। इससे रोगी की घबराहट दूर हो जाती है और उसकी दशा प्राकृतिक हो जाती है। इसमें हल्का भोजन और आराम आवश्यक होता है। तुलसी और धनिये का रस पानी की तरह नाक में टपकाना चाहिए। 61. नींद न आने की शिकायत : नींद न आने की शिकायत लगातार कुछ सोचने, मानसिक अशांति, पेट में कब्ज, अत्यधिक थकावट, असामान्य बीमारी आदि के कारण होती है। कुछ लोग इस अवस्था में नींद की गोलियां ले लेते हैं। ऐसा कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रारम्भ में नींद तो आ जाती है। परन्तु कुछ दिनों बाद नींद की गोलियां मन को सहज हो जाती है। अत: ये अपना प्रभाव डालना बंद कर देती हैं। तब मनुष्य और अधिक परेशानी में पड़ जाता है। इसके लिए दाल-सब्जी आदि में नमक की मात्रा कम कर देनी चाहिए। हल्का भोजन लेना चाहिए यदि कब्ज हो तो उसे दूर करना चाहिए। स्वादिष्ट व सुगंध खाने वाली चीजों को छोड़ देना चाहिए। तेज-मिर्च मसाले आदि नहीं खाने चाहिए। धनिया के 25 दाने, 1 लाल इलायची, 2 कालीमिर्च को पीसकर चूर्ण बना लेना चाहिये। फिर इस चूर्ण को दो चुटकी लेकर ऊपर से गुनगुना पानी ले लेना चाहिए। पांव के तलुवें में देशी घी या सरसों का तेल मलना चाहिए। इससे तनाव कम होकर नींद आ जाती है। 62. अधिक पसीना आना : जब शरीर अधिक पसीने से भीग जाए तो समझ लेना चाहिए कि जिगर में कोई खराबी है। इसमें भूख कम हो जाती है। शरीर पसीने के बाद शिथिल (ढीला) पड़ जाता है। काम में मन नहीं लगता है। हाथ और पैर फूल जाते हैं। रोगी घबराहट का अनुभव करने लगता है। भोजन में अरुचि हो जाती है। जीभ सूखी सी और कड़वी हो जाती है। अत: व्यक्ति को 5 दाने धनिये के पपीते के साथ लेना चाहिए। अदरक और शहद को साथ लेने से भूख खुलकर लगती है। अदरक के रस को शहद के रस में मिलाकर उंगली से चाटना चाहिए। मुंह की लार जितनी अधिक पेट के अंदर जाएगी, उतना ही अधिक पेट का भारीपन घटेगा। नमक की मात्रा कम कर देने से भी अधिक पसीना आने की शिकायत दूर हो जाती है। 2 ग्राम पिसे हुये धनिये को दिन में 3 बार पानी के साथ लेने से पसीना आना कम हो जाता है। 63. पथरी : पथरी के हो जाने पर साधारण पीड़ा बहुत ही भयानक हो जाती है। यह मूत्राशय या गुर्दे में होती है। इसके प्रभाव से पेशाब करते समय दर्द, पेट में अफारा (गैस), हल्का बुखार, गुर्दे में पीड़ा आदि होने लगती है। पथरी के बनने के कई कारण बताये जाते हैं। खाने-पीने में अनियमितता, वीर्यस्राव का रुक जाना आदि कारणों से पथरी का रोग हो जाता है। इसके लिए विभिन्न दवाएं दी जाती हैं। यदि उससे लाभ नहीं होता है तो ऑपरेशन कराना पड़ता है। पथरी की शिकायत होने पर 20 ग्राम धनिये को 1 लीटर पानी में उबालते हैं। फिर इसे छानकर मूली को पीसकर उसका रस इसमें मिला लेते हैं। फिर इसमें सेंधानमक मिलाकर एक बोतल में भर लेते हैं। इस बोतल को 8 दिन तक धूप में रखते हैं। इसे 4 चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ पीने से पथरी गलकर पेशाब के साथ निकल जाती है। 50 ग्राम सूखा धनिया, 50 ग्राम सौंफ तथा 50 ग्राम मिश्री को डेढ़ किलो पानी में सुबह भिगो दें तथा शाम को छानकर पीस लें और उसी पानी में घोलकर छानकर पीयें। इस तरह सुबह को भिगोकर शाम को तथा शाम को भिगोकर सुबह को रोजाना पीयें। इससे पेशाब खुलकर आता है तथा पथरी गलकर बाहर निकल जाती है। 64. पागलपन का हल्का दौरा: जब कभी दिमाग पर भीतरी गर्मी प्रभाव छोड़ती है तो पागलपन का हल्का दौरा पड़ने लगता है। उस व्यक्ति को होश नहीं रहता है कि वह क्या कर रहा है। उसकी मुंह से उल्टी सीधी बातें निकल जाती हैं। चेतना क्षीण होने लगती है। ऐसी दशा में धनिया को शहद के साथ चाटना चाहिए। रोगी के सामने ऐसी वैसी बातें नहीं करनी चाहिए। उनको यही आभास दिलाते रहना चाहिए कि वह जो कुछ कह रहा है ठीक ही कह रहा है। 10 ग्राम से 20 ग्राम की मात्रा में धनिये के चूर्ण को सुबह और शाम के समय देने से संभोग की वजह से हुआ पागलपन ठीक हो जाता है। 65. पुट्ठों में दर्द : पुट्ठों में दर्द सर्दी-गर्मी के द्वारा विकार उत्पन्न होने से हो जाता है। इसमें रोगी को बहुत दर्द होता है। इसलिए सबसे पहले खान-पान में संयम बरतना चाहिए। इसके बाद इलाज शुरू करना चाहिए। 20 ग्राम सरसों के तेल में 50 दाने धनियां, 1 पोटी लहसुन और 1 चुटकी नमक डालकर भूनना चाहिए। बाद में इस तेल को छान लेना चाहिए। इसके बाद तेल की धीरे-धीरे मालिश करनी चाहिए। इस क्रिया से पुट्ठों में तनाव और खिंचाव कम हो जाता है। इस क्रिया के दौरान ठण्डी वस्तुएं खाना वर्जित होता है। 66. बवासीर (अर्श) : बवासीर दो प्रकार की होती है वादी बवासीर और दूसरी खूनी बवासीर। खूनी बवासीर में मस्सों से खून आता है। परन्तु बादी में गुदा के भीतर-बाहर मस्से निकल आते हैं, जिनमें खुजली मचती है। ये मस्से कांटे की तरह चुभते हैं। बवासीर अक्सर कब्ज के कारण होती है। यह बड़ा भयंकर रोग है। इससे बचने के विभिन्न उपाय हैं। जैसे भोजन सुपाच्य लेना चाहिए, पेट में कब्ज न बनने दिया जाए अधिक खाने या खाने के बाद मैथुन से बचा जाए। बादी की चीजें जैसे अमरूद, भिण्डी, अरुई, बैंगन, उड़द, अरहर की दाल तथा अधिक वसायुक्त पदार्थ नहीं खाने चाहिए। चावल और बैंगन का प्रयोग भूलकर भी न करें क्योंकि ये दोनों भोज्य पदार्थ वादी और बवासीर वाले व्यक्ति को बहुत हानिकारक होते हैं। इसके उपचार के लिए वैसलीन में पिसा हुआ कत्था, 100 दाने धनिया, 10 बूंद मिट्टी का तेल, सत्यानाशी पौधे की जड़ ये सभी चीजें पीसकर और कपडे़ में छानकर वैसलीन में मिला लेते हैं। इस मरहम को गुदा में लगाने से बवासीर के मस्से ठीक हो जाते हैं। यदि खून निकलता है तो वह भी बंद हो जाएगा। धनिये के काढ़े में मिश्री मिलाकर रोजाना 2-3 बार पीने से खूनी बवासीर ठीक हो जाती है। हरे धनिया का 1 चम्मच रस निकालकर उसमें थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह के समय पीने से खूनी बवासीर मिट जाती है। धनिये को मिश्री के साथ मिलाकर चूर्ण बना लें। 1 कप गर्म पानी में 1 चम्मच चूर्ण डालकर रोजाना सुबह-शाम पीने से मलद्वार की जलन तथा खूनी बवासीर ठीक हो जाती है। सूखे धनिये को दूध और मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से खूनी बवासीर ठीक होती है। 67. हर समय जम्हाइयां आना : यदि हम कुछ लोगों के सामने बैठे हों और उस समय जम्हाई के कारण मुंह को बार-बार फाड़ना पडे़ तो बहुत ही खराब लगता है। इसका आना भी एक रोग है। यह शरीर को आलस्य की पीड़ा में घेरे रहता है। काम में मन नहीं लगता है। यदि काम करना पडे़ तो शीघ्र ही मन ऊब जाता है। जम्हाइयां या तो शरीर में थकावट बनी रहने के कारण आती है या फिर नींद ठीक से न आने के कारण। इसके लिए धनिये का चूर्ण गर्म पानी के साथ लेना चाहिए। यदि यह बीमारी सी बन गई हो तो 20 दाने धनिये को एक लीटर पानी में उबालकर इस पानी से मुंह धोना चाहिए, जम्हाइयां आनी अपने आप ही बंद हो जाएगी। 68. मिर्गी का रोग : इस रोग में व्यक्ति को बेहोशी के दौरे पड़ने लगते हैं। मुंह से झाग भी आने लगती है। मिर्गी के दौरे अक्सर दिमाग की नाड़ियों में विकार आने से होने लगता है। मिर्गी के दौरे पड़ने के बाद लोग रोगी को जूता सुंघाते हैं, उसके सिर के बालों को पकड़कर खींचते हैं जो गलत काम है। ऐसे व्यवहार रोगी के साथ भूलकर भी नहीं करना चाहिए। दौरा पड़ने की हालत में रोगी को खाट पर लिटा देना चाहिए। इसके बाद रोगी के मुंह पर पानी के छींटे मारें, जब रोगी को होश आ जाए तो उसे धनिये के पानी में लाहौरी नमक मिलाकर पिलायें। इससे कुछ दिनों बाद रोगी को दौरे पड़ने बंद हो जाते हैं। रोगी से ऐसी बात कभी नहीं कहनी चाहिए जिससे कि उसे कुछ सोचने का अवसर मिले। चिन्ता से रोगी को बचाये रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होता है। 69. मुंह का पक जाना : इस रोग में जीभ, तालु, गलपटों आदि सभी जगहों पर छाले निकल आते हैं। इन छालों में कांटे से चुभते हैं और रोगी को दर्द भी होता है। इसके लिए देशी घी में 5 ग्राम धनियां और 5 ग्राम पिसा कत्था, दोनों चीजों को पीसकर मिला लेना चाहिए। फिर इस मरहम को छालों पर लगाकर लार टपका देनी चाहिए। 2 दिन में छाले सूखने शुरू हो जाते हैं। छालों का इलाज करने से पहले यदि पेट को साफ कर लिया जाए तो काफी लाभ होता है। कभी-2 ये छाले आंतों में होने वाली गर्मी से भी हो जाते हैं। छालों में कम नमक का फीका भोजन लेना चाहिए। दूध, नींबू की गर्म शिकंजी, दलिया, साबूदाना आदि छालों के समय काफी लाभकारी रहते हैं। 70. मूर्च्छा आना : बेहोशी आने की हालत में रोगी को अपने शरीर का होश नहीं रहता है। वह अधिक कमजोरी अनुभव करता है और आंखों के सामने अंधेरा छा जाने के कारण गिर जाता है या फिर खाट पर लेटने के साथ ही बेहोश हो जाता है। इसके लिए 1 कप पानी में 10 ग्राम धनियां और 4 पत्ते तुलसी के डालकर उबालना चाहिए जब पानी आधा शेष रह जाए तब इसे उतारकर ठंडा कर लेना चाहिए। इसके पानी को चम्मच से रोगी के मुंह में डालना चाहिए। 4-5 बूंदे पानी नथुने में भी डालने चाहिए। ऐसा करने से कुछ ही क्षणों बाद बेहोशी दूर हो जाती है। होश आ जाने पर 10 दाने धनिये के, 4 बूंद अदरक का रस और 4 बूंद तुलसी का रस शहद के साथ चटाना चाहिए और रोगी से कोई भारी काम नहीं लेना चाहिए। 71. मोटापा दूर करना : शरीर में चर्बी बढ़ जाने के कारण मोटापा पैदा हो जाता है। मोटे पुरुष या स्त्री का रक्तचाप बढ़ जाता है। इसका मुख्य लक्षण यह है कि वायु संचरण में बाधा पड़ती है। त्वचा फूल जाती है जिसके कारण शरीर पूर्णरूप से वायु ग्रहण नहीं कर पाता है। अधिक चर्बी के कारण दिल पर भी प्रभाव पड़ता है। दिल धीमी गति से कार्य करना शुरू कर देता है। इसके लिए मोटे व्यक्ति को सर्वप्रथम हल्का व्यायाम करना चाहिए। इसके अन्तर्गत सुबह-शाम टहलना, योगासन करना, चिकनाई वाले पदार्थ त्याग देना आदि क्रियाएं काफी लाभदायक होती हैं। सुबह 2 चम्मच अदरक का रस शहद के साथ लेना चाहिए। कभी भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए। चावल, राबड़ी अधिक दूध, स्नेहयुक्त पदार्थों का सेवन बंद कर देना चाहिए। अनन्नास का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए। तेल की मालिश करना भी आवश्यक होता है। औषधि के रूप में 10 ग्राम सूखा धनिया, 20 ग्राम गुलाब के सूखे फूल और मिश्री को मिलाकर 2 चुटकी सुबह और 2 चुटकी शाम को दूध के साथ लेना चाहिए। इससे चर्बी कम हो जायेगी और मोटापा दूर हो जाएगा। 72. सिर में असहनीय पीड़ा : सर्दी, जुकाम के कारण यदि सिर में दर्द हो रहा तो घबराना नहीं चाहिए। सबसे पहले तो रूई के फोहे से गला, माथा तथा सीना सेकना चाहिए। सिंकाई कम से कम 10 मिनट तक करनी चाहिए। इसके बाद पिसा हुआ धनिया पानी के साथ गर्म करके माथे पर लेप करना चाहिए। यदि सिर में झनझनाहट हो रही हो तो सबसे पहले कुछ देर के लिए आराम करना चाहिए। इसके बाद तुलसी की 2 पत्तियों को 2 कालीमिर्च के दानों के साथ पीसकर चबाना चाहिए। धनिया और तुलसी का रस मिलाकर माथे पर लगाने से आराम मिलता है। 73. मनोविकारों से मुक्ति के लिए : मन में अश्लील विचार आने, क्रोधी स्वभाव, घमंड तथा गालीगलौज, पूर्ण वार्तालाप से मन को मुक्त करने में तथा स्वप्नदोष में धनिया बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसके लिए धनिया 25 ग्राम, 5 ग्राम देशी बबूल का गोंद तथा 5 ग्राम कपूर को बारीक पीसकर व थोड़े से ताजा पानी में मिलाकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर रख लेते हैं। ये 4-4 गोली सुबह-शाम ठंडाई के साथ कुछ ही दिनों तक लेने से उपरोक्त मनोविकारों से मुक्ति मिलती है। 74. आंखों की सुरक्षा : हरे धनिये के पत्तों का रस निकालकर रोजाना 3-4 बार आंखों में डालते रहने से उनकी गर्मी शांत हो जाती है तथा आंखों की जलन, धुंध, लाली, दर्द आदि रोगों में फायदा होता है। 75. सूजाक : 250 ग्राम हरे धनिये का रस, 50 ग्राम ब्रांडी तथा 15 ग्राम चन्दन के तेल को अच्छी तरह से मिलाकर किसी कार्क वाली बोतल में भरकर 1 सप्ताह के लिए बंद रखी रहने देते हैं। इसके बाद 10-12 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से मूत्रमार्ग की जलन, मवाद आना, पीव निकलना या रुधिर टपकना आदि रुक जाता है। यह सूजाक जैसे भयंकर रोग की सबसे सरल और सबसे उपयोगी दवा है। इस रोग से ग्रसित रोगियों को इसका लाभ अवश्य उठाना चाहिए। 76. खटमल, मच्छर आदि : यदि खाट में खटमल हो गये हैं और वे रात दिन मनुष्य का खून चूसते हैं तो नौसादर, पिसा धनिया और अजवायन को तीनों को मिलाकर खाट पर बुरक दीजिए खटमल खाट को छोड़कर भाग जाएंगे। यहीं चूर्ण दीमकों को भी नष्ट करने के लिए उपयोगी होता है। इसी प्रकार धनिया स्वास्थ्य के छींटे अपने अन्य उपायों से भी लाता है। यदि हम धनिये को उपले की आग पर डाल दें घर के कोनों में बसेरा कर रहे मच्छर भाग जाएंगे। धनिये द्वारा बनाया गया धुंआ वातावरण को शुद्ध करता है। 77. विषमारक : बारिश के मौसम में घर में परदार चींटे काकरोच, घेंसे, मक्खियां आदि अपना अड्डा बना लेती हैं। उस दशा में तरह-तरह के रोग फैलने का डर बना रहता है। उस समय धनिया और नीम की पत्तियों की धूनी घर में देनी चाहिए। नीम की पत्तियों को सुखाकर धनिये के साथ पीस लेनी चाहिए। फिर इस चूर्ण को काकरोच और घेंसों पर डालना चाहिए। दोनों या तो नष्ट हो जाएंगे या फिर अपना घर छोड़ देंगे। साधारण धनियां विषनाशक (जहर को समाप्त करने वाला) भी होता है। प्रकृति ने इसमें रोगरोधक शक्ति भरी है। प्रत्येक घर के मसालेदानी में धनिये का होना आवश्यक होता है। धनिया में पेशाब के रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है। इसलिए जिसे हम जितनी मात्रा में लेते हैं। उससे अधिक यह हमारे शरीर की सफाई करता है। यह शरीर में अमृत रस बढ़ाती है तथा विषैले पदार्थों को मल या पेशाब के जरिये बाहर निकाल देती है। कुछ लोगों का कहना है कि धनिया जहर को बढ़ाता है। यदि हम उसकी बात का विश्वास कर लें तो भी धनिये से बहुत ही अधिक लाभ होते हैं। 78. धनिया दाल व सब्जी को स्वादिष्ट बनाता है : जिस साग-सब्जी में मसाले के साथ धनिये का प्रयोग किया जाता है। वह साग-सब्जी स्वादिष्ट हो जाती है। उसका मटमैला रूप निखर जाता है। खाने में स्वाद बढ़ जाता है। इसके प्रयोग से सब्जी के खराब तत्व अपने आप ही नष्ट हो जाते हैं जब साग-सब्जी ठीक प्रकार से बनती है तो इससे पेट की आग शान्त हो जाती है। मानव उसका प्रयोग रुचि के साथ करता है जोकि अनजाने में ही दवा का काम करता है। यदि हम साग-सब्जी में धनिये का प्रयोग बंद कर देते हैं तो दिनों-दिन निखार से दूर होते जाएंगे और शीघ्र ही हमें कोई न कोई बीमारी घेर लेगी। 79. धनिया वृद्धावस्था को दूर करता है : सूखा धनिया दाल तथा साग-भाजी में जरूर डालना चाहिए क्योंकि यह चेहरे की झुर्रियों को दूर करता है। इसमें ऐसे रोगों को दूर करने की शक्ति होती है जो बुढ़ापे में अक्सर हो जाया करते हैं। बूढ़ों को गर्म पानी में 10 ग्राम धनिये के दाने डालकर कुछ देर तक स्नान करना चाहिए। इस पानी में त्वचा को सुरक्षित करने की शक्ति होती है जब कभी त्वचा ढीली पड़ जाए या फिर सिर के बाल झड़ने लगे तो धनिया डालकर उबाले हुए पानी का सेवन करना चाहिए। यह शरीर में जहर को बनने नहीं देता है। इस प्रकार धनियां रोग नाशक, वृद्धावस्था को भगाने वाला तथा शरीर की शक्ति को संचित करने वाला होता है। 80. धनियां शरीर के रंग को निखारता है : धनिये में एक प्रकार का क्षारीय तत्व होता है जो त्वचा को धो देता है। इस तत्व के कारण ही शरीर में गोरापन आ जाता है। यदि हम उबले या कच्चे चनों पर धनिया को बुरक लेते हैं तो यह सोने में सुहागा का कार्य करता है। यह शरीर के भीतर पहुंचकर आंतों की गर्मी को बढ़ा देता है। फिर यह धीरे-धीरे कमजोर अंगों को सबल बना देता है। यदि किसी मनुष्य की टांगों में कमजोरी हो तो यह चलने फिरने की शक्ति को बढ़ाता है। गर्मी या सर्दी के प्रभाव को रोकता है। वरना व्यक्ति मौसम के प्रभाव से शीघ्र ही रोगी हो सकता है। 81. धनिये का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक नहीं होता : घरों में कचौड़ी बनाने के लिए पिट्ठी तैयार की जाती है परन्तु उस पिट्ठी में जब तक धनिया नहीं मिलाया जाता है तब तक पिट्ठी ठीक नहीं बन पाती है। इससे एक ओर तो कचौड़ी का स्वाद बढ़ जाता है और दूसरी ओर कचौड़ी की गर्मी दूर हो जाती है जो पेट में पहुंचकर अपनी गर्मी से आंतों को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है। आंतों के दांत नहीं होते हैं। परन्तु धनियां आंतों के दांतों का काम करता है। इससे शरीर को विनाश की ओर ले जाने वाले तत्व नष्ट हो जाते हैं। शरीर में रोगाणु पनपने नहीं पाते हैं। पानी के दूषित तत्वों को नष्ट करने की भी इसमें शक्ति है। असल में धनिया ऊर्जा को स्थायी करते हुए चलने फिरने की शक्ति को बनाएं रखता है। यदि शरीर में फोड़े-फुन्सी निकल आये तो इसके प्रयोग से वे शीघ्र ही सूख जाते हैं। यदि धनिये का पानी इस्तेमाल किया जाता है तो यह एक प्रकार का जीवन रस बनकर खून को शुद्ध करता है। 82. आग से जलना : यदि शरीर का कोई अंग आग से जल गया हो तो उस समय बडे़ धैर्य से काम लेना चाहिए। सबसे पहले उस अंग को पानी से धो लेना चाहिए या फिर उसे कुछ देर तक पानी में डाले रहना चाहिए। ऐसा करने से जलन कम होती है और आराम भी मिलता है। कुछ न हो तो कपड़े को पानी से तर करके जले हुए भाग पर रखना चाहिए। इससे जलन पर एक तरह का मलहम लग जाता है। इसके बाद घरेलू चिकित्सा करनी चाहिए। इसके लिए 50 दाने धनिया, एक टिकिया कपूर, थोड़ा सा गोले का तेल इन चीजों को खरल या किसी बर्तन में घोंटकर मलहम बना लेना चाहिए फिर इसको दिन में कई बार जले हुए अंगों पर लगाना चाहिए। कुछ ही दिनों में जले का घाव ठीक होने लगेगा और दाग भी नहीं पडे़गा। 83. कट जाना : चाकू, कैंची, छूरी आदि किसी भी शस्त्र से शरीर का कोई भी भाग किसी भी समय कट सकता है। इसलिये सबसे पहले उस स्थान का खून बंद करना चाहिए। इसके लिए उस स्थान को कसकर दबा लेना चाहिए, फिर ठण्डे पानी से कपड़े को भिगोकर उस स्थान पर रख देना चाहिए। इसके बाद कटे हुए घाव पर 10 ग्राम धनिया बारीक पीसकर घी में मिलाकर लगाना चाहिए। कुछ ही दिनों में घाव भरना या कटा हुआ स्थान जुड़ना शुरू हो जाएगा। 84. आघात की दशा : शरीर का कोई अंग कुचल जाए, चिर जाए, बिंध जाए तो इस घटना को आघात कहते हैं या फिर शरीर का कोई भाग दब जाए तो वह भी आघात की सीमा में आता है। इसके लिए यदि गुप्त चोट लगी हो तब तो दूसरा उपाय करना चाहिए परन्तु यदि खून बहने लगा हो तो सबसे पहले उसे बंद करना चाहिए। जख्म के ऊपर पानी में भीगी पट्टी बांध देनी चाहिए। यदि चोट के कारण जख्म हो गया हो तो पिसी हल्दी और पिसे धनिये को देशी घी में मिलाकर लगाना चाहिए। यह उपचार बिना धार वाले हथियार जैसे लाठी आदि के लग जाने पर भी लाभदायक होता है। यदि तेज धार वाली चीज लग गई हो सर्वप्रथम घाव को स्प्रिट से साफ करना चाहिए। इसके बाद घाव पर केवल धनिये का मलहम लगाना चाहिए। 85. मसूढ़ों से खून आना : यदि मसूढ़ों से खून आता हो तो धनिये को पानी में उबालकर धीरे-धीरे उस पानी से कुल्ले करने चाहिए। यदि शरीर में कमजोरी अधिक हो तो कपड़े को धनिये के पानी में तर करके खून निकलने वाले स्थान पर रखना चाहिए। इससे खून निकलना बंद हो जाता है। 86. सिर में चोट लगना : यदि सिर में गुम चोट लगी हो तो सरसों के तेल में पिसा हुआ धनिया डालकर उस तेल में कपड़े के फाहे को भिगोकर चोट वाले स्थान पर धीरे-धीरे सेंक करना चाहिए। चोट वाले स्थान पर धनिया की पोटली भी रखी जा सकती है। 87. स्याह (नीला) पड़ जाना : नीला दाग शरीर में खून जमा हो जाने के कारण पड़ता है। अक्सर गिर पड़ने, चोट खाने, मार-पीट आदि के कारण ऐसा होता है। उस स्थान पर रह-रहकर दर्द तथा टीस उठती है। रोगी को किसी भी दशा में चैन नहीं पड़ता है। ऐसी दशा में 10 ग्राम धनिया, 5 ग्राम हल्दी, 2 पुती लहसुन और ग्वार का पत्ता- इन चारों चीजों को सरसों के तेल में अच्छी तरह से पकाना चाहिए। फिर तेल को छानकर साफ शीशी में भर लेना चाहिए। इस तेल को रूई के फाहे पर डालकर चोट वाले स्थान पर लगाकर पट्टी बांध देने से चोट में आराम आ जाता है। 88. मोच आ जाना : ऊंची नीची जगहों पर पैर पड़ जाने या शक्ति से अधिक सामान उठाने के कारण मोच आ जाती है। उस समय नस अकड़ जाती है। इसमें एक प्रकार का खिंचाव आ जाता है। इससे रोगी को बड़ा कष्ट होता है। उसे किसी भी करवट चैन नहीं पड़ता है। ऐसी दशा में 10 ग्राम पिसा हुआ धनिया, 5 ग्राम हल्दी और 5 ग्राम जीरा को तिल्ली के तेल में अच्छी तरह से पका लेना चाहिए। कुछ देर तक मोच वाली जगह पर धीरे-धीरे मालिश करने से लाभ मिलता है। 89. बच्चों की हड्डी उतर जाना : बच्चों को इधर-उधर तथा उल्टा-सीधा घुमाने से हड्डी उतर जाती है। जिससे बच्चा बहुत तेज रोने लगता है। इसकी सीधी सी पहचान है कि बच्चे के सभी अंगों को बारी-बारी से परखना चाहिए। जब लक्षण स्पष्ट हो जाएं तो पहले धीरे-धीरे खींचकर हड्डी को यथा स्थान पर बैठाना चाहिए। हड्डी को ठीक स्थान पर बैठाने का सबसे सरल उपाय यह है कि हड्डी उतरे हुए स्थान पर एक कपड़ा बांध देना चाहिए। फिर धीरे-धीरे बांह, टांग आदि को खींचकर सही कर लेना चाहिए। हड्डी के यथा स्थान पर बैठ जाने के कारण भी दर्द होता रहता है। इसके लिए हल्दी व धनिये का तेल हड्डी उतरे हुए स्थान पर धीरे-धीरे मलना चाहिए। आधा आराम तो उसी क्षण हो जाता है। शेष दर्द 2-3 दिनों में ही रफूचक्कर हो जाता है। हड्डी के जोड़ में भी मजबूती आ जाती है। 90. डंक लगना या मारना : डंक, बिच्छू, बर्र, मधुमक्खी, आदि किसी का भी हो सकता है। इसके लिए बारीक सुई या चिमटी से सबसे पहले डंक निकालना चाहिए। इसके बाद हरा धनिया पीसकर डंक वाले स्थान पर पट्टी बांध देनी चाहिए। 20 मिनट में डंक का जहर उतरने लगता है और रोगी को आराम मिलने लगता है। डंक वाले स्थान पर सूखा धनिया पानी में पीसकर रगड़ने से भी जहर का असर कम हो जाता है। 91. कुत्ते के काटने पर :कुत्ते के काटे हुए स्थान पर थोड़ा सा धनिया, 2 चुटकी सोडा, 2 चुटकी हल्दी और 2 कली लहसुन आदि की पोटली बनाकर बांधनी चाहिए। यदि घाव अधिक गहरा हो तो इंजेक्शन भी लगवाना चाहिए। 92. चक्कर आना : आंवले और हरे धनिये के रस को पानी में मिलाकर पीने से चक्कर आना बंद हो जाता है। 93. पीलिया : पीलिया का रोग होने पर धनिये का रस पीने से लाभ पहुंचता है। 94. बच्चों के मुंह के सफेद छाले : लगभग 5 ग्राम धनिये को 100 ग्राम पानी में रात में भिगोकर सुबह मसलकर छानकर तैयार हिम, फांट या काढे़ से कुल्ले कराने से बच्चों के मुंह के सफेद छाले मिट जाते हैं। 95. थायराइड ग्रन्थि का बढ़ना : थायराइड ग्रन्थि बढ़ जाए, क्रिया उच्च या निम्न हो जाए तो 5 चम्मच सूखा साबुत धनिया 1 गिलास पानी में तेज उबालकर छानकर रोजाना सुबह और शाम रोगी को पिलाएं। 96. आंख आना : धनिये का काढ़ा तैयार करके अच्छी तरह से छान लें। अब इस काढ़े को बूंद-बूंद करके हर 2-3 घण्टों में आंखों में डालने से आंखों में आराम आता है। इस काढ़े को आंखों में डालने की शुरुआत करने से पहले आंखों में एक बूंद एरण्ड तेल (कैस्टर आयल) डाल लें। यह आंख आने और आंखों के दर्द की बहुत लाभकारी दवा है। 97. हस्तमैथुन : धनिये का काढ़ा के सेवन से हस्तमैथुन में लाभ होता है। 98. वात-कफ ज्वर : धनिया, देवदारू, कटेली और सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर प्रयोग करने से वात का बुखार समाप्त हो जाता है। इससे भोजन ठीक से पचता है और भूख भी तेज हो जाती है। 6-6 ग्राम धनिया, लाल चन्दन, नीम की छाल, गिलोय और पद्याख को लेकर लगभग 350 मिलीमीटर पानी में डालकर अच्छी तरह से पकाकर काढ़ा बना लें, जब काढ़ा आधा बच जाये, तब इसे उतारकर छान लें, फिर इस काढ़े में शहद को मिलाकर रोजाना सुबह और शाम खुराक के रूप में पीने से वात और पित्त के बुखार समाप्त हो जाते हैं। 99. दमा : धनिया और मिश्री को चावल के पानी के साथ पीसें, फिर उसी पानी को छानकर पिलाने से बालकों का खांसी और दमे का रोग नष्ट हो जाता है। दमे के रोगी को धनिये की पत्तियों के रस में सेंधानमक मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। 100. वात-पित्त का बुखार : सूखा धनिया, यव, इन्द्र, पित पापड़ा, पटोल (परवल) के पत्ते और नीम की छाल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को बनाकर 4-4 घण्टे के बाद रोगी को देने से वात-पित्त का बुखार उतर जाता है।
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