बुधवार, 31 मार्च 2021

Neem health benefits


Neem benefits 








 परिचय : नीम का पेड़ बहुत बड़ा होता है। नीम का पेड़ वातावरण को शुद्ध बनाने में विशेष भूमिका निभाता है, क्योंकि नीम की पत्तियों में गुणकारी तत्व पाये जाते हैं जो जीवाणुओं को नष्ट करते रहते हैं। नीम की इन रोग प्रतिरोधक शक्तियों के कारण इससे `एंटीसेप्टिक´ औषधियां बनाई जाती हैं। प्राचीन आर्य ऋषियों ने नीम को अलौकिक गुणों से युक्त बताया है कि नीम अनेक प्रकार की बीमारियों को मानव शरीर से दूर करता है। नीम के पत्ते खाकर कई लोग कई दिनों तक जीवित रहे हैं, साथ ही साथ शक्तिशाली भी रहकर अपना सामान्य जीवन व्यतीत किया है। गर्मी के दिनों में नीम के वृक्ष की छाया काफी आनन्दायक होती है। नीम के वृक्ष से गोंद प्राप्त की जाती है, जिससे औषधियां बनाई जाती है। इसका पेड़ देवालयों, धर्मशालाओं, सड़क आदि पर ठण्डी और ताजी हवाओं के लिए लगाया जाता है। गांव में जिस घर के आंगन में नीम का पेड़ होता हैं उस घर के लोग बीमार नहीं रहते हैं क्योंकि वे नीम का प्रयोग करते रहते हैं। जब नीम का पेड़ बहुत पुराना हो जाता है तो इसकी लकड़ी से शुद्ध चंदन की सी सुगन्ध आने लगती हैं। नीम की लकड़ी इमारत आदि बनाने के काम में लाई जाती है। कड़वा होने के कारण इसमें कीड़े नहीं लगते हैं। नीम का पेड़ कई सालों तक जीवित रहता है। नीम के बारे में एक अच्छी कहावत है कि नीम खाने में कड़वा होता है परन्तु काफी गुणकारी होता है। इसलिए इसका प्रयोग करना चाहिए। नीम का वृक्ष बबूल के वृक्ष से काफी अच्छा होता है, क्योंकि खेत के किनारे बबूल का वृक्ष सभी जरूरी पौष्टिक खनिज लवणों को चूस लेते हैं। लेकिन नीम का वृक्ष फसलों के लिए लाभकारी होता है। इसलिए किसानों को इसे अपने खेतों के किनारे अवश्य लगाना चाहिए। विभिन्न भाषाओं में नाम : भाषा नाम हिन्दी नीम संस्कृत निम्ब, अरिष्ट, पिचुमर्द, प्रभद्र गुजराती लीमड़ो बंगाली निममाछ, नीम मराठी कडूनिंब या बालन्तलिम्ब कर्नाटकी बेंबुं तैलिंगी वेप्या मलयलम वेत्पु पंजाबी नीम फारसी आज़ाद -दरख्ते -हिन्दी, नेनबनीम या दरख्तहक अरबी आज़ाद -दरख्तुल -हिन्द कुलनाम मिलएसीज अंग्रेजी मरगोवज ट्री, नीम ट्री वैज्ञानिक नाम अजादिरचता इडिका लैटिन एजोडिरेक्टा इण्डिको रंग : नीम का रंग हरा होता है। स्वाद : इसका पेड़ कड़वा, कषैला और हल्का होता है। स्वरूप : नीम के पेड़ बड़े और ऊंचे होते हैं। नीम के पत्ते नुकीले होते हैं। नीम के फूल मार्च से मई तक आते हैं। फूल सफेद छोटे व विशेष गंधयुक्त के होते हैं। फल खिन्नी के बराबर छोटे-छोटे होते हैं जो कच्चे हरे और पकने पर पीले तथा सूखने पर लाली लिए हुए काले रंग के हो जाते हैं। नीम का पेड़ भारी मोटा और लम्बा होता है। पत्ते आधे से डेढ़ इंच लम्बे दो नोकदार और किनारे पर आरे के समान दांत वाले होते हैं। नीम का वृक्ष 12 से 15 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके तने की त्वक (छाल) खुरदरी भूरे रंग की होती है। इसके पेड़ में बसन्त ऋतु में तांबे के समान नए पत्ते आते हैं, जबकि गर्मी ऋतु में पत्तियां झड़ जाती हैं। वृक्ष के तने से गोंद भी प्राप्त की जाती है, जो पानी में घुलनशील होती है। स्वभाव : यह खाने में शीतल (ठंड़ा) होता है। हानिकारक : नीम उन व्यक्तियों के लिए हानिकारक होता है जिनकी प्रवृति सूखी (रूक्ष) होती है। जिनकी कामशक्ति कमजोर हो उन्हें भी नीम अधिक उपयोग करने से बचना चाहिए। दोषों को दूर करने वाला : सेंधानमक, घी और गाय का दूध नीम के दोषों को दूर करने में मदद करता है। तुलना : नीम की तुलना बकायन से की जा सकती है। मात्रा : नीम के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर, छाल का चूर्ण 2 से 4 ग्राम, तेल 5 से 10 बूंदों तक सेवन कर सकते हैं। गुण : आयुर्वेदिक मतानुसार नीम कडुवी होती है। यह वात, पित्त, कफ, रक्तविकार (खून को साफ करने वाला), त्वचा के रोग और कीटाणुनाशक होती है। नीम मलेरिया, दांतों के रोग, कब्ज, पीलिया, बालों के रोग, कुष्ठ, दाह (जलन), रक्तपित्त (खूनी पित्त), सिर में दर्द, वमन (उल्टी), प्रमेह (वीर्य विकार), हृदयदाह (दिल की जलन), वायु (गैस), श्रम (थकावट), अरुचि (भूख को बढ़ाने वाला), बुखार, पेट के कीड़ें, विष (जहर), नेत्र (आंखों) के रोग, प्रदर आदि रोगों को नष्ट करती है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार नीम गर्म और खुश्क होती है। नीम का गोंद खून की गति को बढ़ाने वाला और रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला) होता है। उपदंश (गर्मी) और चर्म (त्वचा) रोग के लिए यह एक अच्छी औषधि है। होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली के अनुसार नीम पुराने से पुराने रोगों की दवा रखता है जैसे-त्वचा रोग, कुष्ठ, कुनैन आदि। वैज्ञानिक विश्लेषणों के अनुसार नीम में विभिन्न प्रकार के तत्व पाये जाते हैं जैसे-मार्गोसीन, सोडियम मार्गोसेट, निम्बिडिन, निम्बोस्टेरोल, निम्बिनिन, स्टियरिक एसिड, ओलिव एसिड, पामिटिक एसिड, उड़नशील तेल और टैनिन आदि। बीजों से प्राप्त स्थिर तेल 45 प्रतिशत निकलता है, जिसमें गंधक, राल, एल्केलाइड, ग्लूकोसाइड और वसा अम्ल पाए जाते हैं। इसके साथ ही थोड़ी-सी मात्रा में लौहा, कैल्शियम और पोटैशियम आदि के लवण भी थोड़ी बहुत मात्रा में पाये जाते हैं। नीम की गोंद में 26 प्रतिशत पेन्टोसन्स, 12 प्रतिशत गेलेक्टीन व अल्प मात्रा में अल्बयूमिन्स और ऑक्साइडस भी होते हैं। नीम के पेड़ के विभिन्न अंगों का अलग-अलग प्रयोग होता है जो इस प्रकार से हैं- नीम के पत्ते : नीम के पत्ते कड़वे, कृमिघ्न (कीड़ों के नाशक), पित्त, अरुचि तथा विष विकार में लाभ देते हैं। नीम की कोपले : इसकी कोपले संकोचक, वातकारक, रक्तपित्त (खूनी पित्त), आंखों के रोग और कुष्ठ रोग नाशक होती हैं। नीम की सींक (डंडी) : यह रक्त (खून), खांसी, श्वास (दमा), बवासीर (अर्श), गांठे, पेट के कीड़े और प्रमेह आदि रोगों में लाभकारी है। नीम के फूल : नीम के फूल पित्तनाशक तथा कड़वे होते हैं। ये पेट के कीड़े और कफ को समाप्त करने वाले होते हैं। कच्ची निंबौली : कच्ची निंबौली रस में कड़वी, तीखी, स्निग्ध (चिकनी), लघु, गर्म होती है तथा यह फोड़े-फुंसियां और प्रमेह को दूर करती है। नीम की छाल : नीम की छाल संकोचक, कफघ्न (कफ को मिटाने वाली), अरुचि, उल्टी, कब्ज, पेट के कीडे़ तथा यकृत (लीवर) विकारों में लाभकारी होती है। नीम की छाल में निम्बीन, निम्बोनीन, निम्बीडीन, एक उड़नशील तेल, टैनिन और मार्नोसेन नामक एक तिक्त घटक होता है। नीम में एक जैव रासायनिक तत्व प्राप्त होता है जिसे लिमानायड कहते हैं। लगभग 200 प्रकार के हानिकारक कीटाणुओं पर नीम का असर होता है। नीम का पंचांग (फल, फूल, पत्ती, तना और जड़ का चूर्ण) : रुधिर (खून की बीमारी) विकार, खुजली, व्रण (जख्म), दाह (जलन) और कुष्ठघ्न (कोढ़ को नष्ट करने वाला) में पहुंचाता है। नीम के बीज : नीम के बीज दस्तावर और कीटाणुनाशक हैं। पुरानी गठिया, पुराने जहर और खुजली पर इसका लेप करने से आराम मिलता है। नीम का तेल : नीम के तेल की मालिश करने से लाभ होता है। विभिन्न रोगों में सहायक : 1. रक्तार्बुद (फोड़ा) : नीम की लकड़ी को पानी में घिसकर एक इंच मोटा लेप फोड़े पर लगायें। इससे फोड़ा समाप्त हो जाता है। 2. नकसीर (नाक में से खून का आना) : नीम की पत्तियों और अजवायन को बराबर मात्रा में पीसकर कनपटियों पर लेप करने से नकसीर का चलना बन्द हो जाता है। 3. बालों का असमय में सफेद होना (पालित्य रोग) : नीम के बीजों के तेल को 2-2 बूंद नाक से लेने से और केवल गाय के दूध का सेवन करने से पालित्य रोग में लाभ होता है। नीम के तेल को सूंघने से बाल काले हो जाते हैं। नीम के बीजों को भांगरा और विजयसार के रस की कई भावनाएं देकर बीजों का तेल निकाल लें, फिर इसकी 2-2 बूंदों को नाक से लेने से तथा आहार में केवल दूध और भात खाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं। 4. बालों की रूसी : एक मुट्टी नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर नहाने से 1 घंटे पहले सिर पर मलने से रूसी मिट जाती है। नीम की निबौलियों को सुखाकर अरीठा के साथ मिलाकर बारीक पीसकर रख लें। इसे 2 चम्मच भर एक गिलास गर्म पानी में घोलकर सिर को धो लेने से सिर की जूंएं, लीखें, सिर की दुर्गन्ध खत्म हो जाती है तथा बाल काले और मुलायम होते हैं। नीम के पत्तों को पीसकर पानी में उबालकर ठंड़ा होने दें। इसके बाद इसे छानकर इससे सिर को धो लें और बालों को सही तरह से मालिश करें। बालों के सूख जाने पर स्वच्छ एरण्ड का तेल और नारियल का तेल बराबर मात्रा में लेकर इसे मिला लें और इससे सिर की अच्छी तरह से मालिश करें। इससे सिर की रूसी मिट जाएगी। 5. खसरा : खसरा के मरीज के बिस्तर पर रोजाना नीम की पत्तियां रखने से अन्दर की गर्मी शान्त हो जाती है। नीम के ताजे और मुलायम पत्तों को पानी में उबालकर छान लें, फिर उसमें साफ कपड़े की पट्टी को भिगोकर खसरे के रोगी की आंखों पर रखने से आंखों का लाल होना दूर हो जाता है। रोगी को नीम के पानी से नहलाने से खसरे के रोग में जलन दूर होती है। 6. शरीर के आधे अंग में लकवा (अर्धांगवात) : नीम के तेल की 3 सप्ताह तक मालिश करने से लाभ होता है। 7. गंजापन और बालों की वृद्धि : नीम के पत्ते 10 ग्राम, बेर के पत्ते 10 ग्राम दोनों को अच्छी तरह पीसकर इसका उबटन (लेप) बना लें। इस लेप को गंजे सिर पर मालिश करके 1 से 2 घंटे बाद धोने से बाल उग आते हैं। इसका प्रयोग 1 महीने तक करने से लाभ होता है। नीम का तेल 2-3 महीने रोजाना बालों के उड़कर बने हुए चकते पर लगाने से बाल उग आते हैं। 100 ग्राम नीम के पत्तों को 1 लीटर पानी में उबालने के बाद बालों को धोकर नीम का तेल लगाएं। इससे बाल उगने लगते हैं। नीम के तेल को सूंघने से गंजेपन का रोग दूर हो जाता है। 8. बालों को मजबूत बनाना और गिरने से रोकना : नीम के पत्तों को पानी में खूब उबालें। इसके बाद इसे उतारकर ठंड़ा कर लें। इस पानी से सिर को धोते रहने से बाल मजबूत, काले होते हैं और बालों का गिरना या झड़ना बन्द हो जाता है। नीम का तेल रात को सोने से पहले बालों में लगा लें और सुबह नीम वाले साबुन से सिर को धो लें। कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन करने से सिर की जुंए और लीख दूर होती हैं। इसके साथ बाल मजबूत होते हैं। नीम का तेल लगाने से बाल फिर से जम जाते हैं। नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालकर बालों को धोकर बालों को सुखा लें। अब नीम के तेल को बालों की जड़ों में लगाकर मसलने से बालों का गिरना बन्द हो जाता है। सिर के बाल गिरने की शुरूआत ही हुई हो तो इसके लिए आप को नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबाल लेना चाहिए। इससे बालों को धोने से बालों का झड़ना कम हो जाता है। इस तरह बाल काले भी होगें और लंबे भी। इसके प्रयोग से जुएं भी मर जाते हैं। सिर धोते समय इस बात का ध्यान रखें कि यह पानी आंखों में प्रवेश हो। इसके लिए आंखों को बन्द रखें। 9. सिर में खुजली होने पर : नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर सिर को धो लें। सिर को धोने के बाद नीम के तेल को लगाने से सिर की जूएं और लीखों के कारण होने वाली खुजली बन्द हो जाती है। नीम के बीजों को पीसकर लगाने से भी लाभ होता है। 10. कील-मुंहासे : नीम के पत्ते, अनार का छिलका, लोध्र और हरड़ को बराबर लेकर दूध के साथ पीसकर लेप तैयार कर लें। इस लेप को रोजाना मुंह पर लगाने से मुंह और चेहरा निखर उठता है। नीम की छाल के बिना नीम की लकड़ी को पानी के साथ चंदन की तरह घिसकर मुंहासों पर 7 दिनों तक लगातार लगाने से मुंहासे पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं। नीम की जड़ को पानी में घिसकर लगाने से कील-मुंहासे मिट जाते हैं और चेहरा सुंदर बन जाता है। 11. दांतों के रोग : नीम की दातुन करने से दांतों के रोगों में लाभ मिलता है। नीम के फूलों से बने काढ़े से दिन में 3 बार गरारे करें और पतली टहनी को दांतों से चबा-चबाकर सुबह-शाम दातुन करते रहने से दांतों और मसूढ़ों के रोगों से छुटकारा मिलता है। नीम की पत्तियों का रस मलने से दांतों के जीवाणु मिट जाते हैं। नीम की निंबौली की गुठली से प्राप्त किये तेल को दांतों में लगाने से दांतों के कीड़े खत्म होते है और दांतों में दर्द कम होता है। नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर साफ कपड़े से छानकर कुल्ला करने से दांतों के जीवाणु नष्ट होते हैं और पायरिया में भी लाभ मिलता है। नीम की जड़ की छाल का 50 ग्राम चूर्ण, सोनागेरू 50 ग्राम, सेंधानमक 10 ग्राम को पीसकर, नीम के पत्तों का रस मिलाकर सुखाकर शीशी में रख दें। इसका मंजन करने से दांतो में से खून का गिरना, पीव का आना, मुंह में छाले पड़ना, मुंह से दुर्गन्ध का आना, जी मिचलाना आदि रोगों से छुटकारा मिलता है। 100 ग्राम नीम की जड़ को कूटकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब पानी 250 मिलीलीटर शेष रह जाये तो इस पानी से कुल्ला करते रहने से दांतों के रोग दूर होते हैं। सुबह उठते ही नीम की दातुन करने से और फूलों के काढ़े से कुल्ला करने से दांत और मसूढ़ों के रोग से मुक्त मिलती है और दांत मजबूत होते हैं। 12. दंतमंजन बनना : नीम की टहनी और पत्तियों को छाया में सुखाने के बाद जलाकर राख बना लें। इसे पीसकर मंजन बना लें। सुगन्ध और स्वाद के लिए इसमें लौंग, पिपरमेंट और नमक को मिला लें। इससे पायरिया ठीक हो जाता है और दांत मजबूत होते हैं। नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ला करने से दांतों का दर्द मिटता है। नीम के सूखे फूलों का 3 ग्राम कपड़े में छना हुआ चूर्ण रोजाना रात को गर्म पानी के साथ लेना चाहिए। 13. आंखों की पलकों के बालों का झड़ना : नीम के ताजे पत्तों को पीसकर, निचोड़कर इसे पलकों पर लगाने से पलकों के बाल झड़ना बन्द हो जाते हैं। 14. आंखों की सूजन : नीम की 10 से 15 हरी पत्तियों को 1 गिलास पानी में उबालें। इसके बाद इसमें आधा चम्मच फिटकरी को मिलाकर पानी को छान लें। इस पानी से आंखों को 3 बार सेंकने से आंखों की सूजन और खुजली ठीक हो जाती है। 15. आंखों के रोगों में : जिस आंख में दर्द हो उसके दूसरी ओर के कान में नीम के कोमल पत्तों का रस गर्म करके 2-2 बूंद टपकाने से आंख और कान का दर्द कम हो जाता है। नीम के पत्तों और लोध्र को बराबर लेकर पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इस चूर्ण की पोटली बनाकर पानी में भीगने दें। बाद में इस पानी को आंखों में डालने से आंखों की सूजन कम होती है। नीम के पत्तों और सौंठ को पीसकर उसमें थोड़ा सेंधानमक मिलाकर गर्म कर लें और रात के समय एक कपडे़ की पट्टी रखकर आंखों पर बांधे। इससे आंखों के ऊपर की सूजन के साथ दर्द और भीतरी खुजली समाप्त हो जाती है। ध्यान रहे कि रोगी को शीतल पानी और शीतवायु से आंखों को बचाना चाहिए। 500 ग्राम नीम के पत्तों को 2 मिट्टी के बर्तनों के बीच कण्डों की आग में रख दें। शीतल होने पर अन्दर की राख का 100 मिलीलीटर नींबू के रस में कुटकर सूखा लें। इसका अंजन (काजल) लगाने से आंखों के रोगों में लाभ मिलता है। 50 ग्राम नीम के पत्तों को पानी के साथ बारीक पीसकर टिकिया बनाकर सरसों के तेल में पका लें। जब यह जलकर काली हो जाए तब उसे उसी तेल में घोटकर उसमें 500 ग्राम कपूर तथा 500 ग्राम कलमीशोरा मिलाकर खूब घोटकर कांच की शीशी में भर लें। इसे रात को आंखों में काजल के समान लगाने तथा सुबह त्रिफला को पानी के साथ सेवन करने से आंखों की जलन, लालिमा, जाला, धुन्ध आदि दूर हो जाती है तथा आंखों की रोशनी बढ़ जाती है। नीम की कोपलें 20 पीस, जस्ता भस्म 20 ग्राम, लौंग के 6 पीस, छोटी इलायची के 6 पीस और मिश्री 20 ग्राम को एकत्रित करके खूब बारीक करके सुर्मा बना लें। इसे थोड़ा-थोड़ा सुबह-शाम आंखों में लगाने से धुंध ठीक होता है। 10 ग्राम साफ रूई पर 20 नीम के सूखे पत्तों को बिछा दें, फिर नीम के पत्तों पर 1 ग्राम कपूर का चूर्ण रखकर रूई को लपेटकर बत्ती बना लें। इस बत्ती को 10 ग्राम गाय के घी में भिगोकर इसका काजल बना लें। इस बने हुए काजल को रात को लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है। नीम के पत्तों के रस को गाढ़ा कर अंजन (काजल) के रूप में लगाते रहने से आंखों की खुजली, बरौनी (आंखों की पलकों के बाल) के झड़ने में लाभ होता है। 16. मोतियाबिन्द : नीम की बीज की गुठली के बारीक चूर्ण को रोजाना थोड़ी-सी मात्रा में आंखों में काजल के समान लगाना हितकारी होता है। नीम के तने की छाल (खाल) की राख को सुरमे की तरह आंखों में लगाने से आंखों का धुंधलापन दूर होता है। नीम या कमल के फूल के बारीक चूर्ण को शहद के साथ रात को सोते समय आंखों में काजल के समान लगाने से मोतियाबिन्द ठीक हो जाता है। 18. आंव (दस्त के साथ एक प्रकार का सफेद चिकना पदार्थ का आना) : नीम की हरी पत्तियों को धोकर सुखाकर पीस लें, इसे आधा चम्मच सुबह-शाम खाने के बाद 2 बार ठंड़े पानी से फंकी लें। कुछ दिनों तक लेने से आंव का आना बन्द हो जाता है। नीम की हरी पत्तियों को छाया में सुखाकर अच्छी तरह चूर्ण बना लें, यह चूर्ण आधा चम्मच सुबह-शाम ठंड़े पानी के साथ फंकी के रूप में सेवन करने से आंव रुक जाती है। 19. आंखों का फूलना, धुंध जाला : नीम के सूखे फूल, कलमी शोरा को बारीक पीसकर कपड़े में छानकर आंखों में काजल के रूप में लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। रतौंधी (शाम को दिखाई देना बन्द होना) में कच्चे फलों का दूध आंखों में लगा सकते हैं। 20. सिर में दर्द का होना : सूखे नीम के पत्ते, कालीमिर्च और चावल को बराबर लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें, सुबह उठकर जिस ओर पीड़ा हो, उसी ओर के नाक में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक नस्य लेने से पुराने आधे सिर का दर्द तुरन्त नष्ट हो जाता है। नीम के ताजे पत्तों का रस 2 से 3 बूंद की मात्रा में नाक में टपकाने से लाभ मिलता है। नीम के तेल की मालिश करने से सिर के दर्द में आराम आता है। नीम की छाल और आंवला के काढ़े को पिलाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है। सिर में दर्द होने पर नीम की छाल, झाड़ की छाल और चंदन को घिसकर सिर या माथे पर लेप की तरह लगाने से सिर का दर्द खत्म हो जाता है। 21. बुखार : नीम के पत्ते, गिलोय, तुलसी के पत्ते, हुरहुर के पत्ते 20-20 ग्राम और कालीमिर्च 6 ग्राम को बारीक पीसकर पानी के साथ मिलाकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोली बना लें तथा 2-2 घंटे के अंतर के बाद 1-1 गोली गर्म पानी के साथ लेने से इन्फ्लुएंजा में लाभ होता है। नीम की छाल 5 ग्राम, लौंग लगभग आधा ग्राम या दालचीनी लगभग आधा ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें, 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ लेने से सामान्य बुखार में राहत मिलती है। नीम की कोमल पत्तियों को पीसकर, किसी कपड़े में बांधकर रस निकाल लें, इस रस में शहद को मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करने से बुखार कम होता है। सोंठ, गिलोय, नीम की छाल, धनिया, लाल चंदन, पदमकाष्ठ आदि को पीसकर सेवन करने से बुखार समाप्त होता है। नीम की छाल का काढ़ा पीने से लगातार आने वाले बुखार दूर होता है। नीम की छाल, कुटकी, चिरायता, गिलोय और अतीस का अष्टमांश काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पिलाने से आराम मिलता है। 22. पुराना बुखार : नीम के पत्ते 20 से 25 और 25 कालीमिर्च को लेकर मलमल के कपड़े में पोटली बांधकर आधा लीटर पानी में उबाल लें, बचे चौथाई पानी को ठंड़ा होने पर सुबह-शाम पीने से पुराने बुखार में लाभ होता है। नीम की छाल, मुनक्का और गिलोय को बराबर लेकर 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 20 मिलीलीटर की मात्रा में कुछ दिनों तक सुबह, दोपहर और शाम को सेवन करना चाहिए। 23. कान बहना, कान में दर्द : नीम का तेल और शहद बराबर लेकर मिला लें, फिर इसकी 2-2 बूंदे रोजाना 1 से 2 महीने तक कान में डालने से कान के बहने में लाभ मिलता है। नीम के तेल को शहद में मिलाकर रूई की बत्ती को भिगो लें, फिर इस बत्ती को कान में रखने से कान के बहने में आराम मिलता है। नीम के तेल की बूंदे कान में डालने से कान में दर्द कम होता है और कान की फुंसियां खत्म हो जाती हैं। नीम के पत्तों का रस 40 मिलीलीटर और 40 मिलीलीटर तिल के तेल को मिलाकर गर्म कर लें, फिर इस तेल को छानकर 3-4 बूंद कान में डालने से लाभ होता है। कान में दर्द होने पर चंदन या नीम के तेल को गर्म करके बूंद-बूंद की मात्रा में लेकर कान में डालने से लाभ होता है। नीम के पत्तों को उबालते समय इसकी भाप से कान को सेंकने से लाभ मिलता है। 24. यक्ष्मा (टी.बी.) : नीम का तेल 4-4 बूंद कैप्सूल में भरकर टी.बी. के रोग में प्रतिदिन 3 बार प्रयोग करने से लाभ मिलता है। 25. दमा (श्वास) : 10 बूंदे नीम का तेल पान पर लगाकर खाने से दमा व खांसी में लाभ होता है। 26. पित्त ज्वर (पित्त के कारण उत्पन्न बुखार) : नीम के पत्तों का फेन-युक्त रस शरीर पर मलने से पित्त ज्वर की जलन शान्त हो जाती है। नीम की छाल, हल्दी, गिलोय, धनिया और सोंठ इन पांचों को बराबर सेवन से पित्त के बुखार में फायदा होता है। नीम के कोमल पत्तों को नींबू के रस में पीसकर माथे पर लगाने से जलन और बुखार ठीक हो जाता है। नीम और गिलोय का रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर खाने से पित्त ज्वर मिट जाता है। नीम की कोंपल और चिरायते का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी-सी मात्रा में शहद को मिलाकर देना चाहिए। 27. हिक्का (हिचकी) : 2 पीस नीम की सींक को 10 मिलीलीटर पानी में पीस लें, फिर मोरपंख के चांद की राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सेवन करें। नीम की पत्तियों को इकठ्ठा करके उसे जला दें, फिर उसमें कालीमिर्च का चूर्ण डालें। इसका धुआं लेने से हिचकियां आनी बन्द हो जाती हैं। 28. गलकर कटने वाला कुष्ठ (गलित कुष्ठ) : नीम की छाल और हल्दी 1-1 किलो और 2 किलो गुड़ को बडे़ मिट्टी के मटके में भरकर उसमें 5 लीटर पानी डालकर मुंह बन्द कर घोड़े की लीद से मटके को ढ़क दें, 15 दिन बाद निकालकर रस (अर्क) निकाल लें। इस रस को 100 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन कराने से गलित कुष्ठ में लाभ होता है। इसके सेवन के बाद बेसन की रोटी घी के साथ सेवन कर सकते हैं। 29. पेट के कीड़े (उदर कृमि) : सब्जी या बैंगन के साथ नीम के 8-10 पत्तों को छौंककर खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। एक मुट्टी नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर 20 मिलीलीटर की मात्रा में खाली पेट 3 दिन तक पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। नीम के पेड़ की छाल को उतारकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें, इस बने चूर्ण की 2 ग्राम को खुराक के रूप में हींग और शहद के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं। नीम के पेड़ के ताजे पत्तों की कोपलों को पीसकर प्राप्त हुए रस को शहद के साथ मिलाकर पीने से पेट के कीड़े और खून की खराबियां मिट जाती हैं। नीम के पत्तों को तिल के तेल में पकाकर छानकर रख लें, फिर इसी तेल की मालिश करने से सिर की जूं, लीख और बाहरी कीड़े समाप्त हो जाते हैं। नीम की पत्तियों को सुखाकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 2 चुटकी की मात्रा में लेकर शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। नीम के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं। 30. अम्लपित्त (एसिडिटिज, खटटी डकारे) : धनिया, सौंठ, नीम की सींक और शक्कर (चीनी) को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को सुबह-शाम पीने से खट्टी डकारे, अपचन (भोजन का न पचना) और अधिक प्यास का लगना दूर होता है। नीम की जड़ का बारीक चूर्ण 10 ग्राम, विधारा चूर्ण 20 ग्राम, सत्तू को 100 ग्राम लेकर अच्छी तरह से मिला लें। इसे थोड़ी-सी मात्रा में लेकर शहद के साथ सेवन करने से अम्ल पित्त समाप्त होती है। नीम के पत्ते और आंवलों का काढ़ा पीने से अम्लपित्त नष्ट होता है। 31. पेट में दर्द : नीम के पेड़ के तने की मोटी छाल 40-50 ग्राम को जौ के साथ कूटकर 400 मिलीलीटर पानी में पका लें और 10 ग्राम नमक को ऊपर से डाल दें, जब पानी आधा शेष बचे तो इसे गर्म-गर्म ही छानकर पीने से लाभ होता है। 32. दस्त (अतिसार): नीम की 50 ग्राम छाल को जौ के साथ कूटकर पानी में आधा घंटे उबालकर छान लें, फिर इसी छनी हुई छाल को पुन: 300 मिलीलीटर पानी में पकायें, 200 मिलीलीटर शेष रहने पर छानकर शीशी में भर लें और इसमें पहले छाने हुए पानी को मिला दें, इसे 50-50 मिलीलीटर दिन में 3 बार पिलाने से पतले दस्त आने बन्द हो जाते हैं। नीम की 1 ग्राम बीज की गिरी थोड़ी-सी चीनी मिलाकर पीसकर पानी से फंकी लें। ध्यान रहें कि रोगी चावल का सेवन न करें। गर्मी में दस्त होने पर नीम के 10 पत्ते और 25 ग्राम मिश्री पीसकर पानी में मिलाकर पी लें। 5 नीम के हरे पत्तों को पीसकर आधा चम्मच शक्कर (चीनी) मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से दस्त ठीक हो जायेंगे। नीम के पत्तों और हल्दी को मिलाकर अच्छी तरह से पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें, फिर इन्हीं गोलियों में से 1-1 गोली को सुबह-शाम सेवन करने से दस्त का आना बन्द हो जाता है। नीम के 10 पत्तों को पीसकर थोड़ी-सी मात्रा में मिश्री को मिलाकर 1 कप पानी में डालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से लाभ होता है। 1 ग्राम निबौली की गिरी यानी गुठली के बीच के भाग और थोड़ी-सी चीनी को मिलाकर खाकर ऊपर से गुनगुना पानी पीने से लाभ मिलता है। नीम के बीज यानी निबौली की गिरी 10 ग्राम, बड़ी हरड़ की छाल 20 ग्राम को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, इस चूर्ण को 2 से 5 ग्राम की मात्रा में ताजे दूध में मिश्री या चीनी डालकर एक दिन में 2 से 3 बार खुराक के रूप में पीने से खूनी दस्त और पेट के दर्द से छुटकारा मिलता है। 1 ग्राम नीम के बीज (निबौली) की गिरी और थोड़ी-सी चीनी को डालकर अच्छी तरह पीसकर रख लें, फिर इसे फंकी के रूप में खाने से लाभ मिलता है। ध्यान रहे कि खाने में केवल चावल का प्रयोग करें। 33. पुराने दस्त : 1 ग्राम नीम के पेड़ के बीज की गिरी, थोड़ी-सी चीनी मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण को पानी के साथ लें। गर्मी के दिनों में दस्त होने पर नीम के 10 पत्ते और 25 ग्राम मिश्री पीसकर पानी में मिलाकर पीयें। ध्यान रहे कि खाने में केवल चावल का ही प्रयोग करें। नीम के 5 हरे पत्ते और 4 कालीमिर्च को मिलाकर पीस लें और 125 मिलीलीटर पानी में मिलाकर, छान पीने से लाभ होता है। 34. पेचिश: 1 चम्मच नीम की पत्तियों के रस में 2 चम्मच मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है। 35. जूते के कारण घाव बनने पर : नीम के तेल और नीम की पत्तियों की बारीक राख को घावों पर लगाने से आराम मिलता है। 36. यकृत (लीवर): 30 ग्राम नीम के पत्ते 1 गिलास पानी में तेज उबालकर रोजाना पीने से लाभ होता है। मदिरा (शराब) पीने से लीवर जल्दी ठीक होता है। 10 ग्राम नीम की छाल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। उस काढ़े को कपडे़ द्वारा छानकर, उसमें शहद मिलाकर सुबह-शाम रोगी को सेवन कराने से यकृत वृद्धि मिट जाती है। 37. आमातिसार: नीम की छाल की राख 10 ग्राम को दही के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आमातिसार में लाभ होता है। 38. रक्तातिसार (खूनी दस्त का आना): नीम की 3 से 4 पकी निबौलियां खाने से लाभ मिलता है। 39. सांप के काटने पर: नीम के पत्ते सुबह खाने से सांप का जहर नहीं चढ़ता है। 40. पीलिया (पाण्डु, कामला): नीम की जड़ का बारीक चूर्ण 1 ग्राम सुबह-शाम 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद के साथ मिलाकर खाने से पीलिया के रोग में आराम मिलता है। ध्यान रहे यदि घी और शहद अनुकूल न हो तो नीम की जड़ 1 ग्राम चूर्ण गाय के पेशाब या जल या दूध में किसी एक के साथ लेना चाहिए। नीम की सींक 6 ग्राम और सफेद पुनर्नवा की जड़ 6 ग्राम को पीसकर पानी के साथ कुछ दिनों तक पिलाते रहने से पीलिया में आराम मिलता है। नीम के पत्तों का रस 3 चम्मच, सोंठ का पाउडर आधा चम्मच और शहद चार चम्मच को मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से 5 दिन में ही पीलिया ठीक होता है। गिलोय के पत्ते, नीम के पत्ते, गूमा के पत्ते और छोटी हरड़ को 6-6 ग्राम की मात्रा में कूटकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब 50 मिलीलीटर पानी शेष बचे तो पानी को छानकर 10 ग्राम गुड़ के साथ सुबह-शाम सेवन करें। ध्यान रहे कि इसके सेवन से पहले लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शिलाजीत 6 ग्राम शहद के साथ अवश्य चाट लें। इससे पीलिया का रोग ठीक हो जाता है। नीम के पेड़ की छाल के रस में शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर देना चाहिए। पानी में पिसे हुए नीम के पत्तों के 250 मिलीलीटर रस में शक्कर (चीनी) मिलाकर गर्म-गर्म पीने से आराम मिलता है। पित्तनलिका में मार्गावरोध होने के कारण पीलिया रोग हो तो 100 मिलीलीटर नीम के पत्ते रस में 3 ग्राम सौंठ का चूर्ण और 6 ग्राम शहद के साथ मिलाकर 3 दिन तक सुबह पिलाने से लाभ पहुंचता है। ध्यान रहे की इसके सेवन के दौरान घी, तेल, शक्कर (चीनी) व गुड़ आदि का प्रयोग न करें। 10 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस में 10 मिलीलीटर अडूसा के पत्तों के रस व 10 ग्राम शहद को मिलाकर सुबह लें। 10 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस में 10 ग्राम शहद को मिलाकर 5 से 6 दिन तक पीने से आराम मिलता है। नीम के पत्ते के 200 मिलीलीटर रस में थोड़ी शक्कर (चीनी) मिलाकर गर्म करें। इसे 3 दिन तक दिन में एक बार खाने से लाभ होता है। नीम के 5-6 कोमल पत्तों को पीसकर, शहद मिलाकर सेवन करने से मूत्रविकार (पेशाब के रोग) और पेट की बीमारियों में लाभ होता है। कड़वे नीम के पत्तों को पानी में पीसकर एक पाव रस निकाल लें। फिर उसमें मिश्री मिलाकर गर्म करें और ठंड़ा होने पर पी जायें। इससे पाण्डु या पीलिया रोग दूर होता है। नीम की छाल, त्रिफला, गिलोय, अडूसा, कुटकी, चिरायता और नीम की छाल बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इसमें शहद मिलाकर पीने से पाण्डु, कामला या पीलिया जैसे रोग मिट जाते हैं। नीम के पत्तों का आधा चम्मच रस, सोंठ 2 चुटकी और शहद 2 चम्मच। तीनों को मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करें। 41. प्रमेह (वीर्य विकार), सुजाक (गिनोरिया की बीमारी) : नीम के पत्तों को पीसकर टिकिया बना लें। फिर उसे गाय के घी में तलकर रख लें। जब टिकिया जल जाए तो घी को छानकर रोटी के साथ लगाकर सेवन करें। इससे दोनों रोगों में लाभ मिलता है। नीम के पत्ते के 10 मिलीलीटर रस को शहद के साथ मिलाकर सेवन करें। 20 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस को 1 ग्राम नीला थोथा घोटकर सुखा लें, फिर इसे कौड़ियों में रखकर भस्म करें। इसके बाद इसे लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग लेकर गाय के दूध के साथ सेवन करें। इसे दिन में 2 बार लेने से आराम मिलता है। 42. मलेरिया का बुखार: 20 ग्राम नीम की जड़ की छाल को कूटकर 160 मिलीलीटर पानी में रात को भिगो दें। इसे सुबह के समय उबालकर काढ़ा बना लें। यह काढ़ा दिन में तीन बार मलेरिया के रोगी को देने से लाभ मिलता है। नीम की जड़ की बीच की छाल 50 ग्राम को कूटकर 600 मिलीलीटर पानी में लगभग 20 मिनट तक उबालकर छान लें। जब रोगी को मलेरिया का बुखार चढ़ रहा हो तो बुखार चढ़ने से पहले 40 से 60 मिलीलीटर 2 से 3 बार पिलाने से बुखार (मलेरिया) रुक जायेगा। नीम के तेल की 5-10 बूंद दिन में 1 या 2 बार सेवन करना चाहिए। 60 ग्राम नीम के हरे पत्ते, 4 कालीमिर्च को पीसकर 125 मिलीलीटर पानी में छानकर पीने से मलेरिया ठीक होता है। नीम के पत्ते, निबौली, कालीमिर्च, तुलसी, सोंठ, चिरचिटा को समान मात्रा में मिलाकर 1 गिलास पानी में इतना उबाल लें कि आधा पानी उड़ जाए। इसके बाद इसे छानकर 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पीने से मलेरिया के बुखार में लाभ मिलता है। नीम के कोमल पत्तों में उसकी आधी मात्रा में फिटकरी भस्म मिलाकर कूट लें, फिर लगभग आधा ग्राम की गोलियां बना लें। इसकी 1-1 गोली मिश्री के शर्बत के साथ लेने से मलेरिया में लाभ मिलता है। नीम के थोडे़-से पत्ते और 8 से 10 कालीमिर्च लेकर 1 कप पानी में उबाल लें। पानी जब आधा कप शेष बचे तो सुबह-शाम देने से लाभ होता है। 60 ग्राम नीम के हरे पत्ते और 4 कालीमिर्च को मिलाकर पीस लें। इसे रोगी को पिलाने से मलेरिया का बुखार ठीक हो जाता है। नीम की 5 पत्तियां, तुलसी के 5 पत्ते और 1 चम्मच नींबू के रस की चटनी बनाकर सुबह-शाम खाने से लाभ होता है। नीम की छाल 10 ग्राम, सूखा धनिया 10 ग्राम, सोंठ का चूर्ण 10 ग्राम तथा तुलसी के 5 पत्ते को पीसकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को दिन में 4 बार लेने से बुखार में लाभ होता है। नीम की छाल के काढ़े में धनिया और सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया बुखार समाप्त हो जाता है। नीम की आन्तरिक छाल का चूर्ण 2 से 4 ग्राम, धनिया, सोंठ, लौंग, दालचीनी या मिर्च, चिरायता और कुटकी के साथ सुबह-शाम लेने से मलेरिया, विषम, सविराम बुखार में लाभ होता है। 43. खून की बीमारी (रक्त विकार): नीम की जड़ की छाल का काढ़ा 5-10 मिलीलीटर रोजाना पीने से खून की बीमारी मिटती है। नीम के पत्तों के रस को 5 से 10 मिलीलीटर रोजाना पीने से खून साफ होता है और खून बढ़ता है। नीम के फूलों को पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। इस चूर्ण को आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करें और दोपहर को 2 चम्मच नीम के पत्तों का रस 1 बार प्रयोग करें। 44. खून के बहने और स्त्री प्रदर होने पर:- नीम के वृक्ष के रस मे जीरा डालकर 7 दिन तक सेवन करें। 45. खूनी पित्त (रक्तपित्त): नीम के पत्तों की लुगदी बनाकर 10 मिलीलीटर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ मिलता है। नीम के पत्तों के रस और अडूसा के पत्तों के रस को 20-20 मिलीलीटर लेकर थोड़े शहद के साथ सुबह-शाम सेवन से लाभ मिलता है। 46. चूहे के काटने से (प्लेग): नीम की आन्तरिक छाल 20 ग्राम को पानी के साथ पीसकर छान लें, इस पानी को 50 मिलीलीटर सुबह-शाम पिलाने से तथा पत्तों को बारीक पीसकर पुल्टिश बांधने से प्लेग की गांठें टूटकर बिखर जाती हैं। नीम के पेड़ की जड़ को पानी में कूट-छानकर 10-10 मिलीलीटर की मात्रा में 15-15 मिनट के अंतर से पिलाने से और गांठों पर इसके पत्तों की पोटली को बांधने से तथा आसपास इसकी धूनी (धुनी) करते रहने से लाभ मिलता है। नीम का सेवन करने से प्लेग के जीवाणु मर जाते हैं। नीम की ताड़ी में कपास या कपडे़ को खूब गीला करके प्लेग की गांठों पर बांधते रहने से लाभ होता है। 47. अधिक दस्त का आना (संग्रहणी) : नीम की ताड़ी को सुबह-शाम को 7-7 बूंद ताजे रस में मिलाकर 21 दिन तक सेवन करें। 48. लू (गर्मी) लगने पर : नीम की जड़ों का चूर्ण 10 ग्राम, मिश्री 10 ग्राम को पानी के साथ पीसकर छानकर पिलाने से लू लगना शान्त हो जाती है। नीम के पत्तों के रस में शक्कर (चीनी) मिलाकर लगातार 8 दिनों तक सुबह के समय सभी प्रकार की गर्मी शान्त हो जाती हैं। 49. चेचक: नीम की लाल रंग की कोमल पत्तियों की 7 पीस और कालीमिर्च के 7 पीस, 1 महीने तक नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करने से निश्चित ही लाभ होता है। नीम के बीज, बहेड़े और हल्दी को बराबर मात्रा में लेकर ठंड़े पानी में पीसकर छान लें। इसे कुछ दिनों तक चेचक के रोग में पीते रहें। नीम के पेड़ की 3 ग्राम कोपलों को 15 दिन तक लगातार खाने से 6 महीने तक चेचक नहीं निकलती है। नीम की हरी पत्तियों को पीसकर रात को सोते समय चेहरे पर लेप करें और सुबह ठंड़े पानी से चेहरे को लगातार 50 दिनों तक धोयें। इससे चेचक के दाग मिट जाते हैं। नीम की 10 ग्राम कोमल पत्तियों को पीसकर उसका रस बहुत पतलाकर लेप करना चाहिए। चेचक के दानों पर कभी भी मोटा लेप नहीं चाहिए। नीम के बीजों की 5-10 गिरी को पानी में पीसकर लेप करने से चेचक की जलन शान्त हो जाती है। चेचक के रोगी को अधिक प्यास लगती हो तो नीम की छाल को जलाकर उसके अंगारों को पानी में डालकर बुझा लें और इस पानी को छानकर रोगी को पिलाने से प्यास शान्त हो जाती है। अगर इससे भी प्यास शान्त न हो तो 1 लीटर पानी में 10 ग्राम कोमल पत्तियों को उबालें, जब यह पानी आधा शेष रह जाये तो इसे छानकर पिला दें। इससे प्यास के साथ-साथ चेचक के दाने भी सूख जाते हैं। जब चेचक ठीक हो जाये तो नीम के पत्तों के काढ़े से नहाना चाहिए। नीम के तेल या नीम के बीजों की मगज पानी में घिसकर लगाया जाये तो दाग मिट जाते हैं। चिरायता, नीम, मुलहठी, नागरमोथा, अडूसा, पित्तपापड़ा, कड़वे परवल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, खस और इन्द्रजौ को एक साथ बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें और रोजाना पियें। इसको पीने से हर तरह के विस्फोटक (फोड़े) समाप्त हो जाते हैं। नीम की हरी पत्तियों को पीसकर रात को सोते समय लेप कर लें। सुबह उठने पर ठंड़े पानी से चेहरा धो लें। ऐसा लगातार 50 दिन तक करने से चेहरे के चेचक (माता) के दाग (निशान) दूर हो जाते हैं। 50. खाज-खुजली : नीम के बीजों के तेल में आक (मदार) की जड़ को पीस लें। इसके लेप से पुरानी से पुरानी खाज-खुजली मिट जाती है। नीम का तेल या निंबोली को पानी में पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाने से आराम होता है। रोजाना सुबह 25 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस को पानी के साथ पीने से खून साफ होता है और खुजली भी दूर होती है। 

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