Bel
परिचय : बेल का पेड़ बहुत प्राचीन है। इस पेड़ में पुराने पीले लगे हुए फल दुबारा हरे हो जाते हैं तथा इसको तोड़कर सुरक्षित रखे हुए पत्तों को 6 महीने तक ज्यों के त्यों बने रहते हैं और गुणहीन नहीं होते। इस पेड़ की छाया शीतल और आरोग्य कारक होती हैं। इसलिए इसे पवित्र माना जाता है। विभिन्न भाषाओं में नाम : हिंदी बेल, विली, श्रीफल संस्कृत बिल्य, श्रीफल, पूतिवात, शैलपत्र, लक्ष्मीपुत्र, शिवेष्ट गुजराती बेल, बीली मराठी बेल बंगाली बेल तैलगु बिल्वयु, मोरेडु अरबी सफरजले उर्दू बेल तमिल बिलूबम वैज्ञानिक नाम (ऐगल मारमेलॉस (1) कोरिया कुलनाम रूटेसी अंग्रेजी बेल फ्रूट बेल स्वरूप : बेल का पेड़ 25-30 फुट ऊंचा, 3-4 फुट मोटा, पत्ते जुड़े हुए, त्रिफाक और गन्धयुक्त होता है। फल 2-4 इंच व्यास का गोलाकार धूसर और पीले रंग का होता है। इसके बीज छोटे कड़े तथा अनेक होते हैं। स्वभाव : बेल की तासीर गर्म होती हैं। बेल के अंदर टैनिक एसिड़, एक उड़नशील तेल, एक कड़वा तत्व और एक चिकना लुआबदार पदार्थ पाया जाता हैं। बेल की जड़, तत्त्वों और छाल में चीनी को कम करने वाले तत्व और टैनिन पाये जाते हैं। बेल के फल के गूदे में मांरशेलीनिस तथा बीजों में पीले रंग का तेल होता है जोकि बहुत ही उत्तम विरेचन (पेट साफ करने वाला) का कार्य करता है। गुण-धर्म : बेल कफ वात को शांत करने वाला, रुचिकारक, दीपन (उत्तेजक), पाचन, दिल, रक्त (खून को गाढ़ा करना), बलगम को समाप्त करने वाला, मूत्र (पेशाब) और शर्करा को कम करने वाला, कटुपौष्टिक तथा अतिसार (दस्त), रक्त अतिसार (खूनी दस्त), प्रवाहिका (पेचिश), मधुमेह (डायबिटीज), श्वेतप्रदर, अतिरज:स्राव (मासिक-धर्म में खून अधिक आना), रक्तार्श (खूनी बवासीर) को नष्ट करता है। बेल का फल-लघु (छोटा), तीखा, कषैला, उत्तेजक, पाचन, स्निग्ध (चिकना), गर्म तथा शूल (दर्द), आमवात (गठिया), संग्रहणी (पेचिश), कफातिसार, वात, कफनाशक होता है तथा यह आंतों को ताकत देती है। अर्धपक्व फल (आधा पका फल)- यह लघु (छोटा), कडुवा, कषैला, गर्म (उष्ण), स्निग्ध (चिकना), संकोचक, पाचन, हृदय और कफवात को नष्ट करता है। बेल की मज्जा और बीज के तेल अधिक गर्म और तेज वात को समाप्त करते हैं। बेल के पके फल भारी, कड़ुवा, तीखा रस युक्त मधुर (मीठा) होता है। यह गर्म दाहकारक (जलन पैदा करने वाला), मृदुरेचक (पेट साफ करने वाला) वातनुलोमक, वायु को उत्पन्न करने वाला और हृदय को ताकत देता है। पत्र (पत्ता) : बेल का पत्ता संकोचक, पाचक, त्रिदोष (वात, पित और कफ) विकार को नष्ट करने वाला, कफ नि:सारक, व्रणशोथहर (घाव की सूजन को दूर करने वाला), शोथ (सूजन) को कम करने वाला, स्थावर (विष) तथा मधुमेह (डायबिटीज), जलोदर (पेट में पानी का भरना), कामला (पीलिया), ज्वर (बुखार) आंखों से तिरछा दिखाई देना आदि में लाभ पहुंचाता है। जड़ और छाल : जड़ और छाल लघु, मीठा, वमन (उल्टी), शूल (दर्द), त्रिदोष (वात, पित्त और कफ), नाड़ी तंतुओं के लिये शामक, कुछ नशा पैदा करने वाली, बुखार, अग्निमांघ (भूख को बढ़ाने वाला), अतिसार (दस्त) ग्रहणी (पेचिश), , मूत्रकृच्छ् (पेशाब करने में कष्ट होना), हृदय की कमजोरी आदि में प्रयोग होता है। विभिन्न रोगों में सहायक : 1. सिर में दर्द : बेल की सूखी हुई जड़ को थोडे़ से पानी के साथ पीसकर माथे पर गाढ़ा लेप करने से सिर दर्द में लाभ मिलता है। लगभग 6 ग्राम बेल को पानी में या बकरी के दूध में घोंटकर 10 दिन तक पीने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है। बेल के रस में एक कपड़े को अच्छी तरह से भिगोकर उसकी पट्टी सिर पर रखने से भी सिर दर्द ठीक हो जाता है। 2. बालों या सिर में जूं : बेल के पके हुए फल के आधे कटोरी जैसे छिलके को साफकर उसमें तिल का तेल और कपूर मिलाकर दूसरे भाग से ढककर रखने से तेल को सिर में लगाने से सिर में जूं नहीं रहती हैं। 3. आंखों का मोतियाबिंद : बेल के पत्तों पर घी लगाकर तथा सेंककर आंखों पर बांधने से, पत्तों का रस आंखों में टपकाने से, साथ ही पत्तों को पीसकर मिश्रण बनाकर उसका लेप पलकों पर करने से आंखों के कई रोग मिट जाते हैं। 4. रतौंधी : 10 ग्राम ताजे बेल के पत्तों को 7 कालीमिर्च के साथ पीसकर, 100 मिलीलीटर पानी में छानकर उसमें 25 ग्राम मिश्री या चीनी मिलाकर सुबह और शाम पीयें तथा रात में बेल के पत्तों को भिगोये हुए पानी से सुबह आंखों को धोयें। इससे रतौंधी के रोग में लाभ मिलता है। 10 ग्राम बेल के पत्ते, 6 ग्राम गाय का घी और 1 ग्राम कपूर को तांबे की कटोरी में इतना रगड़ें की काला सुरमा बन जाये। इस सुरमे को आंखों में लगाने से लाभ होता है और सुबह गाय के पेशाब से आंख को धोने से भी आराम मिलता है। 5. बहरापन : बेल के कोमल पत्तों को अच्छी गाय के पेशाब में पीसकर तथा 4 गुना तिल का तेल तथा 16 गुना बकरी का दूध मिलाकर धीमी आग द्वारा तेल को गर्म करके रख लें। इस तेल को रोजाना कानों में डालने से बहरापन, सनसनाहट (कान की आवाज), कानों की खुश्की और कानों की खुजली के रोगों में आराम मिलता है। बेल के पत्तों का तेल, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, कूट, पीपलामूल, बेल की जड़ का रस और गाय का पेशाब को बराबर मात्रा में लेकर हल्की आग पर पकाने के लिये रख दें। फिर इसे छानकर किसी शीशी में भर लें। इस तेल को `बधिरता हर तेल´ कहते है। इस तेल को कान में डालने से कान के सभी रोग दूर हो जाते हैं। बेल के पत्तों को गाय के पेशाब के साथ पीसकर बकरी के दूध मिले हुए तेल में पकाकर बने तेल को कान में बूंद-बूंद करके डालने से बहरेपन के रोग में लाभ होता है। बेल के पके हुए बीजों का तेल निकालकर बूंद-बूंद करके कान में डालने से बहरापन समाप्त हो जाता है। 6. क्षय (टी.बी) : 4-4 भाग बेल की जड़, अडूसा तथा नागफनी थूहर के के सूखे हुए फल और 1-1 भाग सोंठ, कालीमिर्च व पिप्पली लेकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में पकाकर चौथाई हिस्सा बचने पर सुबह और शाम शहद के साथ रोगी को सेवन कराने से क्षय (टी.बी), श्वास (दमा), वमन (उल्टी) आदि रोगों में जल्दी लाभ मिलता है। 7. दिल का दर्द : 1 ग्राम बेल के पत्तों के रस में 5 ग्राम गाय का घी मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से दिल के दर्द में जल्दी आराम मिलता है। 8. पेट का दर्द : 10 ग्राम बेल के पत्तों को कालीमिर्च के साथ पीसकर उसमें 10 ग्राम मिश्री को मिलाकर शर्बत बनाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है। बेल की जड़, एरण्ड की जड़, चित्रक की जड़ और सोंठ को एक साथ पीसकर अष्टमांश काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी सी भुनी हुई हींग तथा 1 ग्राम सेंधानमक छिड़ककर, 20-25 ग्राम की मात्रा में रोगी को पिलाने से वात (गैस) तथा कफजन्य के कारण हुआ पेट का दर्द दूर हो जाता है। 9. जलन (दाह), तृष्णा (प्यास), अजीर्ण (भूख का कम होना), अम्लपित्त्त (डायबिटीज) होने पर : 20 ग्राम बेल के पत्तों को 500 मिलीलीटर पानी में तीन घंटे तक भिगोकर रख लें। इस पानी को रोजाना 2-2 घंटे के बाद 20-20 ग्राम की मात्रा में रोगी को पिलाने से आन्तरिक जलन शांत होती है। छाती में जलन हो तो 20 ग्राम बेल के पत्तों को पानी के साथ पीसकर और छानकर उसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर दिन में 3-4 बार रोगी को पिलाने से जलन में लाभ होता है। 10 ग्राम बेल के पत्तों के रस में 1-1 ग्राम कालीमिर्च और सेंधानमक मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने पेट की जलन में लाभ होता है। 10. भूख का कम लगना : 2-2 ग्राम बेल की गिरी का चूर्ण, छोटी पिप्पली, बंशलोचन व मिश्री को मिलाकर इसमें 10 ग्राम तक अदरक का रस मिलाकर तथा थोड़े से पानी में मिलाकर हल्की आग पर पकायें। पकने पर गाढ़ा हो जाने पर दिन में 4 बार चाटने से भूख का कम लगने का रोग दूर हो जाता है। 100 ग्राम बेल की गिरी का चूर्ण और 20 ग्राम अदरक को पीसकर इसमें 50 ग्राम चीनी और 20 ग्राम इलायची के चूर्ण को मिलाकर रख लें। खाना खाने के बाद यह आधा चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी से सुबह और शाम लेने से भोजन पचाने की क्रिया ठीक होती है और भूख भी खुलकर लगती है। बेल की गिरी का पका हुआ फल खाने से मंदाग्नि (भूख कम लगना) और ज्वर (बुखार) में लाभ मिलता हैं। 11. संग्रहणी (दस्त, पेचिश) : 10 ग्राम बेल की गिरी का चूर्ण, 6-6 ग्राम सौंठ का चूर्ण और पुराने गुड़ को पीसकर दिन में 3-4 बार छाछ के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से पेचिश के रोग में लाभ मिलता है। खाने में केवल छाछ का ही प्रयोग करें। 10 से 20 ग्राम बेल की गिरी और कुड़ाछाल का चूर्ण बनाकर रात के समय 150 मिलीलीटर पानी में भिगोकर, सुबह पानी में पीसकर छानकर रोगी को पिलाने से पेचिश का रोग ठीक हो जाता है। 10 से 20 ग्राम कच्ची बेल को आग में सेंककर उसके गूदे में थोड़ी चीनी और शहद मिलाकर पिलाने से पेचिश के रोग में आराम आता है। कच्चे बेल का गूदा तथा सोंठ के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। इस चूर्ण में दुगुना पुराना गुड़ डालकर लुगदी बना लें। इसके सेवन करने के बाद ऊपर से मट्ठा (लस्सी) पी लें। इससे संग्रहणी (दस्त) का रोग दूर हो जाता है। बेलगिरी, नागरमोथा, इन्द्रजौ, सुगंधबाला तथा मोचरस इन सभी को बकरी के दूध में डालकर पका लें। इसको छानकर पीने से संग्रहणी (दस्त) मिट जाता है। पके हुए बेल का शर्बत पुराने आंव की महाऔषधि है। इसके सेवन से बहुत जल्द ही संग्रहणी (दस्त) का रोग दूर हो जाता है। बेल (बेलपत्थर) का शर्बत बनाकर सेवन करने से संग्रहणी (दस्त) रोग ठीक हो जाता है। बेलगिरी, गोचरस, नेत्रबाला, नागरमोथा, इन्द्रयव, कूट की छाल सभी को लेकर पीसकर कपड़े में छान लें। इसको खाने से संग्रहणी (दस्त) के रोगी का रोग दूर हो जाता है। 12. प्रवाहिका (पेचिश, संग्रहणी) : कच्ची बेल का गूदा, गुड़, तिल, तेल, पिप्पली, सौंठ आदि को बराबर मात्रा में मिलाकर मिश्रण तैयार करें। प्रवाहिका में जब पेट में गैस का दर्द हो और बार-बार मलत्याग की इच्छा हो और मल पूरा न होकर थोड़ा-थोड़ा आंव सहित आये तब 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम इस मिश्रण का प्रयोग करें। इससे लाभ होता है। बेल की गिरी और तिल को बराबर मात्रा में लेकर मिश्रण बनाकर, दही की मलाई या घी के साथ सेवन करने से प्रवाहिका रोग में लाभ होता है। 3 ग्राम कच्चे फल की मज्जा का चूर्ण तथा 2 ग्राम तिल को दिन में 2 बार पानी के साथ लेने से प्रवाहिका रोग में लाभ मिलता है। 13. बाल रोग : 5 से 10 मिलीलीटर कच्चे फलों की मज्जा तथा आंवले की गुठली के काढ़े को दिन में 3 बार सेवन करने से बालरोगों में लाभ मिलता है। 14. आमातिसार : बेल के कच्चे और साबूत के फल को गर्म राख में भूनकर, उसको छिलके सहित पीसकर इसके रस को निकालकर इसमें मिश्री मिलाकर दिन में एक या दो बार लगातार 10-15 दिन तक सेवन सेवन करने से पुराना अतिसार (दस्त) ठीक हो जाता है। बेल की गिरी, कत्था, आम की गुठली की मींगी, ईसबगोल की भूसी और बादाम की मींगी को बराबर मात्रा में मिलाकर चीनी या मिश्री के साथ रोजाना 3-4 चम्मच सेवन करने से पुराने दस्त, आमातिसार तथा प्रवाहिका के रोग में लाभ मिलता है। बेल की गिरी और आम की गुठली की मींगी को बराबर मात्रा में पीसकर 2 से 4 ग्राम तक चावल के पानी के साथ या ठंडे पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अतिसार (दस्त) ठीक हो जाता है। बेल (बेलपत्थर) का शर्बत रोजाना सुबह-शाम पीने से आमातिसार के रोग में लाभ मिलता है। बेल पत्थर के शर्बत में चीनी मिलाकर भी पीने से भी यह रोग दूर होता है। आमातिसार (आंवदस्त) के रोगी को बेल पत्थर के रस में, दही की मलाई, तिल का तेल और घी मिलाकर रोजाना सेवन कराने से जल्द आराम मिलता है। 15. खूनी दस्त : 50 ग्राम बेल की गिरी के गूदे को 20 ग्राम गुड़ के साथ दिन में 3 बार खाने से खूनी अतिसार (दस्त) कम होता जाता है। चावल के 20 ग्राम पानी में 2 ग्राम बेल की गिरी का चूर्ण और 1 ग्राम मुलेठी के चूर्ण को पीसकर उसमें 3-3 ग्राम तिल, चीनी, और शहद को मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन कराने से पित्त रक्तातिसार मिट जाता है। 1-1 भाग बेल की गिरी और धनियां, 2 भाग मिश्री को एक साथ पीसकर चूर्ण बनाकर 2 से 6 ग्राम तक ताजे पानी से सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है। कच्चे बेल को कंड़े की आग में भूनें, जब छिलका बिल्कुल काला हो जाये तब भीतर का गूदा निकालकर 10-20 ग्राम तक दिन में 3 बार मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से खूनी अतिसार ठीक हो जाता है। बेल के कच्चे फल को भूनकर या कच्चे फल को सुखाकर रोजाना सेवन करने से धीरे-धीरे खून कम होकर रक्तातिसार (खूनी दस्त) दूर हो जाता है। बेल के गूदे को गुड़ को मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) के रोगी का रोग दूर हो जाता है। बेलगिरी में गुड़ मिलाकर गोली बनाकर खाने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) बंद हो जाते हैं। 16. अतिसार (दस्त) : बेल के कच्चे फल को आग में सेंक लें, इसके 10-20 ग्राम गूदे को मिश्री के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करने से अतिसार और आमातिसार कम होता है। 50 ग्राम सूखी बेल की गिरी और 20 ग्राम श्वेत कत्था के बारीक चूर्ण में 100 ग्राम मिश्री को मिलाकर लगभग डेढ़ ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार सेवन करने से सभी प्रकार के अतिसारों में लाभ मिलता है। 200 ग्राम बेल की गिरी को 4 लीटर पानी में पका लें। पकने पर जब एक लीटर के लगभग पानी बाकी रह जाए तब इस पानी को छान लें। फिर इसमें लगभग 100 ग्राम मिश्री मिलाकर बोतल में भरकर रख लें। इसको 10 से 20 ग्राम की मात्रा में 500 मिलीग्राम भुनी हुई सोंठ, अत्यधिक तेज अतिसार हो तो मूंग बराबर अफीम मिलाकर सेवन करने से 2-3 बार में लाभ होता है। 10 ग्राम बेल की गिरी के पाउडर को चावल के पानी के साथ पीसकर इसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर दिन में 2-3 बार देने से गर्भवती स्त्री का अतिसार (दस्त) ठीक हो जाता है। 5 ग्राम बेल की गिरी को सौंफ के रस में घिसकर दिन में 3-4 बार बच्चे को देने से बच्चे के हरे पीले दस्त ठीक हो जाते हैं। 1-1 ग्राम बेल की गिरी व पलाश का गोंद और 2 ग्राम मिश्री को मिलाकर थोड़े पानी के साथ पीसकर कम आग पर गाढ़ा करके चटाने से भी अतिसार में लाभ होता है। 17. पित्त अतिसार : बेल का मुरब्बा खिलाने से पित्त का अतिसार मिट जाता हैं। पेट के सभी रोगों में बेल का मुरब्बा खाने से लाभ मिलता है। 18. तृषा (प्यास), वमन (उल्टी), दाह (जलन), कोष्ठबद्धता, मंदाग्नि (भूख का कम होना) : बेल के पके फल के गूदे को ठंडे पानी में मसलकर और छानकर, उसमें मिश्री, इलायची, लौंग, कालीमिर्च तथा कपूर मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से प्यास, उल्टी, जलन, कब्ज, भूख का कम होना आदि रोगों में लाभ मिलता है। जिन व्यक्तियों को कब्ज की परेशानी हो वे इसे भोजन के साथ लें, इससे आराम मिलता है। 100 ग्राम बेल के गूदे को मसलकर और छानकर उसमें थोड़ी-सी चीनी मिलाकर या दही के साथ चीनी मिलाकर पीने से पेट की कब्ज तथा जलन दूर होती है। 19. वायुगोला (वातगुल्म): 10-20 ग्राम बेल की गिरी या कोमल फल के गूदे को गुड़ के साथ सेवन करने से रक्तातिसार (खूनी अतिसार), आम शूल, स्निग्ध (चिकना), वातगुल्म तथा पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं। 20. खूनी बवासीर : बेल की गिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री को मिलाकर 4 ग्राम तक ठंडे पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है। रोगी को बवासीर के मस्सों में खास दर्द हो तो बेल की जड़ का काढ़ा बनाकर गुनगुने काढ़े में रोगी को बैठाने से जल्दी ही दर्द दूर हो जाता है। 2 ग्राम बेल के कच्चे फल की मज्जा का चूर्ण तथा 1 ग्राम सोंठ के चूर्ण को दिन में 3 बार सेवन करने से खूनी बवासीर में आराम मिलता है। 21. प्रमेह (वीर्य विकार) : 14 से 28 मिलीलीटर बेल के पत्तों के रस को दिन में 3 बार शहद के साथ सेवन करने से वीर्य के रोग ठीक हो जाते हैं। 22. हैजा व उल्टी : 10-10 ग्राम आम की मींगी और बेल की गिरी को लेकर पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में पकायें। पकने पर 100 मिलीलीटर शेष रहने पर इसमें शहद और मिश्री को मिलाकर 5 से 20 मिलीलीटर तक इच्छानुसार रोगी को पिलाने से हैजा और उल्टी में आराम मिलता है। 1 से 4 ग्राम तक बेल की गिरी और गिलोय को पीसकर आधा लीटर पानी में पकायें। पकने पर 250 मिलीलीटर शेष रहने पर इसे छानकर थोड़ा-थोड़ा रोगी को पिलायें। यदि हैजा तेज हो तो इस काढ़े में जायफल, कपूर और छुहारा मिलाकर काढ़ा तैयार करें तथा बार-बार थोड़ा-थोड़ा सा रोगी को पिलाते रहें इससे हैजे और उल्टी में जल्द ही आराम आ जायेगा। 23. मधुमेह (डायबिटीज) : बेल के ताजे पत्तों को 10 से 20 ग्राम तक पीसकर उसमें 5-7 कालीमिर्च मिलाकर पानी के साथ सुबह खाली पेट सेवन करने से मधुमेह (डायबिटीज) के रोग में लाभ मिलता है। रोजाना सुबह 10 मिलीलीटर बेल के पत्तों के रस को सेवन करना मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी के लिये हितकारी होता है। 6-6 ग्राम बेल के पत्ते, हल्दी, गिलोय, हरड़, बहेड़ा और आंवला, को 250 मिलीलीटर पानी में रात को कांच या मिट्टी के बर्तन में भिगों दें। सुबह इसे खूब मसलकर और छानकर आधी मात्रा में सुबह-शाम 2-महीने तक रोगी को सेवन कराने से मधुमेह (डायबिटीज) के रोग में आराम आता है। 10 पत्ते बेल के, 10 पत्ते नीम के और 5 पत्ते तुलसी एक साथ पीसकर गोली बनाकर सुबह रोजाना पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह (डायबिटीज) के रोग में लाभ मिलता है। बेल के 10-11 ताजे पत्तों को पानी के साथ पीसकर पीने से कब्जयुक्त मधुमेह में आराम मिलता है। बेल के पत्तों को पीसकर किसी कपड़े में बांधकर रस निकाल लें, इस 10 मिलीलीटर रस को रोजाना पीने से मधुमेह रोग में शर्करा आना कम हो जाता है। बेल के पत्ते का रस पीने से मधुमेह मिट जाता है। ताजे बेल के 5 पत्ते और 10 कालीमिर्च को लेकर पीसकर छान लें, इसे शर्बत की तरह रोजाना सुबह पीने से मधुमेह का रोग मिट जाता है। बेल की जड़ को सुखाकर और पीसकर चूर्ण बना लें। 1 चम्मच चूर्ण में बेल की पत्तियों का आधा चम्मच रस मिलाकर सेवन करने से मधुमेह रोग से राहत मिलती है। 100 मिलीलीटर बेल के पत्ते का रस शहद के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग मिट जाता है। 50-50 ग्राम की मात्रा में बेल की सूखी पत्तियां, घी, ग्वार, गुड़मार, जामुन की गुठली, करेले की पत्तियों को पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 10 ग्राम चूर्ण को रोजाना पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग मिट जाता है। 24. पाण्डु (पीलिया) : 10 से 30 मिलीलीटर बेल के कोमल पत्तों के रस में आधा ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया के रोग में लाभ मिलता है। पीलिया रोग की सूजन में बेल के पत्तों के रस को गर्मकर लेप दें या पत्तों का काढ़ा बफारा देने से आराम मिलता है। बेल के पत्तों के रस में कालीमिर्च का चूर्ण डालकर पीने से पाण्डु रोग (पीलिया) शांत हो जाता है। 25. पेट में पानी का भरना (जलोदर) : 25 से 50 मिलीलीटर ताजे बेल के पत्तों के रस में 1 से डेढ़ ग्राम छोटी पिप्पली का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से जलोदर (पेट में पानी का भरना) के रोग में लाभ होता है। 26. पेशाब का अधिक आना (बहूमूत्र) : 10 ग्राम बेल की गिरी, 5 ग्राम सोंठ को जौकूटकर 400 मिलीलीटर पानी में अष्टमांश काढ़े को शुद्धकर सुबह-शाम सेवन करते रहने से 5 दिन में लाभ मिलता है। 27. पेशाब करने में कष्ट होना (मूत्रकृच्छ) : बेल के ताजे फल के गूदे को पीसकर दूध के साथ छानकर उसमें शीतल चीनी का चूर्ण छिड़ककर पिलाने से पुराना मूत्रकृच्छ्र (पेशाब में जलन) कम हो जाता है। 6 ग्राम बेल के कोमल ताजे पत्ते, 3 ग्राम सफेद जीरा और 6 ग्राम मिश्री को एक साथ पीसकर चूर्ण बनाकर सेवन करके ऊपर से पानी पीने से 6 दिन में ही पेशाब के सारे रोग दूर हो जाते हैं। 20-25 ग्राम बेल की जड़ को रात में पीसकर, 500 मिलीलीटर पानी में भिगोकर सुबह मसलकर और छानकर इसमें मिश्री मिलाकर पीने से मूत्रजलन (पेशाब में जलन) ठीक हो जाती है। 25-25 ग्राम बेल की जड़, अमलतास की जड़ को पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में पकायें। पकने पर 125 मिलीलीटर शेष रहने पर रोजाना सुबह सेवन करने से 3 में दिन में पूरा लाभ होता है। 28. कमजोरी : बेल की गिरी के चूर्ण को मिश्री मिले हुए दूध के साथ सेवन करने से खून की कमी, शारीरिक दुर्बलता तथा वीर्य की कमजोरी दूर होती है। धातु की कमजोरी में 3 ग्राम बेल के पत्तों के चूर्ण में थोड़ा शहद मिलाकर सुबह-शाम रोजाना चटाने से लाभ होता है। बेल के पत्तों के रस में या पत्तों की चाय में जीरा चूर्ण और दूध मिलाकर पीने से कमजोरी दूर होती है। मात्रा : 20 से 50 मिलीलीटर बेल के पत्तों का रस, 6 ग्राम जीरा का चूर्ण, मिश्री 20 ग्राम और दूध। बेल की गिरी, असगंध और मिश्री को बराबर मात्रा में चूर्ण कर उसमें चौथाई उत्तम केसर का चूर्ण मिलाकर, 4 ग्राम तक सुबह-शाम खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से कमजोरी के रोग में लाभ मिलता है। सुखाये हुए पके फलों के गूदे के बारीक चूर्ण को थोड़ी मात्रा में रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से कमजोरी दूर होती है और आराम मिलता है। 29. दुर्गन्ध के लिए : शरीर की दुर्गन्ध को दूर करने के लिए बेल के पत्तों के रस का लेप करना चाहिए। 30. कांटा लगने पर : बेल के पत्तों की पुल्टिश (पोटली) बांधने से, धंसे कांटे को जल्द ही गलाकर नष्ट करता है तथा कोई बीमारी नहीं होती है। 31. दर्द : यकृत (जिगर) के दर्द में बेल के 10 मिलीलीटर पत्तों के रस में 1 ग्राम सेंधानमक मिलाकर दिन में 3 बार पिलाने से लाभ मिलता है। 32. रक्त विकार से उत्पन्न फोड़े-फुंसी : खून की खराबी से उत्पन्न फोड़े-फुंसियों पर बेल के पेड़ की जड़ या लकड़ी को पानी में पीसकर लगाने से लाभ पहुंचता है। 33. आग से जलने पर : बेल के ताजे पत्तों के रस को जले भाग पर लगाने से आराम मिलता है। चेचक की बीमारी में जब शरीर में बहुत जलन हो और बेचैनी हो तो बेल के रस में मिश्री मिलाकर पिलाने से तथा बेल के पत्तों का पंखा बनाकर हवा करने से लाभ मिलता है। 34. व्रण (जख्म), गलगंड (घेघा), नारू (गंदे पानी के पीने से होने वाला रोग) पर : बेल के पत्तों को बिना पानी के पीसकर टिकिया बनाकर जख्मों पर बांधने से लाभ मिलता है। बेल के पत्तों को पीसकर, पोटली बनाकर फोड़ों पर बांधने से तुरंत लाभ मिलता है। कैंसर या कार्बन्कल नामक भंयकर जहरीले व्रणों (जख्मों) में बेल के पत्तों की पोटली, पत्तों के रस से या काढ़े से छानकर, तथा साथ ही रोजाना 25 मिलीलीटर तक बेल के पत्तों का रस दिन में तीन बार सेवन कराने से जख्मों में लाभ मिलता है। 35. बुखार : बेल का अष्टमांश काढ़ा बनाकर, उसमें शहद मिलाकर सुबह-शाम 20 मिलीलीटर मात्रा में पिलाने से बुखार कम हो जाता है। बेल के पत्तों के काढ़े का सेवन करने से बुखार और सूखी खांसी मिट जाती है। 5 मिलीलीटर बेल के पत्तों के रस को शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों का बुखार समाप्त हो जाता है। बेल के पत्तों का रस 7 मिलीलीटर रोगी को देने से बुखार और ठंड के बुखार में आराम आता है। 36. ग्रहणी, अतिसार होने पर : बेल के 3 से 6 कच्चे फलों की मज्जा का चूर्ण मट्ठे के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से अतिसार में आराम मिलता है। 37. स्त्री रोग (सूतिका ज्वर) : बेल के कच्चे फलों के रस को पीने से स्त्री के सूतिका ज्वर में आराम आता है। 38. सन्तत ज्वर : पटोल के पत्ते, नागरमोथा, बड़ी-दन्ती, कुटकी और सारिवा को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से सन्तत ज्वर समाप्त होता है। 39. अन्येद्यु : बेल के पत्ते, नीम की छाल, अंगूर, अमलतास, त्रिफला और अडूसा को मिलाकर काढ़ा बना लें, इस काढ़े में मिश्री और शहद मिलाकर पीने से `एककिहृक ज्वर´ समाप्त हो जाता है। 40. विषम बुखार : बेल के पत्ते, हरड़, नागरमोथा, कुटकी, चिरायता, मुलहठी और गिलोय को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से सभी प्रकार के विषम बुखार मिटते हैं इसके साथ ही खांसी और अरुचि (भूख का न लगना) भी समाप्त हो जाता है। 41. नपुंसकता : 20 मिलीलीटर बेल के पत्ते का रस निकालकर उसमें 5 ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण मिलाकर रोजाना 10 ग्राम मिश्री के चूर्ण के साथ खाने से उसके ऊपर से दूध पीने से नपुंसकता की कमजोरी दूर होती है। बेल के पत्ते का रस लेकर उसमें थोड़ा-सा शहद मिला लें। इसको शिश्न (लिंग) पर 40 दिन तक लेप करने से नपुंसकता का रोग दूर होता है। 42. वात-कफ ज्वर : बेल की गिरी, कुम्भेर, श्योनाक, अरणी (अरनी), पाढ़ल, खिरेंटी, कुलथी, पोहरमूल और रास्ना को लेकर पकाकर काढ़ा बना लें, इस काढ़े को पीने से वात ज्वर (बुखार), जोड़ों का दर्द और सिर के कम्पन में लाभ मिलता है। बेल, श्योनाक, कुंभेर, पाढ़र और अरणी को मिलाकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से वात के बुखार दूर हो जाते हैं। 10 ग्राम बेल के पत्ते, 10 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम इन्द्रजौ और 10 ग्राम पीपल को लेकर 50 मिलीलीटर पानी में पकायें जब पानी आधा बच जाये, तब इसमें चीनी या मिश्री को थोड़ी-सी मात्रा में डालकर सेवन करने से वात-कफ ज्वर मे आराम आता है। बेल, पाढ़ल, कुम्भेर सोनापाठा, अरणी, कटेरली, कटाई, गोखुरू, सरिवन, पिठवन, पीपल, पीपरामूल, रास्ना, मीठा कूठ, सोंठ, नागरमोथा, चिरायता, गिलोय, सुगंधबाला, खिरेंटी, मुनक्का, जवासा और शतावर आदि को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पकाकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के बुखार के साथ-साथ सभी रोग समाप्त हो जाते हैं। 43. शीतला (मसूरिका) का ज्वर : बेल के पत्ते, सारिया, नागरमोथा, पाढ़, कुटकी, खैर, नीम, खिरेंटी, आंवला तथा कटाई को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से वातज शीतला (माता) दूर हो जाती है। बेल की जड़ या पटोल के पत्ते का काढ़ा ईख की जड़ के रस के साथ पीने से पित्त की शीतला (माता) में लाभ होता है। बेल के पत्ते, गिलोय, नागरमोथा, अडूसा, धनिया, जवासा, चिरायता, नीम, कुटकी और पित्तपापड़ा को मिलाकर पीसकर काढ़ा बना लें। इस मिश्रण को पीने से बिना पकी शीतला (माता) नष्ट हो जाती है और पकी हुई शीतला (माता) शुद्ध हो जाती हैं। बेल के पत्ते, गिलोय, नागरमोथा, अडूसा, धनिया, जवासा, चिरायता, नीम, कुटकी और पित्तपापड़ा को मिलाकर काढ़ा बनाकर खिलाने से (शीतला) माता पक जाती है और पकी हुई माता जल्दी ही सूख जाती है। 44. सन्निपात (त्रिदोष) का ज्वर : बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरियवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गोखुरू आदि को मिलाकर पीस लें। इस काढ़े में गिलोय को मिलाकर सेवन करने से सन्निपात (त्रिदोष) बुखार में लाभ मिलता है। 45. पुनरावर्तक ज्वर : बेल की जड़ की छाल का काढ़ा सुबह और शाम रोगी को देने से पुनरावर्तक ज्वर में लाभ होता है। 46. श्वास या दमे का रोग : 6-6 मिलीलीटर बेल के पत्तों का रस, अडूसे के पत्तों का रस तथा सरसों के तेल को मिलाकर लगातार 7 दिनों तक पीने से श्वास रोग (दमा) ठीक हो जाता है। 10 मिलीलीटर बेल के पत्तों का रस या 10 मिलीलीटर अड़ूसे की छाल का रस अथवा 4-5 बहेड़े की गिरी का चूर्ण या 125 ग्राम पीपल और बड़ी इलायची का चूर्ण और शहद के साथ या 120 मिलीग्राम मकरध्वज के साथ रोजाना 2 बार सेवन करने से श्वास रोग (दमा) दूर हो जाता है। 250 ग्राम छोटे बेल की गिरी और 125 ग्राम हरड़ को लेकर पानी में 100 मिलीलीटर पानी के बचने तक उबालें, बाद में इसे मसलकर छान लेते हैं। इस काढ़े में 1 किलो गाय का ताजा घी मिलाकर दुबारा आग पर आधा पानी रहने तक पकाते हैं, फिर उसमें कालानमक डालकर पकाते हैं जब सारा पानी जल जाए और घी की मात्रा शेष रहे, तब साफ सूखे बर्तन में इसे भर लेते हैं। इसे 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सेवन करने से श्वास (दमा) व पतले दस्त के रोगी को बहुत लाभ मिलता है। 47. मलेरिया का बुखार : 7 मिलीलीटर बेल के पत्ते का रस सुबह और शाम लेने से मलेरिया के बुखार में लाभ मिलता है। 48. ज्वर अतिसार (बुखार के दस्त का आना) : बिल्व (बेल) फल का मज्जा, शुण्ठी (सोंक), धान्यक (धनिया) के फल, मुस्तक (मोथा) की जड़, सुगंध बाला (तगर) के फल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर 14 से 28 मिलीलीटर की खुराक के रूप में सेवन करने से ज्वर अतिसार ठीक हो जाता है। 49. खांसी : बेलगिरी को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लेते हैं। इस 50 ग्राम चूर्ण में 50 ग्राम मिश्री का चूर्ण और 10 ग्राम वंशलोचन मिलाकर रख देते हैं। इसके 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर चाटकर खाने से खांसी के रोग में बहुत लाभ होता है। 1 चम्मच बेलगिरी का चूर्ण, एक चौथाई चम्मच वंशलोचन का चूर्ण और 10 ग्राम मिश्री को मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से खांसी आना बंद हो जाती है। 1 चम्मच बेल के पत्तों का रस लेकर शहद के साथ सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है। 50. इन्फ्लुन्जा के लिए : बेल के पत्ते, नागरमोथा, अडूसा, सोंठ, धनिया और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें, फिर ठंडा होने पर शहद मिलाकर पीने से बुखार में लाभ मिलता है। 51. चतुर्थक ज्वर : बेल के पत्ते, यष्टिमधु की जड़, मुस्तक, कटुकी प्रकन्द और हरीतकी फल आदि का बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर काढ़ा बनाकर 14 से 28 मिलीलीटर दिन में तीन बार लेने से लाभ होता है। बेल के पत्ते, निम्बछाल, द्राक्षा (मुनक्का), त्रिफला, रास्नामूल और वासा (अड़ूसा) को बराबर मात्रा में लेकर बने काढ़े को 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा में 5 से 10 ग्राम शर्करा और 5 से 10 ग्राम शहद के साथ दिन में 3 बार लें। बेल के पत्ते, निम्बछाल, द्राक्षा (मुनक्का), त्रिफला, करेलाफल और इन्द्रयव के काढ़े को 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा में 5 से 10 ग्राम शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से आराम मिलता है। 52. पेट का जख्म : बेल के 50 ग्राम बीजों को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से आमाशय के जख्मों का दर्द मिट जाता है। 53. मसूढ़ों का रोग : मसूढ़ों में सूजन, खुश्की एवं दर्द में बेल का शर्बत 50 मिलीलीटर में 50 मिलीलीटर दूध मिलाकर पीने से रोग ठीक होता है। 54. गर्भाशय के विकार : बेलगिरी 20 ग्राम को चावलों के पानी में पीसकर उसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर दिन में 2-3 बार पीने से गर्भवती स्त्री की उल्टी, पतले दस्त, मंद-मंद बुखार चढ़ना, हाथ-पैरों की थकावट होना आदि सभी रोग दूर हो जाते हैं। 55. वमन (उल्टी) : बेल के हरे पत्तों को सोंठ के साथ पानी में उबालकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं। वैसे भी कई अनुभवी लोगों ने बेल के फूलों को प्यास, उल्टी और दस्त को खत्म करने वाला बताया है। 3 ग्राम बेल के शुष्क फूलों को 100 मिलीलीटर पानी में डालकर रख दें। 2 घंटे के बाद फूलों को थोड़ा सा पीसकर पानी में छान लें। उस छने हुए पानी में 20 ग्राम मिश्री मिलाकर दिन में कई बार पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है। 56. कब्ज : बेल का शर्बत पानी में बनाकर कुछ दिनों तक लगातार बनाकर पीने से लम्बी कब्ज की शिकायत से छुटकारा मिलता है। बेल का गूदा और गुड़ मिलाकर रोजाना सुबह और शाम सेवन करने से मल का रुकना (अवरोध) ठीक हो जाता है। 7 मिलीलीटर बेल के पत्तों के रस में कालीमिर्च को मिलकार सुबह और शाम पीने से पेट की गैस में राहत मिलती है। 20 से 40 मिलीलीटर बेल के शर्बत में इच्छानुसार पानी मिलाकर रोजाना 2-3 बार देने से पुरानी से पुरानी कब्ज़ में लाभ होता है। यह अतिसार और खूनी अतिसार में भी फायदेमंद है। 57. पेट की गैस बनना : बेल के पत्ते के 4 पीस, हरसिंगार की 4 पत्तियों को एक कप पानी में चाय की तरह उबालकर रख लें। इस काढ़े में काला नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है। 58. दस्त : 20 ग्राम बेल का गूदा और 10 ग्राम गुड को मिलाकर पानी के साथ सेवन करने से दस्त लगना (अतिसार) ठीक हो जाता है। बेल की गिरी, मोचरस, धाय के फूल, लोध्र, आम की गुठली के बीच के भाग (मींगी) और अतीस को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, इस बने चूर्ण को लगभग 6 ग्राम की मात्रा में लेकर थोड़ी-सी मिश्री को मिलाकर पानी के साथ खाने से दस्त का आना बंद हो जाता है। कच्ची बेल की गिरी को पानी में अच्छी तरह पकाकर, शहद के साथ पीने से अतिसार यानी दस्त और अधिक दस्त आना (प्रवाहिका) समाप्त हो जाता है। बेल की गिरी, कत्था और अनार के छिलको को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी में से बहुत ही थोड़ी-सी मात्रा में बच्चों को चटाने से दांत के निकलते समय बच्चों को आने वाले दस्तों में लाभ मिलता है। बेल की गिरी और आम की गुठली के अंदर के भाग यानी गिरी को पीसकर रख लें, फिर इसी को 3-3 ग्राम की मात्रा में शहद और मिश्री के साथ एक दिन में 3 (सुबह, दोपहर और शाम) बार प्रयोग करने से अतिसार में लाभ मिलता है। पकी हुई बेल के फल के गूदे को दही के साथ खाने से लाभ मिलता है। आधी पकी बेल को आग में भूनकर भर्ता बनाकर मिश्री और गुलाब के रस में मिलाकर खाली पेट खाने से सभी प्रकार के दस्तों में लाभ होता है। 10 ग्राम बेल की गिरी को सौंफ के रस में घिसकर पिलाने से बच्चों को आने वाले हरे और पीले दस्त बंद हो जाते हैं। बेल की गिरी का पिसा हुआ बारीक चूर्ण और अलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से दस्त समाप्त हो जाता है। बेल की जड़ को पकाकर काढ़ा बनाकर थोड़ी-सी मात्रा में मिश्री को डालकर बच्चों को पिलाने से आंव (एक प्रकार का सफेद चिकना पदार्थ जो मल के द्वारा बाहर निकलता है) का बाहर आना रुक जाता है। बेल के फल के 5 ग्राम गूदे को पानी में थोड़ी-सी मात्रा में चीनी मिलाकर मीठा शर्बत बनाकर पीने से अतिसार (दस्त) में लाभ मिलता है। बेल को सूखाकर पीसकर चूर्ण बनाकर छाछ के साथ मिलाकर पीने से दस्त का आना रुक जाता है। 10 ग्राम बेल की गिरी, 10 ग्राम कत्था और 10 ग्राम मिश्री को पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण में से 4 ग्राम को खुराक के रूप में सुबह और शाम ताजे पानी के साथ पीने से लाभ मिलता है। बेल की सूखी गिरी, सौंफ, ईसबगोल और चीनी को बराबर मात्रा में अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, इस बने चूर्ण को 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ रोगी को पिलाने से आमातिसार (आंवयुक्त दस्त) और पेट में होने वाली ऐंठन में लाभ पहुंचता है। 59. संग्रहणी (दस्त): बिल्वफल का 1 चुटकी भर चूर्ण और 1 चुटकी भर सोंठ के चूर्ण को गुड़ के साथ मिलाकर रोगी को देने से सब प्रकार का संग्रहणी (दस्त) का रोग दूर हो जाता है। 60. चोट लगने से सूजन व दर्द : सूजन से भरे दर्द में बेल के पत्ते की पट्टी बांधने से दर्द और सूजन कम होती है। 61. गर्भवती स्त्री की उल्टी : बेलगिरी का चूर्ण चावलों के पानी के साथ पीने से उल्टी बंद हो जाती है। 62. आवंयुक्त पेचिश (दस्त के साथ आंव और खून आना) : बेल के अंदर के गूदों को दही तथा गुड़ के साथ खाने से पेचिश के रोगी को लाभ मिलता है। पके हुए बेलपत्थर के गूदे को छाछ में मिलाकर खाने से खूनी पेचिश के रोगी को लाभ मिलता है। 6 ग्राम गुड़, 25 ग्राम बेल की गिरी को मिलाकर दिन में 4 बार सेवन करने से पेचिश के रोगी को लाभ मिलता है। पका हुआ बेल पुराने पेचिश के रोगी को लाभ पहुंचाता है। कच्चा बेल के टुकड़े कर दें। फिर उसे आग में पकायें। गुदे के बीजों को फेंक दें। इस गुदे को दही के साथ खाने से पेचिश का रोग दूर हो जाता है। बेल का कच्चा गूदा, मिश्री और 2 ग्राम नागकेसर को मिलाकर सेवन करने से पेचिश के रोगी को लाभ मिलता है। पेचिश के दर्द को दूर करने के लिए बेल के अंदर के गूदे को बड़ी सौंफ एवं घोड़बच के साथ मिलाकर काढ़ा तैयार करें। यह 40 से 80 मिलीलीटर काढ़ा सेवन करने से रोगी को लाभ मिलता है। इसके अलावा पेचिश में खून आना बंद हो जाता है। बेलपत्थर को कच्चा भूनकर रख लें। 1 ग्राम बेल पत्थर के गूदे में शक्कर मिलाकर खाने से पेचिश के रोगी का रोग दूर हो जाता है। बेलपत्थर के गूदे में सोंठ का चूर्ण और लस्सी (मट्ठा) मिलाकर पीने से पेचिश का रोग ठीक हो जाता है। 63. अग्निमान्द्यता (अपच) : पके बेल का शर्बत रोजाना सुबह पीने से भोजन आसानी से पच जाता है। बेल की पत्तियों को जरा-सा सेंधानमक और जरा-सी कालीमिर्च मिलाकर सेवन करने से अपच (भोजन का न पचना) का रोग दूर हो जाता है। 5 ग्राम बेल की गिरी, 7 दाने कालीमिर्च के, 10 दाने सफेद इलायची के और थोड़ी-सी मिश्री को मिलाकर पानी के साथ लेने से अपच (भोजन का न पचना) नष्ट हो जाती है। बेल की जड़ के काढ़े में छोटी पीपल का चूर्ण डालकर पीने से अपच का रोग ठीक हो जाता है। 64. प्रदर रोग : 10 ग्राम बेलगिरी, 10 ग्राम रसौत और 10 ग्राम नागकेसर को लेकर बारीक पीस लें। इसमें से 5-6 ग्राम चूर्ण को चावल के पानी के साथ खाने से प्रदर रोग में लाभ होता है। बेलगिरी, दारूहल्दी, रसौत, वासा (अड़ूसा), नागरमोथा, चिरायता, शुद्ध भल्लातक और कुमुद को बराबर मात्रा में शहद के साथ मिलाकर पीने से सभी प्रकार के पीले, काले, नीले, लाल, और सफेद प्रवाह वाले प्रदर रोग मिट जाते हैं।10-10 ग्राम की मात्रा में बेलगिरी, दारूहल्दी और रसौत को लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से प्रदर रोग में फायदा होता है। बेल के पत्तों को सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से मासिक धर्म में लाभ होता है। 65. घावों के दर्द व सूजन में : घावों पर बेल के पत्तों की पट्टी बांधना लाभदायक होता है। यह दर्द और सूजन को कम करती है। 66. बौनापन : किसी पेड़ से अमर बेल उतारकर, छाया में सुखाकर और चूर्ण बनाकर रखें। इस 1 से 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर रोजाना लेने से बौने की भी लम्बाई बढ़ती है। 67. लू का लगना : बेल का शर्बत गर्मी में पीने से लू लगने का खतरा नहीं रहता है। बेल की पत्तियों को पीसकर माथे पर लेप की तरह लगाने से शरीर की जलन से राहत मिलती है। 68. शीतपित्त : पटोल, नीम की छाल, अडूसा, त्रिफला, गुग्गुल, पीपल को 4-4 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर खाने से शीतपित्त के रोग में लाभ होता है। 69. मोटापा दूर करना : बेल के पत्ते, हरड़ को बारीक पीसकर बगलों में लगाने से भी मोटापे के रोग में लाभ होता हैं। 70. शरीर की बदबू: बेल के पत्तों को निचोड़कर निकाले रस में शंख का चूर्ण मिलाकर लेप लगाने से शरीर के अंदर आने वाली बदबू कम हो जाती है। बेल के पत्ते, काली अगर, खस, सुगन्धवाला और चंदन को मिलाकर पीसकर शरीर पर लेप करने से शरीर की बदबू मिट जाती है। 71. नींद न आना (अनिद्रा) : लगभग 10 ग्राम बेल की जड़ को पीसकर तथा घोटकर सुबह और शाम रोगी को देने से नींद ना आना (अनिद्रा) दूर हो जाती है। 72. सभी प्रकार के दर्द : बेल के पत्ते, एरण्ड के पत्ते और तिल को कांजी में अच्छी तरह पीसकर गर्म-गर्म लेप को पोटली बनाकर सेंकने से `वातज शूल´ में लाभ होता है। बेल की जड़, एरण्ड की जड़, चीते की जड़, सोंठ, हींग और सेंधानमक को बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर ठंडा करके पेट पर लेप करने से `वातज शूल´ यानी वात के कारण होने वाला दर्द समाप्त हो जाता है। 73. वीर्य रोग में : बेल के जड़ की छाल को जीरे के साथ पीसकर घी में मिलाकर सुबह-शाम पीने से वीर्य का पतलापन दूर होता है। 74. नकसीर : बेल के पत्तों के रस को पानी में मिलाकर पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) रूक जाती है। 75. अवसाद, उदासीनता, सुस्ती : लगभग 10 ग्राम बेल की जड़ को पीसकर और घोंटकर सुबह और शाम लेने से आलस्य या उदासीनता और पागलपन खत्म हो जाता है। 76. योनि का संकोचन : बेल के पत्ते, कुल्थी, गोरोचन और मैनसिल को बराबर मात्रा में लेकर तांबे के बर्तन में 7 दिनों तक रखकर तेल में पका लें, फिर 8 वें दिन इसे भग (योनि) पर लेप करने से योनि संकुचित होती है। 77. मूत्ररोग : बेल के 8-10 पत्तों की पानी के साथ चटनी बनायें। फिर उसमें 4-5 काली मिर्च का चूर्ण तथा 2 चम्मच शहद डालकर खाने से मूत्ररोग मे लाभ होता है। 78. एलर्जी होने पर : 5-5 ग्राम बेल की जड़, त्रिकुटा, पीपल और चित्रक को लेकर दूध में उबालकर दूध को हल्का ठंडा रह जाने पर पीने से एलर्जी के रोग में लाभ होता है। 79. दिल की ध़ड़कन : बेल की जड़ का काढ़ा सुबह शाम सेवन करने से हृदय की धड़कन सामान्य हो जाती है। पके हुए बेल का गूदा लगभग 100 ग्राम रोजाना सुबह के समय मलाई के साथ खाना चाहिए। 10 ग्राम बेल के पत्तों का रस लेकर गाय या भैंस के शुद्ध घी में मिलाकर सेवन करने से दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है। 80. फोड़ा (सिर का फोड़ा) : बेल के पत्ते की पोटली फोड़ों पर बांधने से सूजन व फोड़ा जल्दी ठीक हो जाता है। 81. हैजा : बेल का गूदा, सोंठ तथा जायफल को बराबर मात्रा में लेंकर, काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने से हैजा में लाभ होता है। 82. दिल का रोग : बेल की जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है। 10 मिलीलीटर बेल के पत्तों का रस, 5 ग्राम देशी घी तथा 10 ग्राम शहद को मिलाकर उंगली से चाटने से दिल के रोग में लाभ होता है। 83. कुकुणक : बराबर मात्रा में लिए गए 7 से 14 मिलीलीटर हरीतकी फल, द्राक्षा (मुनक्का) और पिप्पली फल के काढ़े को बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को दिन में 2 बार देने से कुकुणक रोग में लाभ होता है। 84. शरीर का सुन्न हो जाना : बेल की जड़, त्रिकुटा तथा चित्रक बराबर मात्रा में लेकर 500 मिलीलीटर दूध के साथ मिलाकर सेवन करने से शरीर का सुन्न होना दूर होता है। 85. मानसिक उन्माद (पागलपन) : पागलपन के रोगी को बेल की जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पिलाने से हृदय की धड़कन सामान्य होती है और पागलपन दूर हो जाता है। 86. खून की कमी : बेल के पत्तों के 5 मिलीलीटर रस में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर पीने से पाचन शाक्ति ठीक हो जाती है और खून में वृद्धि होती है। 87. शरीर में सूजन : बेल की जड़, पीपल, चित्रक और त्रिकुटा को लगभग 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर दूध में उबालकर पीने से शरीर की सूजन तुरंत ही दूर हो जाती है। 7 से 14 मिलीलीटर बेल के पत्तों के रस को 1 ग्राम मिर्च के चूर्ण के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से सूजन दूर हो जाती है। 88. बालरोगों पर औषधि (बच्चों के विभिन्न रोग) : बेल की जड़ के काढ़े में धान की खील और शर्करा मिलाकर मिलाकर और बच्चे को पिला दें। इससे हर प्रकार के अतिसार (दस्त) और वमन (उल्टी) में जल्दी लाभ होता है। बेलगिरी, इन्द्रायण, सुगन्धबाला, मोचरस और नागरमोथा के मिश्रण के साथ बकरी का दूध गर्म करके बच्चे को पिलाना चाहिए। इससे आमातिसार (खूनी दस्त) और संग्रहणी (बार-बार दस्त का आना) आदि रोग शीघ्र ही दूर हो जाते हैं। भुने हुए बेलगिरी के गूदे को गुड़ के साथ मिलाकर सेवन करें। इससे बच्चों का पेट दर्द, कब्ज, रक्तातिसार (खूनी दस्त) आदि रोग दूर होते हैं। 20 ग्राम बेलगिरी के बीज, 160 मिलीलीटर बकरी का दूध और 640 मिलीलीटर पानी को मिलाकर कम आग पर पकायें, जब दूध थोड़ा बाकी रह जाये तब इन्द्रायव, मोचरस और शर्करा का चूर्ण डालकर रोगी को पिलायें। इससे खूनी दस्त में आराम आता है। कच्चे बेल की गिरी, पिप्पली और सोंठ का चूर्ण शहद के साथ सही मात्रा में बच्चे को चटाने से वायु का अवरोध (गैस का बनना) तथा शूलयुक्त प्रवाहिका (पेचिश) का जल्दी अन्त होता है। आमातिसार (आंवयुक्तदस्त), रक्तातिसार (खूनी दस्त) आदि रोगों में उचित मात्रा में बेलगिरी का मुरब्बा अथवा मुरब्बे का शर्बत बच्चों को पिलाने से लाभ होता है। बेलगिरी, मोथा, इन्द्रायव, पठानी लोध्र, मोचरस और धाय के फूल के बराबर भाग का चूर्ण सेवन करने से पेचिश और दर्द में जल्दी आराम आता है।
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