बुधवार, 31 मार्च 2021

Dhatura plant and flower benefits

 



Dhatura




परिचय : धतूरे का पौधा सारे भारत में सर्वत्र सुगमता के साथ मिलता है। आमतौर पर यह खेतों के किनारे, जंगलों में, गांवों में और शहरों में यहां-वहां उगा हुआ दिख जाता है। भगवान शिव की पूजा के लिए लोग इसके फूल और फलों का उपयोग करते हैं। धतूरा सफेद, काला, नीला, पीला तथा लाल फूल वाला 5 जातियों का मिलता है। इसका पौधा 170 सेमी तक ऊंचा तथा झाड़ीदार होता है। इसकी तना और शाखाएं बैंगनी या हल्के काले रंग की होती हैं। इसके पत्ते दिल के आकार के, अण्डे के समान, चिकने दन्तुर या मुड़े-मुडे़ 3 से 7 इंच तक लम्बे होते हैं। इसके फूल घंटाकार तुरही के आकार के एक साथ 2-2 या 3-3 सफेद बैंगनी चमक लिए हुए 5 से 7 इंच तक लम्बे हो जाते हैं। इसके फल हरे रंग के कांटेदार, गोल-गोल नीचे की ओर लटके 4 खण्डों से युक्त होते हैं। धतूरा के फल पकने पर अपने आप अनियमित ढंग से फट जाते हैं जिनमें से चटपटे, मटमैले भूरे, वृक्काकार, अनेक बीज निकलकर बाहर निकल जाते हैं। विभिन्न भाषाओं में नाम : हिन्दी धतूरा संस्कृत धत्तूर, कनक मराठी धोत्रा गुजराती धान्तूरे बंगाली धतूरा तेलगू उम्मत्त तमिल उम्मत्त फारसी तातूर अरबी दातूर अंग्रेजी थोरन ऐपल रंग : धतूरा के पत्ते काले व सफेद रंग के होते हैं। स्वाद : इसका स्वाद कड़वा होता है। स्वरूप : धतूरा के फूल काले, पीले, नीले और सफेद होते हैं, परन्तु धतूरे को सफेद और काला 2 ही प्रकार माना जाता है। यह अक्सर जंगलों में पाया जाता है। इसके पत्ते मीडियम आकार के और फूल घंटे के आकार के होते हैं। फूल का रंग ऊपर और बीच में सफेद परन्तु ऊपरी हिस्सा काला, नीला और बैंगनी रंग का होता है। इसके 5 भाग होते हैं और उसकी बाहरी पांचों पंखुड़ियां नीले रंग की होती हैं। इसका फल गोल कांटों से युक्त और अत्यन्त अधिक बीजों से भरा हुआ रहता है। जिस धतूरे की डाल, पत्ती, फूल, फल सब काले होते हैं, उन्हें काला धतूरा कहा जाता है और इसमें जहर की मात्रा अधिक होती है। यह ज्यादा गुणकारी है। धतूरे के फल सूखने पर फट जाते हैं, यह नींबू के बीजों के समान अत्यन्त कठोर बाहर निकल आते हैं, इन्हीं फलों में जहर होता है। स्वभाव : धतूरा गर्म प्रकृति का होता है। हानिकारक : धतूरा नशा अधिक लाता है और प्राणों का भी नाश कर देता है। धतूरे के पत्ते और बीज काफी विषैले होते हैं। धतूरे की निर्धारित मात्रा से अधिक सेवन करने पर मुंह, गले, आमाशय में तेज जलन और सूजन पैदा होती है। व्यक्ति को तेज प्यास लगती हैं। त्वचा सूख जाती है। आंखे व चेहरा लाल हो जाता है। शरीर का तापमान बढ़ जाता है। चक्कर आने लगता है। आंखों के तारे फैल जाते हैं और व्यक्ति को एक वस्तु देखने पर एक से दिखाई पड़ने लगती है। रोगी रोने लगता है। नाड़ी कमजोर होकर अनियमित चलने लगती है। यहां तक की श्वासावरोध होकर या हृदयावरोध होकर मृत्यु तक हो सकती है। धतूरे के विषाक्तता के लक्षण मालुम पड़ते ही तुरन्त ही चिकित्सक की सेवाएं लेनी चाहिए। दोषों को दूर करने वाला : शहद, मिर्च, सौंफ धतूरा के दोषों को नष्ट करते हैं। तुलना : धतूरा की तुलना भांग के बीज से की जाती है। मात्रा : धतूरा के सेवन की मात्रा लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग तक होती है। गुण : धतूरा नशा, गर्मी, गैस को बढ़ाता है, बुखार और कोढ़ को नष्ट करता है तथा सिर की लीखों व जुओं को खत्म करता है। विभिन्न रोगों में सहायक : 1. सिर दर्द : धतूरे के 2-3 बीज रोजाना निगलने से पुराने सिर का दर्द दूर हो जाता है। 2. सिर की जुएं व लीख: सरसों का तेल 4 किलो, धतूरे के पत्तों का रस 16 किलो को लेकर हल्की आग पर पकाते हैं जब तेल मात्र शेष रह जाए तो बोतल में भरकर रख लें। इस तेल को बालों में लगाने से सिर की जूं मर जाती है। धतूरे के पत्तियों के रस को सिर के बालों की जड़ों में लगाने से जुएं व लीखे नष्ट हो जाती हैं। रस में कपूर को मिलाकर लगाने से अधिक प्रभावशाली असर होता है। 3. उन्माद (पागलपन): काले धतूरे के शुद्ध बीजों को पित्त पापड़ा के रस में घोंटकर पीने से उन्माद (पागलपन) शान्त हो जाता है। शुद्ध धतूरे के बीज और कालीमिर्च को बराबर मात्रा में लेकर बारीक करके पानी के साथ उबाल करके लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बना लेते हैं। यह 1-2 गोली सुबह व रात को मक्खन के साथ देने से नया उन्माद रोग (पागलपन) समाप्त हो जाता है। नया उन्माद रोग मस्तिक आघात, शराब या गांजा के सेवन या धूप में घूमने से या प्रसूतावस्था में हुआ हो जिसमें नींद न आती हो उस अवस्था में इस उन्मत्त वटी का सेवन कराने से थोड़े ही दिनों में मन स्वस्थ होकर शान्त हो जाता है। 4. आंखों की जलन और सूजन: धतूरे के ताजे पत्तों का रस आंख पर लेप करने से आंखों का लालपन दूर हो जाता है तथा सूजन और जलन समाप्त हो जाती है। 5. स्तनों की सूजन : स्त्री के स्तनों की सूजन में धतूरे के पत्तों को गर्म करके बांधने से आराम मिलता है। जिस स्त्री के दूध अधिक होने से स्तन में गांठे हो जाने का डर हो उसके दूध को रोकने के लिए स्तन पर धतूरे के पत्ते बांधने से लाभ होता है। 6. हैजा (कालरा) : हैजे में केवल धतूरा की केसर बताशे में रखकर निगल जाने से हैजा नष्ट हो जाता है। हैजा रोग में धतूरे के पत्ते रस 5 से 6 चम्मच दही में मिलाकर रोगी को पिलाने से लाभ होता है। 7. गर्भधारण : धतूरे के फलों का चूर्ण घी और शहद में मिलाकर चाटने से गर्भ ठहर जाता है। 8. गठिया : धतूरा के पंचांग का रस निकालकर उसको तिल के तेल में पकाकर, जब तेल शेष रह जाए तो इस तेल की मालिश करके ऊपर धतूरा के पत्ते बांध देने से गठिया तथा बाई का दर्द नष्ट हो जाता है। इस तेल का लेप करने से सूखी खुजली और गठिया में लाभ होता है। जोड़ों के दर्द में धतूरा के सत का लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में 3 बार रोगी को देने से लाभ मिलता है। धतूरा के पत्तों के लेप से या इसके पत्तों की पोटली से गठिया और हड्डी के दर्द में लाभ होता है। गठिया के दर्द के रोगी को धतूरे के पत्तों को पीसकर लेप करने से गठिया दर्द और सूजन कम हो जाती है। गठिया के रोगी को धतूरे के पत्तों के तेल से मालिश करने से रोग दूर होता है। 9. जोड़ों की सूजन : धतूरे के पिसे हुए पत्तों में शिलाजीत मिश्रित कर लेप करने से अण्डकोष की सूजन, पेट के अन्दर की सूजन, संधियों (जोड़ों) की सूजन और हडि्डयों की सूजन में बड़ा लाभ मिलता है। 10. योनि में दर्द : धतूरे के पत्तों को पीसकर उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक और घी मिलाकर कपडे़ की पोटली बना लें। रात में सोने से पहले पोटली योनि में रखने और सुबह निकाल लेने से दर्द में आराम मिलता है। 11. शीघ्रपतन : लौंग, अकरकरा और शुद्ध धतूरे के बीज बराबर मात्रा में पीस लेते हैं। 1 ग्राम की मात्रा में 1 कप दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करते रहने से कुछ ही दिनों में स्तम्भन बढ़कर शीघ्रपतन दूर हो जाता है। 12. कामशक्ति : धतूरा के बीज, अकरकरा और लौंग इन तीनों चीजों की गोलियां बनाकर खाने से कामशक्ति बढ़ जाती है। धतूरा के बीजों के तेल की पैरों के तलुवे पर मालिश करने के बाद स्त्री सहवास करने से बहुस्तम्भन होता है। धतूरा के 15 फलों को बीज सहित लेकर पीसकर बारीक चूर्ण को 20 किलोग्राम दूध में डालकर दही जमा देते हैं। अगले दिन दही को मथकर घी निकाल लेते हैं। इस घी की 125 ग्राम की मात्रा पान में रखकर खाने से बाजीकरण होता है तथा लिंग पर घी की मालिश करने से उसकी शिथिलता (ढीलापन) दूर हो जाती है। 13. नारू, बाला : नारू की बीमारी में धतूरे के पत्तों की पोटली बांधने से बहुत ही लाभ मिलता है। 14. बुखार : धतूरा के बीजों की राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में मलेरिया ज्वर (बुखार) के रोगियों को सुबह, दोपहर और शाम को देने से लाभ मिलता है। धतूरा के बीजों के चूर्ण को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में ज्वर (बुखार) आने से पहले रोगी को खिलाने से लाभ मिलता है। धतूरा के पत्ते, नागरबेल के पान और कालीमिर्च बराबर मात्रा में गिनकर, पीस लेते हैं और उड़द के बराबर की गोलियां बना लेते हैं। दिन में 2 बार 1-1 गोली देने से ज्वर (बुखार) छूट जाता है। इसको सौंफ के रस के साथ सेवन करने से पुराना प्रमेह मिट जाता है। 15. तिजारी : धतूरे के पत्तों का 5-6 बूंद रस में लगभग 25 ग्राम दही मिलाकर पिलाने से 1 या दो बार में तिजारी चली जाती है। 16. बिच्छूदंश : धतूरा के पत्तों की लुगदी, बिच्छू दंश पर लगाने से आराम मिलता है। 17. घाव : जिस घाव पर गहरा पीप या पपड़ी जम गया हो उसको गुनगुने पानी की धार से धोकर दिन में 3-4 बार धतूरा के पत्तों की पोटली बांधनी चाहिए। 18. कान की सूजन, दर्द : धतूरे के पत्तों के रस को आग पर गाढ़ा करके, कान के पीछे की सूजन पर लगाने से आराम मिलता है। कान में यदि मवाद बहता हो तो 8 भाग सरसों का तेल, 1 भाग गंधक, 32 भाग धतूरा के पत्तों का रस मिलाकर गर्म कर लें, फिर इस तेल की एक बूंद कान में सुबह-शाम डालने से कान के दर्द में आराम आता है। धतूरे के पत्तों को गर्म करके 2-3 बूंदों को कान में टपकाने से कान दर्द से छुटकारा मिलता है। 400 ग्राम धतूरा का रस, धतूरा के रस में चटनी की तरह पिसी हुई हल्दी 25 ग्राम और तिल का तेल 100 ग्राम लेकर हल्की आग पर पका लेते हैं। तेल शेष रहने पर छान लेते हैं। यह कान के और नाड़ी के घाव के लिए लाभकारी होता है। जिस कान में दर्द हो उसके अन्दर धतूरे के ताजे पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस की 2 बूंदे कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है। 19. दर्पनाशक (विषनाशक) : कपास के फूल और पत्ते इनका शीत निर्यास देने से धतूरे का जहर समाप्त हो जाता है। 20. दोष : धतूरे का अधिक मात्रा में उपयोग करना जहर के समान है। यह अपनी खुश्की की वजह से शरीर को सुन्न कर देता है। सिर में दर्द पैदा करता है तथा पागलपन और बेहोशी पैदा करके मनुष्य को मार देता है। इसका वाहृय प्रयोग करना ही अच्छा होता है। अत: प्रयोग सावधानी से करना चाहिए। 21. धतूरे के विष को शान्त करना : धतूरे के बीज या फल को खा लेने पर शरीर में बड़ी गर्मी पैदा हो जाती है और जलन के साथ खुश्की होने लगती है। धीरे-धीरे बेहोशी भी आने लगती है। धतूरे के जहर की सबसे उत्तम औषधि पलाश (ढाक) है। अगर धतूरे का फल किसी ने खा लिया हो तो ढाक का फूल खिलाइये। पत्तों के जहर में ढाक के पत्तों का रस पिलाइये। धतूरे के जहर में पलाश (ढाक) के बीज खिलाना चाहिए। इससे बढ़कर कोई अन्य उपयोग नहीं है। कपास का पंचांग मिल जाए तो पानी में घोटकर रोगी को पिला दीजिए इससे धतूरे का जहर शान्त हो जाता है। सहजना की जड़ को पानी में पीसकर छान लें। इस दवा को थोड़े शहद के साथ मिलाकर पीने से शरीर के भीतरी भाग के फोड़े, जिगर तिल्ली आदि के रोगों में जरूर फायदा होता है। यह आरोग्यवर्द्धिनी वटी पुनर्नवादि काढे़ के साथ देनी चाहिए। 22. खालित्य (गंजापन) : धतूरे के पत्तों के रस का लेप करने से खालित्य (गंजेपन का रोग) नष्ट हो जाता है। 23. पिटका : धतूरा की जड़ों के चूर्ण को पानी में पीसकर बाधंने से पिटका नष्ट हो जाती है। 24. हाथ-पैरों में पसीने की अधिकता : धतूरे के बीजों की राख बनाते हैं। फिर इसे 1-1 ग्राम की मात्रा में 8-10 दिन रोजाना एक बार सेवन करने से हाथ-पैरों में अधिक पसीना आने का रोग दूर हो जाता है। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग धतूरे के बीजों को खाने से हाथ-पैरों में पसीना आने वाले रोगी को लाभ मिलता है। 25. सूजन : धतूरे की जड़ को गोमूत्र (गाय के पेशाब में) में पीसकर बने लेप को गर्म कर गर्म ही गर्म सूजन पर मालिश करने से सूजन नष्ट हो जाती है। 26. दांत का दर्द : इसके बीजों को पानी में पीसकर बनी लुग्दी को थोड़ी-सी मात्रा में दाढ़ की खाली जगह में भर देने से दांत के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं। 27. कुत्ते के काटने पर : धतूरे के पत्तों के रस में लाल मिर्च को पीसकर काटे हुए स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है। 28. दमा या श्वास रोग : धतूरे के पंचांग को पीसकर सुखा लेते हैं और चिलम में रखकर धूम्रपान की तरह उपयोग करते हैं। इससे श्वास रोग (दमा) नष्ट हो जाता है। धतूरे के पत्ते का भी धूम्रपान करने से खांसी खत्म हो जाती है। धतूरे के दूध को छाती पर लगाने से श्वास (दमा) और पुराना दिल का रोग मिट जाता है। धतूरे के सूखे पत्तों को चिलम में रखकर पीने से तीव्र वेग का श्वास (दमा) भी सामान्य हो जाता है। 6 ग्राम धतूरे के बीज और 2 ग्राम अफीम को पानी में पीसकर 33 गोलियां कालीमिर्च के समान आकार की बना लेते हैं और इसे छाया में सुखा लेते हैं। दिन में 3 बार 1-1 गोली चूसने से दमा रोग ठीक हो जाता है। धतूरे के फलों की राख लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग की मात्रा में लेकर शहद के साथ सेवन करने से दमा खत्म हो जाता है। धतूरे के फूल पर फल आते हैं। 1 फल को तोड़कर ले आएं और इसे 2 बराबर हिस्सों में काट लेते हैं। आधे भाग के बीज निकालकर फेंक देते हैं और उसमें छोटी इलायची का चूर्ण अच्छी तरह से भर लेते हैं। दूसरे भाग के बीज नहीं निकालने हैं। अब दोनों हिस्सों को मिलाकर धागे से लपेटकर पहले की तरह जोड़ देते हैं। इसके ऊपर बारीक कपड़ा लगाकर ऊपर गीली मिट्टी से पूरे फल पर लेप कर कण्डे (उपले) को जलाकर उसके बीच अच्छी तरह से रख देते हैं, जब कण्डे अच्छी तरह जल जाएं तथा ठण्डी राख शेष रहे तब इस कपड़े में मिट्टी में लिपटे धतूरे के फल को निकालकर सावधानी से साफ करके मिट्टी आदि हटाकर फल को अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लेते हैं। अब 2-3 गोली श्वास या दमे के रोगी को शहद में मिलाकर दें। इस दवा के उपयोग से रोगी शीघ्र लाभ महसूस करने लगेगा। कुछ दिनों तक लगातार प्रयोग करने से दमा रोग नष्ट हो जाता है। धतूरा के आधे सूखे हुए पत्तों के चूर्ण को लगभग आधा ग्राम की मात्रा में लेकर बीड़ी पिलानी चाहिए। यदि 10 मिनट तक दमें का दौरा शान्त न हो तो अधिक से अधिक 15 दिनों बाद दूसरी बीड़ी पिलानी चाहिए। तब भी आराम न हो तो तीसरी बीड़ी नहीं पिलानी चाहिए। जिन्हें धतूरा अनुकूल न हो उन्हें इसे नहीं देना चाहिए। धतूरा, अपामार्ग और जवांसा को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर पीस लेना चाहिए। इसमें से 2 चुटकी चूर्ण चिलम में रखकर पीने से दमे का दौरा बंद हो जाता है। 29. अण्डकोष की सूजन : धतूरे के पत्ते पर तेल लगाकर अण्डकोषों पर बांधने से अण्डवृद्धि जल्द मिट जाती है। 30. पुनरावर्तक ज्वर : धतूरे के बीज का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लेकर 1 ग्राम तक दही के साथ बुखार आने से पहले खिला दें तो बुखार दुबारा नहीं चढ़ता है। इस प्रयोग से पहले बीजों को लगभग 12 घंटे तक गाय के पेशाब में भिगोकर रख दें। 31. अण्डकोष के एक सिरे का बढ़ना : धतूरे के ताजे पत्ते पर सरसों के तेल के लेप को आग में सेंक दें। फिर उसे अण्डकोष पर बांध दें। रोजाना रात में सोते समय इस उपचार को करें। इससे लाभ होता है। 32. फेफड़ों की सूजन : फेफड़ों की सूजन में धतूरे के पत्तों का लेप छाती और पीठ पर या पत्तों के काढ़े से मालिश करने से लाभ होता है। 33. आंखों का दर्द : अगर आंखों में दर्द हो रहा हो तो पके धतूरे के पत्ते का रस अथवा नीम के कोमल पत्तों का रस या दोनों के पत्तों का रस एक साथ मिलाकर दोनों कानों में डालने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है। 34. खांसी : धतूरे के पत्ते, भांग के पत्ते और कलमी शोरा को बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते हैं। श्वास (सांस) का दौरा उठने पर इस 2-3 चुटकी चूर्ण को कटोरी में डालकर जला लेते हैं जब कटोरी में से धुंआ निकलने लगे तो तो धुंए को मुंह के द्वारा खींचने से खांसी ठीक हो जाती है। 35. अफारा (गैस का बनना) : धतूरे के पत्तों का लेप या पत्तों के काढ़े से सेंकने या पत्तों के तेल से मालिश करने से पेट की गैस दूर होती है। 36. गर्भनिरोध : पुष्य नक्षत्र में काले धतूरे की जड़ लाकर यदि स्त्री अपनी कमर में बांध ले तो इससे गर्भ नहीं ठहरेगा। 37. नपुंसकता : धतूरे के बीज, अकरकरा और लौंग को बराबर मात्रा में पीसकर चने के बराबर 1-1 गोलियां बनाकर रोज सुबह-शाम लेने से नपुंसकता के रोग में लाभ होता है। 38. कान से कम सुनाई देना : धतूरे का पीला पत्ता (बिना छेद वाला) को गर्म करके उसका रस निकाल लें। इस रस को लगातार 15 दिन तक कान में डालने से बहरापन ठीक हो जाता है। 39. गर्भपात रोकना : यदि बार-बार गर्भ गिर जाता है तो धतूरे की जड़ चार अंगुल के बराबर लेकर कमर में बांधने से गर्भ स्थिर हो जाता है। काले धतूरे की जड़ अथवा अनार की जड़ को रविवार को सफेद कपड़े में बांधकर कमर में धारण करने से गर्भपात का डर समाप्त हो जाता है। 40. कमरदर्द : 200 मिलीमीटर धतूरे के फल का रस, 200 मिलीमीटर आक के पत्तों का रस, 200 मिलीमीटर एरण्ड के पत्तों का रस, 800 मिलीमीटर तिल्ली का तेल। सबको मिलाकर अच्छी तरह से पकाएं। फिर इसे छानकर शीशी में भर लें। इस तेल के कमर पर मालिश से कमर का दर्द सही हो जाता है। 41. बहरापन : धतूरे के पीले पत्तों को हल्का सा गर्म करके उसका रस निकालकर 2-2 बूंदे करके कान में डालने से बहरेपन का रोग दूर हो जाता है। 42. स्तनों का दर्द और सूजन : धतूरे के पत्तों को हरिद्रा के साथ मिलाकर छोटी-सी पोटली बनाकर स्तनों पर बांधने से दर्द और सूजन कम हो जाती है, परन्तु ध्यान रहे कि इसके प्रयोग करने से दूध कम हो जाता है, और नवजात, छोटे बच्चों के होने पर इसका प्रयोग न होने दें। धतूरा और नीम के पत्तों को मिलाकर हल्दी के साथ पीसकर रख लें, फिर इसी लेप को पट्टी की मदद से स्तनों पर बांधने से स्तनों की सूजन और दर्द समाप्त हो जाती है। ध्यान रहें कि इसके प्रयोग से मां का दूध कम हो जाता है और बच्चों को दूध पिलाने वाली माता को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। 43. दर्द : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग धतूरे के बीज को दही के साथ खाने से वेदना (दर्द) कम होती है और उल्टी भी नहीं होती है। प्रयोग से पहले धतूरे के बीज को 12 घंटे तक गाय के मूत्र में या दूध में उबालकर शोधन कर लें। 44. स्तनों का कठोर होना : धतूरे के पत्तों पर एरण्ड का तेल गर्म-गर्म करके स्तनों के उस भाग पर बांधना चाहिए जहां दर्द हो इससे स्तन कठोर हो जाते हैं। 45. कील, कांटा चुभना : जब कोई कील, कांटा आदि चाहे कितना भी कठोर क्यों न हो, शरीर के अन्दर कहीं चुभ जाये तो धतूरे को गुड़ के साथ खिलाने से कांटा पानी की तरह गल जायेगा। 46. पेट के कीड़े : धतूरे के पत्तों को पीसकर बने रस को सरसों के तेल में मिलाकर सिर की मालिश करने से सिर में मौजूद जुंए समाप्त हो जाते हैं। धतूरे के पत्तों का पेस्ट (लुगदी) या धतूरे के पत्तों के रस के साथ पकाये हुए तेल की मालिश करने से सिर की जुएं तुरन्त समाप्त हो जाती हैं। 3-4 बूंद धतूरे के पत्तों का रस, आधा-आधा चम्मच अजवायन और शहद में मिलाकर सोते समय रोगी को पिलाने से कुछ ही दिनों में पेट के सारे कीडे़ मल के साथ निकल जाते हैं। 47. टेटनस : 3 से 5 बूंद धतूरा का टिंचर (टिंचर स्ट्रामोनियम) टेटनस के रोगी को उग्रता के अनुसार 3-4 दिन दूध में मिलाकर लेने से रोगी ठीक हो जाता है। 48. स्तनों में दूध का अधिक मात्रा में होना : धतूरा के पत्तों को हरिद्रा में मिलाकर स्तनों पर बांधने से स्तन में आने वाली सूजन मिट जाती हैं। धतूरे के पत्तों को गर्म करके दिन में 2-3 बार सूजन से पीड़ित स्तन पर बांधने से दूध कम हो जाता है। 49. अरुंषिका (वराही) : धतूरे या नागरबेल के पत्तों के रस में थोड़ा-सा कपूर मिलाकर उसमें कपड़े या रूई को भिगोकर सिर पर बांधने से अरुंषिका (सिर की छोटी-छोटी फुंसियों) में लाभ मिलता है। इससे सिर की जूं और कीड़े भी मर जाते हैं। धतूरे के पत्तों को सरसों के तेल में पकाकर तेल को छान लें, और इस तेल को सिर में लगाने से अरुंशिका रोग (सिर की छोटी-छोटी फुंसियां) ठीक हो जाती है। 50. स्तनों की पीड़ा : हल्दी और धतूरे के पत्तों का लेप करने से स्तनों की पीड़ा नष्ट हो जाती है। 51. अंगुलबेल (डिठौन) : धतूरे के पत्तों को पीसकर, उसमें ‘शहद मिलाकर लेप करने से मवाद वाली अंगुली में छेद हो पीव निकल जाता है। इससे रोगी की अंगुली जल्द ठीक हो जाती है। 52. पेट में दर्द होने पर : धतूरे के बीज को दूध में अच्छी तरह से उबालकर शुद्ध करे या गाय के पेशाब मे लगभग 12 घण्टें तक भिगो कर रख लें, फिर इसे 6 मिलीग्राम की मात्रा में दही को मिलाकर खाने से पेट के दर्द में आराम होकर दर्द ठीक हो जाता हैं। 53. उपदंश : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग धतूरे की जड़ को पान में रखकर खाने से उपदंश से सम्बन्धी रोग मिट जाते हैं। 54. फोड़ा : पीला धतूरा (सत्यानाशी) के बीजों को ठण्डे पानी में पीसकर फोड़े और फुन्सियों पर लेप की तरह से लगाने से सिर का फोड़ा ठीक हो जाता है। 55. हाथ-पैरों की अकड़न : हाथ व पैरों की अकड़न व दर्द में धतूरे के 2 फल काटकर 125 ग्राम सरसों के तेल में जलाकर फिर ठण्डा करके छान लें। इस तेल की मालिश करने से हाथ-पैरों की अकड़न ठीक हो जाती है। 56. हाथ-पैरों की ऐंठन (सायटिका) : आक, पीलवान, काला धतूरा और लाल एरण्ड के 5-5 पत्ते गर्म आग में जलाकर तिल के तेल में मिलाकर उसकी मालिश करके धूप में बैठने से सायटिका मिट जाती है। 57. नहरूआ (स्यानु) : धतूरे के पत्ते को सिल पर पीसकर लगाने से नहरूआ का रोग ठीक होता है। 58. मिर्गी (अपस्मार) : धतूरे के पत्तों का रस रोगी को मिर्गी की तीव्रता के अनुसार देने से मिर्गी दूर हो जाती है। 59. फेवस और फंगस के रूप में : धतूरे के पत्तों से बने तेल का लेप करने से ऐसे चमड़ी के रोगों में बहुत लाभकारी होता है। 60. फीलपांव (गजचर्म) : फीलपांव के रोगी को धतूरे की जड़, एरण्डी की जड़, सम्भालू की जड़, सांठी की जड़, सहजना की जड़ तथा सरसों सबको बारीक पीसकर लेप करने से फीलपांव रोग दूर हो जाता है। 61. साइटिका : धतूरे के पत्तों का काढ़ा बनाकर पैरों की सिंकाई करने तथा पत्तों से बने तेल की मालिश करने से रोगी का रोग दूर हो जाता है। 62. लिंग दोष : 5-5 ग्राम धतूरे के बीज और अकरकरा, 3 ग्राम अफीम और 20 ग्राम काली मिर्च को पीसकर छानकर उसमें 40 ग्राम चीनी मिलाकर पानी डालकर उसकी मटर के बराबर गोलियां बनाकर रखें। 1 गोली सुबह-शाम पानी से लेने से लिंग की इिन्द्रयों के दोष दूर होते हैं। 63. सिर का दर्द : 3-4 बीज धतूरे के बिना चबाये निगलने से पुराने से पुराना सिर का दर्द ठीक हो जाता है। 64. नाड़ी का दर्द : नाड़ी के दर्द में धतूरे के पत्तों का लेप बनाकर या पत्तों का काढ़ा बनाकर सिंकाई करने से या पत्तों से बने तेल की मालिश करने से लाभ होता है। 65. बच्चों के आंखों में दर्द : जिस दिन आंखों में दर्द हो, उसी दिन धतूरे की पत्तियों का रस निकालकर और थोड़ा गर्म करके कान में डालें। अगर बांई आंख में दर्द हो तो दाहिने कान में डाले और अगर दाहिनी आंख में दर्द हो तो बायें कान में डालें।

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