बुधवार, 31 मार्च 2021

Neem health benefits


Neem benefits 








 परिचय : नीम का पेड़ बहुत बड़ा होता है। नीम का पेड़ वातावरण को शुद्ध बनाने में विशेष भूमिका निभाता है, क्योंकि नीम की पत्तियों में गुणकारी तत्व पाये जाते हैं जो जीवाणुओं को नष्ट करते रहते हैं। नीम की इन रोग प्रतिरोधक शक्तियों के कारण इससे `एंटीसेप्टिक´ औषधियां बनाई जाती हैं। प्राचीन आर्य ऋषियों ने नीम को अलौकिक गुणों से युक्त बताया है कि नीम अनेक प्रकार की बीमारियों को मानव शरीर से दूर करता है। नीम के पत्ते खाकर कई लोग कई दिनों तक जीवित रहे हैं, साथ ही साथ शक्तिशाली भी रहकर अपना सामान्य जीवन व्यतीत किया है। गर्मी के दिनों में नीम के वृक्ष की छाया काफी आनन्दायक होती है। नीम के वृक्ष से गोंद प्राप्त की जाती है, जिससे औषधियां बनाई जाती है। इसका पेड़ देवालयों, धर्मशालाओं, सड़क आदि पर ठण्डी और ताजी हवाओं के लिए लगाया जाता है। गांव में जिस घर के आंगन में नीम का पेड़ होता हैं उस घर के लोग बीमार नहीं रहते हैं क्योंकि वे नीम का प्रयोग करते रहते हैं। जब नीम का पेड़ बहुत पुराना हो जाता है तो इसकी लकड़ी से शुद्ध चंदन की सी सुगन्ध आने लगती हैं। नीम की लकड़ी इमारत आदि बनाने के काम में लाई जाती है। कड़वा होने के कारण इसमें कीड़े नहीं लगते हैं। नीम का पेड़ कई सालों तक जीवित रहता है। नीम के बारे में एक अच्छी कहावत है कि नीम खाने में कड़वा होता है परन्तु काफी गुणकारी होता है। इसलिए इसका प्रयोग करना चाहिए। नीम का वृक्ष बबूल के वृक्ष से काफी अच्छा होता है, क्योंकि खेत के किनारे बबूल का वृक्ष सभी जरूरी पौष्टिक खनिज लवणों को चूस लेते हैं। लेकिन नीम का वृक्ष फसलों के लिए लाभकारी होता है। इसलिए किसानों को इसे अपने खेतों के किनारे अवश्य लगाना चाहिए। विभिन्न भाषाओं में नाम : भाषा नाम हिन्दी नीम संस्कृत निम्ब, अरिष्ट, पिचुमर्द, प्रभद्र गुजराती लीमड़ो बंगाली निममाछ, नीम मराठी कडूनिंब या बालन्तलिम्ब कर्नाटकी बेंबुं तैलिंगी वेप्या मलयलम वेत्पु पंजाबी नीम फारसी आज़ाद -दरख्ते -हिन्दी, नेनबनीम या दरख्तहक अरबी आज़ाद -दरख्तुल -हिन्द कुलनाम मिलएसीज अंग्रेजी मरगोवज ट्री, नीम ट्री वैज्ञानिक नाम अजादिरचता इडिका लैटिन एजोडिरेक्टा इण्डिको रंग : नीम का रंग हरा होता है। स्वाद : इसका पेड़ कड़वा, कषैला और हल्का होता है। स्वरूप : नीम के पेड़ बड़े और ऊंचे होते हैं। नीम के पत्ते नुकीले होते हैं। नीम के फूल मार्च से मई तक आते हैं। फूल सफेद छोटे व विशेष गंधयुक्त के होते हैं। फल खिन्नी के बराबर छोटे-छोटे होते हैं जो कच्चे हरे और पकने पर पीले तथा सूखने पर लाली लिए हुए काले रंग के हो जाते हैं। नीम का पेड़ भारी मोटा और लम्बा होता है। पत्ते आधे से डेढ़ इंच लम्बे दो नोकदार और किनारे पर आरे के समान दांत वाले होते हैं। नीम का वृक्ष 12 से 15 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके तने की त्वक (छाल) खुरदरी भूरे रंग की होती है। इसके पेड़ में बसन्त ऋतु में तांबे के समान नए पत्ते आते हैं, जबकि गर्मी ऋतु में पत्तियां झड़ जाती हैं। वृक्ष के तने से गोंद भी प्राप्त की जाती है, जो पानी में घुलनशील होती है। स्वभाव : यह खाने में शीतल (ठंड़ा) होता है। हानिकारक : नीम उन व्यक्तियों के लिए हानिकारक होता है जिनकी प्रवृति सूखी (रूक्ष) होती है। जिनकी कामशक्ति कमजोर हो उन्हें भी नीम अधिक उपयोग करने से बचना चाहिए। दोषों को दूर करने वाला : सेंधानमक, घी और गाय का दूध नीम के दोषों को दूर करने में मदद करता है। तुलना : नीम की तुलना बकायन से की जा सकती है। मात्रा : नीम के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर, छाल का चूर्ण 2 से 4 ग्राम, तेल 5 से 10 बूंदों तक सेवन कर सकते हैं। गुण : आयुर्वेदिक मतानुसार नीम कडुवी होती है। यह वात, पित्त, कफ, रक्तविकार (खून को साफ करने वाला), त्वचा के रोग और कीटाणुनाशक होती है। नीम मलेरिया, दांतों के रोग, कब्ज, पीलिया, बालों के रोग, कुष्ठ, दाह (जलन), रक्तपित्त (खूनी पित्त), सिर में दर्द, वमन (उल्टी), प्रमेह (वीर्य विकार), हृदयदाह (दिल की जलन), वायु (गैस), श्रम (थकावट), अरुचि (भूख को बढ़ाने वाला), बुखार, पेट के कीड़ें, विष (जहर), नेत्र (आंखों) के रोग, प्रदर आदि रोगों को नष्ट करती है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार नीम गर्म और खुश्क होती है। नीम का गोंद खून की गति को बढ़ाने वाला और रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला) होता है। उपदंश (गर्मी) और चर्म (त्वचा) रोग के लिए यह एक अच्छी औषधि है। होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली के अनुसार नीम पुराने से पुराने रोगों की दवा रखता है जैसे-त्वचा रोग, कुष्ठ, कुनैन आदि। वैज्ञानिक विश्लेषणों के अनुसार नीम में विभिन्न प्रकार के तत्व पाये जाते हैं जैसे-मार्गोसीन, सोडियम मार्गोसेट, निम्बिडिन, निम्बोस्टेरोल, निम्बिनिन, स्टियरिक एसिड, ओलिव एसिड, पामिटिक एसिड, उड़नशील तेल और टैनिन आदि। बीजों से प्राप्त स्थिर तेल 45 प्रतिशत निकलता है, जिसमें गंधक, राल, एल्केलाइड, ग्लूकोसाइड और वसा अम्ल पाए जाते हैं। इसके साथ ही थोड़ी-सी मात्रा में लौहा, कैल्शियम और पोटैशियम आदि के लवण भी थोड़ी बहुत मात्रा में पाये जाते हैं। नीम की गोंद में 26 प्रतिशत पेन्टोसन्स, 12 प्रतिशत गेलेक्टीन व अल्प मात्रा में अल्बयूमिन्स और ऑक्साइडस भी होते हैं। नीम के पेड़ के विभिन्न अंगों का अलग-अलग प्रयोग होता है जो इस प्रकार से हैं- नीम के पत्ते : नीम के पत्ते कड़वे, कृमिघ्न (कीड़ों के नाशक), पित्त, अरुचि तथा विष विकार में लाभ देते हैं। नीम की कोपले : इसकी कोपले संकोचक, वातकारक, रक्तपित्त (खूनी पित्त), आंखों के रोग और कुष्ठ रोग नाशक होती हैं। नीम की सींक (डंडी) : यह रक्त (खून), खांसी, श्वास (दमा), बवासीर (अर्श), गांठे, पेट के कीड़े और प्रमेह आदि रोगों में लाभकारी है। नीम के फूल : नीम के फूल पित्तनाशक तथा कड़वे होते हैं। ये पेट के कीड़े और कफ को समाप्त करने वाले होते हैं। कच्ची निंबौली : कच्ची निंबौली रस में कड़वी, तीखी, स्निग्ध (चिकनी), लघु, गर्म होती है तथा यह फोड़े-फुंसियां और प्रमेह को दूर करती है। नीम की छाल : नीम की छाल संकोचक, कफघ्न (कफ को मिटाने वाली), अरुचि, उल्टी, कब्ज, पेट के कीडे़ तथा यकृत (लीवर) विकारों में लाभकारी होती है। नीम की छाल में निम्बीन, निम्बोनीन, निम्बीडीन, एक उड़नशील तेल, टैनिन और मार्नोसेन नामक एक तिक्त घटक होता है। नीम में एक जैव रासायनिक तत्व प्राप्त होता है जिसे लिमानायड कहते हैं। लगभग 200 प्रकार के हानिकारक कीटाणुओं पर नीम का असर होता है। नीम का पंचांग (फल, फूल, पत्ती, तना और जड़ का चूर्ण) : रुधिर (खून की बीमारी) विकार, खुजली, व्रण (जख्म), दाह (जलन) और कुष्ठघ्न (कोढ़ को नष्ट करने वाला) में पहुंचाता है। नीम के बीज : नीम के बीज दस्तावर और कीटाणुनाशक हैं। पुरानी गठिया, पुराने जहर और खुजली पर इसका लेप करने से आराम मिलता है। नीम का तेल : नीम के तेल की मालिश करने से लाभ होता है। विभिन्न रोगों में सहायक : 1. रक्तार्बुद (फोड़ा) : नीम की लकड़ी को पानी में घिसकर एक इंच मोटा लेप फोड़े पर लगायें। इससे फोड़ा समाप्त हो जाता है। 2. नकसीर (नाक में से खून का आना) : नीम की पत्तियों और अजवायन को बराबर मात्रा में पीसकर कनपटियों पर लेप करने से नकसीर का चलना बन्द हो जाता है। 3. बालों का असमय में सफेद होना (पालित्य रोग) : नीम के बीजों के तेल को 2-2 बूंद नाक से लेने से और केवल गाय के दूध का सेवन करने से पालित्य रोग में लाभ होता है। नीम के तेल को सूंघने से बाल काले हो जाते हैं। नीम के बीजों को भांगरा और विजयसार के रस की कई भावनाएं देकर बीजों का तेल निकाल लें, फिर इसकी 2-2 बूंदों को नाक से लेने से तथा आहार में केवल दूध और भात खाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं। 4. बालों की रूसी : एक मुट्टी नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर नहाने से 1 घंटे पहले सिर पर मलने से रूसी मिट जाती है। नीम की निबौलियों को सुखाकर अरीठा के साथ मिलाकर बारीक पीसकर रख लें। इसे 2 चम्मच भर एक गिलास गर्म पानी में घोलकर सिर को धो लेने से सिर की जूंएं, लीखें, सिर की दुर्गन्ध खत्म हो जाती है तथा बाल काले और मुलायम होते हैं। नीम के पत्तों को पीसकर पानी में उबालकर ठंड़ा होने दें। इसके बाद इसे छानकर इससे सिर को धो लें और बालों को सही तरह से मालिश करें। बालों के सूख जाने पर स्वच्छ एरण्ड का तेल और नारियल का तेल बराबर मात्रा में लेकर इसे मिला लें और इससे सिर की अच्छी तरह से मालिश करें। इससे सिर की रूसी मिट जाएगी। 5. खसरा : खसरा के मरीज के बिस्तर पर रोजाना नीम की पत्तियां रखने से अन्दर की गर्मी शान्त हो जाती है। नीम के ताजे और मुलायम पत्तों को पानी में उबालकर छान लें, फिर उसमें साफ कपड़े की पट्टी को भिगोकर खसरे के रोगी की आंखों पर रखने से आंखों का लाल होना दूर हो जाता है। रोगी को नीम के पानी से नहलाने से खसरे के रोग में जलन दूर होती है। 6. शरीर के आधे अंग में लकवा (अर्धांगवात) : नीम के तेल की 3 सप्ताह तक मालिश करने से लाभ होता है। 7. गंजापन और बालों की वृद्धि : नीम के पत्ते 10 ग्राम, बेर के पत्ते 10 ग्राम दोनों को अच्छी तरह पीसकर इसका उबटन (लेप) बना लें। इस लेप को गंजे सिर पर मालिश करके 1 से 2 घंटे बाद धोने से बाल उग आते हैं। इसका प्रयोग 1 महीने तक करने से लाभ होता है। नीम का तेल 2-3 महीने रोजाना बालों के उड़कर बने हुए चकते पर लगाने से बाल उग आते हैं। 100 ग्राम नीम के पत्तों को 1 लीटर पानी में उबालने के बाद बालों को धोकर नीम का तेल लगाएं। इससे बाल उगने लगते हैं। नीम के तेल को सूंघने से गंजेपन का रोग दूर हो जाता है। 8. बालों को मजबूत बनाना और गिरने से रोकना : नीम के पत्तों को पानी में खूब उबालें। इसके बाद इसे उतारकर ठंड़ा कर लें। इस पानी से सिर को धोते रहने से बाल मजबूत, काले होते हैं और बालों का गिरना या झड़ना बन्द हो जाता है। नीम का तेल रात को सोने से पहले बालों में लगा लें और सुबह नीम वाले साबुन से सिर को धो लें। कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन करने से सिर की जुंए और लीख दूर होती हैं। इसके साथ बाल मजबूत होते हैं। नीम का तेल लगाने से बाल फिर से जम जाते हैं। नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालकर बालों को धोकर बालों को सुखा लें। अब नीम के तेल को बालों की जड़ों में लगाकर मसलने से बालों का गिरना बन्द हो जाता है। सिर के बाल गिरने की शुरूआत ही हुई हो तो इसके लिए आप को नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबाल लेना चाहिए। इससे बालों को धोने से बालों का झड़ना कम हो जाता है। इस तरह बाल काले भी होगें और लंबे भी। इसके प्रयोग से जुएं भी मर जाते हैं। सिर धोते समय इस बात का ध्यान रखें कि यह पानी आंखों में प्रवेश हो। इसके लिए आंखों को बन्द रखें। 9. सिर में खुजली होने पर : नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर सिर को धो लें। सिर को धोने के बाद नीम के तेल को लगाने से सिर की जूएं और लीखों के कारण होने वाली खुजली बन्द हो जाती है। नीम के बीजों को पीसकर लगाने से भी लाभ होता है। 10. कील-मुंहासे : नीम के पत्ते, अनार का छिलका, लोध्र और हरड़ को बराबर लेकर दूध के साथ पीसकर लेप तैयार कर लें। इस लेप को रोजाना मुंह पर लगाने से मुंह और चेहरा निखर उठता है। नीम की छाल के बिना नीम की लकड़ी को पानी के साथ चंदन की तरह घिसकर मुंहासों पर 7 दिनों तक लगातार लगाने से मुंहासे पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं। नीम की जड़ को पानी में घिसकर लगाने से कील-मुंहासे मिट जाते हैं और चेहरा सुंदर बन जाता है। 11. दांतों के रोग : नीम की दातुन करने से दांतों के रोगों में लाभ मिलता है। नीम के फूलों से बने काढ़े से दिन में 3 बार गरारे करें और पतली टहनी को दांतों से चबा-चबाकर सुबह-शाम दातुन करते रहने से दांतों और मसूढ़ों के रोगों से छुटकारा मिलता है। नीम की पत्तियों का रस मलने से दांतों के जीवाणु मिट जाते हैं। नीम की निंबौली की गुठली से प्राप्त किये तेल को दांतों में लगाने से दांतों के कीड़े खत्म होते है और दांतों में दर्द कम होता है। नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर साफ कपड़े से छानकर कुल्ला करने से दांतों के जीवाणु नष्ट होते हैं और पायरिया में भी लाभ मिलता है। नीम की जड़ की छाल का 50 ग्राम चूर्ण, सोनागेरू 50 ग्राम, सेंधानमक 10 ग्राम को पीसकर, नीम के पत्तों का रस मिलाकर सुखाकर शीशी में रख दें। इसका मंजन करने से दांतो में से खून का गिरना, पीव का आना, मुंह में छाले पड़ना, मुंह से दुर्गन्ध का आना, जी मिचलाना आदि रोगों से छुटकारा मिलता है। 100 ग्राम नीम की जड़ को कूटकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब पानी 250 मिलीलीटर शेष रह जाये तो इस पानी से कुल्ला करते रहने से दांतों के रोग दूर होते हैं। सुबह उठते ही नीम की दातुन करने से और फूलों के काढ़े से कुल्ला करने से दांत और मसूढ़ों के रोग से मुक्त मिलती है और दांत मजबूत होते हैं। 12. दंतमंजन बनना : नीम की टहनी और पत्तियों को छाया में सुखाने के बाद जलाकर राख बना लें। इसे पीसकर मंजन बना लें। सुगन्ध और स्वाद के लिए इसमें लौंग, पिपरमेंट और नमक को मिला लें। इससे पायरिया ठीक हो जाता है और दांत मजबूत होते हैं। नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ला करने से दांतों का दर्द मिटता है। नीम के सूखे फूलों का 3 ग्राम कपड़े में छना हुआ चूर्ण रोजाना रात को गर्म पानी के साथ लेना चाहिए। 13. आंखों की पलकों के बालों का झड़ना : नीम के ताजे पत्तों को पीसकर, निचोड़कर इसे पलकों पर लगाने से पलकों के बाल झड़ना बन्द हो जाते हैं। 14. आंखों की सूजन : नीम की 10 से 15 हरी पत्तियों को 1 गिलास पानी में उबालें। इसके बाद इसमें आधा चम्मच फिटकरी को मिलाकर पानी को छान लें। इस पानी से आंखों को 3 बार सेंकने से आंखों की सूजन और खुजली ठीक हो जाती है। 15. आंखों के रोगों में : जिस आंख में दर्द हो उसके दूसरी ओर के कान में नीम के कोमल पत्तों का रस गर्म करके 2-2 बूंद टपकाने से आंख और कान का दर्द कम हो जाता है। नीम के पत्तों और लोध्र को बराबर लेकर पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इस चूर्ण की पोटली बनाकर पानी में भीगने दें। बाद में इस पानी को आंखों में डालने से आंखों की सूजन कम होती है। नीम के पत्तों और सौंठ को पीसकर उसमें थोड़ा सेंधानमक मिलाकर गर्म कर लें और रात के समय एक कपडे़ की पट्टी रखकर आंखों पर बांधे। इससे आंखों के ऊपर की सूजन के साथ दर्द और भीतरी खुजली समाप्त हो जाती है। ध्यान रहे कि रोगी को शीतल पानी और शीतवायु से आंखों को बचाना चाहिए। 500 ग्राम नीम के पत्तों को 2 मिट्टी के बर्तनों के बीच कण्डों की आग में रख दें। शीतल होने पर अन्दर की राख का 100 मिलीलीटर नींबू के रस में कुटकर सूखा लें। इसका अंजन (काजल) लगाने से आंखों के रोगों में लाभ मिलता है। 50 ग्राम नीम के पत्तों को पानी के साथ बारीक पीसकर टिकिया बनाकर सरसों के तेल में पका लें। जब यह जलकर काली हो जाए तब उसे उसी तेल में घोटकर उसमें 500 ग्राम कपूर तथा 500 ग्राम कलमीशोरा मिलाकर खूब घोटकर कांच की शीशी में भर लें। इसे रात को आंखों में काजल के समान लगाने तथा सुबह त्रिफला को पानी के साथ सेवन करने से आंखों की जलन, लालिमा, जाला, धुन्ध आदि दूर हो जाती है तथा आंखों की रोशनी बढ़ जाती है। नीम की कोपलें 20 पीस, जस्ता भस्म 20 ग्राम, लौंग के 6 पीस, छोटी इलायची के 6 पीस और मिश्री 20 ग्राम को एकत्रित करके खूब बारीक करके सुर्मा बना लें। इसे थोड़ा-थोड़ा सुबह-शाम आंखों में लगाने से धुंध ठीक होता है। 10 ग्राम साफ रूई पर 20 नीम के सूखे पत्तों को बिछा दें, फिर नीम के पत्तों पर 1 ग्राम कपूर का चूर्ण रखकर रूई को लपेटकर बत्ती बना लें। इस बत्ती को 10 ग्राम गाय के घी में भिगोकर इसका काजल बना लें। इस बने हुए काजल को रात को लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है। नीम के पत्तों के रस को गाढ़ा कर अंजन (काजल) के रूप में लगाते रहने से आंखों की खुजली, बरौनी (आंखों की पलकों के बाल) के झड़ने में लाभ होता है। 16. मोतियाबिन्द : नीम की बीज की गुठली के बारीक चूर्ण को रोजाना थोड़ी-सी मात्रा में आंखों में काजल के समान लगाना हितकारी होता है। नीम के तने की छाल (खाल) की राख को सुरमे की तरह आंखों में लगाने से आंखों का धुंधलापन दूर होता है। नीम या कमल के फूल के बारीक चूर्ण को शहद के साथ रात को सोते समय आंखों में काजल के समान लगाने से मोतियाबिन्द ठीक हो जाता है। 18. आंव (दस्त के साथ एक प्रकार का सफेद चिकना पदार्थ का आना) : नीम की हरी पत्तियों को धोकर सुखाकर पीस लें, इसे आधा चम्मच सुबह-शाम खाने के बाद 2 बार ठंड़े पानी से फंकी लें। कुछ दिनों तक लेने से आंव का आना बन्द हो जाता है। नीम की हरी पत्तियों को छाया में सुखाकर अच्छी तरह चूर्ण बना लें, यह चूर्ण आधा चम्मच सुबह-शाम ठंड़े पानी के साथ फंकी के रूप में सेवन करने से आंव रुक जाती है। 19. आंखों का फूलना, धुंध जाला : नीम के सूखे फूल, कलमी शोरा को बारीक पीसकर कपड़े में छानकर आंखों में काजल के रूप में लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। रतौंधी (शाम को दिखाई देना बन्द होना) में कच्चे फलों का दूध आंखों में लगा सकते हैं। 20. सिर में दर्द का होना : सूखे नीम के पत्ते, कालीमिर्च और चावल को बराबर लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें, सुबह उठकर जिस ओर पीड़ा हो, उसी ओर के नाक में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक नस्य लेने से पुराने आधे सिर का दर्द तुरन्त नष्ट हो जाता है। नीम के ताजे पत्तों का रस 2 से 3 बूंद की मात्रा में नाक में टपकाने से लाभ मिलता है। नीम के तेल की मालिश करने से सिर के दर्द में आराम आता है। नीम की छाल और आंवला के काढ़े को पिलाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है। सिर में दर्द होने पर नीम की छाल, झाड़ की छाल और चंदन को घिसकर सिर या माथे पर लेप की तरह लगाने से सिर का दर्द खत्म हो जाता है। 21. बुखार : नीम के पत्ते, गिलोय, तुलसी के पत्ते, हुरहुर के पत्ते 20-20 ग्राम और कालीमिर्च 6 ग्राम को बारीक पीसकर पानी के साथ मिलाकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोली बना लें तथा 2-2 घंटे के अंतर के बाद 1-1 गोली गर्म पानी के साथ लेने से इन्फ्लुएंजा में लाभ होता है। नीम की छाल 5 ग्राम, लौंग लगभग आधा ग्राम या दालचीनी लगभग आधा ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें, 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ लेने से सामान्य बुखार में राहत मिलती है। नीम की कोमल पत्तियों को पीसकर, किसी कपड़े में बांधकर रस निकाल लें, इस रस में शहद को मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करने से बुखार कम होता है। सोंठ, गिलोय, नीम की छाल, धनिया, लाल चंदन, पदमकाष्ठ आदि को पीसकर सेवन करने से बुखार समाप्त होता है। नीम की छाल का काढ़ा पीने से लगातार आने वाले बुखार दूर होता है। नीम की छाल, कुटकी, चिरायता, गिलोय और अतीस का अष्टमांश काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पिलाने से आराम मिलता है। 22. पुराना बुखार : नीम के पत्ते 20 से 25 और 25 कालीमिर्च को लेकर मलमल के कपड़े में पोटली बांधकर आधा लीटर पानी में उबाल लें, बचे चौथाई पानी को ठंड़ा होने पर सुबह-शाम पीने से पुराने बुखार में लाभ होता है। नीम की छाल, मुनक्का और गिलोय को बराबर लेकर 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 20 मिलीलीटर की मात्रा में कुछ दिनों तक सुबह, दोपहर और शाम को सेवन करना चाहिए। 23. कान बहना, कान में दर्द : नीम का तेल और शहद बराबर लेकर मिला लें, फिर इसकी 2-2 बूंदे रोजाना 1 से 2 महीने तक कान में डालने से कान के बहने में लाभ मिलता है। नीम के तेल को शहद में मिलाकर रूई की बत्ती को भिगो लें, फिर इस बत्ती को कान में रखने से कान के बहने में आराम मिलता है। नीम के तेल की बूंदे कान में डालने से कान में दर्द कम होता है और कान की फुंसियां खत्म हो जाती हैं। नीम के पत्तों का रस 40 मिलीलीटर और 40 मिलीलीटर तिल के तेल को मिलाकर गर्म कर लें, फिर इस तेल को छानकर 3-4 बूंद कान में डालने से लाभ होता है। कान में दर्द होने पर चंदन या नीम के तेल को गर्म करके बूंद-बूंद की मात्रा में लेकर कान में डालने से लाभ होता है। नीम के पत्तों को उबालते समय इसकी भाप से कान को सेंकने से लाभ मिलता है। 24. यक्ष्मा (टी.बी.) : नीम का तेल 4-4 बूंद कैप्सूल में भरकर टी.बी. के रोग में प्रतिदिन 3 बार प्रयोग करने से लाभ मिलता है। 25. दमा (श्वास) : 10 बूंदे नीम का तेल पान पर लगाकर खाने से दमा व खांसी में लाभ होता है। 26. पित्त ज्वर (पित्त के कारण उत्पन्न बुखार) : नीम के पत्तों का फेन-युक्त रस शरीर पर मलने से पित्त ज्वर की जलन शान्त हो जाती है। नीम की छाल, हल्दी, गिलोय, धनिया और सोंठ इन पांचों को बराबर सेवन से पित्त के बुखार में फायदा होता है। नीम के कोमल पत्तों को नींबू के रस में पीसकर माथे पर लगाने से जलन और बुखार ठीक हो जाता है। नीम और गिलोय का रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर खाने से पित्त ज्वर मिट जाता है। नीम की कोंपल और चिरायते का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी-सी मात्रा में शहद को मिलाकर देना चाहिए। 27. हिक्का (हिचकी) : 2 पीस नीम की सींक को 10 मिलीलीटर पानी में पीस लें, फिर मोरपंख के चांद की राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सेवन करें। नीम की पत्तियों को इकठ्ठा करके उसे जला दें, फिर उसमें कालीमिर्च का चूर्ण डालें। इसका धुआं लेने से हिचकियां आनी बन्द हो जाती हैं। 28. गलकर कटने वाला कुष्ठ (गलित कुष्ठ) : नीम की छाल और हल्दी 1-1 किलो और 2 किलो गुड़ को बडे़ मिट्टी के मटके में भरकर उसमें 5 लीटर पानी डालकर मुंह बन्द कर घोड़े की लीद से मटके को ढ़क दें, 15 दिन बाद निकालकर रस (अर्क) निकाल लें। इस रस को 100 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन कराने से गलित कुष्ठ में लाभ होता है। इसके सेवन के बाद बेसन की रोटी घी के साथ सेवन कर सकते हैं। 29. पेट के कीड़े (उदर कृमि) : सब्जी या बैंगन के साथ नीम के 8-10 पत्तों को छौंककर खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। एक मुट्टी नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर 20 मिलीलीटर की मात्रा में खाली पेट 3 दिन तक पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। नीम के पेड़ की छाल को उतारकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें, इस बने चूर्ण की 2 ग्राम को खुराक के रूप में हींग और शहद के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं। नीम के पेड़ के ताजे पत्तों की कोपलों को पीसकर प्राप्त हुए रस को शहद के साथ मिलाकर पीने से पेट के कीड़े और खून की खराबियां मिट जाती हैं। नीम के पत्तों को तिल के तेल में पकाकर छानकर रख लें, फिर इसी तेल की मालिश करने से सिर की जूं, लीख और बाहरी कीड़े समाप्त हो जाते हैं। नीम की पत्तियों को सुखाकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 2 चुटकी की मात्रा में लेकर शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। नीम के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं। 30. अम्लपित्त (एसिडिटिज, खटटी डकारे) : धनिया, सौंठ, नीम की सींक और शक्कर (चीनी) को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को सुबह-शाम पीने से खट्टी डकारे, अपचन (भोजन का न पचना) और अधिक प्यास का लगना दूर होता है। नीम की जड़ का बारीक चूर्ण 10 ग्राम, विधारा चूर्ण 20 ग्राम, सत्तू को 100 ग्राम लेकर अच्छी तरह से मिला लें। इसे थोड़ी-सी मात्रा में लेकर शहद के साथ सेवन करने से अम्ल पित्त समाप्त होती है। नीम के पत्ते और आंवलों का काढ़ा पीने से अम्लपित्त नष्ट होता है। 31. पेट में दर्द : नीम के पेड़ के तने की मोटी छाल 40-50 ग्राम को जौ के साथ कूटकर 400 मिलीलीटर पानी में पका लें और 10 ग्राम नमक को ऊपर से डाल दें, जब पानी आधा शेष बचे तो इसे गर्म-गर्म ही छानकर पीने से लाभ होता है। 32. दस्त (अतिसार): नीम की 50 ग्राम छाल को जौ के साथ कूटकर पानी में आधा घंटे उबालकर छान लें, फिर इसी छनी हुई छाल को पुन: 300 मिलीलीटर पानी में पकायें, 200 मिलीलीटर शेष रहने पर छानकर शीशी में भर लें और इसमें पहले छाने हुए पानी को मिला दें, इसे 50-50 मिलीलीटर दिन में 3 बार पिलाने से पतले दस्त आने बन्द हो जाते हैं। नीम की 1 ग्राम बीज की गिरी थोड़ी-सी चीनी मिलाकर पीसकर पानी से फंकी लें। ध्यान रहें कि रोगी चावल का सेवन न करें। गर्मी में दस्त होने पर नीम के 10 पत्ते और 25 ग्राम मिश्री पीसकर पानी में मिलाकर पी लें। 5 नीम के हरे पत्तों को पीसकर आधा चम्मच शक्कर (चीनी) मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से दस्त ठीक हो जायेंगे। नीम के पत्तों और हल्दी को मिलाकर अच्छी तरह से पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें, फिर इन्हीं गोलियों में से 1-1 गोली को सुबह-शाम सेवन करने से दस्त का आना बन्द हो जाता है। नीम के 10 पत्तों को पीसकर थोड़ी-सी मात्रा में मिश्री को मिलाकर 1 कप पानी में डालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से लाभ होता है। 1 ग्राम निबौली की गिरी यानी गुठली के बीच के भाग और थोड़ी-सी चीनी को मिलाकर खाकर ऊपर से गुनगुना पानी पीने से लाभ मिलता है। नीम के बीज यानी निबौली की गिरी 10 ग्राम, बड़ी हरड़ की छाल 20 ग्राम को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, इस चूर्ण को 2 से 5 ग्राम की मात्रा में ताजे दूध में मिश्री या चीनी डालकर एक दिन में 2 से 3 बार खुराक के रूप में पीने से खूनी दस्त और पेट के दर्द से छुटकारा मिलता है। 1 ग्राम नीम के बीज (निबौली) की गिरी और थोड़ी-सी चीनी को डालकर अच्छी तरह पीसकर रख लें, फिर इसे फंकी के रूप में खाने से लाभ मिलता है। ध्यान रहे कि खाने में केवल चावल का प्रयोग करें। 33. पुराने दस्त : 1 ग्राम नीम के पेड़ के बीज की गिरी, थोड़ी-सी चीनी मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण को पानी के साथ लें। गर्मी के दिनों में दस्त होने पर नीम के 10 पत्ते और 25 ग्राम मिश्री पीसकर पानी में मिलाकर पीयें। ध्यान रहे कि खाने में केवल चावल का ही प्रयोग करें। नीम के 5 हरे पत्ते और 4 कालीमिर्च को मिलाकर पीस लें और 125 मिलीलीटर पानी में मिलाकर, छान पीने से लाभ होता है। 34. पेचिश: 1 चम्मच नीम की पत्तियों के रस में 2 चम्मच मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है। 35. जूते के कारण घाव बनने पर : नीम के तेल और नीम की पत्तियों की बारीक राख को घावों पर लगाने से आराम मिलता है। 36. यकृत (लीवर): 30 ग्राम नीम के पत्ते 1 गिलास पानी में तेज उबालकर रोजाना पीने से लाभ होता है। मदिरा (शराब) पीने से लीवर जल्दी ठीक होता है। 10 ग्राम नीम की छाल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। उस काढ़े को कपडे़ द्वारा छानकर, उसमें शहद मिलाकर सुबह-शाम रोगी को सेवन कराने से यकृत वृद्धि मिट जाती है। 37. आमातिसार: नीम की छाल की राख 10 ग्राम को दही के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आमातिसार में लाभ होता है। 38. रक्तातिसार (खूनी दस्त का आना): नीम की 3 से 4 पकी निबौलियां खाने से लाभ मिलता है। 39. सांप के काटने पर: नीम के पत्ते सुबह खाने से सांप का जहर नहीं चढ़ता है। 40. पीलिया (पाण्डु, कामला): नीम की जड़ का बारीक चूर्ण 1 ग्राम सुबह-शाम 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद के साथ मिलाकर खाने से पीलिया के रोग में आराम मिलता है। ध्यान रहे यदि घी और शहद अनुकूल न हो तो नीम की जड़ 1 ग्राम चूर्ण गाय के पेशाब या जल या दूध में किसी एक के साथ लेना चाहिए। नीम की सींक 6 ग्राम और सफेद पुनर्नवा की जड़ 6 ग्राम को पीसकर पानी के साथ कुछ दिनों तक पिलाते रहने से पीलिया में आराम मिलता है। नीम के पत्तों का रस 3 चम्मच, सोंठ का पाउडर आधा चम्मच और शहद चार चम्मच को मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से 5 दिन में ही पीलिया ठीक होता है। गिलोय के पत्ते, नीम के पत्ते, गूमा के पत्ते और छोटी हरड़ को 6-6 ग्राम की मात्रा में कूटकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब 50 मिलीलीटर पानी शेष बचे तो पानी को छानकर 10 ग्राम गुड़ के साथ सुबह-शाम सेवन करें। ध्यान रहे कि इसके सेवन से पहले लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शिलाजीत 6 ग्राम शहद के साथ अवश्य चाट लें। इससे पीलिया का रोग ठीक हो जाता है। नीम के पेड़ की छाल के रस में शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर देना चाहिए। पानी में पिसे हुए नीम के पत्तों के 250 मिलीलीटर रस में शक्कर (चीनी) मिलाकर गर्म-गर्म पीने से आराम मिलता है। पित्तनलिका में मार्गावरोध होने के कारण पीलिया रोग हो तो 100 मिलीलीटर नीम के पत्ते रस में 3 ग्राम सौंठ का चूर्ण और 6 ग्राम शहद के साथ मिलाकर 3 दिन तक सुबह पिलाने से लाभ पहुंचता है। ध्यान रहे की इसके सेवन के दौरान घी, तेल, शक्कर (चीनी) व गुड़ आदि का प्रयोग न करें। 10 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस में 10 मिलीलीटर अडूसा के पत्तों के रस व 10 ग्राम शहद को मिलाकर सुबह लें। 10 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस में 10 ग्राम शहद को मिलाकर 5 से 6 दिन तक पीने से आराम मिलता है। नीम के पत्ते के 200 मिलीलीटर रस में थोड़ी शक्कर (चीनी) मिलाकर गर्म करें। इसे 3 दिन तक दिन में एक बार खाने से लाभ होता है। नीम के 5-6 कोमल पत्तों को पीसकर, शहद मिलाकर सेवन करने से मूत्रविकार (पेशाब के रोग) और पेट की बीमारियों में लाभ होता है। कड़वे नीम के पत्तों को पानी में पीसकर एक पाव रस निकाल लें। फिर उसमें मिश्री मिलाकर गर्म करें और ठंड़ा होने पर पी जायें। इससे पाण्डु या पीलिया रोग दूर होता है। नीम की छाल, त्रिफला, गिलोय, अडूसा, कुटकी, चिरायता और नीम की छाल बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इसमें शहद मिलाकर पीने से पाण्डु, कामला या पीलिया जैसे रोग मिट जाते हैं। नीम के पत्तों का आधा चम्मच रस, सोंठ 2 चुटकी और शहद 2 चम्मच। तीनों को मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करें। 41. प्रमेह (वीर्य विकार), सुजाक (गिनोरिया की बीमारी) : नीम के पत्तों को पीसकर टिकिया बना लें। फिर उसे गाय के घी में तलकर रख लें। जब टिकिया जल जाए तो घी को छानकर रोटी के साथ लगाकर सेवन करें। इससे दोनों रोगों में लाभ मिलता है। नीम के पत्ते के 10 मिलीलीटर रस को शहद के साथ मिलाकर सेवन करें। 20 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस को 1 ग्राम नीला थोथा घोटकर सुखा लें, फिर इसे कौड़ियों में रखकर भस्म करें। इसके बाद इसे लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग लेकर गाय के दूध के साथ सेवन करें। इसे दिन में 2 बार लेने से आराम मिलता है। 42. मलेरिया का बुखार: 20 ग्राम नीम की जड़ की छाल को कूटकर 160 मिलीलीटर पानी में रात को भिगो दें। इसे सुबह के समय उबालकर काढ़ा बना लें। यह काढ़ा दिन में तीन बार मलेरिया के रोगी को देने से लाभ मिलता है। नीम की जड़ की बीच की छाल 50 ग्राम को कूटकर 600 मिलीलीटर पानी में लगभग 20 मिनट तक उबालकर छान लें। जब रोगी को मलेरिया का बुखार चढ़ रहा हो तो बुखार चढ़ने से पहले 40 से 60 मिलीलीटर 2 से 3 बार पिलाने से बुखार (मलेरिया) रुक जायेगा। नीम के तेल की 5-10 बूंद दिन में 1 या 2 बार सेवन करना चाहिए। 60 ग्राम नीम के हरे पत्ते, 4 कालीमिर्च को पीसकर 125 मिलीलीटर पानी में छानकर पीने से मलेरिया ठीक होता है। नीम के पत्ते, निबौली, कालीमिर्च, तुलसी, सोंठ, चिरचिटा को समान मात्रा में मिलाकर 1 गिलास पानी में इतना उबाल लें कि आधा पानी उड़ जाए। इसके बाद इसे छानकर 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पीने से मलेरिया के बुखार में लाभ मिलता है। नीम के कोमल पत्तों में उसकी आधी मात्रा में फिटकरी भस्म मिलाकर कूट लें, फिर लगभग आधा ग्राम की गोलियां बना लें। इसकी 1-1 गोली मिश्री के शर्बत के साथ लेने से मलेरिया में लाभ मिलता है। नीम के थोडे़-से पत्ते और 8 से 10 कालीमिर्च लेकर 1 कप पानी में उबाल लें। पानी जब आधा कप शेष बचे तो सुबह-शाम देने से लाभ होता है। 60 ग्राम नीम के हरे पत्ते और 4 कालीमिर्च को मिलाकर पीस लें। इसे रोगी को पिलाने से मलेरिया का बुखार ठीक हो जाता है। नीम की 5 पत्तियां, तुलसी के 5 पत्ते और 1 चम्मच नींबू के रस की चटनी बनाकर सुबह-शाम खाने से लाभ होता है। नीम की छाल 10 ग्राम, सूखा धनिया 10 ग्राम, सोंठ का चूर्ण 10 ग्राम तथा तुलसी के 5 पत्ते को पीसकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को दिन में 4 बार लेने से बुखार में लाभ होता है। नीम की छाल के काढ़े में धनिया और सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया बुखार समाप्त हो जाता है। नीम की आन्तरिक छाल का चूर्ण 2 से 4 ग्राम, धनिया, सोंठ, लौंग, दालचीनी या मिर्च, चिरायता और कुटकी के साथ सुबह-शाम लेने से मलेरिया, विषम, सविराम बुखार में लाभ होता है। 43. खून की बीमारी (रक्त विकार): नीम की जड़ की छाल का काढ़ा 5-10 मिलीलीटर रोजाना पीने से खून की बीमारी मिटती है। नीम के पत्तों के रस को 5 से 10 मिलीलीटर रोजाना पीने से खून साफ होता है और खून बढ़ता है। नीम के फूलों को पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। इस चूर्ण को आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करें और दोपहर को 2 चम्मच नीम के पत्तों का रस 1 बार प्रयोग करें। 44. खून के बहने और स्त्री प्रदर होने पर:- नीम के वृक्ष के रस मे जीरा डालकर 7 दिन तक सेवन करें। 45. खूनी पित्त (रक्तपित्त): नीम के पत्तों की लुगदी बनाकर 10 मिलीलीटर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ मिलता है। नीम के पत्तों के रस और अडूसा के पत्तों के रस को 20-20 मिलीलीटर लेकर थोड़े शहद के साथ सुबह-शाम सेवन से लाभ मिलता है। 46. चूहे के काटने से (प्लेग): नीम की आन्तरिक छाल 20 ग्राम को पानी के साथ पीसकर छान लें, इस पानी को 50 मिलीलीटर सुबह-शाम पिलाने से तथा पत्तों को बारीक पीसकर पुल्टिश बांधने से प्लेग की गांठें टूटकर बिखर जाती हैं। नीम के पेड़ की जड़ को पानी में कूट-छानकर 10-10 मिलीलीटर की मात्रा में 15-15 मिनट के अंतर से पिलाने से और गांठों पर इसके पत्तों की पोटली को बांधने से तथा आसपास इसकी धूनी (धुनी) करते रहने से लाभ मिलता है। नीम का सेवन करने से प्लेग के जीवाणु मर जाते हैं। नीम की ताड़ी में कपास या कपडे़ को खूब गीला करके प्लेग की गांठों पर बांधते रहने से लाभ होता है। 47. अधिक दस्त का आना (संग्रहणी) : नीम की ताड़ी को सुबह-शाम को 7-7 बूंद ताजे रस में मिलाकर 21 दिन तक सेवन करें। 48. लू (गर्मी) लगने पर : नीम की जड़ों का चूर्ण 10 ग्राम, मिश्री 10 ग्राम को पानी के साथ पीसकर छानकर पिलाने से लू लगना शान्त हो जाती है। नीम के पत्तों के रस में शक्कर (चीनी) मिलाकर लगातार 8 दिनों तक सुबह के समय सभी प्रकार की गर्मी शान्त हो जाती हैं। 49. चेचक: नीम की लाल रंग की कोमल पत्तियों की 7 पीस और कालीमिर्च के 7 पीस, 1 महीने तक नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करने से निश्चित ही लाभ होता है। नीम के बीज, बहेड़े और हल्दी को बराबर मात्रा में लेकर ठंड़े पानी में पीसकर छान लें। इसे कुछ दिनों तक चेचक के रोग में पीते रहें। नीम के पेड़ की 3 ग्राम कोपलों को 15 दिन तक लगातार खाने से 6 महीने तक चेचक नहीं निकलती है। नीम की हरी पत्तियों को पीसकर रात को सोते समय चेहरे पर लेप करें और सुबह ठंड़े पानी से चेहरे को लगातार 50 दिनों तक धोयें। इससे चेचक के दाग मिट जाते हैं। नीम की 10 ग्राम कोमल पत्तियों को पीसकर उसका रस बहुत पतलाकर लेप करना चाहिए। चेचक के दानों पर कभी भी मोटा लेप नहीं चाहिए। नीम के बीजों की 5-10 गिरी को पानी में पीसकर लेप करने से चेचक की जलन शान्त हो जाती है। चेचक के रोगी को अधिक प्यास लगती हो तो नीम की छाल को जलाकर उसके अंगारों को पानी में डालकर बुझा लें और इस पानी को छानकर रोगी को पिलाने से प्यास शान्त हो जाती है। अगर इससे भी प्यास शान्त न हो तो 1 लीटर पानी में 10 ग्राम कोमल पत्तियों को उबालें, जब यह पानी आधा शेष रह जाये तो इसे छानकर पिला दें। इससे प्यास के साथ-साथ चेचक के दाने भी सूख जाते हैं। जब चेचक ठीक हो जाये तो नीम के पत्तों के काढ़े से नहाना चाहिए। नीम के तेल या नीम के बीजों की मगज पानी में घिसकर लगाया जाये तो दाग मिट जाते हैं। चिरायता, नीम, मुलहठी, नागरमोथा, अडूसा, पित्तपापड़ा, कड़वे परवल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, खस और इन्द्रजौ को एक साथ बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें और रोजाना पियें। इसको पीने से हर तरह के विस्फोटक (फोड़े) समाप्त हो जाते हैं। नीम की हरी पत्तियों को पीसकर रात को सोते समय लेप कर लें। सुबह उठने पर ठंड़े पानी से चेहरा धो लें। ऐसा लगातार 50 दिन तक करने से चेहरे के चेचक (माता) के दाग (निशान) दूर हो जाते हैं। 50. खाज-खुजली : नीम के बीजों के तेल में आक (मदार) की जड़ को पीस लें। इसके लेप से पुरानी से पुरानी खाज-खुजली मिट जाती है। नीम का तेल या निंबोली को पानी में पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाने से आराम होता है। रोजाना सुबह 25 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस को पानी के साथ पीने से खून साफ होता है और खुजली भी दूर होती है। 

Marigold health benefits

 

Marigold or genda phool








परिचय : गेंदे की खूबसूरती और सुगंध सभी को आकर्षित करती है तथा इसके फूलों की मालाओं का अधिक मात्रा में प्रयोग आम जीवन में किया जाता है। इसका पौधा बरसात के मौसम में लगाया जाता है और इसकी खेती पूरे भारत में की जाती है। गेंदे के पौधे की ऊंचाई 80 से 120 सेमी तक होती है। गेंदे के पत्ते से 2 से 5 सेमी लंबे और कंगूरेदार होते हैं इन पत्तों को मसलने पर अच्छी खुशबू आती है। इसके फूल पीले तथा नारंगी रंग के होते हैं जो अक्टूबर-नवम्बर महीने में लगते हैं। ये आकार में अन्य के फूलों के मुकाबले बड़े और घने होते हैं। गेंदे अनेक जातियां होती है, जिनमें मखमली, जाफरे, हवशी, सुरनाई और हजार अधिक प्रचलित हैं। विभिन्न भाषाओं में नाम : हिन्दी गेंदा संस्कृत झण्डू, स्थूल, पुष्पा मराठी झेण्डू गुजराती गलगोटे बंगाली गेंदा तेलगू बांटिचेट्टु मलयालम चेण्डमल्ली फारसी गुलहजारा अंग्रेजी मैरी गोल्ड रंग : गेंदे का फूल लाल, पीला तथा इसके पत्ते हरे रंग के होते हैं। स्वाद : गेंदे का फूल स्वाद में हल्का तीखा होता है। स्वरूप : यह एक फूल का पेड़ है जो बरसाती मौसम में होता है।इसका फूल हृदय को प्रसन्न कर देता है। प्रकृति : गेदें के फूल की प्रकृति गर्म होती है। हानिकारक : गेंदे के फूल का अधिक मात्रा में सेवन करना गर्म प्रकृति के लोगों के लिए हानिकारक हो सकता है। यह कामशक्ति को घटाता है। गेंदे के फूलों का रस में गंधक मिलाकर सूर्य के प्रकाश रखने पर यह जहरीला पदार्थ बन जाता है। गुण : गेंदे के पत्तों का रस कान में डालने से कान का दर्द बंद हो जाता है। इसके पत्तों का रस औरतों के स्तनों की सूजन को बढ़ाता है। गेंदे के रस से कुल्ला करने पर दांत दर्द ठीक होता है। गेंदे के पत्ते का रस कालीमिर्च और नमक के साथ मिलाकर पीना बवासीर के रोगी के लिए लाभकारी होता है। गेंदे के फूल की डौण्डी का चूर्ण 10 ग्राम दही के साथ सेवन करने से दमें और खांसी में लाभ होता है। आयुर्वेदिक मतानुसार गेंदा कसैला स्वाद में कडु़वा, बुखार को ठीक करने वाला, संक्रमण को नष्ट करने वाला होता है। इसमें रक्तस्राव को रोकने की विशेष क्षमता होती है। यह रक्तप्रदर, बवासीर तथा रक्तस्राव में विशेष उपयोगी माना जाता है। इसे सामान्य चोट और सूजन पर बांधने से बहुत लाभ होता है। वैज्ञानिक मतानुसार गेंदे के फूलों में हानिकारक कीड़ों, कीटाणुओं को दूर भगाने, उन्हें नष्ट करने का विशेष गुण पाया जाता है। गेंदे का फूल मलेरिया फैलाने वाले एनाफिलीज जाति के मच्छरों को दूर भगाने में काफी प्रभावशाली है। अत: गेंदा मलेरिया जैसी बीमारी की रोकथाम के लिए औषधि है। गेंदे के पौधे के आसपास हानिकारक कीड़े और मच्छर दिखाई नहीं देते हैं। विभिन्न रोगों में सहायक औषधि : 1. कान में दर्द: गेंदे की पत्ती का रस कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है। गेंदे के पत्तों का रस गर्म करके सहनीय (हल्का गर्म) अवस्था में पीड़ित कान में 2-3 बूंद की मात्रा में डालने से दर्द में तुरन्त आराम मिलता है। 2. आंखों के दर्द: गेंदे के पत्तों को पीसकर टिकियां बना लें फिर आंखों की पलकों को बंद करके इसे पलको के ऊपर रखे इससे आंखों का दर्द दूर हो जाएगा। 3. शरीर में शक्ति तथा वीर्य की मात्रा बढ़ाना: 1 चम्मच गेंदे के बीज और इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर 1 कप दूध के साथ सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करने से वीर्य की मात्रा में वृद्धि तथा शरीर की शक्ति बढ़ती है। 4. गुदाभ्रंश (कांच निकलना): गेंदे के पत्तों का काढ़ा तैयार करके उससे 2-3 बार गरारे करके कुल्ला करने से यह कष्ट दूर हो जाता है। 5. स्तनों की सूजन: अगर किसी औरत के स्तनों में अचानक सूजन हो जाए तो गेंदे की पत्ती के रस से स्तनों पर मालिश करें इससे सूजन दूर हो जाती है। गेंदे के पत्तों को पीसकर उसका लेप स्तन पर लगायें और उस पर ब्रा पहनकर गर्म सिंकाई करें इससे सूजन कम हो जाती है। 6. दाद: दाद से प्रभावित अंग पर गेंदे के फूलों का रस निकालकर 2-3 बार रोजाना लगाना चाहिए। 7. चोट, मोच, सूजन: गेंदे के पंचाग (जड़, पत्ता, तना, फूल और फल) का रस निकालकर चोट, मोच, सूजन पर लगाएं व मालिश करें। इससे लाभ मिलता है। गेंदा के फूल के पत्तों को पीसकर लेप की तरह शरीर के सूजन वाले भाग पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है। 8. दमा तथा खांसी: गेंदे के बीजों को बराबर मिश्री के साथ पीसकर एक चम्मच की मात्रा में एक कप पानी के साथ 2-3 बार सेवन करने से दमा और खांसी में लाभ मिलता है। 9. फोड़े-फुन्सी, घाव: गेदें के पत्तों को पीसकर 2-3 बार लगाने से फोड़े, फुंसियों तथा घाव में लाभ मिलता है। गेंदा के फूलों को पीसकर घाव पर लगाने से फायदा मिलता है। 10. खूनी बवासीर: गेंदे के फूल की पंखुड़ियों को 10 ग्राम की मात्रा में थोड़े से घी के साथ पकाकर दिन में 3 बार रोजाना सेवन करने से लाभ मिलता है। 10 ग्राम गेंदे के पत्ते, 2 ग्राम कालीमिर्च को एक साथ पीसकर पीने से बवासीर के रोग में लाभ होता है। 5 से 10 ग्राम गेंदे के फूलों की पंखुड़ियों को घी में भूनकर रोजाना 3 बार रोगी को देने से बवासीर से बहने वाला खून बंद हो जाता है। गेंदे के पत्तों का रस निकालकर पीने से बवासीर में बहने वाला रक्त तुरन्त बंद हो जाता है। रात के समय में 250 ग्राम गेंदे के पत्ते और केले की जड़ को 2 लीटर पानी में भिगों दें और सुबह इसका रस निकाल लें इस रस को 15 से 20 ग्राम की मात्रा में सेवन करें इससे बवासीर रोग में आराम मिलेगा। खूनी बवासीर में गेंदे के फूलों का 5-10 ग्राम रस दिन में 2-3 बार सेवन करना बहुत ही लाभकारी होता है। गेंदे के फुल की पंखुड़ियों को पीसकर इसका 10 ग्राम रस निकाल लें। इस रस को गाय के 30 ग्राम घी के साथ मिलाकर प्रतिदिन सूबह-शाम पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है। गेंदे के फूला या पत्तों का रस निकाल कर पीयें। इससे बादी बवासीर के सूजन ठीक होती है। 11. मूत्रविकार (पेशाब के रोग): 10 ग्राम गेंदे के पत्तों को पीसकर उसके रस में मिश्री मिलाकर दिन में 3 बार पीने से रुका हुआ पेशाब खुलकर आ जाता है। 12. हाथ-पैर फटने पर: गेंदे के पत्तों का रस वैसलीन में मिलाकर 2-3 बार लगाने से फटे-हाथ पैरों में लाभ मिलता है। 13. दातों का दर्द: गेंदे के पत्ते के काढ़े से कुल्ला करें इससे दांतों के दर्द में तुरन्त आराम मिलेगा। 14. रक्तप्रदर: रक्तप्रदर में गेंदे के फूलों का रस 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लाभ मिलता है। इसके फूलों के 20 ग्राम चूर्ण को 10 ग्राम घी में भूनकर सेवन करने से लाभ होता है। 15. पथरी: गेंदे के पत्तों के 20-30 मिलीलीटर काढ़े को कुछ दिनों तक दिन में दो बार सेवन करने से पथरी गलकर निकल जाती है। 16. कामशक्ति दूर करना: गेंदे के 10 ग्राम बीजों को कूटकर खाने से कामशक्ति समाप्त हो जाती है। 17. मूत्रघात (पेशाब से धातु का आना): गेंदे का रस पीने से पेशाब के संग आने वाला धातु रुक जाता है। 18. नंपुसकता (नामर्दी): गेंदे के बीज 4 ग्राम, मिसरी 4 ग्राम दोनों को पीसकर कुछ दिनों तक खाने से वीर्य स्तंभन शक्ति का विकास होता है। 19. बुखार: गेंदे के फूलों का रस 1 से 2 ग्राम की मात्रा में प्रयोग करने से बुखार में लाभ मिलता है। 20. कान का दर्द: कान में से मवाद निकलने पर और कान में दर्द होने पर गेंदे के पत्तों का रस निकालकर थोड़ा सा गर्म करके कान में बूंद-बूंद करके डालने से कान में दर्द से आराम आता है। हजारा गेंदे के रस को निकालकर गर्म कर लें। इसे कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है। कान में दर्द होने पर गेंदे के फूल के पत्तों को मसलकर उसका रस निकालकर कान में डालने से कान के दर्द में लाभ होता है। 21. योनि का आकार छोटा करना: गेंदे को जलाकर उसकी राख को योनि में रखकर मलना चाहिए लेकिन ध्यान रखें कि उसे कपड़े से छान लें ताकि कोई हानिकारक पदार्थ न रह जाए। ऐसा न करने से मालिश करने से होने वाले लाभ के बजाय योनि के छिल जाने से हानि भी हो सकती है। 22. सिर के फोड़े: गेंदे के पत्तों को मैदा या सूजी के साथ मिलाकर पीठ के फोड़े, विशाक्त फोड़े, सिर के फोड़े और गांठ पर लगाने से फोड़ा ठीक हो जाता है।

Lemon/Nimbu health benefits

 नींबू (Lemon)








विवरण

नींबू यानि लेमन (Lemon) को वैज्ञानिक भाषा में साइट्रस लेमन (Citrus Lemon) कहा जाता है। नींबू एक खट्टा फल है जो सबसे ज्यादा एशिया में खासतौर पर उत्तरी भारत, नॉर्थ बर्मा और चीन में पाया जाता है। नींबू पीले रंग का होता है और छोटे से पौधे पर उगता है।

नींबू का पौधा सदाबहार होता है यानि इस पर नींबू की फसल पूरे साल उगती है। नींबू के पेड़ की पत्तियां भी फायदेमंद होती हैं और इन्हें चाय की पत्ती व मांसाहारी खाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। नींबू को चकोतरा और खट्टे नारंगी की प्रजाति का माना जाता है।

नींबू बहुत गुणकारी होता है और कई तरीकों से इस्तेमाल किया जाता है। नींबू में साइट्रिक एसिड, कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन सी, पेक्टिन और लाइमीन जैसे कई पदार्थ पाए जाते हैं जो शरीर को रोधक्षमता और संक्रमण से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। नींबू स्वास्थय के लिए बहुत लाभकारी होता है। नींबू में बायोफ्लैवोनौइड्स (Bio-flavonoids) नामक एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होता है जो नींबू को इतनी खासियत देता है।

फायदे

नींबू को कई प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे कि इसे सौंदर्य उत्पादों में मिलाया जा सकता है, खाने के लिए व खाने के पदार्थ में ज़ायके के लिए, बेकिंग पाउडर आदि में भी मिलाया जा सकता है। आइए जानें नींबू के कुछ फायदे-

मुहांसों से छुटकारा (Get Rid of Acne)- नींबू में साइट्रिक एसिड मौजूद होता है जो मुहांसों से लड़ने में कारगर साबित होता है। नींबू में पाए जाने वाले विटामिन सी से शरीर की त्वचा स्वच्छ व कोमल बनती है। नींबू के खार के गुणों से शरीर के जीवाणु भी मरते हैं।

डायटिंग में फायदेमंद (Reduces Weight)- कोई व्यक्ति अपना वज़न कम करना चाहता है तो उसे रोज़ सुबह नींबू पानी पीना चाहिए। गुनगुने पानी में नींबू का रस और शहद मिलाकर पीने से शरीर में जमी वसा कटती है।

बदहजमी और कब्ज (Indigestion and constipation)- नींबू पानी पीने से बदहजमी और कब्ज जैसी शिकायतें दूर होती हैं। अपने खाने की डिश में नींबू की दो-चार बूंदे मिला लें, इससे खाना सही से पच जाएगा। नींबू रक्त शोधक (blood purifier) की तरह काम करता है इसलिए खाने के बाद नींबू सोडा पीना अच्छा रहता है।

दंत चिकित्सा (Dental Care)- दांतों में दर्द हो रहा है तो दर्द की जगह पर नींबू का रस लगाने से दर्द से निजात मिलेगा। यदि मसूढ़ों से खून निकल रहा हो तो मसूढ़ों पर नींबू के रस को लगाने से खून बहना रूक जाएगा। साथ ही नींबू मुंह की दुर्गंध से और गले के संक्रमण से भी निजात दिलाता है।

सौंदर्य बढ़ाए (Body Care)- नींबू का रस शरीर की त्वचा से गंदगी दूर करता है, शरीर पर हुई टैनिंग को कम करता है, चेहरे पर झुर्रियों को कम करता है, बालों में चमक लाता है और डैंड्रफ के अलावा बाल झड़ने की समस्या से भी निजात दिलाता है।

हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure)- दिल के मरीज़ों के लिए नींबू बेहद फायदेमंद होता है। इसमें मौजूदा पोटैशियम के कारण हाई ब्लड प्रेशर, चक्कर और उबकाई से राहत मिलती है।मानसिक तनाव और अवसाद से बचने के लिए भी नींबू का इस्तेमाल किया जाता है।

अन्य फायदे (Other Benefits)- नींबू के सेवन से थकावट, चक्कर आना, चिंता, घबराहट और तनाव जैसी समस्याएं दूर होती हैं। इससे सूजन, फोड़े कम होते हैं और हैजा और मलेरिया जैसी बीमारियों को नींबू के रस से ठीक किया जा सकता है। मसाज लेने के पानी में नींबू की कुछ बूंदे मिलाने से लाभ मिलता है।

सावधानी

1. नींबू पानी में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं जैसे कि विटामिन सी, पोटैशियम और फाइबर। डायटिंग के दौरान यह सब बेहद फायदेमंद होते हैं लेकिन इनके ज्यादा सेवन से शरीर में कई तरह के दुष्प्रभाव भी पैदा हो सकते हैं। आइए नींबू के कुछ साइड-इफेक्ट्स जानें-

2. अस्थमा के मरीज़ों को नींबू के ज्यादा सेवन से परहेज करना चाहिए। खट्टे फलों को अक्सर माइग्रेन की बीमारी से जोड़ कर देखा जाता है जिसमें खट्टी चीजों से एलर्जी भी उत्पन्न हो सकती है।

3. नींबू के ज्यादा सेवन से दांतों को नुकसान पहुंच सकता है। नींबू में भारी मात्रा में तीखापन पाया जाता है जिसके कारण दांतों की चमकीली परत फीकी पड़ सकती है और दांत भी कमज़ोर हो सकते हैं।

4. नींबू में मौजूदा खट्टेपन के स्तर के कारण पेट संबंधी समस्याएं भी उजागर हो सकती हैं। नींबू खाना पचाने में मदद करता है लेकिन आवश्यकता से ज्यादा नींबू के सेवन से पेट में दर्द व सीने में जलन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

5. शरीर पर नींबू लगाने के तुरंत बाद घर से निकल जाने से सनबर्न का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। इसलिए जब भी शरीर पर नींबू का प्रयोग करें तो शरीर के उन हिस्सों को ढक कर ही घर से बाहर निकलें।

 

 

Peppermint or pudina health benefits

 


Peppermint or pudina




 




नाम : पिपरमिंट को पिपरीटा के नाम से भी जानते हैं। विभिन्न रोगों में सहायक : 1. गर्भावस्था में उल्टी होना : 1 कप पानी में जरा-सी पिपरमिंट डालकर उबालकर औरत को पिलाने से गर्भावस्था में उल्टी होना बंद हो जाती है। यह प्रयोग करने के काफी देर तक भोजन नहीं करना चाहिए। 2. पाचन सम्बंधी (पतले दस्त का आना, गैस, दर्द, अम्लपित्त (एसिडिटिज़), कब्ज़) : पिपरमिंट खाने से आंत की मांसपेशियों में लचीलापन आता हैं, आंतो की सूजन और ऐंठन दूर हो जाती है। 3. पेट में गैस : पिपरमिंट का तेल 2 से 3 बूंद को चीनी के साथ मिलाकर दिन में 3 से 4 बार लेने से पेट की गैस कम हो जाती है। पिपरमिंट के 2 छोटे-छोटे टुकड़े करके पानी से निगलने से गैस और कब्ज का रोग ठीक हो जाता है। 4. पाचन क्रिया के लिए : पिपरमिंट के तेल की 2 बूंद 4 चम्मच पानी मे मिलाकर पी जायें। पिपरमिंट तेल की 2 बूंद रूमाल पर डालकर सूंघने से पाचन-क्रिया (भोजन पचाने की क्रिया) ठीक हो जाती है। 5. कब्ज : पान में पिपरमिंट डालकर खाना भी कब्ज के रोग में लाभकारी होता है। 6. ताजगी : पिपरमिंट के तेल की शरीर में मालिश करने से ताजगी और खुशी का अनुभव होता है। 7. नाक के रोग : जुकाम होने पर पिपरमिंट को नाक से सूंघने से आराम आता है। पिपरमिंट के थोड़े से दाने और एक टिकिया कपूर को किसी कपड़े में बांधकर बार-बार सूंघने से जुकाम में आराम आ जाता है। आंख और नाक से पानी निकलना भी बंद हो जायेगा और नाक से सांस लेने में भी आसानी होगी। 8. पेट में दर्द : पिपरमिंट का फूल पानी या बताशे में डालकर खाने से पेट के दर्द में राहत होती है। 9. गठिया (घुटनों के दर्द) : सरसों के तेल में पिपरमेंट के तेल को मिलाकर लगाने से गठिया के रोगी के लिए लाभकारी होता है। 10. हाथ-पैरों की ऐंठन : तीसी के तेल और तारपीन को बराबर मात्रा में मिलाकर थोड़ा-सा कपूर और पिपरमिंट को डालकार मालिश करने से हाथ-पैरों की ऐंठन मिट जाती है। 11. सिर का दर्द : सिर में दर्द होने पर पिपरमेंट (मैनथोल) को सिर पर लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है। 12. नाड़ी के दर्द में : पिपरमिंट, तारपीन का तेल और कपूर तीसी (अलसी) का तेल मिलाकर नाड़ी दर्द में मालिश करने से दर्द में आराम मिलता है।


पुदीना (About Pudina)




विवरण

पुदीना (Peppermint) को वैज्ञानिक रूप से मेंथा के रूप में जाना जाता है। पुदीना (Pudina) की दो दर्जन से अधिक प्रजातियां हैं और सैकड़ों किस्म की वैरायटी हैं। सभी प्रकार की मिंट (स्वीट मिंट, स्पीयर मिंट, पिप्पर मिंट और चॉकलेट मिंट) बड़ी तेजी से बढ़ने वाली और फैलने वाली मिंट हैं। मिंट को पीएच 6.0 से 7.0 वैल्यू वाली सॉइल में उगाया जाता है। मिंट की कुछ वैरायटी खुद ही हाइब्रिड होती है। 

मिंट एक तेज एरोमा वाला पौधा है जिसका तना स्काउर शेप का और पत्तियां एक दूसरे से अपोजिट डायरेक्शन में होती हैं। पत्तियों का रंग गाढ़ा हरा (dark green), सिलेटी हरा (gray green), बैंगनी (purple), नीला(blue) और सूखने के बाद पीला (pale yellow) हो जाता है।

मिंट का पौधा 10 से 120 सेंटीमीटर तक बढ़ता है और इसके फूलों का रंग सफ़ेद से पर्पल तक होता है। आजकल बाजार में मिंट के टूथ पेस्ट, च्युइंगम, Breath Freshener, कैंडी और इन्हेलर आदि प्रोडक्ट मौजूद हैं।

फायदे

1. पाचन- पुदीना (Pudina) पाचन क्रिया को ठीक करता है। यदि किसी कारण से आप पेट में असहज महसूस कर रहे हैं तो, पुदीना से बनी एक कप चाय आपको राहत देगी। 

2. उल्टी और सिरदर्द- मिंट की तेज और ताज़ा खुशबू और इससे निकाला गया मेन्थॉल तेल, लंबी दूरी की यात्रा में उल्टी और जी मिचलाने की समस्या में बहुत राहत देता है। सिर दर्द होने पर भी मिंट से बने बाम या तेल को माथे और नाक पर लगाने से सिर दर्द में तुरंत आराम मिलता है।

3. सांस की बीमारी और खांसी- मिंट की तेज खुशबू अस्थमा और सर्दी से होने वाली सांस की बीमारियों में राहत देती है, जो नाक, गला और फेफड़ों में आराम देती है।

4. स्तनपान- कई महिलाओं के लिए, स्तनपान एक बच्चे को पालने के दौरान का एक खूबसूरत हिस्सा है, लेकिन कई बार इससे स्तन और निपल्स को नुकसान पहुंचा सकता है। अध्ययन से पता चलता है कि मिंट के तेल को हर बार स्तनपान कराने के बाद स्तन और निप्पल पर लगाएं यह निप्पल की दरारों और निपल दर्द को कम कर सकता है।

5. अवसाद और थकान- मिंट एक प्राकृतिक उत्तेजक है। इसकी खुशबू से ही हमारा दिमाग फिर से उच्च स्तर पर कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है। आप सुस्त, उदास, या थकावट महसूस करें तो आसान तरीके से अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए रात में अपने तकिये पर मेन्थॉल तेल की कुछ बूंदें डालकर सोने के बाद यह शरीर और मन दोनों को रिलैक्स करता है।

6. मुहांसों में राहत- मिंट एक अच्छा एंटीसेप्टिक है। यह संक्रमण और खुजली से राहत देता है जिससे मुहांसों से राहत मिलती है।

7. याददाश्त- मिंट को याददाश्त के लिए भी बेहतर बताया गया है। एक शोध में मिंट च्युइंगम चबाने वाले लोगों की यादाश्त और मानसिक सतर्कता च्युइंगम न चबाने वालों से बेहतर पायी गई।

8. वजन घटाने में कारगर- पुदीना का इस्तेमाल वजन कम करने में भी किया जा सकता है और यह प्रभावी भी है। अपने खाने में विभिन्न रूपों में पुदीना का इस्तेमाल करके जमी हुई वसा को कम किया जा सकता है।

9. ओरल केयर- मुंह के स्वास्थ्य में सुधार में भी पुदीना के बहुत लाभ है। इसमें मौजूद कीटाणुनाशक साँसों को तरोताजा कर देते हैं। यह मुँह के अंदर बनने वाले हानिकारक बैक्टेरिया के बढ़ने को भी रोकता है। पुदीना की पत्तियों को मसूड़ों और दांतों पर सीधे भी लगाया जा सकता है। पुदीना के लाभ को देखते हुए ही टूथपेस्ट, माउथ वाश और दांतो की सफाई वाले अन्य प्रोडक्ट में मिंट का इस्तेमाल किया जाता है। आप मिंट के पत्तों को मुँह में रखकर चबा भी सकते है।

10. कैंसर- एक शोध के अनुसार, पुदीना के पत्ते कैंसर को भी होने से रोकते हैं।

अन्य लाभ-
पुदीना का इस्तेमाल आइसक्रीम और चॉकलेट, जैसे खाद्य पदार्थों में, कई तरह के अल्कोहलिक और नॉन अल्कोहलिक पेय पदार्थों में, ब्यूटी प्रोडक्ट में, दवाइयों में, इनहेलर और Breath Freshner के साथ ही खाना बनाने में फ्लेवर देने और सजावट के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पुदीने की चटनी और कॉकटेल तो लोगों की पसंद में शुमार हैं।

सावधानी

अति किसी चीज़ की भी नुकसानदायक होती है। यही बात पुदीना यानी मिंट पर भी लागू होती है।

- पुदीना के अधिक सेवन से त्वचा में जलन हो सकती है।

- त्वचा पर लाल चकत्ते भी पड़ सकते हैं।

- मिंट का ज्यादा सेवन सिर दर्द का कारण हो सकता है।

- छोटे बच्चों के चेहरे या आस पास मिंट का ज्यादा इस्तेमाल न करें, सांस संबंधी परेशानी हो सकती है।

- प्रेग्नेंट और दूध पिला रही महिलाओं को भी मिंट का इस्तेमाल नही करना चाहिए।

 

 

Hara dhaniya benefits

 

Hara dhaniya








परिचय : धनिया के हरे पत्तों और उनके बीजों को सुखाकर 2 रूपों में इस्तेमाल किया जाता है। हरे धनिये में जीरा, पोदीना, नींबू का रस आदि मिलाकर स्वादिष्ट बनाकर सेवन करने से अरुचि बंद हो जाती है। इससे भूख खुलकर लगती है और पाचन क्रिया (भोजन पचाने की क्रिया) तेज हो जाती है। हरे धनिये की पत्तियों को सब्जी में डालकर सेवन करने से रक्त विकार नष्ट होते हैं। आंखों के लिए हरा धनिया बहुत ही गुणकारी होता है। हरे धनिये को दही और रायते में डालकर सेवन करने से भीनी-भीनी सुगंध महसूस होती है और दही, रायते व सब्जी का स्वाद अधिक बढ़ जाता है। हरे धनिए के सेवन से पित्त की गर्मी बंद हो जाती है। सब्जियों को पकाने के बाद हरे धनिये को बारीक काटकर सब्जी में मिलाकर सेवन करने से उसके विटामिन पर्याप्त रूप में मिलते हैं। सब्जी में पकाने से हरे धनिये के विटामिन कम हो जाते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञों के अनुसार धनिया कषैला, चिकना, हल्का, कड़वा, तीक्ष्ण और गर्म होता है तथा यह वीर्य और पाचन शक्ति को विकसित करता है। धनिये के सेवन से पेशाब खुलकर आता है। धनिया, वात, पित्त और कफ विकारों में लाभ पहुंचाता है। दमा, खांसी में धनिया बहुत ही गुणकारी होता है। यह शरीर की कमजोरी को नष्ट करने के साथ ही आंतों के कीड़ों को भी दूर करता है। विभिन्न भाषाओं में नाम : हिन्दी धनिया अंग्रेजी कोरियेन्डर संस्कृत धान्यक, कुस्मुम्बरू गुजराती कोथमीर धाणा मराठी धणों, कोथिब्या बंगाली धने पंजाबी धनिया तेलगू धनियालु तमिल कोतामिल्ल फारसी कश्नीज अरबी कुज्वर रंग : धनिये के पत्ते का रंग हरा और दाना भूरा होता है। स्वाद : इसका स्वाद फीका होता है और इसके अंदर सुगन्ध होती है। स्वरूप : धनिया खेतों में बोया जाता है। इसके दाने गुच्छों में लगे होते हैं। स्वभाव : यह ठण्डे स्वभाव का होता है। हानिकारक : यह याददाश्त को कमजोर करता है। दोषों को दूर करने वाला : धनिये के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए शहद का उपयोग किया जाता है। तुलना : धनिये की तुलना पोस्तादाना और काहू के बीजों से की जाती है। मात्रा : 9 से 10 ग्राम। गुण : यह मन को खुश करता है, दिमाग की गर्मी को कम करता है, पागलपन के लिए लाभदायक है, धातु वीर्य दोषों को खत्म करती है, नींद ज्यादा आती है, इसके काढ़े से कुल्ला करने से मुंह में दाने नहीं होते हैं। हरे धनिये में पाये जाने वाले विभिन्न तत्व: तत्व मात्रा तत्व मात्रा प्रोटीन 3.3 प्रतिशत विटामिन-सी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम वसा 0.6 प्रतिशत लौह लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम कार्बोहाइड्रेट 6.5 प्रतिशत फास्फोरस 0.06 प्रतिशत पानी 87.9 प्रतिशत कैल्शियम 0.14 प्रतिशत विटामिन-ए 10460 से 12600 I.U.100ग्राम विभिन्न रोगों में उपयोग : 1. दस्त व कब्ज : हरा धनिया, काला नमक, कालीमिर्च को मिलाकर चटनी बनाकर चाटने से लाभ मिलता है। यह चटनी सुपाच्य रहती है। उल्टी में धनिये को मिश्री के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। पिसे हुए धनिये को सेंककर 1-1 चम्मच पानी से फंकी लेने से दस्त आना बंद हो जाता है। दस्तों में आंव, मरोड़, उल्टी, गर्भवती की उल्टी आदि आना बंद हो जाती है। 2. शरीर में जलन : रात को 4 चम्मच धनिया और इतने ही चावल पानी में भिगों दें। इन्हें सुबह गर्म करके पीयें अथवा रात को धनिया भिगों दें और सुबह के समय मिश्री डालकर पीसकर छानकर पियें। इससे शरीर की गर्मी और पेट की जलन नष्ट हो जाती है। रात को धनिये को पानी में भिगों दें और सुबह उठने पर उसे छानकर उसमें मिश्री डालकर पी जायें। इससे शरीर की गर्मी और पेट की जलन दूर हो जाती है। 3. मूत्र में जलन : यदि तेज प्यास, पेट, शरीर या मूत्र में कहीं जलन हो तो 15 ग्राम धनिये को रात को भिगो दें। सुबह के समय उसे ठंडाई की तरह पीसकर मिश्री डालकर सेवन करें। इस प्रयोग से दिल की तेज धड़कन सामान्य हो जाती है। धनिया और आंवला रात में भिगोकर सुबह के समय मसलकर पीने से मूत्र की जलन दूर हो जाती है। 4. दमा-खांसी : धनिया और मिश्री को पीसकर चावलों के पानी के साथ सेवन करने से दमा और खांसी के रोग में लाभ मिलता है। 5. चेचक की गर्मी : चेचक की गर्मी निकालने के लिए धनिया और जीरा पानी में डालकर रात को मिट्टी के बर्तन में भिगो दें। सुबह उस पानी में चीनी मिलाकर पियें। इससे मल साफ आता है तथा चेचक की गर्मी शान्त होती है। 6. गर्मी के रोग : रात के समय मिट्टी के बर्तन में 2 गिलास पानी 5 चम्मच सूखा धनिया भिगो देते हैं। सुबह के समय इसमें स्वाद के अनुसार मिश्री मिलाकर पियें। इससे गर्मी के रोग समाप्त हो जाते हैं। 7. अनिद्रा : चीनी और पानी के साथ हरे धनिये को पीसकर रोगी को पिलाने से सिर दर्द दूर होने के साथ ही अच्छी नींद आती है। 8. मासिक-धर्म अधिक मात्रा में आना : लगभग 20 ग्राम धनिया को 200 ग्राम पानी में डालकर उबालें जब 50 ग्राम पानी शेष रह जाए तो इसे छानकर इसमें मिश्री मिलाकर रोगिणी को सेवन करा दें। इस प्रयोग से मासिक-धर्म में अधिक खून का आना बंद हो जाता है। 10 ग्राम सूखा धनिया लेकर लगभग 200 ग्राम पानी में उबालते हैं। जब यह एक चौथाई की मात्रा में रह जाए तो इसे छानकर इसमें खाण्ड (चीनी) मिलाकर हल्के गर्म पानी के साथ सुबह के समय 3-4 बार रोगी को पिलाने से मासिक-धर्म का ज्यादा आना कम हो जाता है। 9. स्वप्नदोष : धनिये को पीसकर मिश्री में मिलाकर ठण्डे पानी से सेवन करने से स्वप्नदोष, मूत्रजलन, सूजाक और उपदंश में लाभ होता है जो लोग चाहते हैं कि काम वासना अधिक न सताएं वे लोग 2 ग्राम सूखा धनिया पीसकर पानी मिलाकर कुछ दिनों तक पीयें अथवा सूखा धनिया पीसकर छान लेते हैं। इसमें बराबर मात्रा में पिसी हुई चीनी मिलाएं सुबह के समय खाली पेट बासी पानी से 1 चम्मच भर की मात्रा में फांक लेते हैं तथा 1 घंटे बाद कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। इससे स्वप्नदोष से छुटकारा मिल जाता है। सूखा धनिया तथा मिश्री को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लेते हैं और किसी ढक्कनदार बर्तन में भरकर रख देते हैं। इस चूर्ण को 5-6 ग्राम के लगभग, ताजा पानी के साथ सुबह-शाम कुछ दिनों तक लेने से अनैच्छिक वीर्यपात, स्वप्नदोष आदि रोगों से मुक्ति मिल जाती है। 10. मुंह से दुर्गंध आना : हरा धनिया खाने से मुंह में सुगंध रहती है। प्याज, लहसुन आदि गंध वाली चीजें खाने के बाद हरा धनियां चबाने से मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाती है। हरा धनिये को खाने से मुंह की दुर्गंध खत्म होती है और मुंह में से सुगंध आती है। 11. रक्तातिसार (खूनी दस्त) : 15 ग्राम धनिये को पीसकर उसमें 12 ग्राम मिश्री मिलाकर पानी में घोलकर पीने से दस्त में खून आना बंद हो जाता है। 12. खाने के तुरंत बाद दस्त होना : धनिये में कालानमक मिलाकर भोजन के बाद 1 चम्मच भरकर सेवन करने से खाना खाने के बाद होने वाले दस्त बंद हो जाते हैं। 13. ऑव व बदहजमी के कारण बालकों का पेट दर्द : आंव व बदहजमी हो तो धनिया और सोंठ का काढ़ा पिलाएं। इससे बच्चों का पेट दर्द बंद हो जाता है। 14. छींके अधिक आना : छींके अधिक आने पर धनिये की पत्तियां सूंघनी चाहिए। हरे धनिये की पत्ती और सफेद चंदन को पीसकर नाक से सूंघने से बार-बार छींक आना बंद हो जाती है। 15. वमन होना (उल्टी) : उल्टी होने पर सूखा या हरा धनिया को पीसकर उसका पानी निचोड़कर 5 चम्मच बार-बार रोगी को पिलाने से उल्टी आना बंद हो जाती है। इस प्रयोग से गर्भवती स्त्री की उल्टी भी बंद हो जाती है। उल्टी होने में रोगी का खाया पिया सब कुछ मुंह से निकल जाता है। यह दो रूपों में पायी जाती है। कभी तो जो कुछ खाया जाता है, वह उसी रूप में निकल जाता है और कभी अधपचा भोजन निकल जाता है। उस हालत में डकारें आती हैं, जी मिचलाता है। सिर में बहुत तेज दर्द होने लगता है और बेहोशी के दौर पड़ने लगते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे अंदर से आंतों में जलन है और सब कुछ बाहर आने के लिए पलटने लगता है। आंख, कान और नाक में भी दर्द होने लगता है। उल्टी के समय व्यक्ति को लगता है कि वह अब बचेगा नहीं। ऐसी दशा में रोगी को धीरज बंधाना चाहिए उससे कहना चाहिए कि साधारण उल्टी है। कुछ ही देर में ठीक हो जाएगी। इलाज के लिए रोगी को उल्टियां बंद करने की दवा तुरन्त ही देनी चाहिए। इसके लिए धनिये के थोड़े से दाने, हरा पुदीना तथा हींग का घोल मलना चाहिए। पुदीना का रस भी लाभदायक होता है। घबराहट अधिक होने पर धनिये का पानी पिलाना चाहिए। धनिये का लेप माथे पर लगाने से रोगी की बेचैनी दूर हो जाती है। ऐसे में अमृतधारा या कृष्णामिक्चर भी काम कर जाता है। असल में उल्टी का कारण अपच (भोजन का न पचना) या अजीर्ण (पुरानी कब्ज) ही होता है। यह भयंकर रोग नहीं है। प्याज का रस तथा धनिये का रस भी पानी में मिलाकर देने से उल्टी बंद हो जाती है। यदि पेट में जलन हो रही तो धनिया और सोंठ दोनों को उबालकर उसका पानी ठंडा करके देना चाहिए। आधा चम्मच हरे धनिये का रस, चुटकी भर सेंधानमक और 1 चम्मच कागजी नींबू के रस को मिलाकर रोगी को पिलाने से उल्टी होने के रोग में लाभ होता है। हरे धनिये को पीसकर निचोड़ लें और इसका रस निकालकर उस रस में से लगभग 33 ग्राम रस रोगी को पिलाने से उल्टियां होना बंद हो जाती हैं। इसको लगातार कई बार पिलाने से गर्भवती स्त्री की उल्टियां होना भी बंद हो जाती हैं। धनिये को पानी में उबालकर उसमें मिश्री मिलाकर पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है। हरे धनिये और पोदीने में सेंधानमक मिलाकर चटनी बना लें। इस चटनी में नींबू का रस मिलाकर खाने से उल्टी नहीं आती है। 3 ग्राम धनिया और 3 ग्राम सौंफ को पीसकर छान लें। इसे 250 ग्राम पानी में मिलाकर इसमें शक्कर डालकर 2-3 बार पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है। हरे धनिये और पुदीने को मिलाकर, इसकी चटनी बनाकर खाने से उल्टी होना बंद हो जाती है। 16. लू : गर्मी के मौसम में चलने वाली गर्म हवा (लू) से बचने के लिए धनिए के पानी में चीनी मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। पानी में धनिये को पीसकर और मिश्री में मिलाकर पिलाने से बच्चे को लगी हुई लू को दूर किया जा सकता है। धनियां, बनफ्सा, मकोय, मुलेठी और सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से लू लगने का रोग ठीक हो जाता है। 17. गर्मी के कारण सिर दर्द : सूखा धनियां 10 ग्राम, गुठली रहित सूखा आंवला 5 ग्राम लेकर रात के समय मिट्टी के एक बर्तन में भिगो दें। प्रात:काल इसमें मिश्री मिलाकर छानकर सेवन करते हैं। इससे गर्मी के कारण हुआ सिर दर्द बंद हो जाता है। यदि सर्दी के कारण सिर दर्द हुआ हो तो सूखे धनिये के साथ सोंठ, चाय की पत्ती, तुलसी के पत्तों के साथ पीस लेनी चाहिए। फिर इसमें थोड़ा सा पानी मिलाकर लेप बना लेना चाहिए। इस लेप को चमचे में गर्म कर लेना चाहिए। यह गर्म लेप माथे पर लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है। यदि गर्मी के कारण सिर दर्द हुआ हो तो लेप में सोंठ न डाली जाए, धनिया और तुलसी का लेप बनाकर माथे पर लगाना चाहिए। थोड़ी देर में दर्द दूर हो जाता है। यदि इस क्रिया के बाद भी सिर दर्द नहीं जाता है तो समझना चाहिए कि दर्द साधारण नहीं है। ऐसी स्थिति में हमें अच्छे डॉक्टरों से सलाह लेनी चाहिए। सिर दर्द में चक्कर, उल्टी व गर्भवती की उल्टी होने पर धनिया उबालकर मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है। 18. गंजापन : हरे धनिये का पानी निकालकर (पत्ते का रस) सिर पर मालिश करने से गंजेपन का रोग मिट जाता है और सिर पर नये बाल आना शुरू हो जाते हैं। 19. मस्तिष्क की कमजोरी : 125 ग्राम धनिये को पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब यह चौथाई बाकी रह जाए तो इसे छानकर 125 ग्राम मिश्री मिलाकर फिर गर्म करें। जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसे उतार लेते हैं। इसे रोजाना सेवन करने से दिमाग की कमजोरी से आने वाला आंखों के सामने अंधेरा तथा जुकाम आदि सभी रोग दूर हो जाते हैं। 20. नकसीर (नाक से खून आना) : हरे धनिये का रस सूंघने और हरे धनिये की पत्तियों को पीसकर सिर पर लेप करने से गर्मी के कारण से नाक से बहने वाला खून बंद हो जाता है अथवा धनिया रात को भिगो दें। धनिये को सुबह के समय पीसकर मिश्री मिलाकर पीने से लाभ मिलता है। गर्मी की वजह से नाक से खून बहने पर हरे धनिये के रस को सूंघने से और उसकी पत्तियों को पीसकर सिर पर लगाने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है। 10 ग्राम धनिया, 75 ग्राम सौंफ, 100 ग्राम मिश्री और 8-10 कालीमिर्च के दानों को पानी के साथ पीसकर शर्बत बना ले। इस शर्बत को रोजाना सुबह और शाम पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) के रोग में लाभ होता है। 5 ग्राम सूखा धनिया, 5 ग्राम गोरखमुण्डी के फूल और 8 मुनक्का लेकर 125 ग्राम पानी में 3 घंटे के लिये भिगोकर रख दें। सुबह उठकर इस पानी को छानकर पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) का रोग ठीक हो जाता है। 2 चम्मच धनिये के दाने, थोड़ी सी किशमिश और थोड़ी सी मिश्री को पानी में डालकर और पीसकर पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) में आराम आता है। 21. गैस : 2 चम्मच सूखा धनियां 1 गिलास पानी में उबालकर छानकर उस पानी को 3 बार पीने से पेट की गैस दूर हो जाती है। हरे धनिये की चटनी में कालानमक मिलाकर सेवन करने से पेट की गैस समाप्त हो जाती है। 2 चम्मच सूखे धनिए के दानों को 1 गिलास पानी में उबाल लें। फिर इस पानी को छानकर पीने से पेट की गैस समाप्त हो जाती है। 22. अरुचि : धनिया, छोटी इलायची और कालीमिर्च बराबर मात्रा में पीसकर चौथाई चम्मच घी और चीनी में मिलाकर सेवन करने से अरुचि (भोजन करने का मन न करना) दूर हो जाती है। 23. भूख न लगना : यदि भूख कम लगे तो 30 मिलीलीटर धनिये का रस रोजाना पीने से भूख लगना शुरू हो जाती है। 24. अपच : जिसे भोजन न पचता हो, जल्दी ही पैखाना (शौच) जाना पड़ता हो उसे 60 गाम सूखा धनिया, 25-25 ग्राम कालीमिर्च और नमक लेकर पीसकर भोजन के बाद आधा चम्मच ताजे पानी से सेवन करने से लाभ मिलता है। 25. मलेरिया बुखार : धनिया और सोंठ दोनों पिसे हुए आधा-आधा चम्मच मिलाकर रोजाना 3 बार खाने से ठण्ड देकर आने वाला बुखार मिट जाता है। आधा चम्मच पिसा हुआ धनिया, आधा चम्मच सोंठ, आधा चम्मच अजवाइन और चुटकी भर सेंधानमक को मिलाकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को दिन में 3 बार लेने से मलेरिया के बुखार में लाभ मिलता है। धनिया और सोंठ को बराबर मात्रा में पीसकर रोजाना दिन में 3 बार पानी से फंकी लेने से मलेरिया के बुखार में आराम मिलता है। 26. पेट में दर्द : पेट दर्द में धनिये का शर्बत लाभप्रद होता है। 2 चम्मच धनियां 1 कप पानी में गर्म करके पीना चाहिए। 1 चम्मच धनिया और थोड़ी मात्रा में सौंठ को 1 कप पानी में उबालकर पीने से पेट के दर्द, आंव (एक प्रकार का चिकना सफेद पदार्थ जो मल के द्वारा बाहर निकलता हैं) और बदहजमी ठीक हो जाती है। पेट के दर्द में रोगी बुरी तरह से चीखता और चिल्लाता है। यह पेट में गैस के रुकने या आंतों में सूजन हो जाने से होता है। इसके लिए 10 ग्राम सूखा धनिया, 5 ग्राम सोंठ, 5 ग्राम अजवायन, 5 ग्राम भूना हुआ जीरा और 2 ग्राम कालानमक को पीसकर चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 1 चम्मच गर्म पानी से दिन में 3 बार लेना चाहिए। यह चूर्ण गैस को तोड़कर बाहर निकालता है और रोगी को स्थायी रूप से लाभ पहुंचाता है। अदरक के रस में सूखे धनिये का चूर्ण भी पेट दर्द के लिए लाभदायक होता है। जब दर्द रुक जाए तो हल्का भोजन करना चाहिए। अधिक ठण्डी और अधिक गर्म चीजें नहीं खानी चाहिए। सर्दियों में हल्की चाय और गर्मी में कालानमक डालकर छाछ पीना लाभकारी होता है। 27. खूनी बवासीर : 4 चम्मच धनिये को 250 ग्राम दूध में उबालकर व छानकर पिसी हुई मिश्री मिलाकर पीने अथवा मिश्री मिलाकर धनिये का रस पीने से खूनी बवासीर दूर हो जाती है। 28. रोशनीवर्द्धक : हरे धनिये को चावल के साथ पीसकर खाने से आंखों की कमजोरी दूर होकर आंखों की रोशनी तेज हो जाती है। हरे धनिये और त्रिफला की चटनी बनाकर खाने से आंखों की रोशनी तेज होती है। 29. मोतियाबिन्द : धनिये को पीसकर बारीक कर लेते है। थोड़ा सा धनिया पानी में उबालते हैं। फिर ठंडा करके कपड़े में छानकर आंखों में डालने से लाभ मिलता है। 30. बच्चों के आंखों का दर्द : थोड़ा सा साबुत धनिया पानी में उबालते हैं फिर ठंडा करके कपडे़ में पोटली बांधकर ठण्डे पानी में डुबो देते हैं। 10 मिनट बाद निकालकर उसे बच्चे की आंखों पर फेरने से दर्द में लाभ मिलता है। 31. मुंह के छाले : धनिये का बारीक चूर्ण, बोरेक्स अथवा खाने वाले सोडे में मिलाकर मुंह के छालों पर लगाने से लाभ होता है एवं लार भी ठीक निकलती है। हरे धनिये की पत्तियों को चबाने से मुंह के छाले नष्ट हो जाते हैं। सूखे धनिये तथा शहतूत दोनों को पानी में उबालकर इससे कुल्ला करने से छाले ठीक होते हैं। 32. गर्मी दूर करना : धनिये के लगभग 200 दानों को 1 गिलास पानी में लगभग 4 घंटे तक भिगोयें रखें और फिर उसे छानकर पानी में एक चुटकी नमक डालकर पी लें तो यह गर्मी के मौसम में पूरे दिन प्यास को कम करता रहेगा। प्यास की खराश दूर करने तथा प्यासे को राहत देने में यह पानी बहुत ही उपयोगी होता है। 33. शक्तिवर्द्धक : शक्ति को ऊर्जा भी कहते हैं। यह ऊर्जा मनुष्य को भोजन से मिलती है। परन्तु धनिया इस ऊर्जा को और बढ़ा देता है। इसके लिए आपको खाना खाने के बाद 10 दाने धनिये के मुंह में डालने होंगे। इन दानों को दाढ़ों से कुचलकर इसका रस कंठ (गले) के नीचे उतार लीजिए और दानों को थूक देते हैं। ठीक आधा घंटे बाद आप देखेंगे कि आपके शरीर में गर्मी बढ़ गई। यह गर्मी पसीना लाने वाली गर्मी नहीं होगी वरन यह पाचन क्रिया को सही करने वाली गर्मी होगी जब पाचन क्रिया में वृद्धि होगी तब भोजन समय से तथा ठीक प्रकार से पच जाएगा। इसके बाद उस खून में जो ऊर्जा पैदा होगी। वह पूरे शरीर में फूर्तीलापन लाती है। 34. सौन्दर्यवर्द्धक : यदि साग-सब्जी तथा मसालों के रूप में धनिये का प्रयोग करते हैं तो हमारा रंग निखर जाता है। धनिया का पानी भी त्वचा को निखारता है। इसके लिए धनिये को ताजे पानी में भिगो देना चाहिए। इसे कम से कम 2 घंटे भीगना जरूरी होता है। धनिया के दाने निकालकर पानी से मुंह को धोना चाहिए। ऐसा करने से त्वचा का रंग निखरता है। इस बात का ध्यान रहे कि इसका पानी आंखों में नहीं जाना चाहिए क्योंकि यह पानी शीतल तत्व का होता है जो आंखों की पुतलियों को हानि पहुंचा सकता है। इस क्रिया को लगातार 30 दिनों तक करना चाहिए। 35. शरीर के भीतरी रोगों का अवरोधक : धनिया शरीर के भीतर धीरे-धीरे पनपने वाले रोगों को रोकता है। कोई नहीं जानता है कि कब और कौन-सा रोग शरीर के भीतर उत्पन्न हो जाए। कभी-कभी कोई सूक्ष्म जीवाणु भोजन के द्वारा शरीर के भीतर प्रवेश कर जाता है तब उससे अन्य हजारों कीटाणु और जीवाणु पैदा हो जाते हैं। उस हालत में व्यक्ति विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो जाता है। धनिये का सेवन किसी न रूप में अवश्य ही करना चाहिए जो लोग सूखा धनिया पसन्द नहीं करते हैं, उनको हरे धनिये का प्रयोग करना चाहिए। हरा धनिया चटनी, साग-सब्जी में ऊपर से डालकर तथा पीसकर प्रयोग किया जा सकता है। धनिये में रोगों से लड़ने की शक्ति होती है। चटनी खाते ही शरीर में बनने वाली गैस भी अपान वायु के रूप में छूटने लगती है। इससे मन स्वच्छ तथा शरीर हल्का हो जाता है। धनिया हैजा के कीटाणुओं को भी पनपने नहीं देता है। 36. चोट : धनिये का प्रयोग बाहरी चोट पर किया जाता है जैसे यदि कभी बंद चोट लग जाए, स्याह नीले रंग के धब्बे पड़ जाए या चोट कसक रही हो तो धनिये की पोटली तैयार करके चोटिल स्थान पर बांधना चाहिए। इसके लिए थोड़े से दाने धनिया और 2 गांठे हल्दी इन दोनों को लेकर खूब बारीक पीस लेना चाहिए। इसको टिकिया बनाकर चोट पर रखकर पट्टी बांध देना चाहिए। इससे चोट की सूजन कम होकर दर्द कम हो जाता है। रोगी को इतना अधिक आराम मिलता है कि वह 3-4 दिन में काम करने लायक हो जाता है। 37. अफारा (पेट का फूलना) : धनिये का शर्बत अफारा में बहुत लाभकारी होता है। इसके लिए 50 ग्राम धनिया को 2 लीटर में उबाल लेते हैं। इसके बाद उबले हुए पानी को ठंडा करके 1 बोतल में भर लेते हैं। धनिये के काढ़े को छान लेते हैं। यह पानी दिन में 3-4 बार लेना चाहिए। यदि पानी मीठा लगे तो एक प्याला पीते समय उसमें थोड़ा-सा कालानमक डाल लेते हैं। इससे स्वाद बढ़ जाता है और काला नमक शरीर को लाभ पहुंचाएगा। धनिये के पानी से हाथ-मुंह भी धोना चाहिए। इससे पसीने की दुर्गंध काफी समय के लिए दूर हो जाती है। 38. कब्जनाशक : धनिया कब्ज तोड़ने में भी सहायता करता है। धनिये के चूर्ण से पुराने से पुराने कब्ज भी दूर हो जाता है। इसके लिए 50 ग्राम धनिया, 10 ग्राम सोंठ, 2 चुटकी कालानमक तथा 3 ग्राम हरड़ लेकर पीसकर कपड़े में छान लेना चाहिए। इस चूर्ण को थोड़ी-सी मात्रा में भोजन करने के बाद गुनगुने पानी से लेते हैं। इससे कब्ज नष्ट होता है और मल भी खुलकर आने लगता है। इससे पेट का दर्द भी कम हो जाता है और आंतों की खुश्की भी दूर हो जाती है। इससे भूख खुलकर आती है। मलावरोध समाप्त हो जाता है। यदि पुराना कब्ज हो तो इस चूर्ण को लगातार 40 दिनों तक लेना चाहिए। कब्ज न रहने पर भी यह चूर्ण लिया जा सकता है। इससे किसी भी प्रकार की हानि की संभावना नहीं होती है। 20 ग्राम धनिया और 20 ग्राम सनाय को रात में 250 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। सुबह इसे छानकर इसमें मिश्री मिलाकर पीने से कब्ज दूर हो जाती है। 39. अजीर्ण (पुरानी कब्ज) : अजीर्ण एक ऐसा रोग होता है, जिसके रहते मनुष्य का मन किसी काम में नहीं लगता है। अजीर्ण नियमों को तोड़ने, समय-असमय खाने, बासी या गरिष्ठ भोजन से भी हो जाता है। कुछ लोगों को हर समय काम रहता है। इसके चलते वे कभी दोपहर को खा लेते हैं या कभी चाट-पकौड़ी खाकर ही दिन गुजार लेते हैं। सच बात तो यह है कि इनको इसका पता भी नहीं रहता कि हमारी आंतें लोहे की नहीं बनी हैं। वे मुलायम होती हैं, उनके दांत नहीं होते हैं। तब भी लोग जल्दी-जल्दी खाना खाकर उठ जाते हैं या फिर खाने के बाद अधिक मात्रा में पानी पी लेते हैं या फिर जो लोग प्यास को मार लेते हैं जो लोग पाखाने या पेशाब को रोके रहते हैं क्योंकि उनके कथनानुसार उन्हें फुर्सत नहीं होती है। ऐसे लोगों को भी अजीर्ण हो जाता है। अजीर्ण के कारण शरीर विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो जाता है। इससे गला सूखता है। सीने में जलन होती है। आंतों में खुश्की होती है। काम-धंधे में आलस्य आता रहता है। सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि जैसे सारा उत्साह ठंडा पड़ गया है। कभी सारा शरीर पसीने से लथपथ हो जाता है। ऐसी हालत में रोगी चारपाई पर पड़ जाता है। उपरोक्त कारणों से ही अजीर्ण रोग होता है। ऐसी दशा में यह प्रयोग करना चाहिए- 10 ग्राम धनिये के दाने, 3 ग्राम हरड़, 3 ग्राम सोंठ, 1 ग्राम सेंधानमक इन सभी चीजों को पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। फिर इसे सुबह-शाम गर्म पानी से लगभग 2 ग्राम की मात्रा में लेते हैं। इससे अजीर्ण रोग दूर हो जाता है। इसके बाद की अन्य शिकायतें भी दूर हो जाती हैं। 40. सावधानी : याद रहे कि इस चूर्ण के बाद रसदार फल या प्याज नहीं लेना चाहिए। इससे शरीर में तेजाब बनने का डर बना रहता है। धनिया, नमक और अदरक की चटनी भी लाभदायक होती है। इस चटनी को भोजन के साथ लेना चाहिए। अदरक स्वयं एक औषधि है। परन्तु जब यह हरे या सूखे धनिये के साथ मिल जाती है तो इसके गुण और भी अधिक बढ़ जाते हैं। 41. ऐंठन : ऐंठन में रोगी का सम्पूर्ण शरीर कमजोरी या व्याकुलता के कारण ऐंठने लगता है। कभी-कभी गर्दन और मांसपेशियों में भी दर्द होने लगता है। उस समय रोगी अत्यधिक बेचैनी का अनुभव करता है। ऐसी स्थिति आ जाने पर रोगी को धीरज बंधाना चाहिए। इसके बाद धनिया, नमक और हल्दी को थोड़ी-थोड़ी सी मात्रा में लेकर पीस लेना चाहिए। पिसी हुई चीजों से गुनगुने तेल में टिकिया बना लेनी चाहिए। यह टिकिया रोगी के गर्दन और तलुओं पर बांधनी चाहिए। इससे बहुत लाभ होता है। रोगी को गुनगुना पानी पीने के लिए देना चाहिए। उसे तुलसी की चाय या डबलरोटी का एक पीस गर्म करके देना चाहिए। अधिक बेचैनी होने पर डॉक्टर या वैद्य को दिखाना आवश्यक होता है क्योंकि ऐंठन के साथ अन्य रोग भी रोगी को हो जाते हैं और रोगी चारपाई पर पड़ जाता है। 42. खट्टी फीकी डकारे आना : यह कोई रोग नहीं है परन्तु यदि कभी लगातार खट्टी डकारे आने लगती हैं तो रोगी को बेचैनी होने लगती है और वह शीघ्र ही घबरा जाता है। पेट में जलन होती है और जबान सूखने लगती है। बार-बार डकार आने से खुश्की दूर हो जाती है और गैस के कारण पेट में गर्मी सी महसूस होने लगती है। सीने में जलन, अकड़न और मीठा दर्द होने लगता है। ऐसी दशा में पाचक औषधि काम करती है। इसके लिए थोड़ा सा पुदीना और थोड़ा सा सूखा धनियां, बड़ी इलायची, अजवायन और कालानमक को पीसकर या तो टिकिया बना लेते हैं या चूर्ण बना लेते हैं फिर इसे 2 घंटे बाद गर्म पानी से लेना चाहिए। थोड़ी देर में डकारे बंद हो जाएंगी। यदि डकारें खट्टी या तेजाबियत की हैं तो धनिया के 4 दाने और 10 दाने सौंफ के मुंह में डालकर उसका रस गले के नीचे उतारना चाहिए। इससे कुछ ही देर में डकारें आना बंद हो जाता है और रोगी को शांति मिलती है। 43. रक्त विकार : खून में विकार या खराबी कई कारणों से होती है जैसे नमक का अधिक सेवन करना, खट्टी वस्तुओं का अधिक लेना, बासी भोजन करना। खून की खराबी से दिल तथा प्लीहा रोग हो सकता है। इस हालत में रोगी का मन किसी काम में नहीं लगता है। उसे हर समय सुस्ती घेरे रहती है। कभी-कभी शरीर में फोड़े-फुंसी भी निकल आते हैं। ऐसी अवस्था में रोगी को सबसे पहले खट्टी मीठी तथा गरिष्ठ चीजें खाने से परहेज करना चाहिए। खाने में रोटी, दलियां, तोरई, लौकी, टिण्डा, परवल आदि की सब्जियां तथा ताजा पानी लेना चाहिए। सभी खाद्य पदार्थों में नमक की मात्रा घटा देनी चाहिए। इसके बाद 4 कोपलें नीम, 4 कालीमिर्च, 5 ग्राम धनिये को लेकर पीस लेते हैं। इस चूर्ण को दिन में 3 बार पानी के साथ लेना चाहिए। इससे खून की खराबी धीरे-धीरे दूर हो जाती है। कुछ ही दिनों जब शरीर में शुद्ध खून प्रवाहित होने लगता है तो रोगी को खुद ही आराम आ जाता है। 44. गर्मी की घमौरियां : शरीर में अत्यधिक गर्मी में घूमने पर या पसीने के मरने पर घमौरियां होती हैं। तेज गर्मी में धूप में काम करने पर भी घमौरियां हो जाती हैं। शरीर पर छोटे-छोटे दानों का निकलना ही घमौरियां है। घमौरियां होने पर शरीर में खुजली होती है और कांटे जैसे चुभने लगते हैं। कपड़े पहनना अच्छा नहीं लगता है। इसके लिए साधारण सा इलाज है। बर्फ के पानी में 50 ग्राम धनिये के पानी को भिगो देना चाहिए। लगभग 5 घंटे बाद इस पानी को छानकर घमौरियों वाले स्थान पर लगाना चाहिए। यदि किसी छोटी तौलिया को इस पानी में भिगोकर घमौरियों पर रखा जाए तो बहुत आराम मिलता है। इस प्रक्रिया को 2 दिन तक सुबह-शाम करने से घमौरियां नष्ट हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त नींबू के रस में धनिये को डालकर पीना चाहिए। ध्यान रहे कि घमौरियों के कारण शरीर में नमक की मात्रा कम होने लगती है। इसलिए नमक का सेवन अवश्य ही करना चाहिए। यदि रोटी में नमक और अजवायन को मिला लिया जाए तो बहुत लाभ मिलता है। 45. सीने में जलन : सीने में जलन, गर्मी के प्रभाव, बासी भोजन करने, खट्टी डकारें आने, अम्लपित्त बनने आदि के कारण होती है। उस समय रोगी को बड़ी बेचैनी होने लगती है। रोगी शीघ्र ही घबरा जाता है। उसे लगता है कि जैसे उसका दिल बैठा जा रहा है। ऐसी हालत में रोगी को 5 ग्राम सूखा धनिया, 2 ग्राम कालानमक, 1 ग्राम हींग, 5 ग्राम अजवायन का चूर्ण बनाकर दिन में 3-4 बार देना चाहिए। जलन अपने आप बंद हो जाती है। इसके बाद चावल, खुश्क चीजें, तली हुई वस्तुएं आदि भोजन के साथ नहीं लेनी चाहिए। दूध ठंडा करके दिन में कई बार लेना चाहिए। हरा धनिया और हरा पुदीना इन दोनों की चटनी खाने से भी लाभ होता है। जहां तक हो सके खट्टी चीजों को नहीं लेना चाहिए। क्योंकि खट्टी चीजें सीने की जलन को बढ़ा देती हैं। भोजन के बाद टहलना भी चाहिए तथा शरीर में कब्ज नहीं बनने देना चाहिए। 46. जीभ पर छाले होना : जब पेट के अंदर गर्मी का प्रकोप बढ़ जाता है तो जीभ की ऊपरी परत पर छाले उभर आते हैं। ऐसा उस दशा में होता है। जब हम खाद्य-पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं। गर्म पदार्थों में आलू, चाट, पकौड़े और अदरक, खट्टी मीठी चीजें, अरहर या मसूर की दाल, बाजरे का आटा आते हैं। कभी-कभी शरीर भोजन को ठीक से नहीं पचा पाता है। तब आंतों में अपच का प्रदाह उत्पन्न हो जाता है। यदि हम किसी कारणवश मल-मूत्र को रोंके रहते हैं। तब मल सड़ने लगता है और आंतों में सड़न क्रिया आरम्भ हो जाती है। इन सभी कारणों से जीभ पर छाले पड़ जाते हैं। इन छालों में असहनीय दर्द होता है जैसे कांटे चुभ रहे हों। नमक, मिर्च मसाले आदि खाने पर बहुत दर्द होने लगता है। भोजन करना मुश्किल हो जाता है। साधारण भाषा में इसे मुंह का आना कहते हैं। इसके लिए धनिये का मिश्रण बहुत ही लाभकारी इलाज होता है। धनिये के 50 दाने पीसकर सरसों के तेल में पका लेना चाहिए। फिर कपड़े में छानकर रूई की फुरेरी से इस तेल को जीभ पर लगाना जरूरी होता है। इसे लगाने के तुरन्त बाद मुंह खोलकर लार नाली में टपका देना जरूरी होता है। दिन में 4 बार यह क्रिया करने से छालों में आराम मिलता है। 47. अंगों की टूटन : शरीर के अंग अक्सर शक्ति से बाहर कार्य करने के कारण टूटने लगते हैं। कभी-कभी थकावट के कारण भी अंगों में टूटने की क्रिया पैदा होती है। होता यह है कि जब शारीरिक ऊर्जा अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च हो जाती है तो अंगों में टॉक्सिन (एक प्रकार का विकार) पैदा हो जाता है। ऐसी अवस्था में शरीर के अंग-अंग में दर्द हो जाता है। इस दशा में व्यक्ति का काम करने में मन नहीं लगता है। शरीर को मालिश करने की जरूरत महसूस होने लगती है। हर समय समय आराम करने का मन करता है। इसके लिए रोगी को नमक और धनिये के घोल में थोड़ी देर तक बैठना चाहिए। अंगों को इस घोल से धीरे-धीरे धोना चाहिए। इसके अतिरिक्त 100 ग्राम धनिया, 10 ग्राम नमक और 5 ग्राम हींग पानी में डालकर उस पानी को अच्छी तरह से खौला लेना चाहिए। फिर उस पानी की भाप लेनी चाहिए। इससे अंगों की जलन को आराम मिलता है। यह पानी घूंट-घूंट करके भी पिया जा सकता है। इसे पीने से मांसपेशियों को बल मिलता है। 48. फ्लू का रोग : फ्लू या इन्फ्लूएंजा में पहले जुकाम होता है। नाक बहनी शुरू हो जाती है। फिर शरीर अलसाने लगता है। धीरे-धीरे व्यक्ति को बुखार हो जाता है। शरीर में बेहद दर्द होने लगता है। रोगी का माथा और पेट दुखने लगता है। कमर तथा पिण्डलियां जैसे टूटने लगती हैं। कभी-कभी तो रोगी को 104 या 105 डिग्री बुखार हो जाता है। अत्यधिक थकावट के कारण भी ज्वर का रोग हो जाता है। इसमें रोगी को कभी ठण्ड लगने लगती है तो कभी-कभी पसीना आने लगता है। यह छूत का रोग है। यदि यह घर में किसी एक को होता है तो पूरे परिवार में फैल जाता है। अत: रोगी को निराशा के संसार से निकलकर घरेलू उपचार शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए 4 दाने कालीमिर्च, 5 तुलसी की पत्तियां और 20 दाने धनिये की चाय बनाकर रोगी को दिन में 4 बार देना चाहिए। चाय में थोड़ी सी अदरक भी डाली जा सकती है। 49. पेट में कीडे़ : पेट में कीड़े उस हालत में पड़ते हैं जब किसी कारणवश मल साफ नहीं होता है। इस दशा को इस रूप में समझना चाहिए कि प्राय: ऊपरी मल तो बाहर निकलता रहता है। परन्तु आंतों में भीतरी रूप में जमा रहता है जैसे किसी नाली की तली में रेत जमा होती रहे और पानी के साथ ऊपर का कूड़ा बहता रहे। इस दशा में सुधार न होने पर कीड़े पैदा हो जाते हैं जो मनुष्य को कमजोर करते रहते हैं। अक्सर नथुनों और जीभ में खुजली सी मची रहती है। शरीर में प्रमाद हो जाता है। काम करने में मन नहीं लगता है। भूख भी घट जाती है। इसके लिए सबसे पहले इच्छाभेदी रस की 2 गोलियां खाना खाने के बाद रात को लेनी चाहिए। सुबह जब खुलकर दस्त हो जाए धनिया के योग से तैयार की गई औषधि को देना चाहिए। 1 पका केला लेकर उसमें धनिये का चूर्ण थोड़ा-सा सेंधानमक और हींग को पीसकर हलुवे की तरह मिला लेना चाहिए। इससे पेट के कीड़े नष्ट हो जाएंगे। इसमें हमें अधिक मल बनाने वाली गरिष्ठ चीजें नहीं खाना चाहिए। कीड़ों के निकलते ही मुंह की खश्की दूर हो जाती है और रोगी को नींद भी अच्छी आती है। मूली का रस भी लाभकारी होता है परन्तु जाड़े के मौसम में मूली का रस गर्म करके लेना चाहिए। 50. कील-मुंहासे निकलना : कील-मुंहासे वैसे तो उम्र के अनुसार निकलते हैं। ये शरीर के अंदर की गर्मी के कारण अधिक निकलते हैं। कभी-कभी उनमें पस भी पड़ जाती है। अत: मुंहासों को फोड़ना नहीं चाहिए। वरना मुंह पर दाग बनने का डर रहता है। इसके लिए एक लेप बना लेना चाहिए। थोडे़ से अदरक का रस, उसमें खीरे का थोड़ा सा रस और धनिया का पानी मिला लेना चाहिए। फिर 2 घंटे बाद साफ पानी से मुंह को धो डालना चाहिए। इससे कील-मुंहासें निकलना बंद हो जाते हैं। 51. त्वचा की खुजली : त्वचा की खुजली अक्सर गंदे रहने, पसीने, या फिर छूत के कारण होती है। इसमें पहले छोटे-2 दाने निकलते हैं फिर उन दानों में खुजली मचने लगती है। खुजलाने से त्वचा छिल जाती है और कभी-कभी बड़ा कष्ट होता है। इस दशा से बचने के लिए वैसलीन में, गंधक और धनिये को पीसकर तथा कपडे़ में छानकर मिला लें। इस मलहम को खुजली वाले स्थान पर दिन भर में 3-4 बार लगायें। इससे काफी आराम मिलेगा। नीम को पानी में उबालकर उसके पानी से नहायें। नीम `एंटीसेप्टिक` है। यह त्वचा को धोकर उसमें कीटाणु पनपने नहीं देती है। शरीर को साफ रखें। अधिक गर्म या अधिक ठण्डी चीजें न खाएं। अपने कपड़ों को घर के अन्य लोगों से अलग रखें। जहां तक हो सके हल्का या पचने वाला भोजन लें। चोकर की रोटी खुजली में अधिक लाभदायक होती है। 52. शरीर में सूजन आ जाना : शरीर में सूजन या तो रक्त विकार उत्पन्न होने से हो जाता है या फिर आंतों की खराबी से होता है। कभी-कभी खून के बनने में धीमापन आ जाता है तो ऐसी हालत में पहले चेहरे पर सूजन आती है। फिर धीरे-धीरे सारे शरीर में सूजन का आक्रमण होता है। ऐसी हालत में रोगी को घबराना नहीं चाहिए। वैसे तो इसके लिए ताकत और खून को साफ करने के इंजेक्शन लगाये जाते हैं, परन्तु हमारा मसलेदानी भी सहायता कर सकती है। हमें 50 दाने धनिये के पीस लेने चाहिए। इसमें नमक बिल्कुल न मिलाएं। इस चूर्ण को फंकी बनाकर ऊपर से पपीता खाना चाहिए। यदि पपीता न मिले तो सेब, चीकू या अन्य कोई भी फल दिया जा सकता है। धनिया खून को साफ करता है और फलों का रस पाचन क्रिया को सुधार कर खून को सही रूप में प्रवाहित करता है। धीरे-धीरे शरीर की सूजन घटने लगती है और रोगी पहले की तरह स्वस्थ हो जाता है। सावधानी : याद रखना चाहिए कि गर्म व ठण्डी वस्तुओं का सेवन न करें। नमक कम से कम खाएं चाय भी बहुत हल्की ली जाए। 53. जिगर में गर्मी का प्रकोप : जिगर में कभी-कभी ठण्डी और कभी गर्म चीजें खाने के कारण हल्की गर्मी का प्रकोप हो जाता है। इसमें रोगी को विशेष कष्ट तो नहीं होता परन्तु खून में खराबी उत्पन्न हो जाने के कारण रोगी का शरीर निस्तेज होता है। ऐसी दशा में रोगी को हल्की और पचने वाली वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। इसके लिए मसालेदानी की औषधि भी हमारी सहायता कर सकती है। थोड़ा-सा सूखा धनिया लेकर उसे भून लेते हैं। फिर उसे चूर्ण के रूप में तैयार कर लेते हैं। इस चूर्ण को शहद के साथ लेते हैं। इससे जिगर की गर्मी दूर हो जाती है। सावधानी : स्मरण रहे कि चाय, काफी या गर्म चीजें न लें। हां छाछ का सेवन किया जा सकता है। 54. जिगर में सूजन : जिगर में सूजन पेट की खराबी या कब्ज से होती है। इसमें भूख कम लगती है। खून भी अधिक मात्रा में नहीं बनता है। रोगी के शरीर में पीलापन रहता है। प्रमोद, सुस्ती, काम में मन न लगना आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ऐसी दशा में पहले पथ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। रोगी अधिक कमजोर न हो पाये इसके लिए सबसे पहले उसके पेट को ठीक करना चाहिए। कब्ज को दूर करने के लिए पपीता खिलाना चाहिए क्योंकि पपीता दस्तावर होता है। शहद चाटने से भी लाभ मिलता है। रोटी बनाने के लिए आटे में चोकर की मात्रा अधिक होनी चाहिए। मूंग की दाल की खिचड़ी भी लाभदायक होती है। सावधानी : दिल की सूजन वाले रोगी को धुली हुई दाल नहीं देनी चाहिए। इसके लिए घरेलू दवाई के लिए सबसे पहले 50 ग्राम धनिया बारीक कर लें।उसमें मिश्री और 10 ग्राम भुना हुआ जीरा मिला लेते हैं। तीनों चीजों को पीसकर कपड़छन कर लेते हैं। इस चूर्ण को दिन में तीन-चार लेना चाहिए। इससे हृदय की बीमारी जल्दी ही ठीक हो जाती है जब तक रोग रहे, मनुष्य को चाय, काफी, नशीले पदार्थ नहीं लेने चाहिए। हल्का भोजन और आराम आवश्यक होता है। 55. जोड़ों में दर्द : जोड़ों में दर्द अक्सर शरीर में गैस के बढ़ जाने के कारण होता है। कभी-कभी बलगम की प्रकृति भी अधिक बढ़ जाती है। खून में रोग भी पैदा हो जाता है। ऐसी दशा में धनिया का चूर्ण तथा सोंठ के चूर्ण को शहद के चूर्ण के साथ मिलाकर चटाना चाहिए। 56. गर्मी के कारण होने वाली खांसी : खांसी गले में छोटे-छोटे दाने निकल आने के कारण बनती है या फिर बलगम अधिक बढ़ जाता है। शरीर में गर्मी के अधिक बढ़ जाने से भी खांसी आने लगती है। इसके लिए साबुत धनिये को पानी में उबालकर ठंडा कर लेना चाहिए फिर उसमें थोड़ा सा शहद और पिसी हुई सोंठ मिलाकर पीना चाहिए। इससे बलगम ढीला पड़ता है और जब यह बाहर निकल जाता है तो खांसी कम हो जाती है। अदरक का रस और शहद भी खांसी दूर करने की उपयोगी औषधि है। गले के दाने भी नष्ट हो जाते हैं। 57. तलुओं में छाले निकलना : मुंह के तालु में छाले आंतों की गर्मी से निकल आते हैं। ऐसी दशा में रोगी को भोजन लेना कठिन हो जाता है। इसके लिए धनिये के पानी से कुल्ले करने चाहिए। 50 ग्राम धनिये को 2 लीटर पानी में पका लेना चाहिए। इसके बाद पानी को छान लेते हैं फिर इस पानी से कुल्ले करने चाहिए। दिन में 3 बार कुल्ला करने से रोगी को काफी आराम मिलता है। भोजन में मीठा दलिया, मूंग की दाल से रोटी, दूध चाय आदि लेना चाहिए। छालों की जितनी अधिक सिंकाई होगी, उतना ही आराम मिलेगा। धनिये के पानी में ग्लिसरीन मिलाकर फुरेरी से तालु पर लगाना चाहिए। कुछ देर के बाद लार टपका देनी चाहिए। रोगी के छाले तीसरे दिन से सूखना प्रारंभ हो जाएंगे। रात में पूरी नींद लेनी चाहिए। 58. चेहरे पर झाईयां पड़ जाना : चेहरे पर झाईयां गर्मी के कारण पड़ जाती हैं। कभी-कभी खून में रोग उत्पन्न हो जाने के कारण भी ऐसा होता है। इससे चेहरे की सुन्दरता को काफी नुकसान पहुंचता है। इसके लिए धनिये के पानी में खीरे का रस मिलाकर झाईयों को धोना चाहिए। इसके अलावा सुबह-शाम धनिये के कुछ दाने मुंह में डालकर चबाने चाहिए। रस को गले के नीचे उतारकर छूंछ को थूक देना चाहिए। यह काफी गुणकारी औषधि होती है। इसके अलावा, ककड़ी, खीरा, सेब, नाशपाती का रस लेना चाहिए। खीरे, ककड़ी और हरे धनिये में पोटाश तथा लवण की मात्रा होती है, जो झाईयों को दूर करते हैं। रात को धनिये के पानी में अदरक का रस मिलाकर मुंह पर लगाना चाहिए। सुबह साफ पानी से मुंह को धो डालना चाहिए। धीरे-धीरे त्वचा के सारे रोग नष्ट हो जाते हैं। 59. थकान और शरीर का टूटना : हम सभी जानते हैं कि थकान अधिक काम करने से होती है। कभी-कभी अधिक सर्दी या गर्मी में रहने, जमीन पर सोने या फिर कडे़ स्थान पर सोने से भी शरीर टूटने लगता है। इसके लिए एक बाल्टी पानी में 100 ग्राम धनिया, 2 चम्मच नमक और 4 चम्मच कड़वा तेल मिलाकर शरीर के निचले अंगों को सहते गर्म पानी में डुबोना चाहिए। थोड़ी देर में थकान और टूटन दोनों दूर हो जाते हैं। नसों में खिंचाव, मांसपेशियों में सूजन और जोड़ों में एसिड उत्पन्न हो जाने के कारण भी थकान व शरीर टूटने की शिकायत हो जाती है। विश्राम से भी रोगी को काफी लाभ मिलता है। तेज हवा में नहीं सोना चाहिए वरना और भी अधिक हानि हो सकती है। शरीर को चादर से ढककर सोने से भी शरीर का टूटना कम हो जाता है। 60. स्नायु की दुर्बलता : इस बीमारी को अंग्रेजी में नर्वस ब्रेकडाउन भी कहते हैं। इस रोग में रोगी को लगता है कि जैसे उसके शरीर की प्राणशक्ति किसी ने निचोड़ ली है। हाथ-पांव भी फूल जाते हैं। रोगी का दिल घबराने लगता है कि उसकी मृत्यु शीघ्र ही हो जाएगी। कभी-कभी जी मिचलाने लगता है। इसके लिए रोगी को 4 पत्तियां तुलसी, 10 दाने धनियां और 2 कालीमिर्च, 2 कप पानी में उबालकर चाय बनी लेनी चाहिए। फिर उसमें से थोड़ी-सी शक्कर डालकर रोगी को पिलानी चाहिए। इससे रोगी की घबराहट दूर हो जाती है और उसकी दशा प्राकृतिक हो जाती है। इसमें हल्का भोजन और आराम आवश्यक होता है। तुलसी और धनिये का रस पानी की तरह नाक में टपकाना चाहिए। 61. नींद न आने की शिकायत : नींद न आने की शिकायत लगातार कुछ सोचने, मानसिक अशांति, पेट में कब्ज, अत्यधिक थकावट, असामान्य बीमारी आदि के कारण होती है। कुछ लोग इस अवस्था में नींद की गोलियां ले लेते हैं। ऐसा कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रारम्भ में नींद तो आ जाती है। परन्तु कुछ दिनों बाद नींद की गोलियां मन को सहज हो जाती है। अत: ये अपना प्रभाव डालना बंद कर देती हैं। तब मनुष्य और अधिक परेशानी में पड़ जाता है। इसके लिए दाल-सब्जी आदि में नमक की मात्रा कम कर देनी चाहिए। हल्का भोजन लेना चाहिए यदि कब्ज हो तो उसे दूर करना चाहिए। स्वादिष्ट व सुगंध खाने वाली चीजों को छोड़ देना चाहिए। तेज-मिर्च मसाले आदि नहीं खाने चाहिए। धनिया के 25 दाने, 1 लाल इलायची, 2 कालीमिर्च को पीसकर चूर्ण बना लेना चाहिये। फिर इस चूर्ण को दो चुटकी लेकर ऊपर से गुनगुना पानी ले लेना चाहिए। पांव के तलुवें में देशी घी या सरसों का तेल मलना चाहिए। इससे तनाव कम होकर नींद आ जाती है। 62. अधिक पसीना आना : जब शरीर अधिक पसीने से भीग जाए तो समझ लेना चाहिए कि जिगर में कोई खराबी है। इसमें भूख कम हो जाती है। शरीर पसीने के बाद शिथिल (ढीला) पड़ जाता है। काम में मन नहीं लगता है। हाथ और पैर फूल जाते हैं। रोगी घबराहट का अनुभव करने लगता है। भोजन में अरुचि हो जाती है। जीभ सूखी सी और कड़वी हो जाती है। अत: व्यक्ति को 5 दाने धनिये के पपीते के साथ लेना चाहिए। अदरक और शहद को साथ लेने से भूख खुलकर लगती है। अदरक के रस को शहद के रस में मिलाकर उंगली से चाटना चाहिए। मुंह की लार जितनी अधिक पेट के अंदर जाएगी, उतना ही अधिक पेट का भारीपन घटेगा। नमक की मात्रा कम कर देने से भी अधिक पसीना आने की शिकायत दूर हो जाती है। 2 ग्राम पिसे हुये धनिये को दिन में 3 बार पानी के साथ लेने से पसीना आना कम हो जाता है। 63. पथरी : पथरी के हो जाने पर साधारण पीड़ा बहुत ही भयानक हो जाती है। यह मूत्राशय या गुर्दे में होती है। इसके प्रभाव से पेशाब करते समय दर्द, पेट में अफारा (गैस), हल्का बुखार, गुर्दे में पीड़ा आदि होने लगती है। पथरी के बनने के कई कारण बताये जाते हैं। खाने-पीने में अनियमितता, वीर्यस्राव का रुक जाना आदि कारणों से पथरी का रोग हो जाता है। इसके लिए विभिन्न दवाएं दी जाती हैं। यदि उससे लाभ नहीं होता है तो ऑपरेशन कराना पड़ता है। पथरी की शिकायत होने पर 20 ग्राम धनिये को 1 लीटर पानी में उबालते हैं। फिर इसे छानकर मूली को पीसकर उसका रस इसमें मिला लेते हैं। फिर इसमें सेंधानमक मिलाकर एक बोतल में भर लेते हैं। इस बोतल को 8 दिन तक धूप में रखते हैं। इसे 4 चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ पीने से पथरी गलकर पेशाब के साथ निकल जाती है। 50 ग्राम सूखा धनिया, 50 ग्राम सौंफ तथा 50 ग्राम मिश्री को डेढ़ किलो पानी में सुबह भिगो दें तथा शाम को छानकर पीस लें और उसी पानी में घोलकर छानकर पीयें। इस तरह सुबह को भिगोकर शाम को तथा शाम को भिगोकर सुबह को रोजाना पीयें। इससे पेशाब खुलकर आता है तथा पथरी गलकर बाहर निकल जाती है। 64. पागलपन का हल्का दौरा: जब कभी दिमाग पर भीतरी गर्मी प्रभाव छोड़ती है तो पागलपन का हल्का दौरा पड़ने लगता है। उस व्यक्ति को होश नहीं रहता है कि वह क्या कर रहा है। उसकी मुंह से उल्टी सीधी बातें निकल जाती हैं। चेतना क्षीण होने लगती है। ऐसी दशा में धनिया को शहद के साथ चाटना चाहिए। रोगी के सामने ऐसी वैसी बातें नहीं करनी चाहिए। उनको यही आभास दिलाते रहना चाहिए कि वह जो कुछ कह रहा है ठीक ही कह रहा है। 10 ग्राम से 20 ग्राम की मात्रा में धनिये के चूर्ण को सुबह और शाम के समय देने से संभोग की वजह से हुआ पागलपन ठीक हो जाता है। 65. पुट्ठों में दर्द : पुट्ठों में दर्द सर्दी-गर्मी के द्वारा विकार उत्पन्न होने से हो जाता है। इसमें रोगी को बहुत दर्द होता है। इसलिए सबसे पहले खान-पान में संयम बरतना चाहिए। इसके बाद इलाज शुरू करना चाहिए। 20 ग्राम सरसों के तेल में 50 दाने धनियां, 1 पोटी लहसुन और 1 चुटकी नमक डालकर भूनना चाहिए। बाद में इस तेल को छान लेना चाहिए। इसके बाद तेल की धीरे-धीरे मालिश करनी चाहिए। इस क्रिया से पुट्ठों में तनाव और खिंचाव कम हो जाता है। इस क्रिया के दौरान ठण्डी वस्तुएं खाना वर्जित होता है। 66. बवासीर (अर्श) : बवासीर दो प्रकार की होती है वादी बवासीर और दूसरी खूनी बवासीर। खूनी बवासीर में मस्सों से खून आता है। परन्तु बादी में गुदा के भीतर-बाहर मस्से निकल आते हैं, जिनमें खुजली मचती है। ये मस्से कांटे की तरह चुभते हैं। बवासीर अक्सर कब्ज के कारण होती है। यह बड़ा भयंकर रोग है। इससे बचने के विभिन्न उपाय हैं। जैसे भोजन सुपाच्य लेना चाहिए, पेट में कब्ज न बनने दिया जाए अधिक खाने या खाने के बाद मैथुन से बचा जाए। बादी की चीजें जैसे अमरूद, भिण्डी, अरुई, बैंगन, उड़द, अरहर की दाल तथा अधिक वसायुक्त पदार्थ नहीं खाने चाहिए। चावल और बैंगन का प्रयोग भूलकर भी न करें क्योंकि ये दोनों भोज्य पदार्थ वादी और बवासीर वाले व्यक्ति को बहुत हानिकारक होते हैं। इसके उपचार के लिए वैसलीन में पिसा हुआ कत्था, 100 दाने धनिया, 10 बूंद मिट्टी का तेल, सत्यानाशी पौधे की जड़ ये सभी चीजें पीसकर और कपडे़ में छानकर वैसलीन में मिला लेते हैं। इस मरहम को गुदा में लगाने से बवासीर के मस्से ठीक हो जाते हैं। यदि खून निकलता है तो वह भी बंद हो जाएगा। धनिये के काढ़े में मिश्री मिलाकर रोजाना 2-3 बार पीने से खूनी बवासीर ठीक हो जाती है। हरे धनिया का 1 चम्मच रस निकालकर उसमें थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह के समय पीने से खूनी बवासीर मिट जाती है। धनिये को मिश्री के साथ मिलाकर चूर्ण बना लें। 1 कप गर्म पानी में 1 चम्मच चूर्ण डालकर रोजाना सुबह-शाम पीने से मलद्वार की जलन तथा खूनी बवासीर ठीक हो जाती है। सूखे धनिये को दूध और मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से खूनी बवासीर ठीक होती है। 67. हर समय जम्हाइयां आना : यदि हम कुछ लोगों के सामने बैठे हों और उस समय जम्हाई के कारण मुंह को बार-बार फाड़ना पडे़ तो बहुत ही खराब लगता है। इसका आना भी एक रोग है। यह शरीर को आलस्य की पीड़ा में घेरे रहता है। काम में मन नहीं लगता है। यदि काम करना पडे़ तो शीघ्र ही मन ऊब जाता है। जम्हाइयां या तो शरीर में थकावट बनी रहने के कारण आती है या फिर नींद ठीक से न आने के कारण। इसके लिए धनिये का चूर्ण गर्म पानी के साथ लेना चाहिए। यदि यह बीमारी सी बन गई हो तो 20 दाने धनिये को एक लीटर पानी में उबालकर इस पानी से मुंह धोना चाहिए, जम्हाइयां आनी अपने आप ही बंद हो जाएगी। 68. मिर्गी का रोग : इस रोग में व्यक्ति को बेहोशी के दौरे पड़ने लगते हैं। मुंह से झाग भी आने लगती है। मिर्गी के दौरे अक्सर दिमाग की नाड़ियों में विकार आने से होने लगता है। मिर्गी के दौरे पड़ने के बाद लोग रोगी को जूता सुंघाते हैं, उसके सिर के बालों को पकड़कर खींचते हैं जो गलत काम है। ऐसे व्यवहार रोगी के साथ भूलकर भी नहीं करना चाहिए। दौरा पड़ने की हालत में रोगी को खाट पर लिटा देना चाहिए। इसके बाद रोगी के मुंह पर पानी के छींटे मारें, जब रोगी को होश आ जाए तो उसे धनिये के पानी में लाहौरी नमक मिलाकर पिलायें। इससे कुछ दिनों बाद रोगी को दौरे पड़ने बंद हो जाते हैं। रोगी से ऐसी बात कभी नहीं कहनी चाहिए जिससे कि उसे कुछ सोचने का अवसर मिले। चिन्ता से रोगी को बचाये रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होता है। 69. मुंह का पक जाना : इस रोग में जीभ, तालु, गलपटों आदि सभी जगहों पर छाले निकल आते हैं। इन छालों में कांटे से चुभते हैं और रोगी को दर्द भी होता है। इसके लिए देशी घी में 5 ग्राम धनियां और 5 ग्राम पिसा कत्था, दोनों चीजों को पीसकर मिला लेना चाहिए। फिर इस मरहम को छालों पर लगाकर लार टपका देनी चाहिए। 2 दिन में छाले सूखने शुरू हो जाते हैं। छालों का इलाज करने से पहले यदि पेट को साफ कर लिया जाए तो काफी लाभ होता है। कभी-2 ये छाले आंतों में होने वाली गर्मी से भी हो जाते हैं। छालों में कम नमक का फीका भोजन लेना चाहिए। दूध, नींबू की गर्म शिकंजी, दलिया, साबूदाना आदि छालों के समय काफी लाभकारी रहते हैं। 70. मूर्च्छा आना : बेहोशी आने की हालत में रोगी को अपने शरीर का होश नहीं रहता है। वह अधिक कमजोरी अनुभव करता है और आंखों के सामने अंधेरा छा जाने के कारण गिर जाता है या फिर खाट पर लेटने के साथ ही बेहोश हो जाता है। इसके लिए 1 कप पानी में 10 ग्राम धनियां और 4 पत्ते तुलसी के डालकर उबालना चाहिए जब पानी आधा शेष रह जाए तब इसे उतारकर ठंडा कर लेना चाहिए। इसके पानी को चम्मच से रोगी के मुंह में डालना चाहिए। 4-5 बूंदे पानी नथुने में भी डालने चाहिए। ऐसा करने से कुछ ही क्षणों बाद बेहोशी दूर हो जाती है। होश आ जाने पर 10 दाने धनिये के, 4 बूंद अदरक का रस और 4 बूंद तुलसी का रस शहद के साथ चटाना चाहिए और रोगी से कोई भारी काम नहीं लेना चाहिए। 71. मोटापा दूर करना : शरीर में चर्बी बढ़ जाने के कारण मोटापा पैदा हो जाता है। मोटे पुरुष या स्त्री का रक्तचाप बढ़ जाता है। इसका मुख्य लक्षण यह है कि वायु संचरण में बाधा पड़ती है। त्वचा फूल जाती है जिसके कारण शरीर पूर्णरूप से वायु ग्रहण नहीं कर पाता है। अधिक चर्बी के कारण दिल पर भी प्रभाव पड़ता है। दिल धीमी गति से कार्य करना शुरू कर देता है। इसके लिए मोटे व्यक्ति को सर्वप्रथम हल्का व्यायाम करना चाहिए। इसके अन्तर्गत सुबह-शाम टहलना, योगासन करना, चिकनाई वाले पदार्थ त्याग देना आदि क्रियाएं काफी लाभदायक होती हैं। सुबह 2 चम्मच अदरक का रस शहद के साथ लेना चाहिए। कभी भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए। चावल, राबड़ी अधिक दूध, स्नेहयुक्त पदार्थों का सेवन बंद कर देना चाहिए। अनन्नास का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए। तेल की मालिश करना भी आवश्यक होता है। औषधि के रूप में 10 ग्राम सूखा धनिया, 20 ग्राम गुलाब के सूखे फूल और मिश्री को मिलाकर 2 चुटकी सुबह और 2 चुटकी शाम को दूध के साथ लेना चाहिए। इससे चर्बी कम हो जायेगी और मोटापा दूर हो जाएगा। 72. सिर में असहनीय पीड़ा : सर्दी, जुकाम के कारण यदि सिर में दर्द हो रहा तो घबराना नहीं चाहिए। सबसे पहले तो रूई के फोहे से गला, माथा तथा सीना सेकना चाहिए। सिंकाई कम से कम 10 मिनट तक करनी चाहिए। इसके बाद पिसा हुआ धनिया पानी के साथ गर्म करके माथे पर लेप करना चाहिए। यदि सिर में झनझनाहट हो रही हो तो सबसे पहले कुछ देर के लिए आराम करना चाहिए। इसके बाद तुलसी की 2 पत्तियों को 2 कालीमिर्च के दानों के साथ पीसकर चबाना चाहिए। धनिया और तुलसी का रस मिलाकर माथे पर लगाने से आराम मिलता है। 73. मनोविकारों से मुक्ति के लिए : मन में अश्लील विचार आने, क्रोधी स्वभाव, घमंड तथा गालीगलौज, पूर्ण वार्तालाप से मन को मुक्त करने में तथा स्वप्नदोष में धनिया बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसके लिए धनिया 25 ग्राम, 5 ग्राम देशी बबूल का गोंद तथा 5 ग्राम कपूर को बारीक पीसकर व थोड़े से ताजा पानी में मिलाकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर रख लेते हैं। ये 4-4 गोली सुबह-शाम ठंडाई के साथ कुछ ही दिनों तक लेने से उपरोक्त मनोविकारों से मुक्ति मिलती है। 74. आंखों की सुरक्षा : हरे धनिये के पत्तों का रस निकालकर रोजाना 3-4 बार आंखों में डालते रहने से उनकी गर्मी शांत हो जाती है तथा आंखों की जलन, धुंध, लाली, दर्द आदि रोगों में फायदा होता है। 75. सूजाक : 250 ग्राम हरे धनिये का रस, 50 ग्राम ब्रांडी तथा 15 ग्राम चन्दन के तेल को अच्छी तरह से मिलाकर किसी कार्क वाली बोतल में भरकर 1 सप्ताह के लिए बंद रखी रहने देते हैं। इसके बाद 10-12 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से मूत्रमार्ग की जलन, मवाद आना, पीव निकलना या रुधिर टपकना आदि रुक जाता है। यह सूजाक जैसे भयंकर रोग की सबसे सरल और सबसे उपयोगी दवा है। इस रोग से ग्रसित रोगियों को इसका लाभ अवश्य उठाना चाहिए। 76. खटमल, मच्छर आदि : यदि खाट में खटमल हो गये हैं और वे रात दिन मनुष्य का खून चूसते हैं तो नौसादर, पिसा धनिया और अजवायन को तीनों को मिलाकर खाट पर बुरक दीजिए खटमल खाट को छोड़कर भाग जाएंगे। यहीं चूर्ण दीमकों को भी नष्ट करने के लिए उपयोगी होता है। इसी प्रकार धनिया स्वास्थ्य के छींटे अपने अन्य उपायों से भी लाता है। यदि हम धनिये को उपले की आग पर डाल दें घर के कोनों में बसेरा कर रहे मच्छर भाग जाएंगे। धनिये द्वारा बनाया गया धुंआ वातावरण को शुद्ध करता है। 77. विषमारक : बारिश के मौसम में घर में परदार चींटे काकरोच, घेंसे, मक्खियां आदि अपना अड्डा बना लेती हैं। उस दशा में तरह-तरह के रोग फैलने का डर बना रहता है। उस समय धनिया और नीम की पत्तियों की धूनी घर में देनी चाहिए। नीम की पत्तियों को सुखाकर धनिये के साथ पीस लेनी चाहिए। फिर इस चूर्ण को काकरोच और घेंसों पर डालना चाहिए। दोनों या तो नष्ट हो जाएंगे या फिर अपना घर छोड़ देंगे। साधारण धनियां विषनाशक (जहर को समाप्त करने वाला) भी होता है। प्रकृति ने इसमें रोगरोधक शक्ति भरी है। प्रत्येक घर के मसालेदानी में धनिये का होना आवश्यक होता है। धनिया में पेशाब के रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है। इसलिए जिसे हम जितनी मात्रा में लेते हैं। उससे अधिक यह हमारे शरीर की सफाई करता है। यह शरीर में अमृत रस बढ़ाती है तथा विषैले पदार्थों को मल या पेशाब के जरिये बाहर निकाल देती है। कुछ लोगों का कहना है कि धनिया जहर को बढ़ाता है। यदि हम उसकी बात का विश्वास कर लें तो भी धनिये से बहुत ही अधिक लाभ होते हैं। 78. धनिया दाल व सब्जी को स्वादिष्ट बनाता है : जिस साग-सब्जी में मसाले के साथ धनिये का प्रयोग किया जाता है। वह साग-सब्जी स्वादिष्ट हो जाती है। उसका मटमैला रूप निखर जाता है। खाने में स्वाद बढ़ जाता है। इसके प्रयोग से सब्जी के खराब तत्व अपने आप ही नष्ट हो जाते हैं जब साग-सब्जी ठीक प्रकार से बनती है तो इससे पेट की आग शान्त हो जाती है। मानव उसका प्रयोग रुचि के साथ करता है जोकि अनजाने में ही दवा का काम करता है। यदि हम साग-सब्जी में धनिये का प्रयोग बंद कर देते हैं तो दिनों-दिन निखार से दूर होते जाएंगे और शीघ्र ही हमें कोई न कोई बीमारी घेर लेगी। 79. धनिया वृद्धावस्था को दूर करता है : सूखा धनिया दाल तथा साग-भाजी में जरूर डालना चाहिए क्योंकि यह चेहरे की झुर्रियों को दूर करता है। इसमें ऐसे रोगों को दूर करने की शक्ति होती है जो बुढ़ापे में अक्सर हो जाया करते हैं। बूढ़ों को गर्म पानी में 10 ग्राम धनिये के दाने डालकर कुछ देर तक स्नान करना चाहिए। इस पानी में त्वचा को सुरक्षित करने की शक्ति होती है जब कभी त्वचा ढीली पड़ जाए या फिर सिर के बाल झड़ने लगे तो धनिया डालकर उबाले हुए पानी का सेवन करना चाहिए। यह शरीर में जहर को बनने नहीं देता है। इस प्रकार धनियां रोग नाशक, वृद्धावस्था को भगाने वाला तथा शरीर की शक्ति को संचित करने वाला होता है। 80. धनियां शरीर के रंग को निखारता है : धनिये में एक प्रकार का क्षारीय तत्व होता है जो त्वचा को धो देता है। इस तत्व के कारण ही शरीर में गोरापन आ जाता है। यदि हम उबले या कच्चे चनों पर धनिया को बुरक लेते हैं तो यह सोने में सुहागा का कार्य करता है। यह शरीर के भीतर पहुंचकर आंतों की गर्मी को बढ़ा देता है। फिर यह धीरे-धीरे कमजोर अंगों को सबल बना देता है। यदि किसी मनुष्य की टांगों में कमजोरी हो तो यह चलने फिरने की शक्ति को बढ़ाता है। गर्मी या सर्दी के प्रभाव को रोकता है। वरना व्यक्ति मौसम के प्रभाव से शीघ्र ही रोगी हो सकता है। 81. धनिये का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक नहीं होता : घरों में कचौड़ी बनाने के लिए पिट्ठी तैयार की जाती है परन्तु उस पिट्ठी में जब तक धनिया नहीं मिलाया जाता है तब तक पिट्ठी ठीक नहीं बन पाती है। इससे एक ओर तो कचौड़ी का स्वाद बढ़ जाता है और दूसरी ओर कचौड़ी की गर्मी दूर हो जाती है जो पेट में पहुंचकर अपनी गर्मी से आंतों को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है। आंतों के दांत नहीं होते हैं। परन्तु धनियां आंतों के दांतों का काम करता है। इससे शरीर को विनाश की ओर ले जाने वाले तत्व नष्ट हो जाते हैं। शरीर में रोगाणु पनपने नहीं पाते हैं। पानी के दूषित तत्वों को नष्ट करने की भी इसमें शक्ति है। असल में धनिया ऊर्जा को स्थायी करते हुए चलने फिरने की शक्ति को बनाएं रखता है। यदि शरीर में फोड़े-फुन्सी निकल आये तो इसके प्रयोग से वे शीघ्र ही सूख जाते हैं। यदि धनिये का पानी इस्तेमाल किया जाता है तो यह एक प्रकार का जीवन रस बनकर खून को शुद्ध करता है। 82. आग से जलना : यदि शरीर का कोई अंग आग से जल गया हो तो उस समय बडे़ धैर्य से काम लेना चाहिए। सबसे पहले उस अंग को पानी से धो लेना चाहिए या फिर उसे कुछ देर तक पानी में डाले रहना चाहिए। ऐसा करने से जलन कम होती है और आराम भी मिलता है। कुछ न हो तो कपड़े को पानी से तर करके जले हुए भाग पर रखना चाहिए। इससे जलन पर एक तरह का मलहम लग जाता है। इसके बाद घरेलू चिकित्सा करनी चाहिए। इसके लिए 50 दाने धनिया, एक टिकिया कपूर, थोड़ा सा गोले का तेल इन चीजों को खरल या किसी बर्तन में घोंटकर मलहम बना लेना चाहिए फिर इसको दिन में कई बार जले हुए अंगों पर लगाना चाहिए। कुछ ही दिनों में जले का घाव ठीक होने लगेगा और दाग भी नहीं पडे़गा। 83. कट जाना : चाकू, कैंची, छूरी आदि किसी भी शस्त्र से शरीर का कोई भी भाग किसी भी समय कट सकता है। इसलिये सबसे पहले उस स्थान का खून बंद करना चाहिए। इसके लिए उस स्थान को कसकर दबा लेना चाहिए, फिर ठण्डे पानी से कपड़े को भिगोकर उस स्थान पर रख देना चाहिए। इसके बाद कटे हुए घाव पर 10 ग्राम धनिया बारीक पीसकर घी में मिलाकर लगाना चाहिए। कुछ ही दिनों में घाव भरना या कटा हुआ स्थान जुड़ना शुरू हो जाएगा। 84. आघात की दशा : शरीर का कोई अंग कुचल जाए, चिर जाए, बिंध जाए तो इस घटना को आघात कहते हैं या फिर शरीर का कोई भाग दब जाए तो वह भी आघात की सीमा में आता है। इसके लिए यदि गुप्त चोट लगी हो तब तो दूसरा उपाय करना चाहिए परन्तु यदि खून बहने लगा हो तो सबसे पहले उसे बंद करना चाहिए। जख्म के ऊपर पानी में भीगी पट्टी बांध देनी चाहिए। यदि चोट के कारण जख्म हो गया हो तो पिसी हल्दी और पिसे धनिये को देशी घी में मिलाकर लगाना चाहिए। यह उपचार बिना धार वाले हथियार जैसे लाठी आदि के लग जाने पर भी लाभदायक होता है। यदि तेज धार वाली चीज लग गई हो सर्वप्रथम घाव को स्प्रिट से साफ करना चाहिए। इसके बाद घाव पर केवल धनिये का मलहम लगाना चाहिए। 85. मसूढ़ों से खून आना : यदि मसूढ़ों से खून आता हो तो धनिये को पानी में उबालकर धीरे-धीरे उस पानी से कुल्ले करने चाहिए। यदि शरीर में कमजोरी अधिक हो तो कपड़े को धनिये के पानी में तर करके खून निकलने वाले स्थान पर रखना चाहिए। इससे खून निकलना बंद हो जाता है। 86. सिर में चोट लगना : यदि सिर में गुम चोट लगी हो तो सरसों के तेल में पिसा हुआ धनिया डालकर उस तेल में कपड़े के फाहे को भिगोकर चोट वाले स्थान पर धीरे-धीरे सेंक करना चाहिए। चोट वाले स्थान पर धनिया की पोटली भी रखी जा सकती है। 87. स्याह (नीला) पड़ जाना : नीला दाग शरीर में खून जमा हो जाने के कारण पड़ता है। अक्सर गिर पड़ने, चोट खाने, मार-पीट आदि के कारण ऐसा होता है। उस स्थान पर रह-रहकर दर्द तथा टीस उठती है। रोगी को किसी भी दशा में चैन नहीं पड़ता है। ऐसी दशा में 10 ग्राम धनिया, 5 ग्राम हल्दी, 2 पुती लहसुन और ग्वार का पत्ता- इन चारों चीजों को सरसों के तेल में अच्छी तरह से पकाना चाहिए। फिर तेल को छानकर साफ शीशी में भर लेना चाहिए। इस तेल को रूई के फाहे पर डालकर चोट वाले स्थान पर लगाकर पट्टी बांध देने से चोट में आराम आ जाता है। 88. मोच आ जाना : ऊंची नीची जगहों पर पैर पड़ जाने या शक्ति से अधिक सामान उठाने के कारण मोच आ जाती है। उस समय नस अकड़ जाती है। इसमें एक प्रकार का खिंचाव आ जाता है। इससे रोगी को बड़ा कष्ट होता है। उसे किसी भी करवट चैन नहीं पड़ता है। ऐसी दशा में 10 ग्राम पिसा हुआ धनिया, 5 ग्राम हल्दी और 5 ग्राम जीरा को तिल्ली के तेल में अच्छी तरह से पका लेना चाहिए। कुछ देर तक मोच वाली जगह पर धीरे-धीरे मालिश करने से लाभ मिलता है। 89. बच्चों की हड्डी उतर जाना : बच्चों को इधर-उधर तथा उल्टा-सीधा घुमाने से हड्डी उतर जाती है। जिससे बच्चा बहुत तेज रोने लगता है। इसकी सीधी सी पहचान है कि बच्चे के सभी अंगों को बारी-बारी से परखना चाहिए। जब लक्षण स्पष्ट हो जाएं तो पहले धीरे-धीरे खींचकर हड्डी को यथा स्थान पर बैठाना चाहिए। हड्डी को ठीक स्थान पर बैठाने का सबसे सरल उपाय यह है कि हड्डी उतरे हुए स्थान पर एक कपड़ा बांध देना चाहिए। फिर धीरे-धीरे बांह, टांग आदि को खींचकर सही कर लेना चाहिए। हड्डी के यथा स्थान पर बैठ जाने के कारण भी दर्द होता रहता है। इसके लिए हल्दी व धनिये का तेल हड्डी उतरे हुए स्थान पर धीरे-धीरे मलना चाहिए। आधा आराम तो उसी क्षण हो जाता है। शेष दर्द 2-3 दिनों में ही रफूचक्कर हो जाता है। हड्डी के जोड़ में भी मजबूती आ जाती है। 90. डंक लगना या मारना : डंक, बिच्छू, बर्र, मधुमक्खी, आदि किसी का भी हो सकता है। इसके लिए बारीक सुई या चिमटी से सबसे पहले डंक निकालना चाहिए। इसके बाद हरा धनिया पीसकर डंक वाले स्थान पर पट्टी बांध देनी चाहिए। 20 मिनट में डंक का जहर उतरने लगता है और रोगी को आराम मिलने लगता है। डंक वाले स्थान पर सूखा धनिया पानी में पीसकर रगड़ने से भी जहर का असर कम हो जाता है। 91. कुत्ते के काटने पर :कुत्ते के काटे हुए स्थान पर थोड़ा सा धनिया, 2 चुटकी सोडा, 2 चुटकी हल्दी और 2 कली लहसुन आदि की पोटली बनाकर बांधनी चाहिए। यदि घाव अधिक गहरा हो तो इंजेक्शन भी लगवाना चाहिए। 92. चक्कर आना : आंवले और हरे धनिये के रस को पानी में मिलाकर पीने से चक्कर आना बंद हो जाता है। 93. पीलिया : पीलिया का रोग होने पर धनिये का रस पीने से लाभ पहुंचता है। 94. बच्चों के मुंह के सफेद छाले : लगभग 5 ग्राम धनिये को 100 ग्राम पानी में रात में भिगोकर सुबह मसलकर छानकर तैयार हिम, फांट या काढे़ से कुल्ले कराने से बच्चों के मुंह के सफेद छाले मिट जाते हैं। 95. थायराइड ग्रन्थि का बढ़ना : थायराइड ग्रन्थि बढ़ जाए, क्रिया उच्च या निम्न हो जाए तो 5 चम्मच सूखा साबुत धनिया 1 गिलास पानी में तेज उबालकर छानकर रोजाना सुबह और शाम रोगी को पिलाएं। 96. आंख आना : धनिये का काढ़ा तैयार करके अच्छी तरह से छान लें। अब इस काढ़े को बूंद-बूंद करके हर 2-3 घण्टों में आंखों में डालने से आंखों में आराम आता है। इस काढ़े को आंखों में डालने की शुरुआत करने से पहले आंखों में एक बूंद एरण्ड तेल (कैस्टर आयल) डाल लें। यह आंख आने और आंखों के दर्द की बहुत लाभकारी दवा है। 97. हस्तमैथुन : धनिये का काढ़ा के सेवन से हस्तमैथुन में लाभ होता है। 98. वात-कफ ज्वर : धनिया, देवदारू, कटेली और सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर प्रयोग करने से वात का बुखार समाप्त हो जाता है। इससे भोजन ठीक से पचता है और भूख भी तेज हो जाती है। 6-6 ग्राम धनिया, लाल चन्दन, नीम की छाल, गिलोय और पद्याख को लेकर लगभग 350 मिलीमीटर पानी में डालकर अच्छी तरह से पकाकर काढ़ा बना लें, जब काढ़ा आधा बच जाये, तब इसे उतारकर छान लें, फिर इस काढ़े में शहद को मिलाकर रोजाना सुबह और शाम खुराक के रूप में पीने से वात और पित्त के बुखार समाप्त हो जाते हैं। 99. दमा : धनिया और मिश्री को चावल के पानी के साथ पीसें, फिर उसी पानी को छानकर पिलाने से बालकों का खांसी और दमे का रोग नष्ट हो जाता है। दमे के रोगी को धनिये की पत्तियों के रस में सेंधानमक मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। 100. वात-पित्त का बुखार : सूखा धनिया, यव, इन्द्र, पित पापड़ा, पटोल (परवल) के पत्ते और नीम की छाल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को बनाकर 4-4 घण्टे के बाद रोगी को देने से वात-पित्त का बुखार उतर जाता है।

Saffron health benefits

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