बुधवार, 29 अप्रैल 2020

लहसुन का जादू / Don't underestimate the power of Garlic


लहसुन/ Garlic


परिचय: लहसुन का प्रयोग भारत में बहुत पहले से चला आ रहा है। यह दाल व सब्जी में प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग औषधि को बनाने में किया जाता है। लहसुन में बीज नहीं होता है तथा इसकी कलियों को ही बोया जाता है। लहसुन के पौधे 30 से 45 सेमी तक होते हैं। इसकी जड़ में ही लहसुन की कली लगती है। जिसमें कई सारी कली होती हैं। इसके पत्ते प्याज की तरह चपटे, सीधे, लंबे और नोकदार होते हैं। प्राचीन काल से ही इसे अमृत के समान माना गया है। लहसुन की दो किस्में होती हैं। लाल और सफेद। दोनों ही के गुण लगभग एक होते हैं। इसके अलावा एक कली वाला भी लहसुन होता है। जिसे एकपुती लहसुन कहते हैं। एक पुती वाले लहसुन को अंग्रेजी में शैलोट कहते हैं। इस लहसुन में भी सारे गुण होते हैं तथा इस लहसुन का उपयोग भी दाल, साग और चटनी में किया जाता है। लहसुन का तेल लकवे और वात रोगों में उपयोगी होता है। लहसुन में पाए जाने वाले तत्त्व: तत्त्व मात्रा प्रोटीन 6.3 प्रतिशत वसा 0.1 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट 29.0 प्रतिशत पानी 62.8 प्रतिशत विटामिन-सी 13 मिग्रा./100 ग्राम लौह 1.3 मिग्रा./100 ग्राम फास्फोरस 0.31 प्रतिशत कैल्शियम 0.03 प्रतिशत विभिन्न भाषाओं में लहसुन के नाम: संस्कृत लशुन, रसोन। हिन्दी लहसुन। अग्रेजी गारलिक, शैलोट। बंगाली लशुन। मराठी लसूण। गुजराती लसणा। फारसी सीर। लैटिन एलियम सैटाइवम।

 विभिन्न रोगों में लहसुन का उपयोग: 1. बाल उड़ना: लहसुन का रस बालों में लगायें और सूखने दें। इस तरह 3 बार रोज लहसुन का रस लगातार 60 दिनों तक लगायें। इससे सिर में बाल उग जाते हैं। 2. सिर की जूं: लहसुन को पीसकर नींबू के रस में मिलायें। रात को सोने से पहले सिर पर लगायें और सुबह धो लें यह क्रिया 5 दिन तक करें। ध्यान रहे कि यह आंखों पर न लगे। इससे सिर की जुंए मर जाती हैं। 3. दांत दर्द: दांतों में कीडे़ लगने या दर्द होने पर लहसुन के रस को लगाने से दर्द दूर होता है। लहसुन की कली दांत के नीचे रखकर उसका रस चूसने से दर्द जल्दी दूर होता है। लहसुन को पीसकर सरसों के तेल में मिलाकर आग पर गर्म करें। लहसुन जल जाने पर तेल को ठंडा करके छान लें। इस तेल में थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर रोजाना मंजन करें। इससे दांतों के सभी प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। लहसुन को आग पर सेंककर दांतों के नीचे दबाकर रखें। इससे दांतों को दर्द ठीक हो जाता है। 4. कफ: लहसुन को खाने से श्वास नलियों में इकट्ठा कफ आराम से बाहर निकल जाता है। यह टी.बी. के रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है। 5. दिल का दौरा: 4-5 लहसुन की कलियों को दौरे के समय ही चबाकर खाना चाहिए। ऐसा करने से दिल का दौरा पड़ने का खतरा नहीं रहता है। इसके बाद लहसुन को दूध में उबालकर देते रहना चाहिए। दिल के रोग में लहसुन देने से पेट की वायु निकल जाती है। इससे दिल का दबाव हल्का हो जाता है और दिल को ताकत मिलती है। 6. वृद्धावस्था की झुर्रियां: जो व्यक्ति रोज लहसुन चबाता है। इसके चेहरे पर झुर्रियां नहीं आती हैं। 7. प्लूरिसी: अगर फेफडे़ के पर्दे में पानी भर गया हो, बुखार हो, सांस रुक-रुक कर आती है और छाती में दर्द हो तो लहसुन पीसकर, गेहूं के आटे में मिलाकर गर्म-गर्म पट्टी बांधने से लाभ होता है। 8. क्षय (टी.बी): लहसुन खाने वालों को क्षय रोग नहीं होता है। लहसुन के प्रयोग से क्षय के कीटाणु मर जाते हैं। लहसुन का रस 3.5 से 7 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से उपवृक्क (गुर्दे) की टी.बी. या किसी भी प्रकार की टी.बी में लाभ मिलता है। 250 मिलीलीटर दूध में लहसुन की 10 कली उबालकर खाएं तथा ऊपर से उसी दूध को पीयें। यह प्रयोग लंबे समय तक करते रहने से टी.बी ठीक होती है। लहसुन की 1-2 कली सुबह-शाम खाकर ऊपर से ताजा पानी पीना चाहिए। लहसुन यक्ष्मा (टी.बी.) को दूर करने में बहुत सहायक होता है। 9. फेफड़ों की टी.बी.: लहसुन के प्रयोग से कफ गिरना कम होता है। यह रात को निकलने वाले पसीने को रोकता है, भूख बढ़ाता है और नींद अच्छी लाता है। फेफड़ों में क्षय (टी.बी) होने पर लहसुन के रस में रूई तर करके सूंघना चाहिए ताकि श्वास के साथ मिलाकर इनकी गन्ध फेफड़ों तक पहुंच जाए। इसे बहुत देर तक सूंघते रहने से लाभ होता है। खाना खाने के बाद भी लहसुन का सेवन करना चाहिए। यक्ष्मा, ग्रिन्थक्षय और हड्डी के क्षय में लहसुन खाना बहुत ही फायदेमंद है। 10. आंतों की टी.बी.: लहसुन के रस की 5 बूंदे 12 ग्राम पानी के साथ लेते रहने आंतों की टी.बी. दूर होती है।


 11. प्लीहा बढ़ना: लहसुन, पीपरामूल और हरड़ के बारीक चूर्ण को गाय के मूत्र के साथ पी लें। इससे प्लीहा का बढ़ना रुक जाता है। 12. जी मिचलाना: बस में या यात्रा करते समय जी मिचले तो लहसुन की कली को चबाना चाहिए। इससें मिचली दूर होगी। 13. निमोनिया: 1 चम्मच लहसुन का रस गर्म पानी में मिलाकर पीने से निमोनिया के रोगी के सीने का दर्द दूर होता है। 14. स्तनों का ढीलापन: नियमित 4 कली लहसुन की खाते रहने से स्तन उभरकर तन जाते हैं। 15. रक्तविकार के कारण उत्पन्न खुजली: लहसुन को तेल में उबालकर मालिश करने से खुजली में लाभ मिलता है। लहसुन को खाने से खून भी साफ होता है। 16. मक्खियां भगाना: आग पर 5 कली लहसुन और चने की दाल के बराबर हींग डाल देने से मक्खियां भाग जाती हैं। 17. पेट का कैंसर: लहसुन को रोज खाने से पेट का कैंसर नहीं होता है। अगर कैंसर हो भी जाये तो लहसुन को पीसकर पानी में घोलकर कुछ हफ्ते तक पीयें इससे कैंसर ठीक होता है। खाना खाने के बाद 3 कली लहसुन लेने से पेट साफ रहता है और पेट की पेशियों में संकोचन पैदा होता है, जिससें आंतों को काम कम करना पड़ता है। लहसुन खाने से लीवर भी उत्तेजित होता है जिससे आक्सीजन और पेट की कोशिकाओं को बल मिलता है। लहसुन को पीसकर पानी में घोलकर कुछ सप्ताह तक पीने से पेट के कैंसर में लाभ होता है। 18. आंतों के कीड़े: लहसुन के रस में शहद मिलाकर खाने से आंतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं। लहसुन को बायविडंग के चूर्ण के साथ खाने से आंतों के कीडें मरकर मल के बाहर निकल जाते हैं। 19. अरुचि: लहसुन, हरा धनियां, अदरक, मुनक्का, चीनी और सेंधानमक की चटनी बनाकर खाने से अरुचि दूर होती है और खाना भी जल्दी पचता है। 20. हैजा अपने आस-पास छिले हुए लहसुन रखने से हैजा के कीटाणु दूर हो जाते हैं। लहसुन, बिना बीज की लाल मिर्च, कच्ची हींग और कपूर इन चारों को बराबर की मात्रा में मिलाकर थोड़े से पानी में पीसकर 240 मिलीग्राम की गोलियां बना लें हर आधे घंटे के बाद 1 गोली खाने से हैजा के रोग में फायदा होता है।

 21. दर्द: लहसुन की चटनी को घी में मिलाकर खाने से दर्द दूर हो जाता है। 80 ग्राम लहसुन, 5 ग्राम एरण्ड का तेल, सेंधानमक थोड़ा सा और 1 ग्राम घी में सेंकी हुई हींग को मिलाकर बारीक पीस लें। इसे रोजाना 10 ग्राम खाने से दर्द मिट जाता है। लहसुन की 2 गांठ पीसकर 100 मिलीलीटर तिल के तेल में डालकर गर्म करके मालिश करने से दर्द दूर होता है। 22. बुखार: तेज बुखार होने पर लहसुन को कूटकर थोड़े से पानी में मिलाकर पोटली बनाकर रोगी को सुंघायें। यह प्रयोग करने से तेज बुखार भी दूर हो जाता है। लहसुन का रस दिन में 3 बार थोडे़ पानी में डालकर एक सप्ताह तक पीने से बुखार उतर जाता है। लहसुन को खाने से बार-बार आने वाला बुखार उतर जाता है। 23. मलेरिया का बुखार: अगर मलेरिया का बुखार एक निश्चित समय पर आता हो तो लहसुन का रस हाथ-पैरों के नाखूनों पर बुखार के आने से पहले लेप करें और 1 चम्मच लहसुन का रस 1 चम्मच तिल के तेल में मिलाकर जब तक बुखार न आए 1-1 घंटे के अंतराल में जीभ पर लगाकर चूसें। इस तरह यह प्रयोग 3 से 4 दिन तक करने से मलेरिया का बुखार ठीक हो जाता है। लहसुन की 3 से 4 फलियां छीलकर घी में मिलाकर खिलाने से मलेरिया की ठंड उतर जाती है। 24. हाई ब्लडप्रैशर: लहसुन के रस की 6 बूंदे 4 चम्मच पानी में मिलाकर रोजाना 2 बार पीने से हाई ब्लडप्रैशर (उच्चरक्त चाप) के रोग में लाभ मिलता है। लहसुन, पुदीना, जीरा, धनिया, कालीमिर्च और सेंधानमक की चटनी बनाकर खाने से ब्लडप्रैशर (उच्चरक्तचाप) दूर होता है। लहसुन को पीसकर दूध में मिलाकर पीने से ब्लडप्रैशर (उच्च रक्तचाप) में बहुत लाभ होता है। 25. बांझपन: सुबह के समय 5 कली लहसुन की चबाकर ऊपर से दूध पीयें। यह प्रयोग पूरी सर्दी के मौसम में रोजाना करने से स्त्रियों का बांझपन दूर हो जाता है। 26. वातरोग: लहसुन के तेल से रोजाना मालिश करें। लहसुन की बड़ी गांठ को साफ करके 2-2 टुकड़े करके 250 मिलीलीटर दूध में उबाल लें और इस बनी खीर को 6 हफ्ते तक रोजाना खाये। इससे गठिया रोग दूर हो जाता है। वातरोग में खटाई, मिठाई का परहेज करना चाहिए। लहसुन को दूध में पीसकर भी उपयोग में ले सकते हैं। लगभग 40 ग्राम लहसुन लेकर उसका छिलका निकाल लें। फिर लहुसन को पीसकर उसमें 1 ग्राम हींग, जीरा, सेंधानमक, कालानमक, सोंठ, कालीमिर्च और पीपर का चूर्ण डालकर उसके चने की तरह की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खाने से और उसके ऊपर से एरण्ड की जड़ का काढ़ा बनाकर पीने से लकवा, सर्वांगवायु, उरूस्तम्भ (जांघों की सुन्नता), पेट के कीड़े, कमर के दर्द और सारे वायु रोग ठीक हो जाते हैं। लहसुन का सूखा चूर्ण 400 ग्राम, सेंधानमक, काला नमक, सोंठ, कालीमिर्च, लेडी पीपल और हीरा हींग 6 ग्राम लें, घी में हींग को भूनकर अलग रख लें बाकी सभी चीजों को कूटकर पीस लें और उसमें भूनी हुई हींग भी मिला दें इस चूर्ण को 3-3 ग्राम सुबह-शाम पानी से लेने से वात रोग में आराम मिलता है। बूढ़े व्यक्ति अगर सुबह के समय 3-4 कलियां लहसुन खाते रहें तो उन्हें वात रोग नहीं होता है। 27. आमवात: लहसुन की कलियों को शुद्ध घी में तलकर रोजाना खाने से आमवात रोग दूर होता है। 28. घाव: शरीर में कहीं भी कटकर घाव हो जाये तो लहसुन को दबाकर उसका रस निकालकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है। दुर्गन्धित एवं दूषित क्षत या घाव हो तो रोजाना लहसुन का रस 3 भाग और पानी 4 भाग को एक साथ मिलाकर धोयें। इससे जल्द लाभ होता है। दर्द कम होता है। घाव भी जल्दी ठीक होता है। यह कार्बोनिक एसिड से अच्छा प्रतिदूषक है। 29. घाव में कीड़े: फोड़े के अन्दर के कीड़ों को मारने के लिए लहसुन को पीसकर लेप करने से रोगी के फोड़े के अन्दर के कीटाणु मर जाते हैं। 10 कली लहसुन की, चौथाई चम्मच नमक को एकसाथ पीसकर देशी घी में सेंककर घाव में लगाने से घाव के कीड़े समाप्त हो जाते हैं। 30. जहरीले कीडे़ के काटने पर: अगर शरीर के किसी स्थान पर किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया हो तो उस स्थान पर लहसुन का रस मलने से कीड़े का जहर उतर जायेगा।

31. सांप से बचने के लिए: जो लोग घर में लहसुन रखते हैं वहां सांप नहीं आता है अगर सांप आ भी जाये तो उस स्थान पर लहसुन छीलकर फेक दें। इससे सांप तुरन्त भाग जायेगा। 32. गर्मी से निकलने वाले लाल दाने: लहसुन की कलियों को पीसकर उसका रस निकाल लें। यह रस 3 दिन तक शरीर पर मलने से शरीर पर गर्मी से निकलने वाले लाल दाने मिट जाते हैं। 33. अन्दरूनी चोट: लहसुन, हल्दी और गुड़ मिलाकर लेप करने से अन्दरूनी चोट में आराम मिलता है। 34. मिर्गी: लहसुन को पीसकर तिल के तेल में मिलाकर खाने से, लहसुन और उड़द के बडे़ बनाकर तिल के तेल में तलकर खाने से या लहसुन खाने से (अपस्मार) मिर्गी रोग दूर मिट जाता है। मिर्गी के कारण बेहोश व्यक्ति को लहसुन कूटकर सुंघाने से रोगी होश में आ जाता है। लहसुन की 10 कली को दूध में उबालकर रोजाना खिलाने से मिर्गी ठीक हो जाती है। इसका सेवन लंबे समय तक करना चाहिए। लहसुन को तेल में सेंककर रोजाना खाने से मिर्गी के दौरे ठीक हो जाते हैं। एक भाग लहसुन और तीन भाग तिल को पीसकर 30 ग्राम की मात्रा में खाते रहने से ``वायु द्वारा पैदा होने वाले मिर्गी का दौरा जो 12 दिन में आता है´´, वह ठीक हो जाता है लहसुन को घी में भूनकर खाने से मिर्गी के दौरे ठीक हो जाते हैं। मिर्गी के बेहोश रोगी को लहसुन कूटकर सुंघाने से रोगी होश में आ जाता है। लहसुन की 10 कली दूध में उबालकर रोज खाने से मिर्गी रोग दूर होता है। लहसुन को तेल में सेंककर नियमित खाना भी फायदेमंद होता है। 10 ग्राम लहसुन और 30 ग्राम काले तिल को मिलाकर लगातार तीन सप्ताहं तक सेवन करने से मिर्गी का रोग दूर हो जाता है। लहसुन और बायबिडंग को गर्म किये गये दूध के साथ सुबह-शाम रोगी को पिलाने से मिर्गी या अपस्मार रोग दूर हो जाता है। भोजन से पहले लहसुन को पीसकर खाने से मिर्गी रोग दूर हो जाता है। 35. लकवा: पहले दिन लहसुन की 1 कली निगल जाये। अगले दिन बढ़ा दें रोज 1-1 बढ़ा दें 40 वें दिन 40 कली निगल जाये और फिर रोज 1-1 कम करते जायें इससे लकवा रोग मिटता है। 36. स्वप्नदोष: रात को सोने से पहले हाथ, पैर, मुंह को धोकर पोछ लें फिर लहसुन की 1 कली मुंह में चबा-चबाकर खाने से स्वप्न दोष के रोग में लाभ मिलता है। 37. पेशाब में रुकावट: नाभि के नीचे लहसुन का लेप बनाकर पट्टी बांध लें। इससे पेशाब की जलन दूर होती है और पेशाब खुलकर आता है। 38. श्वास रोग (दमा): लहसुन के रस को 10 ग्राम की मात्रा में लेकर हल्के गर्म पानी के साथ सेवन करने से अस्थमा के रोगी का श्वास का रुकना खत्म हो जाता है। लगभग 2 बूंद लहसुन का रस और 10 बूंदे कुठार का रस को शहद के साथ दिन में चार बार देने से दमा और श्वास की बीमारी ठीक हो जाती है। सोमलता, कूट, बहेड़ा, मुलहठी, अर्जुन की छाल सभी को बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, फिर इसमें भुने लहसुन को पीसकर मिला दें। इस तैयार मिश्रण को एक चम्मच की मात्रा में लेकर शहद के साथ दिन में तीन बार चाटने से दमा और श्वास की बीमारी में काफी लाभ मिलता है। लगभग 15-20 बूंद लहसुन के रस को लेकर हल्के गर्म पानी के साथ सुबह, दोपहर और शाम को खाने से दमा और श्वास की बीमारी ठीक हो जाती है। लहसुन को कुचलकर उसका रस निकालकर गुनगुना करके पिलाना श्वास रोग में लाभकारी होता है। लहुसन, तुलसी की पत्तियां और गुड़ को लेकर चटनी बनाकर खाने से दमा ठीक होता है। लहसुन के एक जवे को भूनकर सेंधानमक के साथ चबाकर खाएं। 10 बूंद लहसुन का रस, एक चम्मच शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। लहसुन की 20 कलियां व 20 ग्राम गुड़ को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें जब पानी आधा रह जाए तो इसे छानकर लहसुन की कलियां खा लें और पानी को गुनगुना ही दिन में एक बार पीयें। इससे श्वास व दमा रोग में आराम मिलता है। आराम न होने तक इसका सेवन करते रहना चाहिए। लहसुन के तेल से छाती व पीठ की मालिश करें। इससे दमा का रोग दूर होता है। मालिश करें या वायविडंग और लहसुन के रस को एक साथ पकाकर सेवन करने से पलकों का फड़कना ठीक हो जाता है। 40. पुनरावर्तक ज्वर: 2 से 3 ग्राम लहसुन के रस को घी के साथ खाली पेट सुबह सेवन करने से बुखार में आराम मिलता है।

 41. फेफड़ों का ताकतवर होना: पोथिया लहसुन की एक गांठ पीसकर 250 मिलीलीटर पानी मिले दूध में उबालें, फिर इसमें खांड मिलाकर सेवन करें। इससे फेफड़ों की कमजोरी दूर हो जाती है। 42. फेफड़ों के रोग: लहसुन के प्रयोग से कफ गिरना कम हो जाता है, इसके लिए खाना खाने के बाद लहसुन का सेवन करना चाहिए। 43. बालों के रोग: सिर के बाल उड़ने पर लहसुन को खाने से बाल फिर से उग आते हैं। 44. काली खांसी (कुकर खांसी): बच्चों की कुकर खांसी में लहसुन की माला पहनाते हैं जिससे इसकी गंध खांसने के साथ-साथ अन्दर चली जाती है और इसी का रस आधा चम्मच शहद के साथ भी पिलाते हैं। इससे काली खांसी दूर हो जाती है। लहसुन का रस दस बूंद से आधा या एक चम्मच की मात्रा में (उम्र के अनुसार) शहद मिलाकर प्रतिदिन दो-तीन बार सेवन करने से खूब लाभ मिलता है। लहसुन के रस को जैतून के तेल में मिलाकर बच्चों की छाती और पीठ पर मालिश करने से खांसी मिट जाती है। 45. खांसी: कफवाली खांसी में लहसुन की कली चबाकर उसके ऊपर से गर्म पानी पी लें। इससे छाती में जमा हुआ सारा कफ, तीन-चार दिनों में ही निकल जाएगा। 60 मिलीलीटर सरसों के तेल में लहसुन की 1 गांठ को साफ करके पकाकर रख लें। इस तेल से गले और सीने की मालिश करें तथा मुनक्का के साथ दिन में तीन बार लहसुन खाएं, ध्यान रहें इस बीच खटाई न खायें। इससे खांसी दूर हो जाती है। 20 बूंद लहसुन का रस अनार के शर्बत में मिलाकर पीने से हर तरह की खांसी में लाभ होता है। श्वास और खांसी के रोग में लहसुन को त्रिफला के चूर्ण के साथ खाने से बहुत फायदा होता है। सूखी और कफवाली खांसी में लहसुन की कली को आग में भूनकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस एक चुटकी चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है। यह खांसी की अचूक औषधि है। 5 ग्राम लहसुन का रस तथा शहद 20 ग्राम को एक साथ मिलाकर दिन में 3 बार एक-एक उंगली चटाने से लाभ होता है। लहसुन की कलियों को आग में भूनकर चूर्ण तैयार कर लें। इस चूर्ण की मात्रा एक चुटकी शहद के साथ दिन में तीन-चार बार चटाना चाहिए। एक कली लहसुन की और तीन-चार मुनक्के लेकर इसके बीज निकाल लेते हैं फिर दोनों की चटनी बनाकर सुबह-शाम खाने से लाभ मिलता है। 46. पायरिया: लहसुन का रस निकालकर 20 बूंद रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर चाटें। इसके रोजाना प्रयोग से पायरिया, मसूढ़ों की सूजन, दर्द एवं बदबू बंद हो जाती है। 47. गैस्ट्रिक अल्सर: खाना खाने के बाद चार कच्चे लहसुन की कली को खाने से आमाशयिक व्रण (जख्म) में लाभ होता है। 48. कब्ज: साग-सब्जियों में लहसुन को मिलाकर खाने से कब्ज नहीं रहती है। एक पुतिया लहसुन की कली और सोंठ 250 ग्राम अलग-अलग पीसकर आधा किलो शहद में मिलाकर रख लें। 10-10 ग्राम की मात्रा में यह मिश्रण खाने से वायु की पीड़ा मिटती है। 49. अतिझुधा भस्मक रोग (भूख अधिक लगना): 4 फांके लहुसन में घी मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है। 50. मुंह के छाले: लहसुन की 2 कलियों का रस निकालकर 1 गिलास पानी में मिलाकर कुल्ला करें। रोजाना 4 से 5 दिन तक प्रयोग करने से मुंह के छाले दूर होते हैं। लहसुन की कली को पानी के साथ पीसकर उसमें थोड़ा-सा देशी घी मिलाकर मलहम तैयार करें। इस मलहम को छालों पर लगाने से छाले खत्म होते हैं।

 51. पेट की गैस: एक कली लहसुन की लेने से पेट में गैस नहीं बनती है। पेट में अम्ल बनता है, तो लहसुन का सेवन अधिक नहीं करना चाहिए। 1 से 2 लहसुन की फांके (कली) को छीलकर बीज निकाली हुई मुनक्का के साथ भोजन करने के बाद, चबाकर खाने से ही कुछ समय के बाद ही पेट में रुकी हुई हवा बाहर निकल जाती है। लहसुन का पिसा हुआ मिश्रण 240 मिलीग्राम से 360 मिलीग्राम को घी के साथ सेवन करने से पेट में बनी गैस बाहर निकल जाती है। पेट में गैस बनने पर सुबह 4 कली लहसुन की खाएं। इससे पाचन शक्ति बढ़ती है और गैस दूर होती है। 52. योनि व गर्भाशय के रोग: लहसुन की 3-4 कली छीलकर भुनी हुई हींग 120 मिलीग्राम के साथ सुबह कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बच्चा होने के बाद गर्भाशय का जहरीला तरल पदार्थ बाहर निकल जाता है। 53. जुकाम: जुकाम में छीकें ज्यादा आने पर लहसुन खाने से फायदा होता है। लहसुन को खाने से जुकाम में बार-बार छींके आना बंद हो जाती हैं। लहसुन और तुलसी का रस 5 मिलीलीटर लेकर उसमें सौंठ का चूर्ण 2 ग्राम और कालीमिर्च का चूर्ण 1 ग्राम मिलाकर आधा लीटर गाय के दूध के साथ रोज सुबह-शाम पीयें। इससे थोडे़ ही दिनों में जुकाम में लाभ होता है। 54. दस्त के साथ ऑव आना: 1 कली लहसुन को अफीम के साथ सेवन करने से आंव का आना बंद हो जाता है। आधे चम्मच देशी घी में 5 कली लहसुन को मिलाकर पीने से आंव बंद जाता है। 55. नपुंसकता: लहसुन की एक पुत्तिया घी में भूनकर शहद के साथ खाने से कामोत्तेजना होती है। रोज लगभग 20 दिन तक 4-5 लहसुन की कलियां दूध के साथ खाने से लाभ होता है। 60 ग्राम लहसुन की कली को घी में तलकर रोजाना खाने से नपुंसकता समाप्त हो जाती है। 56. चेहरे का सौन्दर्य: लहसुन की कली को छीलकर सरसों के तेल में तलकर खाने से त्वचा की झुर्रियां मिटती हैं। 57. कान में आवाज होना: लहसुन की 2 कलियां छिलका हटाई हुई, आक (मदार) का 1 पीला पत्ता और 10 ग्राम अजवायन को एक साथ मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें और लगभग 60 मिलीलीटर सरसों के तेल में पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद जब सब जल जाये तो इसे आग पर से उतारकर बचे हुए तेल को छानकर शीशी में भर लें। इस तेल की 2-3 बूंदों को रोजाना 3-4 बार कान में डालने से कान का दर्द, कान में आवाज होना और बहरेपन का रोग ठीक हो जाता है। 58. कान का बहना: 10 ग्राम सिन्दूर और 1 कली लहसुन की लेकर लगभग 60 मिलीलीटर तिल्ली के तेल में डालकर आग पर पकाने के लिए रख दें। जब पकने पर लहसुन जल जाये तो इस तेल को आग पर से उतारकर छान लें और एक शीशी में भर दें। इस तेल की 2 बूंद रोजाना कान में डालने से कान से मवाद बहना, खुजली होना, कान में दर्द होना जैसे रोग ठीक हो जाते हैं। 4 कली लहसुन की 1 चम्मच सरसों के तेल में उबालकर कान में टपकाने से कान का दर्द, जख्म और मवाद बहना ठीक हो जाता है। 59. कान की सूजन और गांठ: लहसुन की जड़ को पानी के साथ पीसकर गर्म करके कान में लगाने से कान के पीछे की सूजन ठीक हो जाती है। 60. कान के रोग: लहसुन की 1 कली और 10 ग्राम सिन्दूर को लगभग 60 मिलीलीटर तिल के तेल में डालकर आग पर पकाने के लिए रख दें। पकने पर जब लहसुन जल जाये तो तेल को आग पर से उतारकर छान लें और शीशी में भर लें। इस तेल की 2 बूंद रोजाना कान में डालने से कान में से मवाद बहना, कान में खुजली होना और कान में अजीब-अजीब आवाजे सुनाई देना आदि रोग समाप्त हो जाते हैं। लहसुन के तेल को गर्म करके कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।

 61. बहरापन: लहसुन की 8 कलियों को 60 मिलीलीटर तिल के तेल में तलकर उसकी 2 बूंद कान में टपकाते रहने से कुछ ही दिनों में बहरापन ठीक हो जाता है। 1 चम्मच बरना का रस, 1 चम्मच लहसुन का रस और 1 चम्मच अदरक के रस को लेकर हल्का सा गर्म करके कान में डालने से कान के सभी रोग दूर हो जाते हैं। लहसुन की 8 कलियों को लगभग 60 मिलीलीटर तिल के तेल में डालकर पका लें। फिर इस तेल की 2 बूंद कान में डालने से थोड़े ही दिनों में बहरेपन का रोग ठीक हो जाता है। लहसुन के रस को हल्का सा गर्म करके या लहसुन से बने तेल की 2 बूंद रोजाना 3-4 बार कान में डालने से बहरापन दूर होता है। 62. कान का दर्द: लहसुन की 2 कलियां, नीम के 10 नये मुलायम पत्ते और 4 निंबोली को एक साथ पीसकर सरसों के तेल में डालकर अच्छी तरह से पका लें। पकने के बाद इस तेल को छानकर किसी शीशी में भर लें। इस तेल को कान में डालने से कान का जख्म, कान से मवाद बहना, कान में फुंसी होना या बहरेपन का रोग दूर हो जाता है। कान के दर्द में लहसुन के रस या उसकी कलियों को तिल के तेल में देर तक पकायें। जब रस जलकर खत्म हो जाये तो तेल को छानकर, हल्का गर्म कान में बूंद-बूंद डालने से सर्दी से पैदा होने वाले कान का दर्द दूर हो जाता है। आक के पीले पत्ते, तिल के फूल और लहसुन को पीसकर उसका रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है। 2 ग्राम लाल मिर्च, 20 ग्राम लहसुन, 2 ग्राम अजवायन, 50 मिलीलीटर तिल का तेल और 1 ग्राम सेंधानमक को 300 मिलीलीटर पानी में डालकर आग पर पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद बचे हुए तेल को कपड़े में छानकर बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है। लगभग 200 मिलीलीटर सरसों के तेल को लेकर उसके अन्दर 4 लहसुन की कलियां डालकर तेल को पका लें। पकने के बाद इस तेल को छानकर एक शीशी में भर लें। इस तेल की रोजाना 2 बूंद दिन में 4 बार कान में डालकर कान में रूई लगा दें। बिना किसी जख्म के अगर कान में दर्द हो तो पहले कान को अच्छी तरह से साफ कर लें। फिर उसके अन्दर लहसुन और अदरक का रस मिलाकर डालना चाहिए। लहसुन, अदरक और करेले को मिलाकर उसका रस निकाल लें। इस रस को कान में डालने से अगर कान में बहुत तेज दर्द हो तो वह भी दूर हो जाता है। 10 ग्राम लहसुन की कलियां, 20 मिलीलीटर तिल का तेल और 5 ग्राम सेंधानमक को एक साथ पकाकर कपड़े में छानकर गुनगुना सा ही कान में बूंद-बूंद करके डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है। 63. हिचकी का रोग: लहसुन की गंध को सूंघने से हिचकी नहीं आती है। 64. बेरी-बेरी रोग: लहसुन का रस निकालकर 10 से 30 बूंद रस की मात्रा दूध के साथ मिलाकर दिन में 2 से 3 बार पीने से बेरी-बेरी रोग में लाभ मिलता है। 65. कमर दर्द: 20 ग्राम लहसुन, 50 ग्राम सोंठ, 20 ग्राम लाहौरी नमक, इन सबको पीसकर चटनी बना लें। इसमें से 3-4 ग्राम चटनी गुनगुने पानी के साथ लें। इससे कमर दर्द में लाभ होगा। ठंडी हवा लगने से उत्पन्न कमर के दर्द में लहसुन की कलियां दूध या गर्म पानी के साथ निगलने से कमर दर्द मिट जाता है। लहसुन को छीलकर पानी में डालकर रख दें। सुबह उसमें कालानमक, भुनी हींग, सेंधानमक, सोंठ, कालीमिर्च, पीपर, अजवायन, जीरा सभी को 5-5 ग्राम चूर्ण करके मिलाएं। इस मिश्रण में से 6 ग्राम की मात्रा को एरण्ड की जड़ के काढ़े के साथ सेवन करने पर शीत लहर के कारण उत्पन्न कमर का दर्द मिट जाता है। 66. मासिकस्राव का कष्ट के साथ आना (कष्टार्तव): लहसुन को पीसकर घी में भूनकर शहद के साथ सेवन करने से मासिकस्राव का दर्द दूर होता है। 67. नष्टार्तव (बंद मासिक धर्म): लहसुन का रस 30 बूंद, प्रतिदिन दो बार दूध के साथ या लहसुन का काढ़ा 2 से 3 मिलीलीटर घी के साथ सेवन करने से तिवभारी के कारण रुकी हुई माहवारी शुरू हो जाती है। इसे गर्भवती स्त्री को नहीं देना चाहिए। इससे गर्भपात हो सकता है। 68. मासिक-धर्म संबन्धी परेशानियां: मासिक-धर्म यदि अनियमित हो तो लहसुन की दो पुतिया को प्रतिदिन सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से मासिक-धर्म नियमित रूप से आने लगता है। 69. गुर्दे की पथरी: लहसुन की पुती के साथ 2 ग्राम जवाखार पीसकर रोगी को सुबह-शाम देने से गुर्दे की पथरी बाहर निकल जाती है। 70. संग्रहणी: लहसुन की भुनी हुई पुती, 3 ग्राम सोंठ का चूर्ण, 5 ग्राम मिश्री तीनों एक साथ मिलाकर दिन में 3 बार लेने से संग्रहणी अतिसार का रोग दूर हो जाता है।

71. बवासीर (अर्श): लहसुन को घी में भूनकर खाने से बवासीर ठीक होता है। 72. चोट लगना: लहसुन की कलियों को नमक के साथ पीसकर उसकी पुल्टिस बांधने से चोट और मरोड़ में लाभ होता है। 73. उरूस्तम्भ (जांघों की सुन्नता): लहसुन एवं वायविडंग की लुगदी को गर्म कर खाने से और लहसुन से निकाले गये तेल की मालिश करने से उरूस्तम्भ ठीक हो जाता है। 74. पक्षाघात-लकवा-फालिस, फेसियल पैरालिसिस: दूध में लहसुन तथा वायविडंग डालकर उबाल लें। इसे नियमित रूप से दिन में दो बार पिलाने से अंगघात या पक्षाघात में बहुत लाभ होता है। चेहरे के लकवा में लहसुन और बायविडंग को पकाकर सुबह-शाम खाने से और लहसुन से बने तेल से मालिश करने से पक्षाघात (लकवा) में पूरा लाभ मिलता है। 500 मिलीलीटर सरसों के तेल में 100 ग्राम लहसुन, एक गोली (मटर के बराबर) अफीम, 10 लौंग, 50 ग्राम कालीमिर्च, 100 ग्राम अजवाइन को डालकर अच्छी तरह से उबालें तथा उबलने पर इसे छान लें, फिर लकवे वाले अंग पर नियमित रूप से मालिश करने से पक्षाघात ठीक हो जाता है। मक्खन के साथ लहसुन की 4 या 5 पोथियां नियमित रूप से खाने से पक्षाघात में आराम मिलता है। लहसुन की लगभग 10 पोथियां सुबह और शाम को गर्म घी के साथ पीसकर मिलाकर खाने से लकवा ठीक हो जाता है। शरीर के एक भाग में लकवा हो गया हो तो लगभग 25 ग्राम की मात्रा में छिले हुए लहसुन को पीसकर दूध में खीर की तरह गाढ़ा होने तक उबालें और गाढ़ा होने पर आंच से उतारकर ठंडा कर लें। इसे नियमित रूप से सुबह के समय खाली पेट खाने से लकवा ठीक हो जाता है। लगभग 50 ग्राम लहसुन को पीस लें। इसे 500 मिलीलीटर सरसों के तेल और एक किलो पानी को लोहे की कढ़ाई में तब तक गर्म करें जब तक कि सारा पानी जल न जाये, ठंडा होने पर नियमित सुबह शरीर पर मालिश करनी चाहिए और इसकी मालिश लगभग एक महीने तक करने से लकवा ठीक हो जाता है। 75. टांसिल: लहसुन का रस निकालकर टांसिल पर लेप करें। इससे टांसिल का बढ़ना बंद हो जाता है। 76. अग्निमान्द्यता (अपच): 1 कली लहसुन, 2 टुकड़े अदरक, आधा चम्मच धनिया के दाने और 4 कालीमिर्च के दानों को पीसकर चटनी बना लें। इसे खाना खाने के बाद चाटने से लाभ होता है। 77. आमाशय की जलन: लहसुन की 4 कच्ची कली को खाना खाने के बाद सेवन करना चाहिए। 78. अम्लपित्त: लहसुन की 1 कली को देशी घी में भूनकर पीसकर ठंडी कर लें, फिर धनिया और जीरा 5-5 ग्राम को पीसकर मिला दें। इस बने मिश्रण को दिन में सुबह, दोपहर और शाम पीने से लाभ मिलता है। लहसुन को खाली पेट सुबह खाने से अम्लपित्त शांत होती है। 79. दर्द व सूजन: दो गांठ लहसुन को पीसकर 100 मिलीलीटर तिल के तेल में मिलाकर गर्म करके लगाने से दर्द दूर हो जाता है। 80. जलोदर: लहसुन के 10 से 30 बूंद रस को दूध में मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है। इससे जलोदर में लाभ मिलता है। 2 से 3 ग्राम लहसुन को पीसकर घी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से दिल को ताकत मिलती है और जलोदर की शिकायत कम हो जाती है। 250 मिलीलीटर पानी में एक चम्मच लहसुन को डालकर गर्म कर रस छान लें। इस रस को दिन में रोज तीन बार खुराक के रूप में पीने से जलोदर की बीमारी समाप्त होती है। लहसुन का रस 10 से 12 बूंदों को दूध में मिलाकर या लहसुन का मिश्रण 2 से 3 ग्राम तक को घी में मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से दिल को ताकत मिलती है और पेशाब खुलकर और साफ आकर पेट में मौजूद पानी पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाता है।

 81. आमाशय का जख्म: लहसुन का रस 2 से 3 ग्राम की मात्रा में देशी घी के साथ पीने से आमाशय के जख्म में लाभ होता है। 82. मधुमेह का रोग: 2 लहसुन की पुतियों का रस निकालकर बेल के पत्ते के रस के साथ सुबह सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है। 83. पेट का दर्द: लहसुन का रस 3 ग्राम को थोड़ी-सी मात्रा में सेंधानमक मिलाकर खाकर ऊपर से गर्म पानी पीने से पेट का दर्द समाप्त होता है। आधा चम्मच लहसुन का रस पानी में मिलाकर पीने से पेट के दर्द में लाभ होता है। लहसुन, कालीमिर्च, घी और नमक को मिलाकर छोटी-छोटी गोली को खुराक के रूप में खाने से लाभ होता है। लहसुन के रस के 5 बूंदों को नमक के साथ सेवन करने से पेट के दर्द में लाभ होता है। 84. पेट के कीड़े: लहसुन और गुड़ को बराबर मात्रा में लेकर खाने से पेट के कीड़ें मर जाते हैं। लहसुन की चटनी बनाकर उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर सुबह और शाम पीने से लाभ होता हैं। लहसुन की एक कली को पपीते के सूखे हुए थोड़े-से बीजों के साथ पीसकर चटनी बनाकर खिलाने से पेट के कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं। 1 पुती (एक फली) लहसुन को देशी घी में भून लें, इसे आधा चम्मच अजवायन के चूर्ण और 10 ग्राम पुराने गुड़ में मिलाकर दिन में चार बार खाने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं। लहसुन के रस की 8 से 10 बूंदों को छाछ के साथ रोजाना दिन में 3 बार पीने से लाभ मिलता है। 5 लहसुन की कली को मुनक्का या शहद के साथ दिन में तीन बार 2 से 3 महीने तक पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। 85. नाक के कीड़े: 3 भाग लहसुन का रस और 4 भाग पानी को एक साथ मिलाकर उस पानी से जख्म को साफ करने से नाक के कीड़े खत्म होकर जख्म भी ठीक हो जाता है। 86. पोलियो: लहसुन खाने से पोलियो दूर रहता है। लहसुन खाने वालों को पोलियो कभी नहीं होता है। 2 या 4 लहसुन की कच्ची पोथियों को पोलियो होने पर सुबह के समय खाली पेट पानी के साथ खाने से पोलिया धीरे-धीरे दूर हो जाता है। 87. आधासीसी (माइग्रेन) अधकपारी: 30 ग्राम लहसुन को पीसकर उसका रस निकालें, फिर इस रस में लगभग 600 मिलीग्राम हींग मिला लें। इसके बाद इस मिश्रण की एक-एक बूंद नाक में डालने से आधासीसी का दर्द खत्म हो जाता है। लहसुन का रस नाक में टपकाने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है। 88. टीके से होने वाले दोष: 30 ग्राम लहसुन का मिलीलीटर 40 मिलीलीटर पानी में मिलाकर टीके के घाव को धोने से रोग सही हो जाता है। इससे घाव का दर्द भी दूर हो जाता है। 89. आक्षेप (आक्रोश के समय कंपकंपाना): दूध में लहसुन और वायविडंग को उबालकर सुबह और शाम रोगी को पिलाने से आक्षेप में बहुत लाभ होता है। 90. नजला, नया जुकाम: हफ्ते में 2 बार रात को भोजन में लहसुन खाने से सर्दी का रोग नहीं होता।

 91. वीर्य की कमी: रोज रात में 1-2 कली लहसुन जरूर खायें या लहसुन का रस शहद के साथ खाएं। इससे धातु (वीर्य) की कमजोरी, शीघ्रपतन और नपुंसकता दूर होती है। 92. अंगुलियों का कांपना: लहसुन के रस में वायविडंग को पकाकर खाने से एवं लहसुन से प्राप्त तेल की मालिश करने से अंगुलियों का कंपन ठीक हो जाता है। 93. मुर्च्छा (बेहोशी): मिर्गी से बेहोश रोगी को लहसुन को कूटकर सुंघाने से बेहोशी दूर हो जाती है। 94. गठिया रोग: 10 से 30 बूंद लहसुन के रस को 2 से 3 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है। लहसुन से प्राप्त तेल से रोगी की मालिश करने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है। लहसुन को सरसों के तेल में पकाकर मालिश करने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है। 95. दिल की धड़कन: लहसुन की तीन कलियों का रस एक गिलास पानी में डालकर रोगी को देने से दिल की बढ़ी हुई धड़कन में लाभ होगा। लहसुन को आग में भूनकर चूर्ण बना लें। उसमें 5 ग्राम गिलोय का रस और दो चुटकी प्रवाल पिष्टी मिला लें। इसके बाद इसमें से एक चुटकी चूर्ण के साथ रोगी को सेवन कराएं। 96. उच्चरक्तचाप: खाना खाने के बाद कच्चे लहसुन की एक-दो कली छीलकर पानी के साथ चबाने उच्च रक्तचाप मिटती है। लहसुन की ताजा कलियां बढ़े हुए रक्तचाप को कम कर साधारण संतुलित अवस्था में रखने में मदद करती है। लहसुन की एक कली लेना अधिक अच्छा रहता है। लहसुन खाने की विधि- सुबह खाली पेट लहसुन की दो-तीन कलियों को छील लें। फिर प्रत्येक कली के तीन-चार टुकड़े कर थोड़े पानी के साथ सुबह खाली पेट चबा लें या उन टुकड़ों को पानी के घूंट के साथ निगल ले। इस विधि से कच्चे लहसुन का सेवन करने से खून (रक्त) में कोलेस्ट्रोल की मात्रा शीघ्रता से घटती है, रक्तचाप सामान्य होता है और ट्यूमर नहीं बनता है। लहसुन का रस निकालकर 10 ग्राम मात्रा सुबह-शाम पीने से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) कम होने लगता है। 97. फोड़ा: लहसुन को पीसकर फोड़ों पर लगाने से फोड़ों के कीड़े मर जाते है और फोड़े ठीक हो जाते हैं। 98. त्वचा के रोग: शरीर में जहां पर फोड़े-फुंसियां या खुजली हो उस जगह पर लहसुन का रस लगाने से लाभ होता है। 99. खाज-खुजली: लहसुन को तेल में उबालकर शरीर पर लेप करने से खुजली ठीक हो जाती है। यह खून को भी साफ कर देता है। लहसुन की कली को पीस लें और राई के तेल में उबालकर छान लें। इस तेल से मालिश करने से त्वचा की खुजली दूर होती है। 100. चालविभ्रम (कलाया खन्ज): वायविडंग में लहसुन के रस को पकाकर सेवन करने से कलाया खन्ज रोग में हाथ व पैर का हिलना बंद हो जाता है।

 101. गुल्यवायु हिस्टीरिया: लहसुन सुंघाने से हिस्टीरिया के दौरे में लाभ मिलता है और इससे बेहोशी दूर हो जाती है। यह एक रोग है जिसमें बेहोशी या दौरे पड़ने लगते है। लहसुन का रस नाक में टपकाने से होश आता है। 102. हृदय रोग: यदि यह शंका हो कि अमुक समय हृदय में दर्द शुरू हो सकता है, तो लहसुन की चार कलियां चबाकर खा जायें। हृदय की गति रुकने की संभावना होते ही तीन-चार लहसुन की कलियों को तुरन्त चबा लेने से हार्टफेल नहीं होता। इसके पश्चात इसे दूध में उबालकर देने से काफी लाभ होता है और लहसुन को पीसकर दूध के साथ पीने से ब्लडप्रेशर में भी लाभ होता है। लहसुन हृदय रोगी के लिए अति उत्तम प्रकृति प्रदत्त औषधि है। दिल में दर्द और सांस फूलने पर लहसुन की दो-तीन कलियों को चबाकर रस चूसने से बहुत लाभ होता है। इससे पेट से गैस निकल जाने पर हृदय का दबाव भी कम होता है। लहसुन का रस 10 से 30 बूंद घी के साथ या दूध में उबालकर सेवन करने से हृदय के ऊपर का दबाव कम होकर, हृदय का दर्द नश्ट होता है। 103. चेचक (मसूरिका): लहसुन को पानी में उबाल लें। यह पानी रोगी को आधा कप सुबह और शाम को पिलाने से चेचक के रोग में लाभ होता है। घर के वातावरण को शुद्ध बनाने के लिए हवन की सामग्री के साथ लहसुन की कलियां भी जलानी चाहिए। इसमें से निकलने वाले धुंए से हवा में घूमने वाले कीड़े भी मर जाते हैं।

104) नासूर (पुराना घाव): लहसुन की पुती को पीसकर घाव पर लगाएं तथा ऊपर से पट्टी बांध दें। इसके अलावा लहसुन की चटनी सेवन करते रहने से कुछ ही दिनों में घाव ठीक हो जाता है। 105. दाद: अगर दूध पीने वाले बच्चे को (छोटे बच्चे को) दाद हो तो लहसुन को जलाकर उसकी राख को शहद में मिलाकर दाद पर लगाने से लाभ होता है। 106. पीलिया का रोग: लहसुन की चार कली पीसकर आधा कप गर्म दूध में मिलाकर पीयें । ऐसा प्रयोग चार दिन करने से पीलिया ठीक हो जाता है। 107. पसलियों का दर्द: लहसुन का रस तथा आधा चुटकी श्रृंगभस्म-दोनों को मिलाकर शहद के साथ खाने से पसलियों के दर्द में आराम मिलता है। 108. शरीर का सुन्न पड़ जाना: 10 बूंद लहसुन का रस, आधा चम्मच सोंठ और आधा चम्मच तुलसी का रस मिलाकर रोजाना सुबह-शाम लेने से सुन्न पडे़ हुए अंग ठीक होते हैं। 109. विसर्प-फुंसियों का दल बनना: चौथाई चम्मच लहसुन के रस को चौथाई कप गर्म पानी में मिलाकर रोजाना 3 बार पीने से फुंसिया ठीक हो जाती हैं। 110. मानसिक उन्माद (पागलपन): लहसुन का रस, तगर, सिरस के बीज, मुलहठी और बच को बराबर मात्रा में लेकर कूटकर चूर्ण बनाकर रख दें, इस चूर्ण को आंखों में लगाने और इसको सूंघने से पागलपन या उन्माद दूर हो जाता है।

 111. साइटिका (गृध्रसी): लहसुन पीसकर तिल के तेल में मिलाकर कुछ देर तक आग पर गर्म करें। फिर छानकर दिन में 3 से 4 बार पैरों पर मालिश करने से साइटिका के रोग में आराम मिलता है। बायबिडंग के साथ लहसुन से प्राप्त रस को पकाकर खाने से और इससे पैरों की मालिश करने से रोगी को दर्द दूर हो जाता है। 112. सिर का दर्द: कनपटी पर लहसुन की पोथियों को पीसकर लेप की तरह लगाने से सिर दर्द खत्म हो जाता है। लहसुन को शहद की 10 से 30 बूंद के साथ रोजाना खाने से या इसके रस को माथे पर लेप की तरह से लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है। जिस ओर सिर में दर्द हो रहा हो उसी ओर के नाक के नथुने में एक या दो बूंद लहसुन के रस की बूंदे डालने से आधासीसी के कारण होने वाला सिर का दर्द दूर हो जाता है। 113. सफेद दाग: लहसुन का रस सफेद दागों पर लगाने से जल्दी लाभ होता है। इस रोग में लहसुन जरूर खाना चाहिए। लहसुन के रस को निकालकर सफेद दाग पर लगाने से दाग जल्दी ठीक हो जाते हैं। हरड़ को घिसकर लहसुन के रस में मिलाकर लेप करने से सफेद दाग ठीक हो जाते है। लहसुन को खाने से भी सफेद दाग ठीक हो जाते हैं। 114. नाड़ी का दर्द: वायविडंग एवं लहसुन की लुगदी बना लें, इसे गर्म कर सेवन करें। इसे नाड़ी का दर्द खत्म होता है। 115. कण्ठ रोहिणी: लहसुन की एक-एक कली को साफ करके लगभग 60 ग्राम लहसुन लेकर तीन से चार घंटे के अन्दर रोगी को दे देते हैं। इसकी बदबू के कारण यदि रोगी खा भी न सके तो लहसुन की कलियों को छीलकर 3 दिन तक छाछ में डालकर भिगो दें। ऐसा करने से लहसुन की बदबू तो मिट जायेगी परन्तु इसके गुण समाप्त नहीं होगें। इस तरह रोजाना लहसुन खाने से जब गले की झिल्ली साफ हो जाये तो पूरे दिन में लगभग 60 ग्राम लहसुन रोगी को खिलाया करें। यदि रोगी कोई बच्चा हो तो 20 से 30 बूंद लहसुन का रस हर 3 से 4 घंटे के अन्दर शर्बत में मिलाकर रोगी बच्चे को दें। लगभग 50 ग्राम लहसुन की कली 4 घंटे तक चूसने से रोहिणी रोग में लाभ होता है। बच्चों को लहसुन का रस शर्बत में मिलाकर पिलाना चाहिए। इसकी कलियों का बार-बार रस देते रहना चाहिए। 116. कंठशालूक (गले में गांठ): लहसुन को बारीक पीसकर उसे कपडे़ पर लगाकर पट्टी बना लें फिर उसे गांठ वाले स्थान पर लगायें। इससे गले की गांठे दूर हो जाती हैं। लहसुन का लेप तैयार करके उसे एक कपड़े के टुकड़े पर मल दें। अब उसे हल्की आग पर गर्म करने के लिए रख दें और बाद में उसे आग पर से उतारकर निचोड़कर उसका रस निकाल लें। इस रस के बराबर ही शहद मिलाकर टांसिल पर लगाने से लाभ मिलता है। 117. सर्दी (जाड़ा) अधिक लगना: लगभग 10 से 30 बूंद लहसुन के रस की या 2 से 3 ग्राम की मात्रा में लहसुन के काढ़े को शहद के साथ रोजाना खाने से शीत ऋतु में लगने वाली आवश्यकता से अधिक सर्दी नहीं लगती है। सर्दी के कारण होने वाले रोग भी दूर रहते हैं। 118. शरीर में सूजन: लहसुन, गिलोय, गोखरू, मुण्डी, पुनर्नवा और त्रिफला का काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने से गुर्दे की खराबी के कारण होने वाली सूजन दूर हो जाती है। लहसुन, बेलगिरी, कचूर, ग्वारपाठा और आंबाहल्दी को पीसकर लेप की तरह से लगाने से किसी कीड़े के कारण काटने से होने वाली सूजन दूर हो जाती है। लगभग 10 से 30 बूंद लहसुन के रस को दूध में मिलाकर या 2 से 3 ग्राम लहसुन के काढ़े को घी में मिलाकर खाने से हृदय मजबूत होता है और पेशाब खुलकर आता है इससे शरीर की सूजन खत्म हो जाती है। 119. गले के रोग: लहसुन को सिरके में भिगोकर खाने से गले का दर्द और रगो (नसों) का ढीलापन दूर होता है। लहसुन की एक गांठ को पीसकर पानी में मिलाकर गर्म कर लें। फिर उस पानी को छानकर गरारे करने चाहिए। गले में काग हो जाने पर लहसुन के रस को शहद में मिलाकर रूई के फाये से काग पर लगाएं। टांन्सिलाइटिस (गले में गांठ) होने पर लहसुन को बारीक पीसकर गर्म पानी में मिलाकर गरारे करने से लाभ होता है। 120. गर्दन में दर्द: लहसुन के तेल को सरसों के तेल में मिलाकर गर्दन पर लगाएं।

 121. आवाज का बैठ जाना: गला बैठ जाना, टान्सिल (गले की गांठे) और गले में दर्द होने पर गर्म पानी में लहसुन को पीसकर मिला लें फिर उस पानी को छानकर गरारे करें। इससे बंद आवाज खुल जाती है। पानी में एक कली लहसुन का रस और फूली हुई फिटकरी को पानी में डालकर कुल्ला करने से बैठी हुई आवाज में लाभ होता है। लहसुन को दीपक की लौं में भूनकर पीस लें। उसमें मुलहठी का चूर्ण मिला लें। फिर इसके 2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ सुबह और शाम सेवन करने से बैठी हुई आवाज ठीक हो जाती है। गर्म पानी में लहसुन का रस मिलाकर सुबह-शाम गरारे करने से गले में लाभ होता है। लहसुन को पीसकर गर्म पानी में मिलाकर बार-बार गरारे करने से सिर्फ दो-तीन बार में ही गला साफ हो जाता है। एक बार में कम से कम 10 मिनट तक लगातार गरारे करें।

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

क्षय रोग (टी.बी.) Or (Tuberculosis)

क्षय रोग (टी.बी.) (Tuberculosis)

जानकारी:-

क्षय रोग को हिन्दी में राज्यक्ष्मा और टी.बी. कहते हैं तथा एलोपैथी में इसे ट्यूबरक्लोसिस कहा जाता है। इस रोग के हो जाने पर रोगी व्यक्ति का शरीर कमजोर हो जाता है। क्षय रोग के हो जाने पर शरीर की धातुओं यानी रस, रक्त आदि का नाश होता है। जब किसी व्यक्ति को क्षय रोग हो जाता है तो उसके फेफड़ों, हडि्डयों, ग्रंथियों तथा आंतों में कहीं इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।

क्षय रोग (टी.बी.) के लक्षण-

         जब किसी स्त्री तथा पुरुष को क्षय रोग हो जाता है तो उसका वजन धीरे-धीरे घटने लगता है तथा थकान महसूस होने लगती है। इसके साथ-साथ रोगी को खांसी तथा बुखार भी हो जाता है। रोगी व्यक्ति को भूख लगना कम हो जाता है तथा उसके मुंह से कफ के साथ खून भी आने लगता है। इस रोग में किसी-किसी रोगी के शरीर पर फोड़े तथा फुंसियां होने लगती हैं।

क्षय रोग तीन प्रकार का होता है-

फुफ्सीय क्षय

पेट का क्षय

अस्थि क्षय

क्षय-

          इस प्रकार का फुफ्फसीय क्षय रोग जल्दी पहचान में नहीं आता है। यह रोग शरीर के अन्दर बहुत दिनों तक बना रहता है। जब यह रोग बहुत ज्यादा गंभीर हो जाता है तब इस रोग की पहचान होती है। क्षय (टी.बी.) रोग किसी भी उम्र की आयु के स्त्री-पुरुषों को हो सकता है लेकिन अलग-अलग रोगियों में इसकी अलग-अलग पहचान होती है।

फुफ्फसीय क्षय रोग की पहचान-

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को सिर में दर्द होता रहता है तथा रोगी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होती है।

 पीड़ित रोगी की पाचनशक्ति खराब हो जाती है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी की हडि्डयां गलने लगती हैं तथा रोगी व्यक्ति के शरीर में आंख-कान की कोई बीमारी खड़ी होकर असली रोग पर पर्दा डाले रहती है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी की नाड़ी तेजी से चलने लगती है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी की जीभ लाल रंग की हो जाती है और रोगी व्यक्ति के शरीर का तापमान बढ़ जाता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को नींद नहीं आती है तथा जब वह चलता है या सोता है तो उसका मुंह खुला रहता है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है तथा रोगी व्यक्ति का चेहरा पीला पड़ जाता है तथा रोगी व्यक्ति के चेहरे की चमक खो जाती है।

रोगी व्यक्ति के शरीर से पसीना आता रहता है तथा उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी को कभी-कभी थूक के साथ खून भी आने लगता है। इसलिए रोगी व्यक्ति को अपने थूक का परीक्षण (जांच) समय-समय पर करवाते रहना चाहिए।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को तेज रोशनी अच्छी नहीं लगती है तथा वह कुछ न कुछ बड़बड़ाता रहता हैं और उसके दांत किटकिटाते रहते हैं।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी को भूख नहीं लगती है, भोजन का स्वाद अच्छा नहीं लगता है तथा उसके शरीर का वजन दिन-प्रतिदिन कम होता जाता है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी जब सुबह के समय में उठता है तो भोजन करने के बाद उसको खांसी आती है और उसके सीने में तेज दर्द होने लगता है।

पेट का क्षय (टी.बी.):-

          इस क्षय रोग की पहचान भी बड़ी मुश्किल से होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के पेट के अन्दर गांठे पड़ जाती है।

पेट का क्षय रोग के लक्षण-

पेट के क्षय (टी.बी.) रोग से पीड़ित रोगी को बार-बार दस्त आने लगते हैं।

रोगी व्यक्ति के शरीर में अधिक कमजोरी हो जाती है और उसके शरीर का वजन दिन-प्रतिदिन घटता रहता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी के पेट में कभी-कभी दर्द भी होता है।

हड्डी का क्षय रोग:-

        इस रोग के कारण रोगी की हड्डी बहुत अधिक प्रभावित होती है तथा हड्डी के आस-पास की मांसपेशियां भी प्रभावित होती हैं।

हड्डी के क्षय रोगी की पहचान-

          इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर पर फोड़े-फुंसियां तथा जख्म हो जाते हैं और ये जख्म किसी भी तरह से ठीक नहीं होते हैं।

क्षय रोग (टी.बी.) होने का कारण-

क्षय रोग उन व्यक्तियों को अधिक होता है जिनके खान-पान तथा रहन-सहन का तरीका गलत होता है। इन खराब आदतों के कारण शरीर में विजातीय द्रव्य (दूषित द्रव्य) जमा हो जाते हैं और शरीर में धीरे-धीरे रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

क्षय रोग ट्यूबरकल नामक कीटाणुओं के कारण होता है। यह कीटाणु ट्यूबरकल नामक कीटाणु फेफड़ों आदि में उत्पन्न होकर उसे खाकर नष्ट कर देते हैं। यह कीटाणु फेफड़ों, त्वचा, जोड़ों, मेरूदण्ड, कण्ठ, हडि्डयों, अंतड़ियों आदि शरीर के अंग को नष्ट कर देते हैं।

क्षय रोग का शरीर में होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति का कम हो जाना है तथा शरीर में विजातीय द्रव्यों (दूषित द्रव्य) का अधिक हो जाना है।

क्षय रोग व्यक्ति को तब हो जाता है जब रोगी अपने कार्य करने की शक्ति से अधिक कार्य करता है।

शौच तथा पेशाब करने के वेग को रोकने के कारण भी क्षय रोग हो जाता है।

किसी अनुचित सैक्स संबन्धी कार्य करके वीर्य नष्ट करने के कारण भी क्षय रोग हो सकता है।

अधिक गीले स्थान पर रहने तथा धूल भरे वातावरण में रहने के कारण भी क्षय रोग हो जाता है।

प्रकाश तथा धूप की कमी के कारण तथा भोजन सम्बंधी खान-पान में अनुचित ढंग का प्रयोग करने के कारण भी क्षय रोग हो सकता है।

अधिक विषैली दवाइयों का सेवन करने के कारण भी क्षय रोग हो सकता है।

क्षय रोग की अवस्था 3 प्रकार की होती है-

क्षय रोग की पहली अवस्था-

           क्षय रोग की अवस्था के रोगियों का उपचार हो सकता है। इस अवस्था के रोगियों को खांसी उठती है तथा खांसी के साथ कभी-कभी कफ भी आता है, तो कभी नहीं भी आता है तो कभी-कभी कफ में रक्त के छींटे दिखाई देते हैं। रोगी व्यक्ति का वजन घटने लगता है। इस अवस्था का रोगी जब थोड़ा सा भी कार्य करता है तो उसे थकावट महसूस होने लगती है और उसके शरीर से पसीना निकलने लगता है। पीड़ित रोगी को रात के समय में अधिक पसीना आता है और दोपहर के समय में बुखार हो जाता है तथा सुबह के समय में बुखार ठीक हो जाता है।

क्षय रोग की दूसरी अवस्था:-

           क्षय रोग की दूसरी अवस्था से पीड़ित रोगी के शरीर में जीवाणु उसके फेफड़े में अपना जगह बना लेते हैं जिस कारण शरीर का रक्त और मांस नष्ट होने लगता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को दोपहर के बाद बुखार होने लगता है तथा उनके जबड़े फूल जाते हैं और उसके मुंह का रंग लाल हो जाता है। रोगी व्यक्ति को रात के समय में अधिक पसीना आता है। क्षय रोग की इस अवस्था से पीड़ित रोगी के पेट की बीमारी बढ़ जाती है तथा उसे सूखी खांसी होने लगती है। इस अवस्था के क्षय रोग से पीड़ित रोगी के कफ का रंग सफेद से बदलकर नीला हो जाता है और उसके कफ के साथ रक्त भी गिरना शुरू हो जाता है। रोगी व्यक्ति को उल्टियां भी होने लगती हैं तथा उसके शरीर का वजन कम हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी का मुंह चपटा हो जाता है तथा कफ बढ़ जाता है। रोगी के मुंह में सूजन हो जाती है। रोगी के बगलों में कभी-कभी सुइयां सी चुभती प्रतीत होती हैं। यह अवस्था बहुत ही कष्टदायक होती है।

क्षय रोग की तीसरी अवस्था:-

          इस अवस्था के रोग से पीड़ित रोगी के दोनों फेफड़े खराब हो जाते हैं तथा रोगी का कण्ठ भी रोगग्रस्त हो जाता है। रोगी व्यक्ति को दस्त लग जाते हैं। रोगी की नाक पतली हो जाती है तथा उसके नाखूनों के भीतर का भाग काला पड़ जाता है। रोगी की कनपटियां अन्दर धंस जाती हैं। उसे अपने घुटने के निचले भाग में दर्द महसूस होता रहता है। पैरों की एड़ियों का ऊपरी भाग सूज जाता है तथा रोगी को खून की उल्टियां होने लगती हैं। इस अवस्था के क्षय रोग से पीड़ित रोगी की भूख खुल जाती है। इस अवस्था से पीड़ित रोगी सोचता है कि उसका रोग ठीक हो गया है। लेकिन इस अवस्था से पीड़ित रोगी बहुत कम ही बच पाते हैं।

क्षय रोग के लिए एक विशेष सावधानी:-

          क्षय रोग (टी.बी.) एक प्रकार का छूत का रोग होता है। इसलिए इस रोग से पीड़ित रोगी के कपड़े, बर्तन तथा रोगी के द्वारा प्रयोग की जाने वाली चीजों को अलग रखना चाहिए, ताकि कोई अन्य उसे उपयोग में न ला सके क्योंकि यदि कोई व्यक्ति रोगी के कपड़े या उसके द्वारा उपयोग की जाने वाली चीजों का उपयोग करता है तो उसे भी क्षय रोग होने का डर रहता है।

क्षय रोग (टी.बी.) का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को नारियल का पानी और सफेद पेठे का रस प्रतिदिन पीना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

पालक की ताजी पत्ती तथा 2 चम्मच मेथी दाने का काढ़ा 20 ग्राम शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन दिन में 3 बार सेवन करने से क्षय रोग (टी.बी.) कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक फलों तथा सलाद का सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

क्षय रोग को ठीक करने के लिए अंगूर, अनार, अमरूद, हरी सब्जियों का सूप, खजूर, बादाम, मुनक्का, खरबूजे की गिरियां, सफेद तिलों का दूध, नींबू पानी, लहसुन, प्याज आदि का सेवन करना चाहिए, जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

कुछ दिनों तक शहद के साथ आंवले के रस का सेवन करने से क्षय रोग कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को नीम या पीपल के पेड़ की छाया में आराम करना चाहिए तथा लम्बी गहरी सांस लेनी चाहिए और सुबह के समय में सैर के लिए जाना चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को नीम के पानी का एनिमा लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए। फिर इसके बाद कटिस्नान और कुंजल क्रिया करनी चाहिए। रोगी व्यक्ति को छाती पर मिट्टी की गीली पट्टी करनी चाहिए और सुबह के समय में सूर्य के प्रकाश में शरीर की सिंकाई करनी चाहिए और मानसिक चिंता को दूर करना चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं जिनको करने से क्षय रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- गोमुखासन, मत्स्यासन, अत्तान मण्डूकासन, कटिचक्रासन, ताड़ासन, नौकासन, धनुरासन तथा मकरासन आदि।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को शुद्ध और खुली वायु में रहना चाहिए और सुबह के समय में धूप की रोशनी को अपने शरीर पर पड़ने देना चाहिए क्योंकि सूर्य की रोशनी से क्षय रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन बकरी का दूध पीने के लिए देना चाहिए क्योंकि बकरी के दूध में क्षय रोग के कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति होती है।

यदि रोगी व्यक्ति के पेट में कब्ज बन रही हो तो उसे प्रतिदिन एनिमा क्रिया करानी चाहिए ताकि पेट साफ हो सके और इसके साथ-साथ इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए।

मीठे आम के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर रोगी को कम से कम 25 दिनों तक सेवन कराने से क्षय रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

लहसुन तथा प्याज की 8 से 10 बूंदों में 1 चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन चाटने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

प्रतिदिन 2 किशमिश तथा 2 अखरोट खाने से क्षय रोग (टी.बी.) कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को खाने के साथ पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि खाना खाने के लगभग 10 मिनट बाद पानी पीना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अरबी, चावल, बेसन तथा मैदा की बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1 बार कालीमिर्च, तुलसी, मुलहठी, लौंग तथा थोड़ी-सी अजवाइन को पानी में उबालकर पानी पीने को दें। इस काढ़े को हल्का गुनगुना सा पीने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन तुलसी की 5 पत्तियां खाने को देनी चाहिए जिसके फलस्वरूप इस रोग का प्रभाव कम हो जाता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में नाश्ता करने से पहले गहरी नीली बोतल का सूर्यतप्त जल 50 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन कम से कम 2-3 बार पीने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में सूर्य के सामने पीठ के बल लेटकर अपनी छाती के सामने एक नीले रंग का शीशा रखकर उस प्रकाश को छाती पर पड़ने देना चाहिए। रोगी व्यक्ति को इस तरीके से लेटना चाहिए कि उसका सिर छाया में हो और छाती वाला भाग सूर्य की किरण के सामने हो। इसके बाद नीले शीशे को रोगी की छाती से थोड़ी ऊंचाई पर इस प्रकार रखना चाहिए कि सूर्य की किरणें नीले शीशे में से होती हुई रोगी की छाती पर पड़ें। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से क्षय रोग ठीक हो जाता है।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में खुली हवा में गहरी सांस लेनी चाहिए तथा कम से कम आधे घण्टे तक ताजी हवा में टहलना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में कम से कम 15 मिनट तक हरी घास पर नंगे पैर चलना चाहिए।

यदि रोगी व्यक्ति प्रतिदिन सुबह के समय में खुली हवा में आराम से लेटकर कम से कम 10 मिनट तक शवासन क्रिया करे तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है।

रोगी व्यक्ति को नहाने से पहले प्रतिदिन अपने पूरे शरीर पर घर्षण स्नान करना चाहिए तथा स्पंज बाथ रगड़-रगड़ कर करना चाहिए।

रोगी को नहाने से पहले अपने पेड़ू पर गीली मिट्टी की पट्टी से 10 मिनट लेप करना चाहिए और इसके बाद अपने पूरे शरीर पर मालिश करनी चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को अधिक पसीना आ रहा हो तो थोड़ी देर के लिए उसे रजाई ओढ़ा देनी चाहिए ताकि पसीना निकले और फिर 10 मिनट बाद ताजे स्वच्छ जल से उसे स्नान करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को उपचार कराते समय अपनी मानसिक परेशानियों तथा चिंताओं को दूर कर देना चाहिए।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी यदि नीम की छाया में प्रतिदिन कम से कम 1 घण्टे के लिए आराम करें तो उसे बहुत अधिक आराम मिलता है।

नोट: 

1)क्षय (टी.बी): लहसुन खाने वालों को क्षय रोग नहीं होता है। लहसुन के प्रयोग से क्षय के कीटाणु मर जाते हैं। लहसुन का रस 3.5 से 7 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से उपवृक्क (गुर्दे) की टी.बी. या किसी भी प्रकार की टी.बी में लाभ मिलता है। 250 मिलीलीटर दूध में लहसुन की 10 कली उबालकर खाएं तथा ऊपर से उसी दूध को पीयें। यह प्रयोग लंबे समय तक करते रहने से टी.बी ठीक होती है। लहसुन की 1-2 कली सुबह-शाम खाकर ऊपर से ताजा पानी पीना चाहिए। लहसुन यक्ष्मा (टी.बी.) को दूर करने में बहुत सहायक होता है। 
2. फेफड़ों की टी.बी.: लहसुन के प्रयोग से कफ गिरना कम होता है। यह रात को निकलने वाले पसीने को रोकता है, भूख बढ़ाता है और नींद अच्छी लाता है। फेफड़ों में क्षय (टी.बी) होने पर लहसुन के रस में रूई तर करके सूंघना चाहिए ताकि श्वास के साथ मिलाकर इनकी गन्ध फेफड़ों तक पहुंच जाए। इसे बहुत देर तक सूंघते रहने से लाभ होता है। खाना खाने के बाद भी लहसुन का सेवन करना चाहिए। यक्ष्मा, ग्रिन्थक्षय और हड्डी के क्षय में लहसुन खाना बहुत ही फायदेमंद है।
3. आंतों की टी.बी.: लहसुन के रस की 5 बूंदे 12 ग्राम पानी के साथ लेते रहने आंतों की टी.बी. दूर होती है।

वीर्य की कमी or Lack of semen


वीर्य की कमी 

परिचय :
शारीरिक और मानसिक असंतुलित की स्थिति में शरीर के अन्दर वीर्य नहीं बन पाता या ठहर नहीं पाता और इस कारण शरीर तेजहीन, उदास और निष्काम हो जाता है। ऐसी स्थिति में वीर्य बन भी जाता है तो पतला या बिना शुक्र के ही बन पाता है जिसे हम वीर्य की कमी कहते हैं।

कारण :
वीर्य की कमी के कई कारण होते है। जैसे हस्तमैथुन, अधिक सहवास, खान-पान में सही देखभाल न करना, स्वप्नदोष, कमजोरी, मानसिक कमजोरी, चिन्ता करना आदि।

लक्षण :

हमेशा उदास सा रहना, किसी काम में मन का न लगना, सुस्ती, कमजोरी, अपंगता और मानसिक कमजोरी आदि के लक्षण वीर्य की कमी में देखे गये हैं।

परहेज :

गर्म मिर्च मसालेदार पदार्थ और मांस, अण्डे आदि, हस्तमैथुन करना, अश्लील पुस्तकों और चलचित्रों को देखना, बीड़ी-सिगरेट, चरस, अफीम, चाय, शराब, ज्यादा सोना आदि बन्द करें।

चिकित्सा :

1. चोब चीनी : चोब चीनी को दूध में उबालकर 3 से 6 ग्राम को मस्तगी, इलायची और दालचीनी के साथ सुबह-शाम खाने से धातु (वीर्य) की कमी दूर होती है।

2. छोटी माई : छोटी माई का चूर्ण 2 से 4 ग्राम सुबह-शाम खाने से धातु (वीर्य) की कमी व कमजोरी दूर होती है।

3. गुरुच : गुरुच का चूर्ण आधे से एक ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ खाने से लाभ होता है।

4. बेल : बेल की जड़ की छाल को जीरे के साथ पीसकर घी में मिलाकर सुबह-शाम पीने से वीर्य का पतलापन दूर होता है।

4. गुंजा : गुंजा की जड़ 2 ग्राम को दूध में पकाकर रोज रात को खाना खाने से पहले खाने से वीर्य के सभी रोग खत्म हो जाते हैं।

5. गुलशकरी : गुलशकरी की जड़ 6 ग्राम से 10 ग्राम को मिश्री मिले दूध के साथ दिन में सुबह और शाम खाने से वीर्य की कमी दूर होती है।

6. शतावरी : शतावरी का चूर्ण 10 ग्राम से 20 ग्राम चीनी और दूध के साथ पेय बना कर सुबह-शाम सेवन करने से धातु (वीर्य) का पतलापन मिट जाता है।

7. सिरस :

सिरस के बीजों का चूर्ण 1 से 2 ग्राम मिश्री मिले गाय के दूध के साथ सुबह-शाम खाने से लाभ मिलता है।
सिरस की छाल और फूल बराबर मात्रा में पीसकर 30 दिनों तक रोज 1 चम्मच सुबह-शाम गर्म दूध के साथ फंकी लेने से वीर्य गाढ़ा होकर मर्दाना ताकत बढे़गी तथा शुक्राणुओं की वृद्धि होती है।
सिरस के बीजों का 2 ग्राम चूर्ण, दोगुनी चीनी मिलाकर रोज गरम दूध के साथ सुबह-शाम लेने से वीर्य बहुत गाढ़ा हो जाता है।

8. मखाना : मखाना की खीर बराबर रूप से खाने से वीर्य की कमी दूर होती है।

9. मुनक्का : मुनक्का खाने से धातु में वृद्धि होती है।

10. छुहारा : छुहारा बराबर रूप से दूध में उबालकर खाने से वीर्य बढ़ता है

11. कलम्बो ( करनी ) : कलम्बो (करनी) का साग रोज खाने से शुक्र की कमी दूर होती है और जल्द लाभ नजर आता है

12. काहू : काहू के बीज का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम मिश्री मिले दूध के साथ खाने से वीर्य गाढ़ा होता है

13. प्याज : प्याज और अदरख का रस बराबर भाग में लेकर रोज सुबह-शाम शहद के साथ खाने से खोयी हुई जवानी लौट आती है।

14. हत्था जोरी : हत्था जोरी के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) के मिश्रण 40 ग्राम से 80 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से वीर्य की कमी और वीर्य की कमजोरी दूर होती है।

15. उड़द : उड़द की दाल को पीसकर नमक, कालीमिर्च, जीरा, हींग, लहसुन अदरक आदि को डालकर घी में तलकर दही में मिलाकर खाने से वीर्य बढ़ता है।

16. शिलाजीत : थोड़ी मात्रा में गाय के दूध में घोल कर रोज सुबह-शाम 2-3 महीने तक खाने से धातु (वीर्य) की कमजोरी और अन्य बीमारी दूर हो जाती है।

17. दालचीनी :

दालचीनी के तेल में 3 गुना जैतून का तेल मिलाकर शिश्न पर लगाने से मर्दानगी लौट आती है। ध्यान रहे इस पर ठंड़ा पानी न पड़े।
दालचीनी का चूर्ण कर एक चम्मच की मात्रा में खाना खाने के बाद रोज 2 बार दूध के साथ लेने से लाभ होता है।

18. आंवला : रोजाना एक बड़े आंवले के मुरब्बे को खाने से मर्दाना ताकत आती है।

19. खजूर : खजूर रोज गर्म दूध के साथ खाने से कुछ ही दिनों में वीर्य बढ़ जाता है।

20. केसर : केसर को दूध में कुछ दिनों तक डालकर खाने से शीघ्रपतन दूर हो जाता है।

21. अनार : अनार के छिलके का रस शहद के साथ रोज सुबह-शाम लेने से स्वप्नदोष दूर हो जाता है।

22. सिंघाड़ा : सिघाडे़ के आटे मे बबूल का गोंद, देशी घी और मिश्री मिलाकर लगभग 30 ग्राम मात्रा में गर्म दूध के साथ लेने से धातु (वीर्य) की कमी दूर होती है।

23. बादाम : कालीमिर्च और बादाम की गिरी बराबर भाग में लेकर थोड़ा-सा सोंठ मिलाकर चूर्ण कर लें। भोजन के बाद गर्म दूध के साथ खाने से यह रोग दूर हो जाता है।

24. शीशम : रात में एक मिट्टी के बर्तन में पानी रखें शीशम के हरे और कोंमल पत्तों को रखकर ढ़क दें। सुबह इन्हें निचोड़कर छान लें और ताल मिश्री को मिलाकर खाने से लाभ होता है।

25. शीतलचीनी : 2 चम्मच शीतल चीनी पानी के साथ लेने से स्वप्नदोष में लाभ होता है।

26. तुलसी :

तुलसी के बीजों को पीसकर पानी के साथ या बीजों को गुड़ के साथ कुछ दिनों तक लेने से धातु (वीर्य) की कमी दूर होती है।
तुलसी के बीजों का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में लेकर पुराने गुड़ के साथ बराबर मात्रा में खाने के बाद एक कप दूध सुबह-शाम नियमित रूप से कुछ महीनों तक लेने से सेक्स सम्बन्धी सभी समस्याएं दूर हो जाती है।
3 ग्राम तुलसी के बीज या जड़ का चूर्ण बराबर की मात्रा में पुराने गुड़ में दूध के साथ सेवन करने से पुरुषत्व की वृद्धि होती है। इससे पतला वीर्य गाढ़ा होता है तथा वीर्य की वृद्धि होती है।
तुलसी के बीज 60 ग्राम और मिश्री 75 ग्राम लें। इन दोनों को पीसकर सुरक्षित रख लेते है। इसमें प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय के दूध से सेवन करना चाहिए।

27. कसेरू : कसेरू के छिलके को हटाकर रस निकालें और दूध, मिश्री के साथ रोज पीने से वीर्य की वृद्धि होती है।

28. सोंठ : सोंठ को गर्म पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। उसमें थोड़ी हल्दी और गुड़ को डालकर पीने से धातु (वीर्य) की कमजोरी दूर होती है।

29. लाजवन्ती : लाजवन्ती के बीजों का चूर्णकर के दूध के साथ खाने से लाभ होता है।

30. धनिया : धनिया का चूर्ण बनाकर ईसबगोल की भूसी और मिश्री मिलाकर गर्म दूध के साथ खाने से स्वप्नदोष, कब्जियत और शीघ्रपतन दूर होता है।

31. सफेद मूसली : सफेद मूसली और शक्कर बराबर मिलाकर चूर्ण कर लें और रोज सवेरे गाय के दूध के साथ खाने से लाभ मिलता है।

32. गाजर : गाजर का रस शहद के साथ लेने से वीर्य गाढ़ा होता है और नपुंसकता (नामर्दी) दूर होती है।

33. लहसुन : रोज रात में 1-2 कली लहसुन जरूर खायें या लहसुन का रस शहद के साथ खायें इससे धातु (वीर्य) की कमजोरी, शीघ्रपतन और नपुंसकता दूर होती है।

34. बबूल :

बबूल का पत्ता चबाकर गाय का दूध पीने से कुछ की दिनों में गर्मी के रोग में लाभ होता है।
बबूल के कच्ची फलियों के रस को दूध और मिश्री में मिलाकर खाने से लाभ होता है।

35. रीठा : रीठे की गिरी को पीसकर बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर एक चम्मच की मात्रा सुबह-शाम एक कप दूध के साथ सेवन करने से वीर्य बढ़ता है।

36. मूसलीकन्द : 3 से 6 ग्राम मूसलीकन्द के चूर्ण, मिश्री को मिलाकर धातु की कमी के रोग में सेवन करने से लाभ होता है।

37. गेंदा : एक चम्मच गेंदे के बीजों और इतनी ही मात्रा में मिश्री को मिलाकर एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करने से वीर्य स्तम्भन की शक्ति बढ़ती है।

38. गन्ना : गुड़ को आंवलों के 2-4 ग्राम चूर्ण के साथ सेवन करने से वीर्यवृद्धि, श्रमनाश, तृप्ति, रक्तपित्त, दाह, शूल और मूत्रकृच्छ आदि रोग नष्ट होता है।

38. इमली :

इमली को पानी में कुछ दिन भिगोकर छिलका उतार दें। छिलके निकले बीजों को सुखाकर बारीक पीस लें। एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार दूध के साथ सेवन करने से वीर्य का पतलापन दूर होता है।
इमली के बीजों को भूनकर छिलका उतारकर चूर्ण बनाकर, बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर 15 दिनों तक रोजाना सेवन करने से वीर्य का पतलापन, मूत्रकृच्छ तथा मूत्रदाह (पेशाब में जलन) दूर होती है।

39. सफेद पेठा : पेठे की मिठाई और सब्जी खाने से वीर्य बढ़ता है। इसके अलावा यह औरतों के श्वेतप्रदर को बन्द करता है और मोटापे को भी कम करता है।

40. कैथ : कैथ के पेड़ की कोंपलों का चूर्ण दूध में मिलाकर शक्कर के साथ लेने से वीर्य में वृद्धि होती है।

41. खस (पोस्त के दाना) : खस की जड़, तालमखाना और सफेद चंदन का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच एक कप दूध के साथ सुबह-शाम रोज 4 से 6 हफ्ते खाने से धातु की कमी दूर होती है।

42. ब्राह्मी : वीर्य दोष में 15 ब्राह्मी के पत्तों को दिन में 3 बार सेवन कर सकते हैं।

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वीर्य के दोष दूर करें

परिचय :
वीर्य ही शरीर की सप्त धातुओं का राजा माना जाता है और ये सप्त धातुयें भोजन से प्राप्त होती हैं। इसमे सातवी धातु ही पुरुष में वीर्य बनती है। 100 बूंद खून से एक बूंद वीर्य बनता है। एक महीने में लगभग 1 लीटर खून बनता है जिससे 25 ग्राम वीर्य बनता है और गर्भाधान के लिए 60 से 70 करोड़ जीवित शुक्राणुओं का होना जरूरी होता है। इसलिए संभोग हफ्ते में एक बार ही करना चाहिए क्योंकि एक बार के संभोग के दौरान 10 ग्राम वीर्य निकल जाता है। वीर्य में जीवित शुक्राणुओं की कमी से महिलाओं को गर्भवती भी बनाया नहीं जा सकता। वीर्य परीक्षण में वीर्य गर्भाधान के लिए 7.8 पी.एच से 8.2 पी. एच ही सही माना गया है। वीर्य में दो प्रकार के शुक्राणु होते हैं एक्स और वाई। एक्स शुक्राणुओं से पुत्री पैदा होती है और वाई शुक्राणुओं से पुत्र पैदा होता है। एक शुक्राणु की लम्बाई लगभग 1/500 इंच होती है।

कभी-कभी वीर्य पतला होने के कारण गर्भ नहीं ठहरा पाता ऐसा तब होता है जब कोई ज्यादा मैथुन करके वीर्य को नष्ट कर देता है या अन्य दूसरी किसी बीमारी से ग्रस्त होकर जैसे:- प्रमेह, सुजाक, मूत्रघात, मूत्रकृच्छ और स्वप्नदोष आदि।

चिकित्सा :

1. ब्राह्मी : ब्राह्मी, शंखपुष्पी, खरैटी, ब्रह्मदण्डी और कालीमिर्च को पीसकर खाने से वीर्य शुद्ध होता है।

2. बबूल :

बबूल की कच्ची फली को सुखाकर मिश्री में मिलाकर खाने से वीर्य की कमी व रोग दूर होते हैं।
10 ग्राम बबूल की कोंपलों को 10 ग्राम मिश्री के साथ पीसकर पानी के साथ लेने से वीर्य-रोगों में लाभ होता है। हरी कोंपले न हों तो 30 ग्राम सूखी कोंपलों का सेवन कर सकते हैं।
बबूल की फलियों को छाया में सुखा लें और बराबर की मात्रा मे मिश्री मिलाकर पीसकर रख लें। एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप से जल के साथ सेवन से करने से वीर्य गाढ़ा होगा और सभी विकार दूर हो जाएंगे।
बबूल की गोंद को घी में तलकर उसका पाक बनाकर खाने से पुरुषों का वीर्य बढ़ता है और प्रसूत काल स्त्रियों को खिलाने से उनकी शक्ति भी बढ़ती है।
बबूल का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) लेकर पीस लें, और आधी मात्रा में मिश्री मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से कुछ ही समय में लाभ मिलता है।
बबूल की कच्ची फलियों के रस में 1 मीटर लंबे और 1 मीटर चौडे़ कपड़े को भिगोकर सुखा लेते हैं। एक बार सूख जाने पर उसे पुन: भिगोकर सुखाते है। इसी प्रकार इस प्रक्रिया को 14 बार करते हैं। इसके बाद उस कपड़े को 14 भागों में बांट लेते है, और प्रतिदिन एक टुकड़े को 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर पीने से धातु की पुष्टि हो जाती है।

3. शतावर :

शतावर रस या आंवला रस अथवा गोखरू काढ़ा शहद में मिलाकर पीने से वीर्य शुद्ध होता है।
शतावर, सफेद मूसली, असगन्ध, कौंच के बीज, गोखरू और आंवला ये सभी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें तीन-तीन ग्राम चूर्ण सुबह-शाम खाने से धातु (वीर्य) में वृद्धि होती है।

4. गूलर :

गूलर का दूध बताशे में रख कर खाने से वीर्य शुद्ध होता है।
पके गूलर का चूर्ण शहद या सेंधा नमक के साथ खाने से भी वीर्य शुद्ध होता है।

5. धनिया : धनिया, पोस्त के बीज के साथ मिश्री मिलाकर खाना लाभदायक होता है।

6. छोटी दुधी : छोटी दुधी का चूर्ण मिश्री मिलाकर दूध के साथ खायें इससे वीर्य शुद्ध होता जाता है।

7. तालमखाना : तालमखाना मे मिश्री मिलाकर खाने से वीर्य शुद्ध यानी साफ हो जाता है।

8. चोबचीनी : चोबचीनी, सोठ, मोचरस, दोनों मूसली, काली मिर्च, वायविडंग और सौंफ सबको बराबर भाग में लेकर चूर्ण बनायें। बाद में 10 ग्राम की मात्रा में रोज खाकर ऊपर से मिश्री मिला दूध पी लें इससे वीर्य साफ होता है।

9. सांठी : सांठी की जड़ और काली मिर्च को पीसकर घी के साथ मिलाकर खाने से वीर्य शुद्ध होता है।

10. जायफल :

जायफल, जावित्री, माजूफल मस्तगी, नागकेसर, अकरकरा, मोचरस, वनशलोचन, अजवायन, छोटी इलायची दाना 10-10 ग्राम कूट कर छान लें। कीकर की गोंद में चने बराबर गोलियां बना छाया में सूखा लें। 1-1 गोली सुबह-शाम दूध या पानी से लें।
जायफल 1 ग्राम रूमीमस्तगी, लौंग, छोटी इलायची दाना 2-2 ग्राम पीसकर शहद में मिलाकर चने के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें, संभोग (सहवास) से 2 घंटे पहले एक गोली गर्म दूध से लें।
11. राल : राल को बारीक पीसकर 1-1 ग्राम सुबह-शाम पानी से वीर्य के रोग में सेवन करें।

12. दालचीनी :

दालचीनी 20 ग्राम पीसकर इसमें खांड़ 20 ग्राम मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा मे सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करें।
दालचीनी और काले तिल 5-5 ग्राम पीस लें उसके बाद शहद में मिलाकर चने के बराबर गोलियां बना लें और छाया में सुखा दें। संभोग से 2 घंटे पहले एक गोली गर्म दूध से लें।
3 ग्राम दालचीनी का चूर्ण रात में सोते समय गरम दूध के साथ खाने से वीर्य की वृद्धि होती है।
दालचीनी को बहुत ही बारीक पीस लेते हैं। इसे 4-4 ग्राम सुबह व शाम को सोते समय दूध से फांके। इससे दूध पच जाता है और वीर्य की वृद्धि होती है।

13. वंशलोचन : वीर्य दोष दूर करने के लिए वनंशलोचन 30 ग्राम और छोटी इलायची 3 ग्राम पीसकर 1-1 ग्राम सुबह-शाम घी व खांड़ में मिलाकर लें।

14. इमली :

300 ग्राम इमली के बीज को 500 मिलीलीटर पानी में 3 दिन तक भिगोयें। फिर इसका छिलका उतार कर छायां में सुखाकर अच्छी तरह पीसकर 10-10 ग्राम की मात्रा मे सुबह-शाम कम गर्म दूध से लें।
इमली के बीजों के छोटे-छोटे टुकड़े कर रातभर पानी मे भिगा कर खाने से वीर्य पुष्ट होता है।

15. लाजवन्ती : लाजवन्ती को संभोग के समय मुंह में रखने से वीर्य स्तंभन हो जाता है।

16. कीकर :

कीकर की गोंद 100 ग्राम भून लें इसे कूट कर असगंध पिसी 50 ग्राम मिलाकर रख दें। 5-5 ग्राम सुबह-शाम कम गर्म दूध से लें।
कीकर के पत्ते छाया में सूखे 50 ग्राम कूट छानकर इसमें 100 ग्राम खांड़ मिलाकर 10-10 ग्राम सुबह-शाम दूध से लें।

17. राई : राई, लौंग 5-5 ग्राम दालचीनी 10 ग्राम पीसकर 1-1 ग्राम सुबह-शाम दूध से लें।

18. सिम्बल : सिम्बल की जड़ 100 ग्राम कूटछान कर इसमें खांड़ 100 ग्राम मिलाकर 10-10 ग्राम सुबह-शाम गर्म दूध के साथ प्रयोग करने से वीर्य दोष दूर होते हैं।

19. असगंध नागोरी :

असगंध नागोरी, विधारा, सतावरी 50-50 ग्राम कूट छानकर रखें और 150 ग्राम खांड मिलाकर रखें। 10-10 ग्राम दूध से सुबह-शाम लें।
नागौरी असगंध, गोखरू, शतावर तथा मिश्री मिलाकर खायें।

20. वंशलोचन : 60 ग्राम वंशलोचन को पीसकर रखें। इसमें 40 ग्राम खांड़ मिलाकर रख लें। 5-5 ग्राम को सुबह-शाम दूध के साथ लेने से लाभ होता है।

21. फिटकरी : 30 ग्राम भुनी फिटकरी को 60 ग्राम खांड़ में मिलाकर रखें। 3-3 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करें।

22. कमलगट्ठा : कमल गट्ठा या बीज पीसकर शहद में मिलाकर नाभि पर लेप करने से वीर्य स्तम्भन हो जायेगा।

23. सफेद कनेर : सफेद कनेर की जड़ 2 अंगुल की कमर में बांधने से वीर्य स्तम्भन हो जाता है।

24. सौंठ : सौंठ, बूटी हजारदाना, नकछिकनी 50-50 ग्राम कूट छान कर 5-5 ग्राम सुबह-शाम कम गर्म दूध से लें। सौंठ, सतावर, गोरखमुण्डी 10-10 ग्राम पीसकर शहद मिला कर चने कें बराबर गोलियां बनाकर छायां में सुखा लें। सुबह और शाम भोजन के बाद 1-1 गोली दूध या पानी के साथ लें। वीर्य दोष में लाभ मिलेगा।

25. असगंध :

असगंध, विधारा 25-25 ग्राम कूट छान कर इसमें 50 ग्राम खांड को मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा मे सोने से पहले गुनगुने दूध के साथ सेवन करने से बल वीर्य बढ़ता है।
असगंध 300 ग्राम कूट छान कर 20 ग्राम को दूध 250 मिलीलीटर में गिराकर उबालें गाढ़ा होने पर खांड़ मिला कर पी लें।

26. बहमन : बहमल लाल 50 ग्राम पीसकर 5 ग्राम को सुबह कम गर्म दूध के साथ सेवन करने से संभोग शक्ति बढ़ती है।

27. मुनक्का : 250 मिलीलीटर दूध में 10 मुनक्का उबालें फिर दूध में एक चम्मच घी व खांड़ मिला कर सुबह पीये।

28. कालीमिर्च : कालीमिर्च के साथ गोंदी के पत्ते मिलाकर घोटकर शर्बत की तरह 21 दिन तक पीने से वीर्य पुष्ट होता है।

29. गंगेरन : गंगेरन की जड़ की छाल के चूर्ण में उसी मात्रा में मिश्री मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा दूध के साथ 7 दिनों तक खायें वीर्य पुष्ट होता है।

30. बदुफली : बदुफली के पौधे को थोडे पानी के साथ पीसकर कपड़े में छानकर रस को निकाल लें। 100 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम शक्कर और आधे से एक ग्राम पीपल का चूर्ण मिलाकर 7 दिनों तक सुबह-शाम पीने से वीर्य बढ़ता है।

31. बरगद :

बरगद के फल को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। गाय के दूध के साथ 1 चम्मच चूर्ण खाने से वीर्य गाढ़ा व बलवान बनता है।
बरगद की कोंपल 10 ग्राम, गूलर की छाल 10 ग्राम, शक्कर 20 ग्राम को मिलाकर चूर्ण बना लें। 21 दिन तक 10 ग्राम चूर्ण दूध के साथ खाने से वीर्य गाढ़ा होता है।
25 ग्राम बरगद की कोपले लेकर 250 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब एक चोथाई पानी बचे तो इसे छानकर 500 मिलीलीटर दूध में डालकर पकायें। इसमें 6 ग्राम ईसबगोल की भूसी और 6 ग्राम शक्कर मिलाकर सिर्फ 7 दिन तक पीने से वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
बरगद के दूध की 5-7 बूंदे बताशे में भरकर खाने से वीर्य के शुक्राणु बढ़ते है।

32. विधारा : 100 ग्राम विधारा की जड़ को 1 लीटर दूध में पकाकर और घी मिलाकर रख लें। भोजन के बाद रोज 20 ग्राम की मात्रा में खाने से वीर्य (धातु) पुष्ट होता है।

***33. केला :

पके केले को सुखाकर चूर्ण बना लें। रोज 10 ग्राम चूर्ण दूध के साथ खाने से वीर्य में लाभ होता है।
1 पका केला 5 ग्राम को घी के साथ सुबह और शाम 7 दिनों तक खाने से धातु के रोग खत्म होते हैं। अगर ठंड़ा लगे तो उसमें 4-5 शहद की बूंद मिलाकर सेवन करें।

34. इन्द्रायण : इन्द्रायण की गिरी को पानी के साथ खाने से वीर्य पुष्ट होता है।

35. निर्गुण्डी : निर्गुण्डी, सालम मिश्री, तालमखाना, शतावरी और विदारीकन्द 40-40 ग्राम को लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। 20 ग्राम चूर्ण को 250 ग्राम दूध में मिलाकर इलायची से मथकर सुबह-शाम पीने से वीर्य की वृद्धि होती है।

36. बेर : बेर की मिंगी की गुठली को गुड़ के साथ खाने से वीर्य गाढ़ा होता है।

37. गोरखमुण्डी : गोरखमुण्डी के फूलो को पीसकर प्राप्त चूर्ण में शक्कर को मिलाकर खाने से वीर्य पुष्ट होता है।

38. जवाखार : 1 ग्राम जवाखार में 10 ग्राम शक्कर में मिलाकर पानी के साथ खाने से पेशाब के बाद वीर्य का गिरना रुक जाता है।

39. गिलोय : गिलोय का सत और असली वशंलोचन बराबर लेकर चूर्ण बना लें। 2 ग्राम की मात्रा में शहद को मिलाकर 7 दिनों खाने से वीर्य गाढ़ा होता है।

40. सत्यानाशी : सत्यानाशी की जड़ की छाल लगभग ग्राम से 1 ग्राम तक दूध के साथ लेने से वीर्य-सम्बन्धी सभी रोग मिट जाते है।

41. अफीम : अफीम 0.3 ग्राम के घोल में एक मुठ्ठी चने भिगोकर सुबह-शाम अंकुरित होने पर 1-1 चना चबा लें। केवल 21 दिन तक यह प्रयोग करने से स्वप्नदोष, धातु (वीर्य) कमी दूर होती है।

42. बड़ी गोखरू : बड़ी गोखरू की कांटी बनाकर खाने से वीर्य-सम्बन्धी सारे रोग दूर होते हैं।

43. कपूर : लगभग एक ग्राम का चौथा भाग कपूर और अफीम की गोली बनाकर रात को सोते समय खाने से वीर्य-सम्बन्धी रोग मिट जाते हैं।

44. महुआ : महूए की छाल का 2 से 3 ग्राम चूर्ण दिन में 2 बार-सुबह और शाम को गाय के घी, दूध, और चीनी के साथ पीने से पुरूष के वीर्य में बढ़ोत्तरी होती है।

45. चना :

एक मुट्ठी सेंके हुए चने या भीगे हुए चने और 5 बादाम खाकर दूध पीने से वीर्य का पतलापन दूर होकर वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
भीगी हुई चने की दाल में चीनी को मिलाकर रात को सोते समय खा लें, ऊपर से पानी न पियें। इससे धातु पुष्ट होती है।

46. आम :

आम के मौर (आम के फूल) छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और इसमें मिश्री को मिलाकर 1-1 चम्मच दूध के साथ नियमित रूप से सेवन करने से वीर्य गाढ़ा होगा।
आम के फूलों के चूर्ण को 5-10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ लेने से स्तम्भन और कामशक्ति की वृद्धि होती है।

47. जामुन : वीर्य का पतलापन हो, जरा सी उत्तेजना से ही वीर्य का निकल जाना हो तो ऐसे में 5 ग्राम जामुन की गुठली का चूर्ण रोज शाम को गर्म दूध से लें। वीर्य का पतलापन की बीमारी दूर होती है और वीर्य भी बढ़ जाता है।

48. आंवला : 1 चम्मच घी में 2 चम्मच आंवले का रस मिलाकर दिन में 3 बार कम-से-कम 7 दिनों तक सेवन करने से लाभ होता है।

49. मुलहठी : 3 ग्राम मुलहठी जड़ (मूल) का चूर्ण, 3 ग्राम घी और 2 ग्राम शहद दिन में 3 बार धातुक्षय के रोग में सेवन करें।

50. छोंकर : छोंकर और किंकिरात के फूलों को बराबर मात्रा में लेकर थोड़े से जीरे के साथ पीसकर उसे लगभग 250 ग्राम पानी में डालकर छान लें। इसके बाद उसमें 20 ग्राम चीनी पीने से धातु की पुष्टि होती है।

51. चीकू : चीकू को शर्करा के साथ खाने से धातुपुष्टि होती है।

52. दूध :

सुबह नाश्ते में एक केला, 10 ग्राम देशी घी के साथ खाकर ऊपर से दूध पी लें। दोपहर के बाद 2 केले, 29 ग्राम खजूर को 1 चम्मच देशी घी में डालकर खाकर ऊपर से दूध पीयें। धातुपुष्टि होती है।
ताजा दूध निकालकर छानकर बिना गर्म किये ही उसके अन्दर मिश्री या शहद और भिगोई हुई किशमिश का पानी मिलाकर लगातार 40 दिन पीने से पुरुष का वीर्य बढ़ता है तथा आंखों की रोशनी भी तेज होती है। यह दूध खांसी, स्नायुदौर्बल्य (नरवस सिस्टम), बच्चों का सूखा रोग, क्षय रोग (टी.बी) हिस्टीरिया हृदय की धड़कन आदि रोगों में भी बहुत उपयोगी है। छोटे-छोटे कमजोर बच्चों को यह दूध पीने से लाभ मिलता है।

53. कालीमिर्च : 1 गिलास दूध में 8 से 10 कालीमिर्च का चूर्ण डालकर अच्छी तरह उबालें। फिर ठंड़ा करके सुबह-शाम रोज खानें से वीर्य की पुष्टी होती है।

54. गेहूं : 100 ग्राम गेहूं रात को पानी में भिगोकर रख दें। सुबह के समय उसी पानी से उन्हें पत्थर पर पीसने के बाद लस्सी बना लें। इसमें स्वाद के लिए चीनी मिला लें। पेशाब के साथ वीर्य के आने का रोग सिर्फ 7 दिन तक यह प्रयोग करने से दूर हो जाता है।

55. कनेर : कनेर की जड़ को घिसकर लिंग पर लेप करने से धातु रोग व गर्मी से होने वाले रोग में लाभ होता है।

56. कसौंदी : कसौंदी के जड़ का बारीक चूर्ण 1-4 ग्राम की मात्रा में 5-10 ग्राम शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम एक गिलास दूध के साथ लेने से वीर्य का पतलापन दूर होकर वीर्य बढता है और धातु का क्षय रोग भी ठीक हो जाता है।

57. अलसी : अलसी का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिसरी मिलाकर दो बार नियमित रूप से दूध के साथ कुछ हफ्ते तक पीने से वीर्य बढ़ता है।

58. कालीमिर्च : कालीमिर्च और शहद के साथ तीसी का सेवन कामोद्दीपक तथा वीर्य को गाढ़ा करने वाला होता है।

59. सेहुण्ड : गीली शतावर को चीरकर बीच के तिनके को निकाल कर दूध के साथ पिसी मिश्री मिलाकर खाने से वीर्य बढ़ता है।

60. खजूर :

ठंड में सुबह खजूर को घी में सेंककर खिलायें इस पर इलायची, शक्कर और कौंच को डालकर उबाले हुऐ दुध को पीने से वीर्य बढ़ता है।
अच्छा छुहारा लेकर, बीज निकालकर थोडा-सा कूटकर उसमें बादाम, बलदाने, पिश्ता, चिरौंजी, शक्कर आदि मिलाएं। इसे 8 दिन तक घी में मिलाकर रख दें। उसमें से रोज 20 ग्राम खाने से धातु पुष्टि होती है और पित्त को शान्त करता है।

61. अमरूद : अच्छी तरह पके नरम, मीठे अमरूदों को मसलकर दूध में फेंट लें और फिर छानकर इनके बीज को निकालकर उसमें आवश्यकतानुसार चीनी मिलाकर सुबह नियमित रूप से 21 दिन सेवन करें।

62. पीपल :

पीपल के फल को पीसकर आधा चम्मच की मात्रा में 1 कप दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करते रहने से नपुंसकता (नामर्दी) दूर होकर बल, वीर्य (धातु) और पौरुष शक्ति बढ़ती है।
100 ग्राम पवांड़ (चक्रमर्द) के फूल और 10 ग्राम चीनी को मिलाकर रोजाना सुबह खाने से कुछ ही दिनों मे वीर्य का रोग समाप्त हो जाता है।
पीपल के तने की 50 ग्राम सूखी छाल की राख, उपदंश पर छिड़कने से धातु (उपदंश) शुष्क होकर ठीक हो जाता है।

63. लता करंज : करंज के पत्तों का रस हथेली और तलुओं पर मालिश करने से वीर्य गाढ़ा होता है। इसके एक बीज को सहवास के समय मुंह में चबाने से भी वीर्य गाढ़ा होता है।

64. पानी : ठंडे पानी से नहाने से स्वप्नदोष और वीर्य के रोगों में लाभ होता है।

65. अंजीर : सूखे अंजीर के टुकड़ों एवं बादाम के गर्भ को गर्म पानी में भिगोकर रख दें फिर ऊपर से छिलके निकालकर सुखा दें। उसमें मिश्री, इलायची दानों का चूर्ण, केसर, चिरौंजी, पिश्ता और बलदाने कूटकर डालें और गाय के घी में 8 दिन तक भिगोकर रखें। यह मिश्रण प्रतिदिन लगभग 20 ग्राम की मात्रा में खाने से क्षीण शक्ति वालों के खून और वीर्य में वृद्धि होती है।

66. इलायची :

इलायची के दाने, जावित्री, बादाम की गिरी, गाय का मक्खन और चीनी को एकत्रित करके रोजाना सुबह के समय खाने से धातु पुष्ट होती है और वीर्य गाढ़ा होता है।
इलायची के दाने और ईसबगोल बराबर मात्रा में लेकर आंवले के रस में खरल करके छोटी-छोटी गोलियां बनाकर 1-1 गोली सुबह-शाम लेने से शीघ्रपतन में लाभ होता है।

67. अतीस : 5 ग्राम अतीस के चूर्ण को शक्कर और दूध के साथ देने से वीर्य बढ़ता है।

नोट:शराब या किसी भी प्रकार का नशा वीर्य की ताक़त को खत्म करने का काम करता है ।जब बच्चे की प्लानिंग करें तब से गर्भ धारण तक किसी भी प्रकार का नशा ना करे।केवल फलो के रस और बताई गई जानकारी का सेवन करे खाना खाने के साथ साथ।

स्वप्नदोष Or Self-infliction

परिचय :
रात के समय सोते हुए अपने आप या अश्लील स्वप्न देखते हुए वीर्य का निकल जाना ही स्वप्नदोष कहलाता है।

कारण :

फिल्मों में अश्लील दृश्यों को देखना, स्कूल कॉलजों मे लड़के- लड़कियों का खुले मे घूमना, नवयुवकों के सर में हमेशा कामवासना का ध्यान रहना, लड़कियों के बारे ज्यादा सोचना, उनके अंगों को कामुक नजरों से देखना, अधिक मैथुन करना, किसी लड़की के स्पर्श करने पर सोचना, सहवास में खोये रहना मसालेदार भोजन खाने, चाय, शराब व रात को गर्म दूध पीना ही स्वप्नदोष का कारण बनता हो सकता है।

कभी-कभी यह कारण न होकर इसका उलटा होता है। जैसे हार्मोन के बढ़ने पर वीर्य ज्यादा बनने लगते हैं। इससे शरीर में गर्मी पैदा होती है और वीर्य अपने आप रात में या जरा सी गर्मी होते ही बाहर निकल पड़ता है। इसमें रोगी का कोई दोष नहीं होता है। स्वप्नदोष अगर महीने या साल में होता है तो डरने की कोई बात नहीं मगर रोज या हफ्ते में हो तो इसका उपचार जल्द से जल्द कराना चाहिए नहीं तो रोगी नपुंसक भी बन सकता है।


लक्षण :

इस रोग से ग्रस्त रोगी का शरीर कमजोर हो जाता है। चेहरे की चमक खत्म हो जाती है। रात मे सोते समय ही वीर्य निकल जाता है। भूख की कमी, बैचेनी, बुखार, हाथ-पैरों के तलवे में जलन, वीर्य का पतला पन, आलस्य, कमर में दर्द, स्वरभंग, नजर का कमजोर होना आदि लक्षण दिखाई देने लगता है।

भोजन तथा परहेज :

शिश्न को रोज सुबह के समय 10 मिनट तक ठंड़े पानी की धार से धोयें। मानसिक शान्ति तथा सुबह-शाम टहलना भी जरूरी है। रोज व्यायाम करें तथा त्रिफला चूर्ण एक चम्मच गर्म पानी से खाना खाने के बाद लें।

गर्म पदार्थ, रात को सोने से पूर्व गर्म दूध, गुड़, सिगरेट, शराब आदि का सेवन न करें और पेट में कब्ज न बनने दें।

चिकित्सा :

1. मुलहठी :

मुलहठी के चूर्ण को मक्खन और शहद के साथ मिलाकर खाने से लाभ होता है।
मुलहठी के चूर्ण में 2 ग्राम की मात्रा में शहद और घी मिलाकर खाने से स्वप्नदोष की बीमारी खत्म हो जाती है।

2. बबूल :

बबूल की गोंद 10 ग्राम मात्रा में रात को 100 मिलीलीटर पानी में डालकर रख दें। सुबह उठने पर गोंद को थोड़ा-सा मसलकर पानी में छानकर मिश्री मिलाकर पीने से स्वप्नदोष में बहुत लाभ होता है।
बबूल की फली का चूर्ण 3 से 6 ग्राम चीनी में मिलाकर सुबह-शाम खाने से लाभ मिलता है।

3. चोपचीनी : चोपचीनी का पिसा हुआ चूर्ण 10 ग्राम, मिश्री 10 ग्राम और घी 10 ग्राम मिलाकर 7 दिनों तक खाने से स्वप्नदोष खत्म होता है।

4. बादाम :

बादाम के एक बीज की गिरी, 3 ग्राम मिसरी, 3 ग्राम घी और 3 ग्राम गिलोय का चूर्ण इन सबको 6 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद में मिलाकर 7 दिनों तक दिन मे सुबह-शाम खाने से स्वप्नदोष खत्म होता है।
बादाम और काली मिर्च की फीकी शर्बत पीने से भी स्वप्नदोष में लाभ होता है।

5. त्रिफला :

त्रिफले का चूर्ण और शहद दोनों को मिलाकर खाने से स्वप्नदोष में बहुत लाभ होता है।
त्रिफला का चूर्ण 4-6 ग्राम की मात्रा में रात को सोने से पहले दूध के साथ खाने से स्वप्नदोष दूर हो जाता है।
त्रिफला 12 ग्राम, गुड़ 24 ग्राम, वच और भीमसेनी कर्पूर 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर सबको पानी के साथ मिलाकर छोटी-छोटी एक समान गोली बना लें, 1 से 2 गोलीयों को सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से स्वप्नदोष व शीघ्रपतन दूर हो जायेगा।

6. आंवला : आंवले का चूर्ण 6 ग्राम और मिसरी का चूर्ण 6 ग्राम मिलाकर रोज खाने से कुछ हफ्ते में स्वप्नदोष खत्म होता है।

7. शतावर :

शतावर, मूसली, विदारीकन्द, असगंध, गोखरू या इलायची के बीज इनमें से 2-3 वनौशधि को बराबर मात्रा में लेकर कूटकर पीसकर रख लें, और मिश्री को मिलाकर 3 ग्राम पानी के साथ पीने से लाभ होता है।
शतावरी, असगंध, विधारा 20-20 ग्राम कूटकर छानकर रख लें, इसमें 60 ग्राम खांड़ मिलाकर 10-20 ग्राम की मात्रा में दिन सुबह-शाम दूध के साथ लें।
शतावर के रस को शहद मे मिलाकर पीने सुबह-शाम से स्वप्नदोष दूर होता है।

8. हरड़ :

हरड़ का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में शहद 10 ग्राम में लेकर में मिलाकर रोज खायें इससे कुछ दिनों में स्वप्नदोष का रोग खत्म हो जाता है।
हरड़ का मुरब्बा खाकर हल्का गर्म दूध पीने से कब्ज दूर होती है।

9. खादिर (कत्था) : खादिर (कत्था) सार 1 ग्राम, ठंड़े पानी के साथ खाने से स्वप्नदोष खत्म होता है।

10. गिलोय : गिलोय, गोक्षुर और आंवला तीनों को बराबर मात्रा में कूट पीसकर 1 चम्मच चूर्ण को खाकर पानी को पीने से स्वप्नदोष खत्म होता है।

11. गुलाब :

गुलाब के फूल और छोटी दूधी का चूर्ण बराबर मिश्री मिलाकर पानी के साथ खाने से स्वप्नदोष के दोष को खत्म करता है।
गुलाब के 4-5 फूल तोड़कर उन्हे साफ पानी से धोयें और पंखुड़ियां अलग करके उनमें उतनी ही मिश्री का चूर्ण मिला कर सुबह-शाम खाकर और ऊपर से गुनगुना दूध पी लें। इसका प्रयोग कुछ दिनों तक कर सकते हैं।
गुलाब का शर्बत पीने से भी स्वप्नदोष पर लाभ मिलता है।

12. गुलकन्द : गुलकन्द 5-10 ग्राम की मात्रा मे रोजाना सुबह-शाम मिश्री मिले दूध के साथ खाने से लाभ मिलता है।

13. बड़ी गोक्षुर : बड़े गोक्षुर के चूर्ण में घी मिलाकर रोज खाने से स्वप्नदोष दूर होता है।

14. गोक्षुर : गोक्षुर, आंवला और हरड़ का चूर्ण मिश्री के साथ खाने से स्वप्नदोष का रोग दूर होता है।

15. धनिया :

2 ग्राम धनिये को पीसकर उसमें 3 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिलाकर कुछ दिनों तक पानी के साथ पीने से स्वप्नदोष का रोग खत्म होता है।
सूखे धनिये तथा मिश्री को बराबर मात्रा में कूटकर चूर्ण बना लें और किसी ढक्कनदार बर्तन में भरकर रख दें। इस चूर्ण में से 5-6 ग्राम के लगभग, ताजा जल के साथ सुबह-शाम कुछ दिनों तक लेने से अनैच्छिक वीर्यपात, स्वप्दोष आदि विकारों से मुक्ति मिल जाती है।
सूखा धनिया कूट, पीसकर छान लें। इसमें बराबर मात्रा में पिसी हुई चीनी मिला लें। सुबह खाली पेट बासी पानी से 1 चम्मच की फंकी लें और 1 घण्टे तक कुछ न खायें, पीयें। इसी तरह 1-1 खुराक शाम को 5 बजे सुबह के पानी के साथ लें। अगर कब्ज हो तो रात को सोने के समय 2 चम्मच ईसबगोल की भूसी गरम दूध से लें। इससे स्वप्नदोष की बीमारी दूर हो जाती है।
धनियां, नीलोफर, कुर्फा के बीज, काहू के बीज,कासनी के बीज और शीतलचीनी 20-20 ग्राम, अलसी के दाने 100 ग्राम और ईसबगोल 25 ग्राम की मात्रा में सबको कूट कर छान लें। फिर इस चूर्ण से 2-3 ग्राम की मात्रा मे लेकर बराबर भाग में मिश्री को मिलाकर पानी के साथ सुबह-शाम लें।

16. जामुन :

4 जामुन की गुठली का चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ खाने से स्वप्नदोष ठीक हो जाता है।
जामुन की गुठलियों का चूर्ण बनाकर 3 ग्राम चूर्ण रोज सुबह-शाम पानी के साथ खाने से स्वप्नदोष की बीमारी दूर होती है।
17. केला :

रोज 2 केले काटकर थोड़ा सा शहद मिलाकर खाने से स्वप्नदोष में लाभ मिलता है।
2 केले खाकर ऊपर से 250 मिलीलीटर दूध पीयें यह 3 महीने तक करते रहने से शीघ्रपतन में लाभ होगा।

18. नकछिकनी : नकछिकनी, सौंठ, बायबिण्डग 10-10 ग्राम कूट छानकर उसमें 30 ग्राम खांड़ को मिलाकर 5 ग्राम की मात्रा को खुराक के रूप में सुबह खाली पेट कच्चे दूध के साथ खाने से लाभ होता है।

19. तुलसी :

तुलसी के बीज को सुबह-शाम पानी से लाभ होता है। ध्यान रहें कि रात को गरम दूध न पीयें।
तुलसी की जड़ का काढ़ा 4-5 चम्मच की मात्रा में सोने से पहले नियमित रूप से कुछ हफ्ते तक पीना चाहिए। इससे स्वप्नदोष से छुटकारा मिल जाता है।

20. असगंध : असगंध, विदारीकन्द 25-25 ग्राम कूटकर छान लें और 50 ग्राम खांड मिलाकर 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी से सेवन करने से स्वप्नदोष में आराम मिलता है।

21. असरोल : असरोल, धनियां 10-10 ग्राम पीसकर 1 ग्राम सोते समय रात को पानी के साथ सेवन करें।

22. अजवायन : खुरासानी अजवायन के साथ लगभग आधे ग्राम कपूर की गोली मिलाकर रात को सोने से पहले खाने से स्वप्नदोष में लाभ होता है।

23. बड़ी गोखरू :

बड़ी गोखरू की फांट या घोल को सुबह-शाम प्रयोग करने से स्वप्नदोष में लाभ होता है।
बड़ी गोखरू के फल का 25 ग्राम चूर्ण 250 मिलीलीटर उबलते पानी में डालकर छोड़ दें। 1 घंटे बाद छान लें। इसमें से थोड़ा-सा बार-बार पिलाने से स्वप्नदोष दूर होता है।
शक्कर और घी बड़ी गोखरू के साथ खायें और ऊपर से दूध पी लें इससे भी स्वप्नदोष में लाभ होता है।

24. समुद्रशोष : 3 से 6 ग्राम समुद्रशोष के बीजों को पानी में भिगों कर उससे बने लुआवदार घोल में मिश्री मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से वीर्य का स्तम्भन होता है।

25. कपूर :

लगभग एक ग्राम के चौथे भाग कपूर की गोली खुरासानी अजवायन के साथ सोने से पहले रोज रात में खाने से स्वप्नदोष में जरूर लाभ होगा।
लगभग एक ग्राम का चौथा भाग कपूर और एक चम्मच चीनी दोनों पीसकर रोज सोते हुए फंकी लेने से स्वप्नदोष होना बन्द हो जाता है।

26. लहसुन : रात को सोने से पहले हाथ, पैर और मुंह को धोकर पोछ लें फिर लहसुन की 1 कली मुंह में चबा-चबाकर खाने से स्वप्नदोष के रोग में लाभ मिलता है।

27. प्याज : 10 मिलीलीटर सफेद प्याज का रस, 8 मिलीलीटर अदरक का रस, शहद 5 ग्राम और घी 3 ग्राम मिलाकर रात को सोने से पहले पिलाने से स्वप्नदोष नहीं होता है।

28. पीपलामूल : पीपलामूल 30 ग्राम और गुड़ 40 ग्राम को मिलाकर 1-1 ग्राम की गोली बनाकर सेवन करने से स्वप्नदोष नहीं होता है और नीन्द अच्छी आती है।

29. अमरबेल : अमरबेल का रस मिश्री मिलाकर पीने से स्वप्नदोष में फायदा होता है।

30. फिटकरी : फिटकरी की 50 ग्राम चिकनी-सी डली रात में सोने से पहले पेडु यानी नाभि पर रख लें इससे रात में स्वप्नदोष नहीं होगा।

31. छिरेंहटी :

छिरेंहटी के सूखे पत्ते 50 ग्राम, हरड़, बहेड़ा और आमला 20-20 ग्राम, बबूल का गोंद 25 ग्राम और कतीरा गोंद 10 ग्राम। सबको कूट छान कर छिरेंहटा के ही रस में खरल करके, बारीक चूर्ण के रूप में ही शीशी में भर कर रखें। 5-6 ग्राम यह चूर्ण ताजा पानी के साथ सुबह-शाम खाने से स्वप्नदोष और वीर्य की कमी को दूर होती है।
छिरेंहटी के सूखे पत्ते 200 ग्राम तथा गाय के घी के साथ भूनी हुई छोटी हरड़ 50 ग्राम को पीस-छान कर दोनों के बराबर मिश्री मिला ले और 10-15 ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें इससे स्वप्नदोष मे लाभ होता है।
छिरेंहटी का पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) सूखे हुए 50 ग्राम, सूखी हुई दुर्बा 25 ग्राम, छोटी इलायची के बीज और कतीरा गोंद 12-12 ग्राम तथा मिश्री 100 ग्राम आदि को एक साथ लेकर अच्छी तरह से कूट लें। फिर इस बने चूर्ण को 10-12 ग्राम सुबह-शाम गाय के गर्म दूध के साथ खायें। इससे प्रमेहजन्य (वीर्य विकार से उत्पन्न रोग) अनेक उपसर्ग दूर होते हैं। वीर्य का पतलापन और स्वप्नदोष दूर होता है।
छिरेंहटी के हरे पत्ते 10-12 ग्राम और 5-6 काली मिर्च लेकर बारीक पीस लें। चाहे तो बादाम की छिली हुई मींगियां और सौंफ भी मिला सकते है। रोज कुछ दिनों तक खाने से लाभ मिलता है।
छिरेंहटी का रस और गिलोय का रस बराबर भाग लेकर उसके साथ शहद मिला लें और खायें इससे शीघ्रपतन और स्वप्नदोष में लाभ मिलता है।
छिरेंहटी को आमले के रस में खरल करके मिश्री या शहद के साथ मिलाकर 15-20 ग्राम की मात्रा में लेकर स्वप्नदोष के रोगी को खिलायें।
छिरेंहटी छाया में सुखा कर चूर्ण कर लें और कतीरा के गोद में 12 घंटे डुबोकर 1 ग्राम की गोली बनाकर 12 घंटे छाया में सुखा लें। 1 से 2 गोली को खुराक के रूप में ताजा पानी के साथ, सुबह-शाम खाने से लाभ मिलेगा।

32. वंशलोचन :

वंशलोचन का चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम को सुबह-शाम गाय के दूध के साथ 40 दिनों तक खाने से लाभ मिलता है।
वंशलोचन, शुद्ध शिलाजीत छोटी इलायची, सफेद मिर्च, मस्तंगी, शीतलचीनी, कुन्दरू, राल और हल्दी 10-10 ग्राम लेकर, चंदन के तेल के साथ कूट लें और मटर के बराबर गोली बना कर रोज 1-2 गोली ताजा पानी के साथ सुबह-शाम खाने से स्वप्नदोष मिट जाता है। साथ ही पेशाब के संग आने वाला घात, पेशाब की रुकावट आदि भी दूर होती है।
वंशलोचन और शिलाजीत 40-40 ग्राम लेकर पीसकर रखें, फिर इसमें 10 ग्राम सत गिलोय को मिलाकर 1-2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ रोगी को सुबह-शाम सेवन करके ऊपर से मिश्री मिलाकर दूध पिलाने से स्वप्नदोष में आराम मिलता है।

33. रूमीमस्तगी : रूमी मस्तगी को घी के साथ भून लें। 1 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम लेने से पित्तज स्वप्नदोष दूर होता है।

34. कतीरा : कतीरा गोंद खाने से भी स्वप्नदोष में लाभ मिलता है।

35. ढाक : ढाक के फूल, बबूल के फूल, लाजवन्ती के फूल, कबाब चीनी और धनिया बराबर भाग लेकर ठंड़े ताजा पानी के साथ सिल पर, मिश्री मिलाकर घोंटकर शर्बत बना कर स्वप्नदोष से पीड़ित रोगी को सेवन करायें।

36. इमली : इमली के थोड़े-से बींजो को दूध में भिगोकर छिलका उतार लें। फिर उसमें उतनी ही मात्रा में मिश्री को मिलाकार पीसकर चटनी बनाकर 1 चम्मच चटनी को खुराक के रूप में रोज 20 दिन तक दूध के साथ स्वप्नदोष में रोगी को प्रयोग कराने से लाभ होता है।

37. आंवला :

एक मुरब्बे का आंवला रोजाना खाने से स्वप्न दोष में लाभ होता है।
कांच के गिलास में सूखे आंवले को पीसकर 20 ग्राम की मात्रा में डालें। इसमें 60 मिलीलीटर पानी भरें और फिर 12 घंटे भीगने दें। फिर छान कर इस पानी में एक ग्राम पिसी हुई हल्दी डालकर पीने से युवकों के स्वप्नदोष के रोग में अच्छी औषधि है।

38. ईसबगोल : ईसबगोल और मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच एक कप दूध के साथ सोने से 1 घंटा पहले लें और सोने से पहले पेशाब करके सोने से स्वप्नदोष में आराम मिलता है।

39. कलौंजी : एक कप सेब के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह, शाम खाली पेट और रात में खाने के बाद सोते समय सेवन करना चाहियें रोज कलौंजी के तेल की चार बूंद एक चम्मच नारियल तेल में मिलाकर सोते समय सिर में लगाना चाहिए इस प्रकार 21 दिन तक प्रयोग करने से स्वप्नदोष में लाभ होगा इस रोग मे यह लेते समय नींबू का सेवन न करें।

40. इलायची : आंवले के रस में इलायची के दाने और ईसबगोल को बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से स्वप्नदोष में लाभ होता है।

41. गोखरू : 1 चम्मच की मात्रा में गोखरू के फल का चूर्ण, थोड़ा सा घी और मिश्री मिलाकर 1 हफ्ते तक रोजाना सुबह-शाम लेने से स्वप्नदोष के रोग में लाभ होता है।

42. अनार :

अनार का पिसा हुआ छिलका पांच-पांच ग्राम सुबह-शाम पानी से लें।
अनार के छिलकों को छाया में सुखाकर कूट लें। चूर्ण बनाकर रखें। रोज 3 ग्राम चूर्ण पानी के साथ सुबह-शाम खाने से स्वप्नदोष में लाभ होता है।

43. अपामार्ग : अपामार्ग की जड़ का चूर्ण और मिश्री दोनों को बराबर की मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर रख लें। एक चम्मच दिन में 3 बार 1 से 2 हफ्ते तक सेवन करने से स्वप्नदोष में आराम मिलता है।

44. अशोक : स्त्रियों के स्वप्नदोष में 20 ग्राम अशोक की छाल, कूटकर 250 मिलीलीटर पानी में पकाएं, 30 मिलीलीटर शेष रहने पर इसमें 6 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।

45. अनार : अनार के सूखे पीसे हुए छिलके की 1 चम्मच रात को सोने से पहले ठंड़े पानी के साथ फंकी के रूप में लेने से सोते समय पुरुष के शिशन से धातु के आने में लाभ मिलता है।
Thank you 

Saffron health benefits

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