बुधवार, 22 अप्रैल 2020

Garbh dharan ke baad kya khana chahiye. Part- 3

गर्भधारण में मददगार हो सकता है विटामिन

यूं तो गर्भधारण और इसके बाद के लिए किसी भी महिला को पौष्टिक तत्वों (प्रोटीन और विटामिन आदि) की जरूरत होती है। लेकिन कई शोधों में यह बात सामने आई हैं कि गर्भधारण के लिेए विटामिन लाभदायक होता है। आइये जानते हैं कि कैसे गर्भधारण में कैसे मददगार होता है विटामिन।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि विटामिन हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होते हैं। विटामिन की खुराक के अनेक फायदे हैं। यही नहीं कई अध्ययन इस बात का दावा कर चुके हैं कि विटामिन महिलाओं को गर्भ धारण में भी मदद करता है।

ऐसे ही एक अध्ययन में पाया गया था कि जिन महिलाओं ने गर्भावस्था से जुड़े विटामिन की गोलियां खाईं थी उनमें इन गोलियों को नहीं खाने वाली महिलाओं की तुलना में बच्चों होने की संभावना दोगुनी बढ़ गई। रिप्रोडक्टिव बायोमेडिसिन ऑनलाइन नामक कंपनी ने इस अनुसंधान में 58 महिलाओं का अध्ययन किया था। इन महिलाओं को दो समूहों में बांटा गया था। एक समूह को विटामिन की गोलियां खिलाई गईं जबकि दूसरे को इससे दूर रखा गया। सभी महिलाओं को स्वस्थ, संतुलित पौष्टिक आहार दिए गए। इस अध्ययन के परिणामों में यह बात काफी हद तक साफ हो गई थी कि विटामिन ने महिलाओं को गर्भ धारण करने में मदद की।


गर्भावस्था और विटामिन डी पर शोधकर्ताओं की रिर्पोट-

यही नहीं कई अनुसंधानकर्ताओं ने ऐसे सबूत मिलने का दावा भी किया है, जो यह बताते हैं कि दुनिया के सबसे ठंडे देशों की महिलाएं यदि गर्भावस्था में विटामिन डी लें तो उनके शिशुओं को मल्टीपल स्क्लेरोसिस (एमएस) होने से बचाया जा सकता है।

विटामिन-ई और गर्भावस्था-

विटामिन-ई एक एंटी-ऑक्सीडेंट है। यह वनस्पति तेल, ब्रोकोली, दाल आदि में पाया जाता है। एक अनुसंधान में बताया गया था कि विटामिन-ई को यदि विटामिन-सी के साथ मिलाकर लिया जाए तो यह गर्भावस्था के दौरान कई तरह की समस्याओं से बचा सकता है। जिसमें मुख्य रूप से गर्भपात की समस्या शामिल होती है।

लेकिन अक्सर खुद से ली जाने वाली दवाइयां तथा पोषक तत्वों के साथ विटामिन-ई का भी अधिकाधिक सेवन कर लिया जाता है। ऐसा करने पर पायदे की जगह नुकसान होता है।

 यह समझ लें कि विटामिन गर्भधारण में मदद तो जरूर करता हैं लेकिन इसे कितना और कब लेना है, यह आप खुद से कभी निर्धारित नहीं कर सकते। इसलिए हमेशा कोई भी विटामिन लेने के पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

गर्भावस्था में मछली के तेल के फायदे

मछली का तेल बहुत लाभकारी होता है। यह न सिर्फ महिलाओं बल्कि पुरूषों के स्वा‍स्थ्‍य के लिए भी लाभदायक है। मछली के तेल से कई बीमारियों को दूर मिलती है। गर्भवती महिलाओं के लिए भी लाभकारी है ये तेल। गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क को तेज करने के लिए भी इस तेल का प्रयोग किया जाता है।

मछली के तेल में भरपूर मात्रा में ओमेगा-3 पाया जाता है। जो अवसाद, उदासी, चिंता, व्याकुलता, मानसिक थकान, तनाव, आदि मानसिक रोगों को गर्भावस्‍था में दूर करता है।

मछली का तेल शिशुओं और गर्भवती महिलाओं की प्रतिरोधक प्रणाली के लिए भी बेहतर पूरक आहार है। ओमेगा-3 मां से बच्चे में प्लेसेंटा के माध्यम से जाता है। जो बच्चों में इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है और बाद में एक्जिमा से बच्चों को बचाता है। आइए जानें गर्भावस्था‍ में मछली के तेल के लाभों के बारे में।

गर्भावस्था में मछली के तेल के फायदे

 शारीरिक विकास
गर्भावस्था में महिलाओं द्वारा मछली के तेल के सेवन से गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क और आंखों के विकास में सुधार होता है। इस तेल में डी एच ए की उपस्थिति के कारण गर्भस्थ शिशु के शारीरिक विकास में भी सहायता मिलती है।

 स्वस्थ और हेल्थी बच्चे का जन्‍म
मछली के तेल के सही उपयोग से होने वाले बच्चे का विकास सही तरह से होता है, इतना ही नहीं, इस तेल के सेवन से एक स्वस्थ और हेल्थी बच्चे, को जन्म देने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

 दिमाग का उचित विकास
मछली के तेल में ओमेगा-3 और डीएचए पाए जाने के कारण बच्चे के दिमाग का उचित विकास करने में मदद मिलती है। ऐसे में बच्चा सामान्य बच्चों से अधिक तेज होता है।

 रक्त परिसंचरण का सकारात्मक रूप
मछली के तेल से एक और जहां स्वस्थ शिशु को जन्म दिया जा सकता है वही, यह तेल गर्भवती महिलाओं को आहार का एक भाग भी प्रदान करता है। इतना ही नहीं इससे ऑक्‍सीजन और पोषक तत्वों के बीच रक्त परिसंचरण को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

 विकार की संभावनाएं खत्म
शोधों में भी ये बात साबित हो चुकी है कि मछली के तेल के उपयोग से गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क विकास और हाथों और आंखों जैसे अंगों को काफी मजबूती मिलती है। इतना ही नहीं इन बच्चों के रक्त में ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा पर्याप्त होती है जो जिससे बच्चे में किसी भी विकार के होने की संभावनाएं खत्म हो जाती है।

 शरीर और हड्डियों में मजबूती
जो गर्भवती महिलाएं ठीक से खान-पान नहीं कर पाती उनके लिए मछली के तेल का सेवन बहुत जरूरी है। मछली के तेल का न सिर्फ सेवन ही लाभकारी है बल्कि गर्भवती महिला व शिशु की भी इस तेल से मालिश करने से शरीर में और हड्डियों में मजबूती आती है। महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान ओमेगा-3 की अतिरिक्त खुराक लेती हैं उनके बच्चों की त्वचा रूखी नहीं होती।गर्भावस्था में भारतीय व्यंजन

गर्भावस्था महिला के लिए एक ऐसी अवस्था होती है, जब उसे अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य की भी चिंता करनी होती है। ऐसे में उसके लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह ऐसा पौष्टिक आहार ले, जो उसे ताकत दे ही उसके बच्चे के लिए भी लाभदायक हो।

परंपरागत भारतीय आहार में ऐसी कई चीजें हैं, जो गर्भावस्था में महिलाओं के लिए स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। गर्भावस्था में स्वस्थ आहार लेना महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है। आइए जानें गर्भावस्था में भारतीय व्यंजन कौन-कौन से लिए जा सकते हैं।

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कुछ पौष्टिक व्यंजन जो कि मां और बच्चे दोनों के लिए जरूरी हैं

दूध से बने खाद्य पदार्थ

पनीर युक्त खाद्य पदार्थ

पौष्टिक दालें

फल युक्त सब्जियां

चावल और मोटे अनाज से बना खाना

घी, गुड और शर्करा युक्त डेजर्ट

मेवे और घी युक्त मिठाईयां

हरे पत्तेदार सब्जियां और इसी तरह की अन्य तरकारियां

यदि आपको नानवेज खाने का शौक है तो उबले हुए अंडे, मछली के तेल

यह जरूरी नहीं कि गर्भवती महिलाएं भोजन की मात्रा पर ध्यान दें कि वह कब कितना भोजन ले रही है बल्कि सही मायनो में उन्हें भोजन की किस्म पर ध्यान देना चाहिए कि वह खुराक क्या ले रही हैं।

गर्भावस्था के दौरान पोषक तत्व युक्त खुराक बहुत जरूरी है। ये पौष्‍टिक खुराक ही बच्चे के विकास में बहुत उपयोगी है।

गर्भावस्था में महिलाओं को अपने खाने में कैलोरी की मात्रा अधिक कर देनी चाहिए जिससे मां और बच्चे को भरपूर आहार मिल सकें।

आमतौर पर भारतीय आहार में दूध, फल, दाल, अण्डे, सब्जी और सलाद में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए। इससे न कि तैलीय खाद्य पदार्थों में।

भारतीय व्यंजनों के दौरान आप यदि स्वस्थ आहार लेती हैं तो आप स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से बच सकती हैं। 

यदि आप भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियां, बीज वाली फलिया, मौसम के हिसाब से फल, दूधयुक्त खाद्य पदार्थ, सोयाबीन, दलिया, ओटमील, मूंगफली, अंकुरित दालें जैसी चीजों को सही मात्रा में लेती रहें तो निश्चित रूप से आप स्वस्थ रहेंगी और आपके होने वाले बच्चे का विकास भी सही रूप में होगा।

गर्भवती महिलाओं को भारतीय व्यंजन ध्यान रखना चाहिए कि उनके व्यंजनों में प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, विटामिन, फोलिड एसिड जैसे पोषक तत्वों का समावेश हो, यदि वे इस बात का ध्यान रखेंगी तो गर्भावस्था के दौरान उन्हें कम परेशानियां होंगी।

आमतौर पर कहा जाता है भ्रूण के विकास के लिए प्रोटीन बेहद आवश्यक है, ऐसे में आपको अपने व्यंजनों में प्रोटीन की मात्रा का खास ध्यान रखना चाहिए। जो भी आप खाना लें उसमें प्रोटीन की भरपूर मात्रा हो। मछली, मांस, अंडे में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है लेकिन आप शाकाहारी भोजन लेना पसंद करती हैं तो आपको पनीर और पनीरयुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन अवश्य करना चाहिए।

गर्भावस्‍था का पांचवें महीने तक भ्रूण का काफी विकास हो चुका होता है। ऐसे में महिला के लिए जरूरी होता है वह अपनी सेहत का पूरा खयाल रखे। क्‍योंकि महिला के आहार और व्‍यवहार का अंतर गर्भ में पल रहे बच्‍चे की सेहत पर पड़ता है। जरा सी असावधानी से कई प्रकार की जटिलताएं हो सकती हैं, जो भविष्‍य में काफी व्‍यापक रूप ले सकती हैं।

गर्भावस्था के प्रत्येक महीने और हर सप्ताह महिला में कई शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते रहते है। और ऐसे में अपने आहार पर विशेष ध्‍यान देना जरूरी है। साथ ही अगर आप इस तरह के शारीरिक परिवर्तन की जटिलताओं से बचना चाहती है तो चिंता और अवसाद से दूर रहें।

गर्भावस्था के पांचवें महीने में क्‍या खाएं -

महिलाओं को गर्भावस्था के पांचवें महीने में हर सप्ताह 1-2 पाउंड वजन बढ़ना चाहिए। और यह दूसरी तिमाही के मध्य से ही शुरू कर देना चाहिए। महिलाओं को अपनी गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में पहले की तुलना में 347 अतिरिक्त कैलोरी आहार में शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, अतिरिक्त कैलोरी, प्रोटीन, और कैल्शियम को भी अपने आहार में शामिल करना चाहिए। गर्भवति अपने आहार में साबुत अनाज को शामिल करें। इस दौरान शक्कर, फैटी चीजों और कार्बोहाइड्रेट वाले आहार ना खाए या कम से कम मात्रा में खाये।

गर्भावस्था के पांचवें महीने में कैसा हो आपका आहार-

गर्भावस्‍था के पांचवें महीने में गन्ने और आम का रस जरूर पीये। क्‍योंकि इनमें प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और फाइबर होता है। जो इस दौरान आपके स्वास्थ के लिए बहुत लाभकारी होगा। इससे आपको ताकत मिलेगी और आपके होने वाले बच्‍चे के विकास में भी मदद मिलेगी। साथ ही इनके पीने से आपकी हालत में सुधार होगा और प्रसव के दौरान होने वाली तकलिफों को भी कम किया जा सकेगा।

गर्भावस्‍था के पांचवें महीने में मांस और खासकर समुद्री मछलियों को खाने से बचे।

इस दौरान अनाज, फलियां और दालों को अधिक से अधिक मात्रा में अपने आहार में शामिल करें। इनमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है, जो आपके होने वाले बच्चे के विकास के लिए आवश्यक है।

गर्भावस्‍था के पांचवें महीने में डिब्बा बंद पेय और भोजन से बचें, साथ ही सिगरेट और शराब से भी दूर रहें। ये गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं का कारण हो सकती है।

गर्भावस्था के पांचवें महीने में आप मक्खन और वसा भी ले सकती है।

पांचवें महीने में आपको संतुलित आहार की जरूरत होती है। यह आपको साबुत अनाज, प्रोटीन और तेल, फल एवं सब्जियों से मिल सकता है। इसलिए अपने आहार में इन तत्त्‍वों को जरूर शामिल करें।

पांचवें महीने में आपको क्‍या खाना है और क्‍या नहीं, इसके लिए आप आपने डॉक्‍टर से जरूर सलाह ले। 5 महीने की गर्भावस्था में कोशिश करें कि बाहर का खाना ना खाए।गर्भवती महिलाओं पर मैग्‍नीशियम युक्‍त खाद्य पदार्थो का असर

शरीर के ठीक से कार्य करने के लिए और हड्डियों के निर्माण के लिए मैग्नीशियम एक बहुत ही महत्वपूर्ण खनिज है। पर सवाल यह है कि गर्भावस्था के दौरान क्यों और कितनी मात्रा में मैग्नीशियम लेना सुरक्षित है।

गर्भवती महिला के शरीर में पल रहे बच्चे के लिए मैग्नीशियम बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में शरीर के ऊतकों की मरम्मत के लिए 350 से 400 मिलीग्राम मैग्नीशियम की जरूरत होती है।

गर्भावस्था के दौरान मैग्नीशियम की कमी से भ्रूण के विकास में बाधा हो सकती है।

मैग्नीशियम के लाभ

मैग्नीशियम और कैल्शियम मिलकर शरीर में मांसपेशियों का निर्माण करते है। गर्भावस्था के दौरान, मैग्नीशियम की उचित मात्रा गर्भाशय को बनाए रखने में मदद करती है और मिसकेरेज जैसी समस्या से बचाती है।

 गर्भावस्‍था के दौरान मैग्नीशियम पैरों में ऐंठन को कम करने में भी सहायक होती हैं।

मैग्नीशियम हड्डियों के निर्माण में मदद करता है। साथ ही ये इंसुलिन, रक्त शर्करा के स्तर और एंजाइमों के कामकाज को नियंत्रित करता है।

अगर एक गर्भवती महिला उचित मात्रा में मैग्नीशियम ले, तो वो कोलेस्ट्रॉल और अनियमित दिल की धड़कन जैसी बीमारियों पर नियंत्रित पा सकती है।

उल्टी, थकान, अनिद्रा, भूख की कमी, मांसपेशियों में दर्द, खराब स्मृति, और अनियमित दिल की धड़कन मैग्नीशियम की कमी की ओर संकेत करते हैं। मैग्नीशियम की कमी शराब पीने, लंबे समय तक उल्टी होने, दस्त, प्रोटीन की कमी, गुर्दा रोग या मधुमेह दवाओं के परिणाम के रूप में हो सकता है।

गर्भावस्था के दौरान अधिक मैग्नीशियम

गर्भावस्‍था के दौरान ज्यादा मात्रा में मैग्नीशियम लेना भी उतना ही बुरा है, जितना कम मात्रा में लेना। अत्यधिक मैग्नीशियम की खुराक या मैग्नीशियम लवण से कम रक्तचाप, दस्त, और निर्जलीकरण की समस्या हो सकती हैं।

मैग्नीशियम के लिए क्‍या खाएं-

 गर्भवती महिलाओं को मैग्नीशियम साबुत अनाज, मछली, हरी पत्तेदार सब्जियों और कुछ फलियों से मिल सकता है। इसलिए इन्हे आहार में जरूर शामिल करें।

इसके अलावा कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज, भूरे रंग के चावल, सूखा भुना हुआ बादाम, पालक, दलिया, पके हुए आलू, दही और बीन्स गर्भवती महिलाओं के लिए अच्छे विकल्पों में से है।

डेयरी उत्पादों, चॉकलेट, कॉफी और उच्च खनिज युक्त पानी मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत हैं।

विभिन्न खाद्य स्रोतों से मैग्नीशियम की आवश्यकता को पूरा करना आसान है।प्रेग्नेंसी में जरूरी है फोलिक एसिड
खान-पान और अन्य चीजों को लेकर प्रेग्नेंसी में विशेष सावधानी बरतनी आवश्यक हो जाती है। यदि ऐसा न किया जाए तो प्रेग्नेंसी में प्रॉब्लम हो सकती है। प्रेग्नेंसी के दौरान प्रेग्नेंट महिला के हार्मोंस में काफी परिवर्तन आ जाता है। ऐसे में विटामिन, कैल्शियम, कैलोरी इत्यादि की जरूरत भी अधिक होती है।

प्रेग्नेंसी के दौरान फोलिक एसिड का नियमित रूप से सेवन करना आवश्यक है। फोलिड एसिड की कमी गर्भवती मां और होने वाले बच्चें के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक है।

आइए जानें क्यों प्रेग्नेंसी में जरूरी है फोलिड एसिड।

प्रेग्नेंसी में फोलिक एसिड

गर्भवती महिला को खाने में विटामिन, मिनरल और अन्य पोषक तत्वों के साथ ही फोलिक और आयरन लेना सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है।

वैसे तो आमतौर पर भी इन विटामिंस की जरूरत होती है, लेकिन गर्भावस्था में फोलिक एसिड और आयरन की आवश्यकता सामान्य से 50फीसदी तक बढ़ जाती है।

गर्भावस्था के दौरान फोलिक एसिड का नियमित सेवन न करने से गर्भवती महिला को एनीमिया हो सकता है। इतना ही नहीं यह बीमारी होने वाले बच्चे को भी हो सकती है।

शुरूआती दिनों में फोलिक एसिड का अधिक सेवन करने से गर्भावस्था के आने वाले दो-तीन महीनों में इसकी आपूर्ति होती है। ऐसे में शुरूआती समय में ही फोलिक एसिड  और आयरन भरपूर मात्रा में लेना चाहिए।

फोलिक एसिड की पूर्ति के लिए गर्भवती महिला को हरी पत्तेदार सब्जियां, स्ट्राबेरी, फलियों, संतरे, मोसमी और सलाद का सेवन करना चाहिए। हालांकि इसके फोलिक एसिड की पिल्स भी आती हैं लेकिन पिल्स से अन्य बीमारियां जैसे कब्ज इत्यादि होने की संभावना रहती है।

गर्भावस्था में फोलिक एसिड की कमी जैसी समस्या आम होती है। इसकी वजह से बच्चे की रीढ़ की हड्डी में विकार उत्पन्न हो सकते हैं। साथ ही मस्तिष्क के सामान्य विकास पर भी असर पड़ सकता है, इसलिए गर्भावस्था में यह सबसे ज्यादा जरूरी है।

गर्भावस्था शुरूआत में भले ही फोलिक एसिड की मात्रा कम लें, लेकिन धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ा देनी चाहिए जिससे फोलिड एसिड की कमी से कोई विकार उत्पन्न ना हो।
गर्भावस्था में फोलिक एसिड के नियमित सेवन से गर्भस्थ शिशु में होने वाले जन्मजात विकार जैसे स्पाईनल बायफिडा की समस्या कम हो जाती है।

गर्भावस्था में फोलिक एसिड और अन्य विटामिन, मिनरल्स इत्यादि की कमी होने से न सिर्फ मां बल्कि होने वाले बच्चें को भी कई स्वास्‍थ्‍य समस्या‍एं हो जाती है। इसके अलावा मां और बच्चे की जान का भी जोखिम बना रहता है।गर्भावस्था में आयुर्वेदिक आहार

गर्भावस्था में किसी भी महिला के लिए पौष्टिक आहार अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। यह न केवल मां के लिए बल्कि होने वाले बच्चे के स्वास्‍थ्‍य के लिए भी अत्यंत आवश्याक होता है। इसलिए गर्भवती महिला की आहार योजना में पौष्टिक पदार्थों का सही मेल होना बेहद जरूरी है।

गर्भावस्‍था में आपको अपने खाने का लिए अतिरिक्त ध्यान रखना होता है। लेकिन, जानकारों की नजर में आयुर्वेद किसी भी गर्भवती महिला के लिए बेहद उपयोगी आहार योजना हो सकती है। गर्भावस्था में खाने-पीने के मामले में आयुर्वेद विश्वसनीय उपाय है।
आयुर्वेद गर्भवती महिलाओं के लिए एक आदर्श प्रोटोकॉल है।
गर्भावस्था में आयुर्वेदिक आहार

•    आयुर्वेद के अनुसार, गर्भधारण से पहले कम से कम 3 महीने तक सात्विक आहार करना चाहिए। इस आहार को ताजा फल आड़ू, आम और नारियल के रूप में मिलाकर करना चाहिए।

•    गर्भावस्था के दौरान आयुर्वेद आहार में बासमती चावल को बेहतर विकल्प के तौर पर देखा जाता है। मीठे आलू, अंकुरित अनाज और स्क्वैश सब्जियां उनके उच्च पोषण के महत्व की वजह से सूची से बाहर नहीं रह सकते। साथ ही दलिया और अनाज खाएं।

•       मां बनने जा रही महिला तरल या घी के साथ या दूध के साथ मिश्रित चावल खा सकती है। मछली एक गर्भवती महिला के लिए स्वस्थ आहार है। लेकिन लाल मांस खाने से बचना चाहिए।

•    हर सुबह एक गिलास फलों का ताजा रस पीना चाहिए।

•    गर्भावस्था के दौरान आयुर्वेदिक आहार में विटामिन सी भी आता है। जो माँ और बच्चे दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। गाजर, टमाटर में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी होता है। इसलिए दोपहर के भोजन में इसे शामिल करें।

•    भ्रूण के विकास के बारे में बात करे, तो गर्भावस्था के पहले तीन महीने अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। भ्रूण के विकास के लिए दूध और पानी, नारियल पानी और फलों के रस जरूर पिएं।

•    7 महीने के दौरान नमक और वसा की मात्रा को कम करना आवश्यक है।

•    आयुर्वेद आहार में गेहूं, राई, जई, अंकुरित, सेम, मसूर, रोटी, सोया सेम, और सूखे मटर आते है। इन खाद्य पदार्थों में प्रोटीन का खजाना होता है, और गर्भावस्था के लिए एकदम सही आयुर्वेदिक आहार है। आलू, पालक, बादाम, अंजीर, अंगूर और सूखे मेवे भी एक भ्रूण के लिए अच्छे आहार है।

गर्भावस्था आहार का सही चयन वास्तव में बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का फैसला करता हैं। इस समय के दौरान स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना बहुत जरूरी है। और इस दौरान आप आयुर्वेदिक गर्भावस्था आहार पर पूरा विश्वास कर सकती हैं।

मानसून में गर्भवती रखें अपने खानपान का विशेष ध्‍यान

अगर आप गर्भवती हैं तो जरा संभल जाइए, मानसून ने दस्तक दे दी है। इस मौसम में खाने-पीने में बरती गई जरा-सी लापरवाही आपकी तबीयत बिगाड़ सकती है। इस मौसम में आप अपने खान-पान का विशेष ध्यान रखें।

 ऐसे में आमतौर पर डॉक्टर पौष्टिक आहार लेने की सलाह देते हैं। मानसून में गर्भवती महिला को जरूरी विटामिन, खनिज, कैल्शियम, प्रोटीन, कैलोरी से भरपूर खाद्य पदार्थों भरपूर सेवन करना चाहिए। आइए जानें मानसून में गर्भवती को अपने आहार में किस प्रकार की सावधानी लेनी चाहिए।

इन बातों का रखें ध्यान-

 •    अगर आप गर्भवती हैं तो हमेशा ताजा खाना ही खाएं। इस मौसम में थोड़ी-सी लापरवाही आपको नुकसान पहुंचा  सकती है।

•    खाना फ्रिज में से निकालते ही न खाएं। उसे थोड़ी बाहर रखकर उसका तापमान सामान्य होने दें।

•    दिन में आठ-दस गिलास पानी पीएं। बाहर के खाने का परहेज करें।

•    जंकफूड को बिल्कुल नजरअंदाज कर दें।

•    मानसून में पत्तेदार सब्जियां ना खाएं, क्योंकि इन सब्जियों में सेल्यूलोस होता है जो ठीक से पचता नहीं है।

•    बरसात में विशेष तौर पर कटे और खुले में रखे हुए फल ना खाएं।

•    तला खाना नहीं खाना चाहिए। यह जल्दी नहीं पचता।

•    ऐसी चीजें खानी चाहिए जो सूखी हों जैसे मक्का, चना, बेसन, जौ आदि।

इस मौसम में पीने के पानी का सावधानी से इस्तेमाल करें। पानी को जहाँ तक हो सके उबाल कर ठण्डा करके ही पीएं।

चीजें है जो मानसून में आपको फिट रखेंगी-

•    हल्दी हमारे शरीर को कीटाणुओं से बचाती है। थोड़ी-सी हल्दी में कुछ बूंद पानी मिलाकर उसकी गोली बनाकर खाना भी बहुत मददगार साबित होगा।

•    शहद आपकी पाचन क्रिया को ठीक रखने में मदद करता है। रोजाना दो चम्मच शहद आपको तो फिट रखेगा, साथ ही, इससे नींद भी अच्छी आयेगी।

•    आप लहसुन की चटनी बनाकर तो खा ही सकती हैं। यह आपके शरीर को रोग रहित बनाता है।

•    लौह युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन भी गर्भावस्था के दौरान बहुत जरूरी है। ये न सिर्फ खून की कमी को दूर करता है बल्कि हड्डियों को भी मजबूत करता है।

•    उबला हुआ भोजन खाना गर्भावस्था के समय सबसे बढि़या है।

•    गर्भावस्था में ऐसा भोजन करना चाहिए, ताकि मोटापा ना हो।

•    गर्भावस्था आहार में कम से कम नमक का इस्तेमाल करते हुए फोर्टिफायड फूड लेना चाहिए।

•    गर्भवती महिला को गेहूं, ओट मिल और अनाज की ब्रेड का ही सेवन करना चाहिए।

•    पानी तो हमेशा से ही किफायती होता है। गर्भवती महिला को अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए।

•    ताजा खाने के साथ-साथ ताजे फल, ताजा जूस और उबला हुआ दूध और उससे बने पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए।

•    बरसात के मौसम में कुछ चीजें जैसे मांस, अंडा, नट्स, पालक, गाजर, आलू, मक्का, मटर, संतरे, तरबूज और जामुन, ब्रेड, अनाज, चावल का सेवन गर्भावस्था के दौरान अवश्य ही करना चाहिए।
                                        धन्यवाद

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