रविवार, 19 अप्रैल 2020

Herb Shatawar (Super herb for women's)

 MAGICAL HERB = SHATAWAR  (Asparagus racemosus)
परिचय : शतावर की बेल भारत में हर जगह पाई जाती है, लेकिन उत्तरी भारत में शतावर ज्यादा पैदा होता है। शतावर की बेल बाग-बगीचों, बंगलों में सौंदर्य वृद्धि हेतु भी लगाई जाती है। शतावर की बेल पेड़ का सहारा लेकर ऊपर बढ़ती है, जिसमें कई कांटे होते हैं। इसकी शाखा-प्रशाखाएं चारों ओर फैलकर इसे झाड़ीनुमा बना देती है। शतावर के कांटे 6 से 12 मिलीमीटर लम्बे, कुछ टेढ़े होते हैं। इसकी पत्तियां गुच्छों में एक साथ 4 से 6 इंच लम्बी नोकदार, छोटी व नलीदार होती है। शतावर के फूल मंजरियों पर छोटे-छोटे, सुगंधित, गुच्छों में 3 से 5 मिलीमीटर व्यास के लगते हैं। इसके एक साथ हजारों फूल लगने के कारण नवम्बर के महीनों में पूरी बेल सफेद नज़र आती है। शतावर के फल गोल, मटर के दाने जैसे पकने पर लाल रंग के लगते हैं, जिसमें 1-2 काले रंग के बीज निकलते हैं। जड़ फल के समान लम्बी गोल, उंगली की तरह मोटी सफेद, मटमैले, पीले रंग की सैकड़ों जड़ों में निकलती हैं। इन जड़ों को ही औषधि के रूप में इस्तेमाल करते हैं। शतावर का स्वाद फीका होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार : शतावर की रासायनिक संरचना को विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें 7 प्रतिशत शर्करा, म्यूसिलेज पिच्छिल द्रव्य, सैपोनिन अमीनो अम्ल आदि पाये जाते हैं। यूनानियों के अनुसार : शतावर पहले दर्जे की शीतल व स्निग्ध होती है। शरीर में ताकत के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न भाषाओं मे नाम : संस्कृत शतावरी, शतवीर्या हिंदी शतावर, सतमूली, शतावर मराठी शतमूली, लघु सतावरी गुजराती से मुखा बंगाली शतमूली अंग्रेंजी वाइल्ड एसपेरेगस स्वभाव : शतावर का स्वभाव ठंडा होता है, मगर यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार गर्म और रूखा भी होता है। हानिकारक : यह सिर में दर्द पैदा करता है। दोषों को दूर करने के लिए: शहद के साथ शतावरी का सेवन करने से इसके दोष खत्म हो जाते हैं। तुलना : शतावर की तुलना वहमन सफेद से किया जाता है। मात्रा : शतावर के कन्द का रस 10 से 20 मिलीलीटर। फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम। जड़ का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर। गुण : शतावर बुद्धि के लिए उत्तम, पेट की जलन, भारी, रसायन, आंखों के लिए लाभदायक, वीर्यवर्धक, ठंडा, दूध को बढ़ाने वाली, बलवर्धक, दस्त तथा वातपित्त, खून की गन्दगी को साफ करना, तथा सूजन आदि को दूर करता है।
विभिन्न रोगों मे सहायक : 1. जुकाम : 10 ग्राम शतावर पिसी हुई को पांच काली मिर्च के साथ मिलाकर पानी में घोटकर सुबह-शाम पिया जायें तो जुकाम ठीक हो जाता है। 2. वात रोग : 20-20 ग्राम शतावर और पीपर को पीस-छानकर 5-5 ग्राम सुबह दूध से लेने पर वात रोग ठीक हो जाता है। 3. नपुसंकता : शतावर, असगंध, एला, कुलंजन और वंशलोचन का चूर्ण बनाकर रख लें। इसमें से 3 ग्राम चूर्ण में 6 ग्राम शक्कर मिलाकर खाने से और फिर ऊपर से दूध पीने से कुछ ही महीनों में नपुंसकता खत्म हो जाती है। शतावर और असगन्ध के 4 ग्राम चूर्ण को दूध में उबाल कर पीने से नपुंसकता समाप्त हो जाती है। शतावर को दूध में देर तक उबालकर मिश्री मिला लें और इस दूध को पीने से ही कुछ महीनों में नपुंसकता खत्म हो जाती है। 3 ग्राम शतावर का चूर्ण दूध में डालकर उबाल लें फिर इसमें मिश्री मिलाकर पीने से सहवास की कमजोरी दूर हो जाती है। 4. सिर का दर्द : शतावर की ताजी मूल (जड़) को पीसकर व रस निकाल कर उसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर उबाल लेना चाहिए। फिर इस तेल से सिर की मालिश करने से मस्तक का दर्द और आधे सिर का दर्द खत्म हो जाता है। 5. सूखी खांसी : 10 ग्राम शतावर, 10 ग्राम अडूसे के पत्ते और 10 ग्राम मिश्री को 150 मिलीलीटर पानी के साथ उबालकर दिन में 3 बार पीने से सूखी खांसी समाप्त हो जाती है। शतावर, अड़ूसे के पत्ते और मिश्री को पानी में उबालकर पीने से सूखी खांसी मिट जाती है। 6. स्तनों का जमा दूध निकालना : 50-50 ग्राम शतावर, सौंफ, बिदारीकंद को पीसकर और छानकर 5 ग्राम दूध या पानी से लेने से महिलाओं की छाती का जमा हुआ दूध पिघलकर उतर जाता है। 7. प्रदर रोग : 150 ग्राम शतवारी को पीसकर और छानकर 20 ग्राम की मात्रा में, 200 मिलीलीटर दूध और 200 मिलीलीटर पानी के साथ मिलाकर उबाले आधा रह जाने पर इसमे खांड मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग मिट जाता है। 8. श्वेत प्रदर : शतावर का चूर्ण बनाकर शहद के साथ सेवन करने से श्वेत प्रदर दूर हो जाता है। 9. योनि से खून का बहना: 20 ग्राम शतावर और गोखरू की जड़, 160 मिलीलीटर बकरी का दूध और 1 लीटर पानी को मिलाकर आग पर गर्म करें और थोड़ा बचने पर छानकर स्त्री को पिला दें इससे योनि से खून का बहना बंद हो जाता है। 10. वीर्य के रोग में : शतावर रस या आंवला का रस अथवा गोखुरू का काढ़ा शहद में मिला कर पीने से वीर्य शुद्ध होता है। शतावर, सफेद मूसली, असगन्ध, कौंच के बीज, गोखरू और आंवला को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह 3-3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम खाने से धातु (वीर्य) में वृद्धि होती है। 10 ग्राम से 20 ग्राम शतावर के चूर्ण को चीनी और दूध के साथ पेय बना कर सुबह-शाम पीने से धातु (वीर्य) का पतलापन दूर होता है और वीर्य गाढ़ा होता है। गीली शतावर को चीरकर बीच के तिनके निकाल कर दूध के साथ पिसी मिश्री मिलाकर खाने से धातु में वृद्धि होती है। 11. गठिया रोग : शतावर के तेल से रोजाना घुटनों पर मालिश करने से गठिया (घुटनो का दर्द) रोग ठीक हो जाता है। 12. नहरूआ : नहरूआ के रोगी को शतावर की ठंडाई (ठंडी शरबत) बनाकर पीने से लाभ मिलता है। 13. अनिद्रा रोग : शतावर की खीर में घी मिलाकर सेवन करने से अनिद्रा (नींद न आना) का रोग समाप्त हो जाता है। 14. रतौंधी : शतावर के मुलायम पतों की सब्जी घी में बनाकर खाने से रतौंधी दूर हो जाती है। 15. वात खांसी : शतावर के थोड़े गर्म काढ़े में 1 ग्राम पीपल का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से वातज कास और दर्द दूर हो जाता है। 16. श्वास मूर्छा : 1 ग्राम शतावर का चूर्ण, 1 ग्राम घी, 4 ग्राम दूध को उबालकर घी मे पकाकर बलानुसार पीने से मूर्च्छा (बेहोशी) ठीक होने के साथ अम्लपित, रक्त पित, वात और पित्त के विकार, श्वास (दमा) और तृष्णा (प्सास) आदि रोग खत्म हो जाते है। 17. स्त्री के दूध में वृद्धि : 10 ग्राम शतावर के चूर्ण की फंकी दूध के साथ लेने से स्त्री के स्तनों मे दूध की बढ़ोतरी होती है। शतावर को गाय के दूध में पीस कर सेवन करने से स्त्री का दूध मीठा और पौष्टिक हो जाता है। 18. रक्तातिसार : गीली शतावर को दूध के साथ पीसकर व छानकर दिन में 3-4 बार पीने से खूनी दस्त बंद हो जाते हैं। 19. मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन और पेशाब की रूकावट) : 20 ग्राम गोखरू के पंचांग के साथ बराबर मात्रा में शतावर को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर, छानकर उसमे 10 ग्राम मिश्री और 2 चम्मच शहद मिलाकर रोगी को थोड़ा पिलाने से पेशाब में जलन और पेशाब की रूकावट खत्म हो जाती है। 20. पुरुषार्थ बढ़ाने के लिए: शतावर को पकाकर सेवन करने से अथवा दूध के साथ इसके चूर्ण की खीर बनाकर खाने से पुरूषार्थ (संभोग करने की शक्ति) बढ़ती है। 21. व्रण (घाव) : शतावर के 20 ग्राम पत्तों का चूर्ण बनाकर दुगने घी में तलकर अच्छी तरह से पीसकर घावों पर लगाते रहने से पुराने से पुराना घाव भी भर जाता है। 22. स्वप्नदोष : 250 मिलीलीटर ताजी शतावर की जड़ का चूर्ण और 250 ग्राम मिश्री को पीसकर 6 से 7 ग्राम की मात्रा 250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम रोगी को देने से स्वप्नदोष दूर होकर शरीर मजबूत बन जाता है। 23. मूत्रविकार : गोखरू और शतावर का शर्बत बनाकर पीने से मूत्रविकार (पेशाब के रोग) खत्म हो जाते हैं। 24. अश्मरी (पथरी) हो जाने पर : 20 से 50 ग्राम शतावर के रस में बराबर मात्रा में गाय का दूध मिलाकर पीने से गुर्दे की पथरी जल्दी से गल कर पेशाब के साथ बाहर आ जाती है। 25. प्रमेह : 20 ग्राम शतावर के रस को 80 ग्राम दूध में मिलाकर पीने से प्रमेह रोग नष्ट हो जाता है। 26. अन्तरार्श : 2 से 4 ग्राम शतावर के चूर्ण को दूध के साथ रोजाना सेवन करने से अन्तरार्श(बवासीर के मस्से जो बाहर से दिखाई नही पड़ते वह) दूर हो जाते हैं। 27. पित्तज प्रदर : 10 से 20 ग्राम शतावर के रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से पित्तज प्रदर रोग मिट जाता है। 28. वात ज्वर : 10-10 ग्राम शतावर और गिलोय के रस में थोड़ा गुड़ मिलाकर खाने से या दोनों के 50 से 60 मिलीलीटर काढ़े में 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से वात-ज्वर खत्म हो जाता है। 29. विषनाश : शतावर की जड़ का रस दूध में मिलाकर रोगी को पिलाने से शरीर में चढ़ा हुआ जहर दूर हो जाता है। 30. शरीर का शक्तिशाली होना : शतावर को पकाकर खाने या शतावर के चूर्ण की खीर बनाकर सेवन करने से शरीर में ताकत की वृद्धि होती है। लगभग 200-200 ग्राम की मात्रा में शतावर और असगंध को लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को लगभग 6 ग्राम की मात्रा में लेकर 500 मिलीलीटर दूध में डालकर इतनी देर तक उबालें की दूध आधी मात्रा में ही रह जाये। अब इस बचे हुए दूध में लगभग 20 ग्राम मिश्री डालकर इसको पी जायें। इसका सेवन 40 दिनों तक लगातार करना चाहिए। इससे शरीर शक्तिशाली बनता है। शतावर के घी से मालिश करने से शरीर की कमजोरी समाप्त हो जाती है। 31. अम्लपित्त : शतावर की 14 से 28 मिलीलीटर जड़ का ताजा रस शहद के साथ दिन 2 बार लेने से अम्लपित्त (एसिडिटीज) का रोग दूर हो जाता है। 32. अपस्मार : 12 ग्राम शतावर की जड़ का चूर्ण दूध के साथ दिन में 2 बार लेने से अपस्मार (मिर्गी) का रोग दूर हो जाता है। 2 चम्मच शतावर की जड़ का रस 1 कप दूध के साथ सुबह-शाम पीने से कुछ महीनों मे मिर्गी के रोग मे फर्क दिखाई देने लगता है। 33. परिणामशूल : 3-6 ग्राम शतावर की जड़ का चूर्ण दूध के साथ दिन में 2 बार लेने से परिणाम शूल दूर हो जाता है। 34. बुखार : 6 मिलीलीटर शतावर की जड़ का रस बराबर मात्रा में गिलोय के रस तथा गुड़ के साथ दिन में 3 बार रोगी को देने से बुखार जल्दी उतर जाता है। 35. मूत्राघात : 25 ग्राम शतावर की जड़ का चूर्ण 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार रोगी को देने से मूत्राघात (पेशाब के साथ धातु का आना) बंद हो जाता है। 36. आंखों के रोग : 12 से 24 ग्राम शतावरी से सिद्ध किया 100-200 मिलीलीटर दूध अदरक के रस के साथ दिन में 2 बार रोगी को देने से आंखों के सारे रोग दूर हो जाते हैं। 37. रक्त्तपित्त : 100 से 200 मिलीलीटर शतावरी की जड़ तथा गोखरू से सिद्ध दूध दिन में 2 बार रोगी को देने से रक्तपित्त का रोग दूर हो जाता है। 38. नपुंसकता : 10 ग्राम से 20 ग्राम शतावरी के चूर्ण को शक्कर मिले दूध में सुबह-शाम डालकर पीने से नपुंसकता दूर होती है और शरीर की कमजोरी भी दूर होती है। 39. दस्त: शतावर का बारीक चूर्ण बनाकर 10 ग्राम से लेकर 20 ग्राम की मात्रा में चीनी और दूध के साथ पीने से रोगी को दस्त और धातु की बीमारी से छुटकारा मिलता है। 10 से 20 ग्राम शतावर चूर्ण को सुबह-शाम चीनी एवं दूध में पेय बनाकर लेने से संग्रहणी अतिसार (बार-बार दस्त का आना) में लाभ मिलता है। 40. प्रदर रोग : शतावर के रस को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से पित्तज प्रदर रोग मिट जाता है। 14 से 28 मिलीलीटर शतावर का रस दिन में 2 बार पीने से प्रदर रोग मे आराम मिलता है। 41. सातवें महीने के गर्भ के विकार : शतावर और कमलनाल को बराबर मात्रा में लेकर पीसे और गाय के दूध के साथ सेवन कराएं अथवा कैथ, सुपारी की जड़, धान की खील, और शर्करा या मिश्री को पानी के साथ काढ़ा बनाकर दूध में घोलकर पिलाएं। इससे सातवें महीने के गर्भ के रोग नष्ट हो जाते हैं। 42. लिंग वृद्धि : शतावर, असगंधा, कूठ, जटामांसी और कटेहली के फल को 4 गुने दूध में मिलाकर या तेल में पकाकर लेप करने से लिंग मोटा होता है और लिंग की लम्बाई भी बढ़ जाती है। 43. स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्धि के लिए : शतावर की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 1 चम्मच दिन में 3 बार 1 कप दूध के साथ पिलाने से न केवल स्त्री के स्तनों में दूध की बढ़ोतरी होगी, बल्कि मासिकस्राव के बाद आई कमजोरी भी दूर होती है। 44. हिस्टीरिया : 2 चम्मच शतावर की जड़ का रस 1 कप दूध के साथ सुबह-शाम पीने से हिस्टीरिया रोग में लाभ होता है।

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